पश्चिम से आती हुयी बयारो की ठंडी हवाओ का झोका जैसे ही आंगन तक पहुंचा रात में खिलती हुयी चांदनी जैसे खिलखीला उठी थी। बेसुध मयूरी ने एक बार फिर से खिड़की से बाहर झाका रात का चद्रमा अभी खिड़की के सिरहाने पर ही अटका खड़ा था। मयूरी फिर से अपने सिरहाने पर रखी हुयी चिट्ठी को उठाती है और एक सरसरी निगाह से पूरी चिट्ठी फिर से पढ़ डालती है...कुछ खास तो नही लिखा है इसमें, प्यार के दो शब्द भी नहीं लिखे है अनुपम ने, फिर उसने मुझे ये चिट्ठी क्यों लिखी है मयूरी ने पत्र के सबसे नीचे लिखे आखरी वाक्य को फिर से पढ़ा..."कुछ अभी शेष है" मयूरी ने वो पत्र फिर से अपने ह्दय से लगाया, मयूरी की आंखे सजल होकर छलक उठी। मयूरी फिर से उन्ही शब्दो के उत्तर देते खुद को पायी....शेष नहीं अनुपम तुम्हारे बिना तो पूरा जीवन ही शेष है। मयूरी ने अनुपम तो द्वारा कहे हुए इन अंतिम वाक्य में ही अपना प्यार पाया..हां यही तो कहना चाहता था अनुपम और शायद मै भी वही सुनना चाहती थी। इस रात तो शायद मेरी ये प्रतिक्षा खत्म होनी थी, पर देखो अनुपम तुमने मुझे फिर से इस शेष में बांध दिया। इतने दिनों में मैने तुम्हें अनेको पत्र लिखे पर तुमने मुझे कोई जवाब नहीं दिया और फिर आज तुम्हारा वापस आने का पत्र मुझे मेरे उन सारे अनगिनत पत्रों का जवाब दे दिया था पर देखो आज भी मैं निरूत्तर पायी हूं खुद को। घड़ी की सुई रात के दो पर जा टिकी थी उसके घंटी के आवाज से मयूरी ने घड़ी की तरफ देखा...शायद आज भी तुम अपने ना आने का वादा ही पूरा करोगे, मयूरी ने खिड़की की तरफ देखा चांद खिड़की में लगे शीशे के अंतिम पंक्ति से नीचे जा सरका था !...तुमने न आने को लिखा होता तो शायद मैं फिर से हर रात की तरह सुकून से सो जाती और तुम्हारे पत्र आने के झूठी इंतजार में फिर से दिन बिताती, अब तो इसी सुख में जीने की आदत हो गयी थी।
और जब तुमने आने का पत्र दिया तब भी मैं यही सोच रही थी
कि तुम्हारे आने का इंतजार क्या मेरा खत्म हो गया, सच बहुत ही सुख था तुम्हारे आने के इंतजार में, पर देखो अब ये दुःख कि तुम नहीं आये फिर से अपनी पुरानी यादें बटोर लायी थी मै हंसने का प्रयत्न कर रही थी ,पर देखो यह हंसी भी झूठी ही ठहरी सच तुम्हारे बिना इन रातों का सूनापन भी वैसा ही लगा जैसे मेरा जीवन सूना है मयूरी ने खिड़की की तरफ देखा चांद खो चुका था और रात अकेली हो चुकी थी।