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पीली धूप , लघुकथा

12 मार्च 2022

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खेत में बचे हुए अनाजों को ढकने की जुगत में रानो ने फिर से खाना नही खाया , पोटली में बधी हुयी रोटी और दो प्याज के टुकड़ों को रानो ने कई बार खाने की कोशिश की पर असाढ़ी के घूमते बादलों को देखकर रानो हर बार पोटली एक तरफ रख कर फिर से अपने हिस्से के बचे हुए अनाजों को ढकने में लग गयी...रात होते होते तो लगता है ये बादल बरस के ही जायेंगे। बादलों से टपकती हुयी बूंदे जब रानो के माथे पर टपकी रानो का दिल जैसे बैठने लगा...घर नहीं गयी तो घर में भी पानी भर जायेगा, न जाने भीमू मुनिया को अकेले कैसे सम्हालेगा ! अभी तो एक दो ही बूंदे पड़ रही है ये सोचकर रानो खलिहान में लगी हुयी पूस के आड़ में अपने को दबका लिया। पास से ही गुजरे कम्मो ने रानो को दुबका देखकर टोका...कौन? रानो..हां कम्मो चाची हम रानो ! अरे रानो इहा काहे दुबकी हो ,देख रही हो कैसे घनघोर बादल छाये है जैसे तूफान सा लग रहा है अगर एक बार बादल भीग गया तो दो तीन दिन तक पानी रूकने वाला नही है !..का कह रही हो कम्मो चाची ,अरे भगवान से मनाओ कि मुसीबत टल जाये अब इस साल के मजूरी में यही अनाज बसा है यह भी खराब हो गया तो खाने के मोहताज हो जायेंगे हम...वो तो ठीक है रानो पर इस अधियारी रात में घर लौट जा तेरा घर भी तो एक छिन्ना ही है जाने कब पानी घर में भर जाये तभी बादलो की तेज गड़गड़ाहट से बौछारे तेज हो जाती है और कम्मो चाची आंचल सर पर ढाले खलिहान से घर की ओर दौड़ जाती है। रानो जैसे इस आंधी तूफान की रात में अपने उन अनाजों को अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी...हे ईश्वर दया कर हम गरीबो तभी रानो को याद आया कि मुनिया भूखी होगी सुबह का ही छाती से मुंह लगायी है..जाने किस हाल में होंगे भीमू और मुनियां। बादल और घनघोर होकर बरसने लगे रानो खलिहान में इधर उधर दौड़कर कुछ और पुआल से अनाजों को ढक देती है...कैसी घनघोर हो रही है बारिश लगता नही दो तीन दिन तक छटेगा बादल, आज भीमू भी एक बार मुनिया को लेकर नही आया इधर, रानो फिर से पुआल के ढेर में अपने को दुबका लेती है! मन ही मन भजन गुनगुनाने लगती है काहे को जीव बनायो रे दाता, पेटवा में ज्वाला बनायों रे दाता। सब तरफ पानी ही पानी दिखने लगा रानो दुबक कर गोल गट्ठर की भांति पुआल के और भीतर घुस गयी। रात भर तेज बौछारे बिजली की चमक बादलों की गड़गड़ाहट सुनते सुनते जैसे थक कर रानो की आंखे लग गयी जब उसकी आंखे खुली थी सूर्य की पीली धूप उसके चेहरे पर पड़ रही थी रानो भागती हुयी अनाजों को देखी.. बादलो को देखकर, अब तो बादल छट ही गया आज ही ये सारा अनाज कोठली में भर दूंगी। रानो भागती हुयी घर की तरफ चली  घर पानी से भर चुका था एक कोने में भीमू और मुनिया सुख से सो रहे थे  रानो अपने माथे पर हाथ रख कर अपनी मुचमुचाती आंखो से सूर्य की उगती हुयी पीली धूप को देखकर मुस्कुरा दी।




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