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विजय-दशमी

hindi articles, stories and books related to Vijay-dashmi


अब तक हमने पढ़ा कि किस तरह दिशा जर्नलिस्ट से रेस्टॉरेंट की ओनर होने का सफर तय करती है | दिशा का रेस्टॉरेंट द कैफे ही दिशा की ज़िन्दगी बन जाता है | आपको अनोखी याद है ? वो प्यारी सी लड़की जो कहानी की शुरुआ

रावण बनना भी कहां आसान...रावण में अहंकार था तो पश्चाताप भी था...रावण में वासना थी तो संयम भी था...रावण में सीता के अपहरण की ताकत थीतो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श न करने का संकल्प भी था...सीता जीवित

विजयादशमी के बारे में जानकारी|

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कहाँ दिखता है अपने अन्दर का रावण,कहाँ मरता है अपने अन्दर का रावण,जलाने चले हैं हम पुतले रावण को,रावण,कुम्भकर्ण,मेघनाथ सब मिल जाएँगे,अपने अन्दर तो झाँको।त्रेतायुग में रावण ने हरा माता सीता को,आज हर गली

बुराई का नाश, अच्छाई की जीत सतयुग से चली आ रही है जब जब धरा पर असुरों ने फैलाया तांडव तब तब ईश्वर को होना पड़ा धरा पर अवतरित..  अच्छाई पर बुराई का प्रतीक है विजयादशमी का पर्व इस दिन रावण का राम ने वध

मेरे प्यारे अलबेले मित्रों ! बारम्बार नमन आपको🙏🙏 🙏जय माता की🙏जय जय श्रीराम🙏 अन्धकार पर प्रकाश की, असत्य पर सत्य की, आलस्य पर श्रम की, घृणा पर प्रेम की, कटुता पर मधुरता की, दुख पर सुख की, दरिद्रता

हर साल हम विजयादशमी का त्योहार बड़े हर्षोलास के साथ मनाते है और संकल्प लेते है की जिस प्रकार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं दशहरा ठीक उसी प्रकार हम भी अपने मन की व्याधियों को समाप्त कर नेक इंसान

दषहरा के पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। बुराई चाहे कितनी भी षक्तिषाली क्यो न हों और अच्छाई का साथ देने वाले लोग कितने ही दुर्बल स्थिति में क्यों न हो, धर्म और सच्चाई की षक्ति अंत मे बुराई

हैलो सखी।कैसी हो हम अच्छे है और आप को व आप के परिवार को विजयादशमी के उपलक्ष्य में शुभकामनाएं देते है।कल डायरी लेखन मे प्रथम स्थान प्राप्त किया ।मन मे प्रसन्नता है।अब आगे किताब तभी प्रकाशित करेंगे जब र

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मुझे बचपन से ही रामलीला देखने का बड़ा शौक रहा है। आज भी आस-पास जहाँ भी रामलीला का मंचन होता है तो उसे देखने जरूर पहुंचती हूँ। बचपन में तो केवल एक स्वस्थ मनोरंजन के अलावा मन में बहुत कुछ समझ में आता

*मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम*राम तो हैं आदर्श हमारे,कौशल्या के राजदुलारे,वो अयोध्या धाम में पधारे,भारतीय जनमानस के प्यारे।आदर्श पति,आदर्श भाई हैं,आदर्श पुत्र के मानक न्यारे,पिता वचन न जाये खाली,इसीलिए

रावण तेरे अंदर है तू किस रावण को जला रहा। यह सोच गलत तेरी है मानव तू अंहकार में घूम रहा।। तू समझ रहा खुद को सच्चा फिर मानव से क्यों जलता है।काम, क्रोध,मद ,लोभ,मोह में अंधा हो तू चलता है।। तेरे रिपू त

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