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Sunita gond के बारे में

पुरस्कार और सम्मान

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दैनिक लेखन प्रतियोगिता2022-03-21

Sunita gond की पुस्तकें

Sunita gond के लेख

तुम्हारा अक्श

30 मार्च 2022
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तुम्हारे अक्श में मैने खुद को जाना हैतुम्हारी बनकर ही ़खुदको पहचाना हैमैं निःशब्द थी हर बार खुद के लिएतुम्हे पाकर ही मैने खुद को अपना माना है।लिपटी रहती थी हर शाम मेरी तन्हायी मेंलौटी थी हर बार ग

सांझ की परछाई- लघुकथा

29 मार्च 2022
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सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। मीता ने घर के काम खत्म करके राजन के खाने की टीफिन तैयार की । और खुद राजन के आफिस की ओर चल दी। आँफिस पहुँचने पर मीता ने राजन को आँफिस में नही पाया। आँफिस के प्यून से पूछने पर

कच्ची दिवारे- लघुकथा

28 मार्च 2022
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रामदीन का परिवार जितना भरा पूरा सुंदर था। उतना ही पूरे गाँव में नाम वाला भी था। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा अपने भरे पूरे परिवार में इस तरह सलग्न थे कि उन्हे कभी किसी दुःख का आभास तक नहीं होता था। रा

धूप छांव- लघुकथा

27 मार्च 2022
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विद्यानन्द अपनी सुबह की चाय लेकर जैसे ही कुर्सी पर बैठे थे कि । उन्हें अचानक से याद आया कि उनका छोटा बेटा नीतिन अपनी पढ़ाई पूरी करके दिल्ली से आज ही लौटने वाला है। विद्यानन्द ने जल्दी से अपनी सुबह की

अधूरापन- लघुकथा

26 मार्च 2022
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संज्ञा अपनी जीवन के उस मोड़ पर निकल चुकी थी जहां से जाकर शायद वह कभी लौट ही न पाये। यही तो वह चाहती थी। फिर क्यों इतनी सहमी और निराश है। उसे तो जीवन के वे सारे सुख मिल गये थे जिसकी कल्पना उसने की थी।

पिजड़ा - लघुकथा

21 मार्च 2022
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बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई म

मन मयूर हो गया

19 मार्च 2022
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अषाढ़ के बादल छाये ही थे कि मन मयूर हो गया। शायद मन का कार्य निश्चित नहीं है। मन तो हर क्षण अपने भाव बदलता है। पर मन मयूर हो गया तो निश्चित ही नृत्य भी करना चाहिए पर करेगा नही अपने मन पर काबू भी है। म

रामचिरैया- लघुकथा

17 मार्च 2022
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मटियाये हाथों से ही केसर ने सारा गोबर उठाया और गाय की पीठ थपथपा कर आगे निकल गयी। बगीचे से होते हुए केसर झोपडे़ की तरफ चली ही थी कि ये क्या, रामचिरैया बोली .....भला हो इस चिरैया का जब जब बोली है

एक बहाने से

16 मार्च 2022
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फूल खिलेंगे तो बहार भी आयेंगेटूटेंगे जब पत्ते तो पतझड़ भी कहलायेंगेबिखरे है जो आशियाने फिर से सिमट जायेंगेतुम्हें याद दिलाने लौट के फिर आयेंगे !साज है हम यूं ही बजते जायेंगेबनके खनक तेरे दिल में धड़क

मीट्टी के घर -लघुकथा

15 मार्च 2022
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सारा दिन उधड़ बुन में ही बीत गये, सरोजनी ने अपने पानदान को उठाते हुए एक चैन की सांस ली और पास ही पड़ी चारपायी पर बैठकर सुपाड़ीया कुतरने लगी....अरे मां अभी तो रहने ही दो ये सब, मीना ने गमागर्म पकौड़ीयो

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