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बादशाह की नम्रता

27 अक्टूबर 2021

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दोपहर का वक्त था। बादशाह शाहजहाँ को प्यास लगी। उन्होंने इधर - उधर देखा, कोई नौकर पास नहीं था। आम तौर पर पानी की सुराही भरी हुई पास ही रखी होतीं थी पर उस दिन सुराही में एक घूँट भी पानी नहीं था। वो कुएँ पर पहुँचे और पानी निकालने लगे। जैसे ही वो बाल्टी पकड़ने के लिए आगे की तरफ झुके तो उनके माथे पर भौनी लगी। तब बादशाह बोले , शुक्र है! शुक्र है! शुक्र है! मुझ जैसे बेवकूफ को जिसको पानी भी नहीं निकालना आता है, मालिक ने बादशाह बना दिया है। यह उसकी रहमत नहीं तो और क्या है? "
     मतलब यह कि दुःख में भी मालिक का शुक्र मनाना चाहिए। 


🙏🏻समाप्त 🙏🏻
काव्या सोनी

काव्या सोनी

Postive thinking bahut khub 👌👌

10 जून 2022

Sunny Mhadhwani

Sunny Mhadhwani

11 जून 2022

जी शुक्रिया🙏

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