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मानव और प्रकृति

18 सितम्बर 2022

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चांदनी चंद्रमा की देखी है
देखा है सूरज को दमकते,
मेघ गरजते बरसते देखा है
देखा नदियों को निश्चल बहते।

तारों को टिमटिमाते देखा है
देखा पवन उमंग संग बहते,
पक्षियों के कलरव देखा है
देखा वन्यप्राणी खेलते कूदते।

फूलों को खिलते देखा हैं
देखा भवरों को मुस्काते,
सागर की लहरों को देखा है
देखा मेघ पर्वत से टकराते।

फिर देखा मैने मानव को
बंधा हुआ वह मोह पाश में,
जला हुआ वह ईर्ष्या द्वेष में
कुचक्र रचते कपट स्वार्थ में।

छोड़ प्रकृति की सौंदर्यता
बंध रहा वह अर्थ जाल में,
भुल रहा संस्कार पारंपरिक
बंध रहा वह असभ्य पाश में।
✍️ दीपक कुमार, १८/०९/२०२२

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