shabd-logo

धूप छांव- लघुकथा

27 मार्च 2022

29 बार देखा गया 29
विद्यानन्द अपनी सुबह की चाय लेकर जैसे ही कुर्सी पर बैठे थे कि । उन्हें अचानक से याद आया कि उनका छोटा बेटा नीतिन अपनी पढ़ाई पूरी करके दिल्ली से आज ही लौटने वाला है। विद्यानन्द ने जल्दी से अपनी सुबह की चाय को दो तीन घूट में ही पूरा कर झटपट स्टेशन जाने के लिए तैयार हो गये थे। वैसे तो उनका बेटा साल में एक दो बार घर वापस आ ही जाता था। पर इस बार वह दो साल में पहली बार घर लौटा था। इस बार विद्यानन्द के बेटे नीतिन ने एक बार भी यह जिद्द नही की कि वह आकर दो चार दिन भी रूकेगा। विद्यानन्द की पत्नी सुरेखा ने इस बार विद्यानन्द से कई सवाल किये। कि नीतिन का आना इतनी जल्दी में और जाना भी जल्दी से मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है। नीतिन जैसे अजनबी जैसा व्यवहार कर रहा है। विद्यानन्द ने सुरेखा को यह कहकर बात टाल दिया कि, अरे बच्चे बडे़ होकर थोड़ी अपनी जिम्मेदारीयों के प्रति एकाग्र हो जाते है। हो सकता है नीतिन भी हमारे बारे में ही कुछ सोच रहा हो। सुरेखा ने विद्यानन्द के बातों पर सहमती तो जतायी पर वह फिर से एक सवाल विद्यानन्द के सामने रख दी। ...हां पर नीतिन ने तो इस बार मेरे तबीयत के बारे में भी कुछ नहीं पूछा। मुझे तो नीतिन का व्यवहार कुछ अजीब सा ही लगा। विद्यानन्द ने सुरेखा को फिर से सात्वना दी....सुरेखा तुम माँ हो इसलिए इतना कुछ सोच रही हो। विद्यानन्द जल्दी से स्टेशन पहुँचे और नीतिन का इंतजार करने लगे। नीतिन को देखते ही विद्यानन्द कुछ असमंजस में पड़ गये। ये तो नीतिन ही है। पर साथ में कौन है ? नीतिन पास आकर विद्यानन्द के पांँव छुआ पर साथ आयी हुयी महिला वैसे ही मूक बनी हुयी खड़ी रही। नीतिन ने आँखो से इशारा करके उसे विद्यानन्द के पाँव छूने के लिए कहा  तब कहीं जाकर उस औरत ने विद्यानन्द के पाँव छूए। विद्यानन्द उसके बारे में नीतिन से कुछ पूछते इससे पहले ही नीतिन ने स्वयं ही उस औरत का परिचय देते हुए। विद्यानन्द को बताया कि यह नेहा है आपकी बहू। विद्यानन्द आवाक से होकर कुछ पूछ नहीं पाये। घर लौटने पर सुरेखा ने भी वही प्रतिक्रिया दिखायी। इस पर नीतिन ने साफ तरीके से यह कह कर बात को टाल दिया कि पिताजी शादी चाहे आप करते या मैंने खुद किया दोनों का अर्थ तो एक ही है। वैसे भी नेहा मुझे पसंद आयी तो मैने सोचा आपको क्या बुलाना कम बजट में शादी भी कर ली। सुरेखा और विद्यानन्द दोनो फिर से इस बात पर कोई विरोध न जताकर मान भी गयें। जब रात को सब लोग खाने के लिए इकट्ठा हुए। तो उस समय नीतिन की पत्नी नेहा वहाँ उपस्थित नहीं हुयी। सुरेखा को पूछने पर नीतिन बात को बदल कर कुछ और ही बाते कर करने लगा....माँ नेहा ऐसे माहौल में पली बढ़ी है कि उसे यहाँ पर रहना कुछ अकाम्फटेबल सा लग रहा है। सुरेखा नीतिन के इस जवाब पर कहती है कि बेटा तुमने तो यही कहा था कि पढ़ाई पूरी होने के बाद मैं आपके साथ गाँव में ही रहूंगा। और अगर दूर रहना पड़ा तो सब साथ में ही रहेंगे। नीतिन...हां माँ तब मैं अकेला था पर अब नेहा के मुताबीक ही मुझे करना पड़ता है। और नीतिन जल्दी से खाना खा कर वहां से चला जाता है। सुरेखा विद्यानन्द से कहती है मै न कहती थी कि नीतिन बदल गया है। विद्यानन्द फिर भी नीतिन को कुछ न कहकर सुरेखा को ही समझाते है। सुरेखा यही तो जीवन है कभी सब अपन साथ रहते है। और कभी अलग हो जाते है। यही जिंदगी है। यही जिंदगी के धूप छाँव है जो कभी हमें सुकून देते है कभी उलझनो में ड़ाल देते है।







Sunita gond की अन्य किताबें

1

कवयित्री परिचय

7 मार्च 2022
1
1
1

नाम सुनीता गोंडपिता नाम श्री नदू राममाता नाम श्री मती ममता सिंह गोंडजन्मतिथि 21.01.1989पता &nb

2

आलोचनाएं साहित्य और समाज का पोषण करती है

9 मार्च 2022
0
0
0

किसी के विचारों को सहज रूप से स्वीकार कर लेना आसान होता है। इससे ना ही मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है और ना ही उनके और आपके सम्बन्धों को कोई आघात या त्रुटि पहुंचती है और आप एक ही दायरे में अपना जीवन

3

दर्द पर मेरे मुस्कुराना चाहते हो

10 मार्च 2022
0
0
0

हंस के मेरे दर्द पर कहते हो तुमकि मैं मुस्कुराना चाहते होडुबो कर मेरी कस्ती दरिया मेंकहते हो कि मैं किनारा चाहता हूं,खड़ी हूं मैं अब भी वही!जहां से लौट कर तुम दूबारा आना चाहते हो,चलो छोड़ो अब सब

4

लघुकथा, इंसानियत

10 मार्च 2022
0
0
0

उसकी आंखे उस रात भी नहीं सोई , दूध की चांशनी से सराबोर वह रात आज भी सुगना को उसकी याद दिला दिला देती है। गठीला शरीर रस्सी जैसी बांहे धसी हुयी तेज आंखे रोबदार मूंछे जिसे देखकर एक आम आदमी का रूप कम एक क

5

रात अकेली है- लघुकथा

11 मार्च 2022
0
0
0

पश्चिम से आती हुयी बयारो की ठंडी हवाओ का झोका जैसे ही आंगन तक पहुंचा रात में खिलती हुयी चांदनी जैसे खिलखीला उठी थी। बेसुध मयूरी ने एक बार फिर से खिड़की से बाहर झाका रात का चद्रमा अभी खिड़की के सिरहाने

6

पीली धूप , लघुकथा

12 मार्च 2022
0
0
0

खेत में बचे हुए अनाजों को ढकने की जुगत में रानो ने फिर से खाना नही खाया , पोटली में बधी हुयी रोटी और दो प्याज के टुकड़ों को रानो ने कई बार खाने की कोशिश की पर असाढ़ी के घूमते बादलों को देखकर रानो हर ब

7

क्या लिखूं

14 मार्च 2022
0
0
0

क्या लिखूं ?मान लिखूंअपमान लिखूंया शब्दों का तूफान लिखूं,कुछ जाने कुछ अनजानेउन लम्हों का फरमान लिखूंचलो यूं ही पहचान लिखूंजो कुछ पायी हूं इस जग सेउनका भी अब नाम लिखूंरंग फूल खुशबू और बादलथोड़ा थोड़ा न

8

मीट्टी के घर -लघुकथा

15 मार्च 2022
0
0
0

सारा दिन उधड़ बुन में ही बीत गये, सरोजनी ने अपने पानदान को उठाते हुए एक चैन की सांस ली और पास ही पड़ी चारपायी पर बैठकर सुपाड़ीया कुतरने लगी....अरे मां अभी तो रहने ही दो ये सब, मीना ने गमागर्म पकौड़ीयो

9

एक बहाने से

16 मार्च 2022
0
0
0

फूल खिलेंगे तो बहार भी आयेंगेटूटेंगे जब पत्ते तो पतझड़ भी कहलायेंगेबिखरे है जो आशियाने फिर से सिमट जायेंगेतुम्हें याद दिलाने लौट के फिर आयेंगे !साज है हम यूं ही बजते जायेंगेबनके खनक तेरे दिल में धड़क

10

रामचिरैया- लघुकथा

17 मार्च 2022
0
0
0

मटियाये हाथों से ही केसर ने सारा गोबर उठाया और गाय की पीठ थपथपा कर आगे निकल गयी। बगीचे से होते हुए केसर झोपडे़ की तरफ चली ही थी कि ये क्या, रामचिरैया बोली .....भला हो इस चिरैया का जब जब बोली है

11

मन मयूर हो गया

19 मार्च 2022
0
0
0

अषाढ़ के बादल छाये ही थे कि मन मयूर हो गया। शायद मन का कार्य निश्चित नहीं है। मन तो हर क्षण अपने भाव बदलता है। पर मन मयूर हो गया तो निश्चित ही नृत्य भी करना चाहिए पर करेगा नही अपने मन पर काबू भी है। म

12

पिजड़ा - लघुकथा

21 मार्च 2022
4
1
0

बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई म

13

अधूरापन- लघुकथा

26 मार्च 2022
0
0
0

संज्ञा अपनी जीवन के उस मोड़ पर निकल चुकी थी जहां से जाकर शायद वह कभी लौट ही न पाये। यही तो वह चाहती थी। फिर क्यों इतनी सहमी और निराश है। उसे तो जीवन के वे सारे सुख मिल गये थे जिसकी कल्पना उसने की थी।

14

धूप छांव- लघुकथा

27 मार्च 2022
0
0
0

विद्यानन्द अपनी सुबह की चाय लेकर जैसे ही कुर्सी पर बैठे थे कि । उन्हें अचानक से याद आया कि उनका छोटा बेटा नीतिन अपनी पढ़ाई पूरी करके दिल्ली से आज ही लौटने वाला है। विद्यानन्द ने जल्दी से अपनी सुबह की

15

कच्ची दिवारे- लघुकथा

28 मार्च 2022
0
0
0

रामदीन का परिवार जितना भरा पूरा सुंदर था। उतना ही पूरे गाँव में नाम वाला भी था। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा अपने भरे पूरे परिवार में इस तरह सलग्न थे कि उन्हे कभी किसी दुःख का आभास तक नहीं होता था। रा

16

सांझ की परछाई- लघुकथा

29 मार्च 2022
1
0
0

सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। मीता ने घर के काम खत्म करके राजन के खाने की टीफिन तैयार की । और खुद राजन के आफिस की ओर चल दी। आँफिस पहुँचने पर मीता ने राजन को आँफिस में नही पाया। आँफिस के प्यून से पूछने पर

17

तुम्हारा अक्श

30 मार्च 2022
0
0
0

तुम्हारे अक्श में मैने खुद को जाना हैतुम्हारी बनकर ही ़खुदको पहचाना हैमैं निःशब्द थी हर बार खुद के लिएतुम्हे पाकर ही मैने खुद को अपना माना है।लिपटी रहती थी हर शाम मेरी तन्हायी मेंलौटी थी हर बार ग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए