जीवन मे केवल दो ही सार्थक परिणाम होता है
एक *या तो आप सफल होंगे*
दूसरा *या फिर असफल होंगे*
परन्तु ये सार्थक परिणाम तभी मिलता है
जब आप न्यूनम से अधिकतम के बीच का कोई भी प्रयास करते हैं।
अर्थात परिणाम का सीधा सीधा संबंध प्रयास है ।
जो प्रयास नहीं करते हैं दूसरों के भरोसे बैठे रहते हैं उन्हें परिणाम नहीं मिलता है क्योंकि वो सार्थकता से बहुत परे हैं
वे कल्प लोक में बैठे हुए उस व्यक्ति के समान है कि अगर मेरे पास ये होता तो मैं ऐसा कर दूंगा मैं वैसा कर दूंगा ।
पर उसमें और असफल व्यक्ति में जो सबसे बड़ी असमानता ये है की
असफल व्यक्ति आज नहीं तो कल पुनः प्रयास करेगा और तब तक प्रयास करते रहेगा जब तक वह सफल ना हो जाये अर्थात जब वह अपने न्यूनतम से अधिकतम के सीमा में पहुँचेगा सफलता उसको मिल ही जाएगी ।
परन्तु जो व्यक्ति प्रयास ही नहीं करता है
उसके पास नाना प्रकार के बहाने होते हैं
बीमारियाँ होती है
धन नहीं होता है
समय नहीं होता है
या वो सिर्फ अपने मन की करने की बात करेंगे ।
पर सब कुछ के बावजूद वो न्यूनतम प्रयास भी नहीं करेंगे
इस प्रकार के व्यक्ति दुसरो को अपनी असफलता के लिए कोषते हैं , या जो दूसरा व्यक्ति प्रयास कर रहा है उसे रोकने का प्रयास करते हैं , या बैठ कर कुछ चमत्कार होने का इंतजार करते हैं ।
ऐसा नहीं है कि ये सफल नहीं होते हैं
परन्तु ये वैसी ही सफलता है जैसे गेहूँ के साथ घुन का पीसना
या सीधा सीधा अर्थ है कि भीख में सफलता मिलती है
क्योंकि जो प्रयास नहीं करते हैं और वे सफल हो गए हैं तो इसके पीछे किसी और के प्रयास का परिणाम का फायदा मिलता है
जिसे मैं *भीख या खैरात में मिली सफलता* कहने में जरा भी नहीं हिचकता ।
मंजिल तो मिल ही जाएगी भटक कर सहीं
असफल तो वो हैं जो घर से निकलते नहीं
रूपेन्द्र साहू "रूप"