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माघ पूस की सर्द रात के ढलते ढलते कोहरे की चादर में लिपटी धरती / लगती है ऐसीजैसेछिपी हो कोई दुल्हनिया परदे में / लजाती, शरमातीहरीतिमा का वस्त्र धारण कियेमानों प्रतीक्षा कर रही हो / प्रियतम भास्कर के आगमन कीकि सूर्यदेव आते ही समा लेंगे अपनी इस दुल्हनिया कोबाँहों के घेरे में...पूरी रचना सुनने के लिए कृ

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रिक्त पात्र – शून्य क्या करना है पूर्ण पात्र का, उसका कोई लाभ नहीं है |रिक्त पात्र हो, तो उसमें कितना भी अमृत भर जाना है ||1||सकल सृष्टि है टिकी शून्य पर, और शून्य से आच्छादित है |शून्य से है पाता प्रकाश जग, पूर्ण हुआ तो अन्धकार है |क्या करना है आच्छादन का, मुझको तो प्रक

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मैंनेदेखा खिड़कीकी जाली के बीच से आती रेशमकी डोर सी प्रकाश की एक किरण को मुझ तकपहुँचते ही जो बदल गई एकविशाल प्रकाश पुंज में औरलपेट कर मुझे उड़ा लेचली एक उन्मुक्त पंछी की भाँतिउसी प्रकाश-किरणके पथ से / दूर आकाश में जहाँकोई अनदेखा भर रहाथा वंशी के छिद्रों में / अलौकिक सुरों के आलाप जहा

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घर घर में दीप जलाने हित जो खुद जलताथा हर एक पल वो दीप आज बुझ गया, मगर ज्योतित कर ये संसार गया |||भारत की अतुलित वाणी की गोदी सूनी होगई आज कर अटल सत्य का वरण आज वह परमतत्व मेंलीन हुआ || माँ भारती के वरद पुत्र - शत शत नमन काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूँ, गीत नया गाता हूँ हा

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एकाग्रता, प्रेम, शान्ति, आशा, उत्साह और उमंग – जीवन जीने के लिए इन्हीं सबकीआवश्यकता होती है – और हरितवर्णा प्रकृति हमें यही उपहार तो देती है... आइये अपनीइस प्रेरणास्रोत हरि भरी प्रकृति का स्वागत करना अपना स्वभाव बनाएँ...

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