रिक्त पात्र – शून्य
क्या करना है पूर्ण पात्र का, उसका कोई लाभ नहीं है |
रिक्त पात्र हो, तो उसमें कितना भी अमृत भर जाना है ||1||
सकल सृष्टि है टिकी शून्य पर, और शून्य से आच्छादित है |
शून्य से है पाता प्रकाश जग, पूर्ण हुआ तो अन्धकार है |
क्या करना है आच्छादन का, मुझको तो प्रकाश पाना है |
पूर्ण हुई तो ठहर जाऊँगी, मुझे शून्य में बह जाना है ||2||
प्राणवायु भी शून्य कक्ष में बहती, सबको जीवन देती |
कक्ष भरा हो तो फिर वह भी भारी होकर दुःख पहुँचाती |
शून्य बने अस्तित्व, तो उसमें पीड़ा का कोई काम नहीं है |
क्या करना है निजता का, मुझको सर्वस्व लुटा जाना है ||3||
निजता तो है स्वार्थपरक, है जिससे अहंभाव ही बढ़ता |
और अस्तित्वविहीन रहे तो मन आनंदित हुआ झूमता |
पूर्णज्ञान से बढ़कर कोई और नहीं अज्ञान जगत में |
बन अज्ञानी मुझे शून्य में मिलकर नव प्रकाश पाना है ||4||
परम तत्व का भेद न जानूँ, चरम सत्य का तथ्य न जानूँ |
योगी और वियोगी में क्या भेद, न मैं यह भी पहचानूँ |
मेरा राग विराग बना मन में नीरवता भर जाता है |
शून्य हुई चेतनता, मुझको नीरवता में खो जाना है ||5||
https://purnimakatyayan.wordpress.com/2018/08/29/रिक्त-पात्र-शून्य