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अपराजिता विश्वा की दो लड़कियाँ थीं और वह अपने माँ बहनों के दबाव में आकर तीसरे बच्चे को जन्म देने की सोच रहा था उसे भी लग रहा था कि एक लड़का हो जाए तो ज़िंदगी तर जाएगी । पत्नी की बात को उसने अनसुना
ज़िंदगी न मिलेगी दोबारा विशाल इंजीनियरिंग फोर्थ इयर में था और कैंपस सेलेक्शन में उसे एक बड़ी कंपनी में जॉब मिल गईथी । नौकरी पाकर वह बहुत खुश था क्योंकि बचपन से उसे लगता था कि जल्दी से पढ़ाई ख़त्म कर
घुटन निकिता ऑफिस से घर आई तो माँ ने कहा निकी तेरे लिये कोरियर आया है । जी माँ देख लेती हूँ । मैंहाथ मुँह धोने जा रही हूँ । आप चाय बना दीजिए न प्लीज़ । निकिता टावेल से मुँह पोंछते हुए आती हैऔर सो
अंत भला तो सब भला राजन एक छोटे से गाँव में रहता था । परिवार के नाम से उसके साथ कोई नहीं था । वह गाँव के लोगोंकी सहायता करता था । बदले में उसे खाना और रहने की जगह मिल जाती थी । जब वह थोड़ा बड़ाहुआ तो
अंतिम फ़ैसला रामकिशन सुबह की सैर करके आए थे । उनको आते देखते ही सुलोचना चाय बनाने चली गई । जैसेही रामकिशन फ़्रेश होकर आए दोनों बैठकर चाय पीने लगे ।उसी समय बाहर गेट के खुलने कीआवाज़ हुई ।सुलोचना उठती