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हरसिंगार ।

13 नवम्बर 2021

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हरसिंगार
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(फोटो स्रोत्र: स्वयं का कैमरा)

हरसिंगार यानी हरि का श्रृंगार । हरसिंगार पुष्‍प का पूजा में बड़ा महत्‍व है । सामान्‍यत: जमीन पर गिरे हुवे पुष्‍पों का पूजा में उपयोग नहीं किया जाता लेकिन  गिरे हुवे हरसिंगार के पुष्‍पों को जल से धोकर पूजा में प्रयोग करना अनुमत है । 

हरसिंगार के फूलों का जीवन काल मात्र तीन प्रहर का ही होता है । संध्‍या ढलने के साथ ही फूल खिलने शुरू हो जाते है । रात होते होते पूरा वृक्ष छोटे-छोटे सफेद फूलों से लद जाता है । फूल की डण्‍डी व केन्‍द्र बिन्‍दु,केसरिया रंग से सजे होते है । छोटी-छोटी सफेद पत्तियों के साथ केसरिया रंग का यह संयोजन फूल की छटा को अप्रमित कर देता है । जहां एक ओर फूल का सौन्‍दर्य आंखों को मंत्र मुग्‍ध कर देता  है तो वहीं  दूसरी ओर फूल से झरती  भीनी-भीनी अनिर्वचनीय सुगन्‍ध मन को मोह लेती है । 

रात को खिला फूल, उषा के उजाले के साथ ही शाख से झर जाता है । हवा के हल्‍के से झोंके या वृक्ष के तने या शाखाओं को होले से हिलाने से  ही वृक्ष की तलहटी फूलों से भर जाती है । 

हरसिंगार के फूल में एक उत्‍कंठित  भक्‍त की छवि का आभास होता है जो प्रभु मिलन को अधीर है, जिसके लिए  जीवन का एकमात्र लक्ष्‍य  अपने इष्‍ट देव के चरणों में अपने आप को अर्पित कर देना ही है।  वह,इन्‍तजार नहीं कर सकता कि पुजारी आये और उसे शाखा से तोड़  पुष्‍पांजलि में शामिल करें । वह आशंकित रहता  है कि कहीं, पुजारी उसे चुनना भूल न जाये । अपनी आशंका को मिटाने के लिए वह बगिया में पुजारी के आने से पहले, पूर्व दिशा में उषा के उजास के फैलने से पहले;  शाख से झर जाता है, बगिया की धरा पर  बिछ जाता है  कि पुजारी की नजर  सबसे पहले उस पर ही पड़े और वह उसे अपनी  पूजा के फूलों की  डलिया में डाल ले।  

हरसिंगार का वृक्ष सागर मंथन के समय मिले 14 रत्‍नों में से एक  है । इसे देवताओं द्वारा   इन्‍द्रलोक में लगाया गया ।  माता लक्ष्‍मी का प्राकटय भी समुद्र से हुआ अत: हरसिंगार के पुष्‍प माता लक्ष्‍मी को बहुत प्रिय है।  

हरसिंगार वृक्ष का एक नाम पारिजात भी है । कृष्‍ण लीला में एक प्रसंग है कि जब देवर्षि नारद ने देवी रूक्‍मणी को हरसिंगार के पुष्‍प प्रदान किये तो उन्‍होंने उन पुष्‍पों को  अपने बालों में लगा लिये । देवी सत्‍यभामा ने जब  देवी रूक्‍मणी के बालों में सजे हुवे हरसिंगार के फूल देखे  तो उन्‍होंने भगवान कृष्‍ण से हरसिंगार के वृक्ष की मांग की । देवराज इन्‍द्र द्वारा मना करने पर श्रीकृष्‍ण ने उन्‍हें  युद्ध में पराजित कर हरसिंगार का वृक्ष, द्वारका में ले आये और देवी सत्‍यभामा के महल में लगा दिया ।

ऐसी आस्‍था है कि भगवान श्री कृष्‍ण द्वारा स्‍वर्गलोक से लाया गया हरसिंगार का  वृक्ष, वर्तमान में उत्‍तरप्रदेश के बाराबंकी जिले के किन्‍तुर गांव में  स्‍थापित है । मान्‍यता है कि माता कुन्‍ती के लिए महादेव की पूजा हेतु हरसिंगार के पुष्‍प उपलब्‍ध करवाने के लिए, पाण्‍डवों द्वारा  यह पेड़ द्वारका से यहां लाया गया । किन्‍तुर गांव में लहलहाता यह विशाल वृक्ष असाधारण है । सामान्‍य वृक्षों के विपरीत न तो इस पेड़ पर बीज आते है और न ही शाखाओं की कलम के द्वारा अन्‍यंत्र लगाया जा सकता है । 

हरसिंगार के वृक्ष का वनस्‍पतिक नाम "निक्‍टेन्थिस आर्बोट्रिस्टिस" है । सामान्‍यत: इस वृक्ष की ऊंचाई 10 से 20 फूट के आसपस होती है; किन्‍तु 30 फूट तक के वृक्ष भी पाये जाते है ।  इस वृक्ष के सभी हिस्‍से- पत्‍तें, वृक्ष, खाल व पुष्‍प,   औषधीय  गुणों से भरे  होते है ।  गृध्रसी (सायटिका) रोग में इसके पत्‍तें का प्रयोग बेहद प्रभावशाली बताया गया है । 

शेफाली,  प्राजक्‍ता, कचनार और शिउली नाम से भी हरसिंगर को जाना जाता है । आंग्‍ल भाषा में इसे नाइट जैसमीन कहा जाता है । यह पुष्‍प पश्चिम  बंगाल के  राजकीय-पुष्‍प के सिंहासंन पर सुशोभित है। 

इस फूल को हथेली में लेकर मसलने पर हथेली, केसर की तरह पीले  रंग से रंग जाती व हथेली से केसर सी  सुगन्‍ध से महक उठती है  अत:  संस्‍कृत में इसे शेफालिका कहा जाता है । 
पुष्‍प 
हरसिंगार का
रात को खिला,
सवेरे झर गया,
पर झरने से पहले 
पूर्णता से जिया,
रातभर महका,
फंलवारी को 
अनिर्वचनीय सुगन्‍ध से महका गया,
पूजा की थाली सजा गया,
जीवन की सार्थकता समझा गया ।

हरसिंगार का वृक्ष हर बगीचे व बगीया की शोभा व सौभाग्‍य  है । इसे अधिकाधिक संख्‍या में लगाये, इनका पालन-पोषण करें; जीवन, वर्षों तक खुशियों की सुगन्‍ध से  महकता रहेगा । 
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-माणक चन्‍द सुथार, बीकानेर (राजस्‍थान)
 चलभाष: 8005926494






गीता भदौरिया

गीता भदौरिया

बहुत जानकारी पूर्ण लेख

13 नवम्बर 2021

Manak Chand Suthar

Manak Chand Suthar

13 नवम्बर 2021

हार्दिक आभार जी...🙏

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