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बन्धन

13 अप्रैल 2022

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सखे, मेरे बन्धन मत खोल,

आप बँधा हूँ आप खुलूँ मैं,

तू न बीच में बोल।

जूझूँगा, जीवन अनन्त है,

साक्षी बन कर देख,

और खींचता जा तू मेरे

जन्म-कर्म की रेख।

सिद्धि का है साधन ही मोल,

सखे, मेरे बन्धन मत खोल।

खोले-मूँदे प्रकृति पलक निज,

फिर एक दिन फिर रात,

परमपुरुष, तू परख हमारे

घात और प्रतिघात।

उन्हें निज दृष्टि-तुला पर तोल,

सखे, मेरे बन्धन मत खोल।

कोटि कोटि तर्कों के भीतर

पैठी तैरी युक्ति,

कोटि-कोटि बन्धन-परिवेष्टित

बैठी मेरी मुक्ति,

भुक्ति से भिन्न, अकम्प, अडोल,

सखे, मेरे बन्धन मत खोल।

खींचे भुक्ति पटान्त पकड़ कर

मुक्ति करे संकेत,

इधर उधर आऊँ जाऊँ मैं

पर हूँ सजग सचेत।

हृदय है क्या अच्छा हिण्डोल,

सखे, मेरे बन्धन मत खोल।

तेरी पृथ्वी की प्रदक्षिणा

देख रहे रवि सोम,

वह अचला है करे भले ही

गर्जन तर्जन व्योम।

न भय से, लीला से हूँ लोल,

सखे, मेरे बन्धन मत खोल।

ऊबेगा जब तक तरा जा

देख देख यह खेल,

हो जावेगा तब तक मेरी

भुक्ति-मुक्ति का मेल।

मिलेंगे हाँ, भूगोल-खगोल,

सखे, मेरे बन्धन मत खोल।।

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रचनाएँ
झंकार
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राष्ट्रकवि मैथिलीशरधा गुप्त की प्रस्तुत कविता 'झंकार' में भारतीय स्वतंत्रता-संघर्ष का स्वर नि-संदेह गुंजारित है। इस कविता में कवि की देशभक्ति स्वतंत्रता प्राप्ति की उत्कृष्ट आकांक्षा तथा भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की उत्प्रेरणा का स्वर अनुगुजित है।
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निर्बल का बल

13 अप्रैल 2022
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निर्बल का बल राम है। हृदय ! भय का क्या काम है।। राम वही कि पतित-पावन जो परम दया का धाम है, इस भव – सागर से उद्धारक तारक जिसका नाम है। हृदय, भय का क्या काम है।। तन-बल, मन-बल और किसी को धन-ब

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झंकार

13 अप्रैल 2022
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इस शरीर की सकल शिराएँ हों तेरी तन्त्री के तार, आघातों की क्या चिन्ता है, उठने दे ऊँची झंकार। नाचे नियति, प्रकृति सुर साधे, सब सुर हों सजीव, साकार, देश देश में, काल काल में उठे गमक गहरी गुंजार।

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विराट-वीणा

13 अप्रैल 2022
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तुम्हारी वीणा है अनमोल।। हे विराट ! जिसके दो तूँबे हैं भूगोल - खगोल। दया-दण्ड पर न्यारे न्यारे, चमक रहे हैं प्यारे प्यारे, कोटि गुणों के तार तुम्हारे, खुली प्रलय की खोल। तुम्हारी वीणा है अनमो

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अर्थ

13 अप्रैल 2022
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कुछ न पूछ, मैंने क्या गाया बतला कि क्या गवाया ? जो तेरा अनुशासन पाया मैंने शीश नवाया। क्या क्या कहा, स्वयं भी उसका आशय समझ न पाया, मैं इतना ही कह सकता हूँ जो कुछ जी में आया। जैसा वायु बहा वैसा

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बाल-बोध

13 अप्रैल 2022
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वह बाल बोध था मेरा निराकार निर्लेप भाव में भान हुआ जब तेरा। तेरी मधुर मूर्ति, मृदु ममता, रहती नहीं कहीं निज समता, करुण कटाक्षों की वह क्षमता, फिर जिधर भव फेरा; अरे सूक्ष्म, तुझमें विराट ने डाल

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रमा है सबमें राम

13 अप्रैल 2022
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रमा है सबमें राम, वही सलोना श्याम। जितने अधिक रहें अच्छा है अपने छोटे छन्द, अतुलित जो है उधर अलौकिक उसका वह आनन्द लूट लो, न लो विराम; रमा है सबमें राम। अपनी स्वर-विभिन्नता का है क्या ही र

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बन्धन

13 अप्रैल 2022
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सखे, मेरे बन्धन मत खोल, आप बँधा हूँ आप खुलूँ मैं, तू न बीच में बोल। जूझूँगा, जीवन अनन्त है, साक्षी बन कर देख, और खींचता जा तू मेरे जन्म-कर्म की रेख। सिद्धि का है साधन ही मोल, सखे, मेरे बन्

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असन्तोष

13 अप्रैल 2022
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नहीं, मुझे सन्तोष नहीं। मिथ्या मेरा घोष नहीं। वह देता जाता है ज्यों ज्यों, लोभ वृद्धि पाता है त्यों त्यों, नहीं वृत्ति-घातक मैं, उस घन का चातक मैं, जिसमें रस है रोष नहीं। नहीं, मुझे सन्तोष नहीं

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जीवन का अस्तित्व

13 अप्रैल 2022
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जीव, हुई है तुझको भ्रान्ति; शान्ति नहीं, यह तो है श्रान्ति ! अरे, किवाड़ खोल, उठ, कब से मैं हूँ तेरे लिए खड़ा, सोच रहा है क्या मन ही मन मृतक-तुल्य तू पड़ा पड़ा। बढ़ती ही जाती है क्लान्ति, शान

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