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1 किताब
नाम सुनीता गोंडपिता नाम श्री नदू राममाता नाम श्री मती ममता सिंह गोंडजन्मतिथि 21.01.1989पता &nb
किसी के विचारों को सहज रूप से स्वीकार कर लेना आसान होता है। इससे ना ही मतभेद की स्थिति उत्पन्न होती है और ना ही उनके और आपके सम्बन्धों को कोई आघात या त्रुटि पहुंचती है और आप एक ही दायरे में अपना जीवन
हंस के मेरे दर्द पर कहते हो तुमकि मैं मुस्कुराना चाहते होडुबो कर मेरी कस्ती दरिया मेंकहते हो कि मैं किनारा चाहता हूं,खड़ी हूं मैं अब भी वही!जहां से लौट कर तुम दूबारा आना चाहते हो,चलो छोड़ो अब सब
उसकी आंखे उस रात भी नहीं सोई , दूध की चांशनी से सराबोर वह रात आज भी सुगना को उसकी याद दिला दिला देती है। गठीला शरीर रस्सी जैसी बांहे धसी हुयी तेज आंखे रोबदार मूंछे जिसे देखकर एक आम आदमी का रूप कम एक क
पश्चिम से आती हुयी बयारो की ठंडी हवाओ का झोका जैसे ही आंगन तक पहुंचा रात में खिलती हुयी चांदनी जैसे खिलखीला उठी थी। बेसुध मयूरी ने एक बार फिर से खिड़की से बाहर झाका रात का चद्रमा अभी खिड़की के सिरहाने
खेत में बचे हुए अनाजों को ढकने की जुगत में रानो ने फिर से खाना नही खाया , पोटली में बधी हुयी रोटी और दो प्याज के टुकड़ों को रानो ने कई बार खाने की कोशिश की पर असाढ़ी के घूमते बादलों को देखकर रानो हर ब
क्या लिखूं ?मान लिखूंअपमान लिखूंया शब्दों का तूफान लिखूं,कुछ जाने कुछ अनजानेउन लम्हों का फरमान लिखूंचलो यूं ही पहचान लिखूंजो कुछ पायी हूं इस जग सेउनका भी अब नाम लिखूंरंग फूल खुशबू और बादलथोड़ा थोड़ा न
सारा दिन उधड़ बुन में ही बीत गये, सरोजनी ने अपने पानदान को उठाते हुए एक चैन की सांस ली और पास ही पड़ी चारपायी पर बैठकर सुपाड़ीया कुतरने लगी....अरे मां अभी तो रहने ही दो ये सब, मीना ने गमागर्म पकौड़ीयो
फूल खिलेंगे तो बहार भी आयेंगेटूटेंगे जब पत्ते तो पतझड़ भी कहलायेंगेबिखरे है जो आशियाने फिर से सिमट जायेंगेतुम्हें याद दिलाने लौट के फिर आयेंगे !साज है हम यूं ही बजते जायेंगेबनके खनक तेरे दिल में धड़क
मटियाये हाथों से ही केसर ने सारा गोबर उठाया और गाय की पीठ थपथपा कर आगे निकल गयी। बगीचे से होते हुए केसर झोपडे़ की तरफ चली ही थी कि ये क्या, रामचिरैया बोली .....भला हो इस चिरैया का जब जब बोली है
अषाढ़ के बादल छाये ही थे कि मन मयूर हो गया। शायद मन का कार्य निश्चित नहीं है। मन तो हर क्षण अपने भाव बदलता है। पर मन मयूर हो गया तो निश्चित ही नृत्य भी करना चाहिए पर करेगा नही अपने मन पर काबू भी है। म
बेसर चूल्हे से उठते हुए धुएं से कई बार खास चुकी थी। लेकिन लकड़ीयां गीली होने की वजह से आग बार बार बुझ जाती। बेसर की सास आकर कई बार खाने के बारे में पूछ चुकी थी। अंत में देर होते देख बेसर की सास रसोई म
संज्ञा अपनी जीवन के उस मोड़ पर निकल चुकी थी जहां से जाकर शायद वह कभी लौट ही न पाये। यही तो वह चाहती थी। फिर क्यों इतनी सहमी और निराश है। उसे तो जीवन के वे सारे सुख मिल गये थे जिसकी कल्पना उसने की थी।
विद्यानन्द अपनी सुबह की चाय लेकर जैसे ही कुर्सी पर बैठे थे कि । उन्हें अचानक से याद आया कि उनका छोटा बेटा नीतिन अपनी पढ़ाई पूरी करके दिल्ली से आज ही लौटने वाला है। विद्यानन्द ने जल्दी से अपनी सुबह की
रामदीन का परिवार जितना भरा पूरा सुंदर था। उतना ही पूरे गाँव में नाम वाला भी था। रामदीन और उनकी पत्नी सुनन्दा अपने भरे पूरे परिवार में इस तरह सलग्न थे कि उन्हे कभी किसी दुःख का आभास तक नहीं होता था। रा
सब कुछ तो अच्छा चल रहा था। मीता ने घर के काम खत्म करके राजन के खाने की टीफिन तैयार की । और खुद राजन के आफिस की ओर चल दी। आँफिस पहुँचने पर मीता ने राजन को आँफिस में नही पाया। आँफिस के प्यून से पूछने पर
तुम्हारे अक्श में मैने खुद को जाना हैतुम्हारी बनकर ही ़खुदको पहचाना हैमैं निःशब्द थी हर बार खुद के लिएतुम्हे पाकर ही मैने खुद को अपना माना है।लिपटी रहती थी हर शाम मेरी तन्हायी मेंलौटी थी हर बार ग