मटियाये हाथों से ही केसर ने सारा गोबर उठाया और गाय की पीठ थपथपा कर आगे निकल गयी। बगीचे से होते हुए केसर झोपडे़ की तरफ चली ही थी कि ये क्या, रामचिरैया बोली .....भला हो इस चिरैया का जब जब बोली है तब तब शुभ ही हुआ है का पता अबकी बार रामकिशन शहर से लौट आये।
केसर झोपडे़ के बाहर ही उपले बनाने लगी। तभी भैरो ने टोका ..का रे केसर इस फागुन भी ऐसे ही कोरी कोरी रहेगी। केसर ने पीछे मुड़कर...तेरा कलेजा क्यों फटता है रे भैरो तेरे घर में मां बहन नही है होली खेलने को..देख केसर बात मुझसे होती है तो मुझ पर ही रहा कर मां बहन को बीच में ना लाया कर, मैं तुझसे प्यार करता हूं इसलिए तेरी बाते सह लेता हूं। ...बड़ा आया प्यार करने वाला सकल देखी है अपनी गोबर का ढेला लगता है। सुन आज मुझे फिर से रामचिरैया मिली थी बड़ी मधुर मधुर बोली में रामकिशन ..रामकिशन कहके पुकारी, देखना इस बार मेरा रामकिशन फागुन में लौटकर जरूर आयेगा...क्यों बावली होती है केसर रामकिशन आने वाला नही है ! तूं बेवजह ही उसका इंतजार करके अपनी ये जवानी बर्बाद कर रही है।
केसर आज खाट पर करवटे बदलते ही बितायी थी रात। भोर होते ही केसर नदी पर चली गयी पानी भरने। पानी भरते हुए उसे फिर से रामचिरैया ने पुकारा, कही भैरो की बाते ही सच तो नही..ना हो! वह मुहजला तो मेरे सुख से वैसे ही जलता है। केसर धूप उगने तक नदी के कछार पर ही बैठी रही। केसर का कोई था भी तो नही रामकिशन के अलावा, इसलिए बिचारी रामकिशन के इंतजार में ही दिन बिताती है।आज केसर का घर लौटने का मन नही हो रहा था। भैरो केसर को ढूंढता हुआ नदी पर पहुंचा......केसर ..अरे ओ केसर यहां बैठी क्या कर रही है?
जरूर मेरी राह देख रही है...तेरी राह देखे मेरा ठेगा, चल भाग यहां से। ...केसर तूं कह तो मै तेरी मन की एक खबर सुनाऊ..! केसर चहक कर बोली ...जरूर मेरा रामकिशन लौट आया है। भैरो...हां वही बताने आया हूं..सच! केसर भागती हुयी घर की ओर चली.! भैरो पीछे से आवाज देता है...केसर वहां भला न लगे तो वापस आना मैं तेरा यही इंतजार करूंगा। केसर झोपडे़ की तरफ गयी..कैसा झूठ बोलता है भैरो! तभी केसर की सहेली चंदा आकर कहती है...केसर तेरा रामकिशन शहर से छोरी लाया है चल चलकर देख ...क्या कहती है चंदा तेरी मति मारी गयी है क्या ,भला मेरे रहते रामकिशन दूसरी छोरी क्यों लायेगा।
केसर रामकिशन के घर की तरफ जाती है। केसर बास के झुरमुट तक ही सिमट कर रामकिशन को देखती है...कैसा चिकना हो गया है रामकिशन, बगल में तो कोई छोरी है पर क्या पता कोई और हो। रामकिशन सबके बीच बैठा ठहाके लगा रहा था। केसर को देखकर...अरे केसर इधर तो आ तुझे किसी से मिलाता हूं! देख ये है माधुरी मेरी ब्याहता, गांव दिखाने लाया हूं। केसर कुछ बोले इससे पहले उसका गला भर आया। क्या पता रामकिशन उसका मजाक ही बनाये, इसलिए बिना कुछ बोले वापस लौट गयी। वापस लौटी नदी के पास तो भैरो वही था। केसर को देखकर भैरो बोला देख केसर मैं न कहता था..तूं वापस लौटेगी तूं समझ नही रही थी तेरी रामचिरैया मेरा नाम ही तूझे बता रही थी..तू मन छोटा क्यों करती है केसर मै तो तेरा हूं ही। नदी पर फिर से रामचिरैया बोली तो केसर भैरो की तरफ देखकर कहती है..भैरो तू समझता है रामचिरैया की बोली..हां केसर क्योंकि रामचिरैया मुझे भी कई बार केसर केसर नाम सुनाता था..अच्छा ! हां केसर रामचिरैया उसकी जरूर सुनता है जो सच्चें मन से किसी को चाहता है..भैरो तूं ना होता तो मैं कहां जाती..अरे छोड़ केसर तूं मुझे मिल गयी अब किस बात की चिंता...ऐसे ही बाते करते करते भैरो और केसर झोपडे़ की तरफ चल दिये
सुनीता गोंड