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जयद्रथ-वध

मैथिली शरण गुप्त

4 अध्याय
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25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

मैथिलीशरण गुप्त की प्रारम्भिक रचनाओं में 'भारत भारती' को छोड़कर 'जयद्रथ वध' की प्रसिद्धि सर्वाधिक रही। हरिगीतिका छंद में रचित यह एक खण्ड काव्य है। कथा का आधार महाभारत है। एका दिन युद्ध निरत अर्जुन के दूर निकल जाने पर द्रोणाचार्य कृत चक्रव्यूह भेदन के निमित्त शस्त्रास्त्र सज्जित अभिमन्यु उसमें प्रविष्ट होता हुआ। 

jayadrath vadh

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पुस्तक के भाग

1

जयद्रथ-वध / प्रथम सर्ग / (भाग 1)

13 अप्रैल 2022
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वाचक ! प्रथम सर्वत्र ही ‘जय जानकी जीवन’ कहो, फिर पूर्वजों के शील की शिक्षा तरंगों में बहो। दुख, शोक, जब जो आ पड़े, सो धैर्य पूर्वक सब सहो, होगी सफलता क्यों नहीं कर्त्तव्य पथ पर दृढ़ रहो।। अधिकार ख

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जयद्रथ-वध / प्रथम सर्ग / (भाग 2 )

13 अप्रैल 2022
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ज्यों भेद जाता भानु का कर अन्धकार-समूह को, वह पार्थ-नन्दन घुस गया त्यों भेद चक्रव्यूह को। थे वीर लाखों पर किसी से गति न उसकी रुक सकी, सब शत्रुओं की शक्ति उसके सामने सहसा थकी।। पर साथ भी उसके न कोई

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जयद्रथ-वध / द्वितीय सर्ग (भाग 1)

13 अप्रैल 2022
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इस भाँति पाई वीरगति सौभद्र ने संग्राम में, होने लगे उत्सव निहत भी शत्रुओं के धाम में | पर शोक पाण्डव-पक्ष में सर्वत्र ऐसा छा गया, मानो अचानक सुखद जीवन-सार सर्व बिला गया || प्रिय-मृत्यु का अप्रिय म

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जयद्रथ-वध / द्वितीय सर्ग (भाग 2 )

13 अप्रैल 2022
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कहती हुई बहु भाँति यों ही भारती करुणामयी, फिर भी मूर्छित अहो वह दु:खिनी विधवा नई, कुछ देर को फिर शोक उसका सो गया मानो वहाँ, हतचेत होना भी विपद में लाभदायी है महा॥ उस समय ही कृष्णा, सुभद्रा आदि पाण

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