अपराजिता
विश्वा की दो लड़कियाँ थीं और वह अपने माँ बहनों के दबाव में आकर तीसरे बच्चे को जन्म देने की सोच रहा था उसे भी लग रहा था कि एक लड़का हो जाए तो ज़िंदगी तर जाएगी । पत्नी की बात को उसने अनसुना कर दिया ।
जब सुनंदा को पाँचवा महीना लगा तब विश्वा के मन में यह बात आई कि क्यों न लिंग का पता कर लूँ । वह सुनंदा को लेकर अपने दोस्त के पहचान की डॉक्टर के पास ले गया । डॉक्टर ने कहा इनका तो पाँचवा महीना चल रहा है अब जो भी हो उसके लिए तैयार रहना पड़ेगा क्योंकि अब मैं कुछ नहीं कर सकती । विश्वा ने कहा टेस्ट तो कर दीजिए शायद मेरी क़िस्मत अच्छी हो । डॉक्टर ने कहा ठीक है सुनंदा को लेकर अंदर गई और उसने उसका टेस्ट किया तो लड़की थी सुनंदा ने कहा डॉक्टर आप मेरे पति को बताइए कि लड़का है बाद में मैं सँभाल लूँगी वह दिल का बहुत ही अच्छा है सिर्फ़ माँ बहनों के कारण कभी-कभी ऐसा व्यवहार करता है । सुनंदा की बात सुनकर डॉक्टर ने चैन की साँस ली क्योंकि वह यह काम नहीं करना चाहती थी । बाहर आकर उसने कहा मुबारक हो आपको लड़का है । विश्वा बहुत ख़ुश हो गया । बाक़ी के चार महीने कैसे गुजरे उसे पता ही नहीं चला ।
आख़िर वह दिन आ ही गया सुबह से ही विश्वा परेशान था क्यों नहीं मालूम उसे लग रहा था कुछ गड़बड़ी होने वाली है । सुनंदा को सही समय पर ही लड़की पैदा हो गई जैसे ही नर्स ने आकर बताया कि लड़की हुई है विश्वा निराश हो गया पर मरता क्या न करता वह इतना बुरा नहीं था कि बच्ची को जान से मार डाले । सुनंदा और बच्ची को देखने अंदर गया उसकी आँखें खुली की खुली रह गईं थी इतनी ख़ूबसूरत बच्ची उसने किसी के घर ख़ासकर अपने ख़ानदान में तो नहीं देखा था बड़ी बड़ी आँखों से बच्ची उसे देख रही थी झट से उसने उसे गोद में उठा लिया तभी डॉक्टर वहाँ पहुँचती हैं और कहती हैं विश्वा बच्ची नहीं चाहिए तो किसी को दे देते हैं बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके बच्चे नहीं हैं ,वे बच्ची को गोद लेने के लिए भी तैयार हैं कहो तो किसी से बात करूँ । विश्वा ने कहा - नहीं डॉक्टर नहीं मेरी फूल सी बच्ची को मैं किसी को भी नहीं दूँगा । इसे मैं ही पालूँगा । सुनंदा डॉक्टर की तरफ़ देख कर मुस्कुराती है जैसे कह रही हो कि मैंने कहा था न । बच्ची को और सुनंदा को विश्वा घर लेकर आ गया । उसका नामकरण भी बड़ी ही धूमधाम से किया और उसका नाम रखा प्रिया । माँ और बहनों को उसने मुँह खोलने नहीं दिया और प्रिया उसकी आँख का तारा बन गई ।एक मिनट उसे अपने से अलग नहीं करता था ।
प्रिया भी खाना ,पीना, सोना सब पिता के हाथ से ही करवाती थी ।प्रिया अब सात साल की हो गई थी । स्कूल भी जाने लगी । पढ़ने में भी बहुत होशियार थी । स्कूल में पढ़ने के बाद उसे फिर से पढ़ने की ज़रूरत ही नहीं होती थी । प्रिया बचपन से ही अपने पापा से कहती थी कि वह डॉक्टर बनना चाहती है । विश्वा भी सोचता था कि लड़की इतनी होशियार है तो उसकी ख्वाहिश ज़रूर पूरी करनी चाहिए । इसलिए वह ओवर टाईम भी करता था और प्रिया के लिए अलग से बैंक अकाउंट भी खोल दिया था । हर महीने उसमें पैसे जमा करता था ।
एकदिन विश्वा प्रिया को स्कूल छोड़ने जा रहा था । प्रिया घर से ही उस पर नाराज़ थी मुँह फुलाए बैठी थी क्योंकि उसकी दोनों बहनें रिक्शे में स्कूल जाती थी पर उसके पापा उसे स्कूटर पर स्कूल छोड़ने जाते थे ।उसे भी बहनों के साथ रिक्शे में ही स्कूल जाना था पर विश्वा उसे छोड़ने जाना चाहता था ।इसीलिए वह ग़ुस्से में थी पर उसके पापा उसे बहला फुसलाकर स्कूटर पर स्कूल ले जा रहे थे ।
बेटी को नाखुश देख विश्वा भी उदास हो गया था परंतु वह अपने साथ ही ले जाना चाहता था । इसी उधेड़बुन में उसने सामने से आ रहे ट्रक को नहीं देखा और उसकी स्कूटर की टक्कर ट्रक से हो गई । पीछे बैठी प्रिया ज़ोर से चीखती है और बेहोश हो जाती है । आसपास के लोगों ने विश्वा को उठाया वह ठीक था उसे ज़्यादा चोटें नहीं आई थी परंतु पीछे बैठी प्रिया ही उछलकर सड़क पर गिर गई थी । विश्वा लोगों के द्वारा दिए गए पानी को पीकर देखता है। प्रिया सड़क पर पड़ी है ।किसी ने एंबुलेंस बुलवाया और उसे अस्पताल लेकर गए । वहाँ पहुँच कर डॉक्टर को सब बताते हैं । डॉक्टर तुरंत उसका इलाज शुरू करते हैं । विश्वा की भी मरहम पट्टी करते हैं । प्रिया को आपरेशन थियेटर में लेकर जाते हैं । नर्सों की भाग दौड़ से लग रहा था कुछ अनहोनी हुई है । विश्वा को अपनी नहीं बेटी की फ़िक्र ज़्यादा हो रही थी ।
ऑपरेशन थियेटर से डॉक्टर बाहर आते हैं उन्हें देखते ही विश्वा उनके पास दौड़कर जाता है । डॉक्टर विश्वा से कहते हैं ,विश्वा जी आप दिल पर पत्थर रख कर मेरी बात सुनिए मुझे खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि आपकी बेटी के एक पैर को घुटनों तक काटना पड़ा ।मैंने बहुत कोशिश की कि मैं कुछ कर सकूँ पर मैं नाकामयाब रहा मुझे माफ़ कर दीजिए । तीन चार दिन उन्हें यहीं रखिए । ठीक होते ही आप घर ले जा सकते हैं,कहते हुए डॉक्टर वहाँ से चले गए । विश्वा की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गई वह रोते हुए अपने आपको कोसने लगा कि जिद करके उसे स्कूटर पर स्कूल ले जाना चाहता था जबकि वह अपनी बहनों के साथ रिक्शे में जाना चाहती थी । ख़ैर जो हो गया उसे कोई बदल तो नहीं सकता था पर आगे की सोचना ज़रूरी था ।
जैसे ही प्रिया को होश आया तो उसने सबसे पहले पूछा पापा कैसे हैं ? फिर जब उसे अपने बारे में पता चला वह फूटफूट कर रोने लगी क्योंकि उसे नृत्य बहुत पसंद था वह भरत नाट्यम भी सीख रही थी । उसे लगा अब वह कभी भी डांस नहीं कर सकेगी । दो दिन बाद डॉक्टर ने प्रिया को अस्पताल से घर भेज दिया । प्रिया के घर आने के पहले ही बहनों और माता-पिता ने सोचा था कि प्रिया को अपाहिज नहीं बनाना है बल्कि उसे हौसला देकर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए उसकी मदद करनी है । प्रिया के घर में आते ही सबने बहुत ही धूमधाम से उसका स्वागत किया किसी ने भी अपने चेहरे पर दुख को नहीं दर्शाया बल्कि घर के माहौल को ख़ुशनुमा बनाया । प्रिया घर आकर सबको देखकर बहुत खुश हो गई ।
प्रिया ने धीरे-धीरे अपनी इस स्थिति से समझौता कर लिया । उसने अपनी कमजोरी को अपनी ताक़त बनाया और अच्छे से पढ़ने लगी । अपने काम भी अपने आप करने की कोशिश करने लगी ।पिता ने उसके लिए एक व्हीलचेयर भी ख़रीद दिया था । शुरू में लोग कुछ न कुछ कहते थे पर धीरे-धीरे लोगों ने भी कहना बंद कर दिया । उसने दसवीं में टॉप किया । अब उसने बारहवीं में भी टॉप किया था । इसलिए उसे छात्रवृत्ति भी मिलने लगी । इन्हीं दिनों उससे बड़ी दोनों बहनों कीं शादियाँ भी अच्छे घरों में हो गई । माता-पिता और प्रिया ही घर में रहते थे । विश्वा भी अब परिस्थितियों का सामना करने लगा और प्रिया की ज़रूरत पड़ने पर ही उसकी मदद करने लगा ।उसके न कहते ही वह चुप हो जाता था ।
विश्वा ऑफिस से घर आ रहा था ।उसका फ़ोन नॉन स्टॉप बज रहा था ।उसने अपनी गाड़ी एक तरफ़ पार्क की और देखा तो डॉक्टर का फ़ोन था ।उसने उठाया तो उधर से डॉक्टर की आवाज़ आ रही थी विश्वा खुश खबरी है बाहर से डॉक्टर आए हैं मैंने उन्हें प्रिया के बारे में बताया है वे उसे एकबार देखना चाहते हैं लेकर आ सकोगे । विश्वा ने कहा ज़रूर डॉक्टर मैं घर जाकर उसे लेकर आता हूँ ।ठीक है विश्वा वे कल सुबह जाने वाले हैं तो समय लेकर आ जाना । विश्वा घर जाकर पत्नी और प्रिया को सब समझाता है और प्रिया को लेकर डॉक्टर के पास जाता है । डॉक्टर प्रिया के पैर को चेक करते हैं और कहते हैं कि जयपुर का पैर इसमें लगा सकते हैं हम जब एक सप्ताह बाद आएँगे पूरी बातें करेंगे ।
सब ख़ुशी ख़ुशी घर वापस आ गए । विश्वा तो हवा में ही उड़ने लगा उसे सपने भी आने लगे जैसे प्रिया पहले के समान दौड़ने लगी है । एक सप्ताह उसके लिए एक साल के बराबर का था वह दिन आ ही गया जब डॉक्टर ने फिर से विश्वा को प्रिया के साथ बुलाया और पूरे पैर का माप लेकर उसके लिए जयपुर का पैर लाए और प्रिया के पैर को लगा दिया और धीरे-धीरे चलने का अभ्यास करने के लिए कहा । ठीक एक महीने के बाद प्रिया बिना किसी के सहारे के चलने लगी । उसका मेडिकल कॉलेज में एडमिशन भी हो गया । साल महीने कैसे गुजर गए पता ही नहीं चला । विश्वा रिटायर हो गया प्रिया डॉक्टर हो गई और तभी उसके लिए एक डॉक्टर लडके का ही रिश्ता भी आया । प्रिया ने उनके सामने शर्त रखी कि उसके माता-पिता भी उसके साथ रहेंगे तभी वह इस शादी के लिए तैयार हो जाएगी उनकी तरफ़ से कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि वह लड़का विमल अपने माता-पिता का इकलौता वारिस था पिता सालों पहले गुजर गए थे माँ भी डॉक्टर थी । उनका बड़ा सा बँगला था नौकर चाकर सब थे इसलिए प्रिया की शादी होते ही विश्वा भी अपनी पत्नी को लेकर उनके घर चला गया वैसे उसे पसंद नहीं था पर बेटी का मोह उसे रोक नहीं पाया । अपने अंतिम समय तक वह प्रिया के साथ ही रहा और अपनी आख़री साँस भी उसने प्रिया की गोद में सर रख कर ही छोड़ दिया ।विश्वा ने अपनी सारी ज़िंदगी उस बेटी के लिए किया जिसे कभी वह इस दुनिया में लाना भी नहीं चाहता था । इस तरह के पिया को क्या नाम दें ?
कामेश्वरी