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अतुकांत

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समय के आलिंगन मे,  मैं दूर-दूर छिटका रहा l न जाने कब सिमट गया,  पाकर अपनी बांहों में,  एक चित्र  जिसमें मैं-मेरा चित्र-मेरी संकल्पना,  मेरे चारों ओर अपना घेरा  बनाकर बैठे मुझसे पूछते हैं l तुम किसके म

तारों का टिमटिमाता प्रकाश  मुझसे कुछ कहता है  कि तुम इन कृत्रिम प्रकाशों  में कैसे रहते हो  मैंने एक बार ऊपर निहारा  सभी तारे मानो मेरी  विवशता पर हंस रहे हों l किन्तु मैंने उनमें अपने  उस समय का चित्

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