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सैरन्ध्री

मैथिली शरण गुप्त

7 अध्याय
1 व्यक्ति ने लाइब्रेरी में जोड़ा
12 पाठक
25 अप्रैल 2022 को पूर्ण की गई
निःशुल्क

साहित्यकारों के लेखकीय अवदानों को काव्य हिंदी हैं हम श्रृंखला के तहत पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी हैं हम शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- मुदित, जिसका अर्थ है प्रसन्न होना, खुशी। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त के काव्य सैरंध्री (द्रौपदी का एक नाम) का एक अंश 

sairandhri

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पुस्तक के भाग

1

सैरन्ध्री (भाग 1)

13 अप्रैल 2022
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सुफल - दायिनी रहें राम-कर्षक की सीता; आर्य-जनों की सुरुचि-सभ्यता-सिद्धि पुनिता। फली धर्म-कृषि, जुती भर्म-भू शंका जिनसे, वही एग हैं मिटे स्वजीवन – लंका जिनसे। वे आप अहिंसा रूपिणी परम पुण्य

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सैरन्ध्री (भाग 2)

13 अप्रैल 2022
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किन्तु तुम्हें यह उचित नहीं जो उसको छेड़ो, बुनकर अपना शौर्य्य यशःपट यों न उघेड़ो। गुप्त पाप ही नहीं, प्रकट भय भी है इसमें, आत्म-पराजय मात्र नहीं, क्षय भी है इसमें। सब पाण्डव भी होंगे प्रकट

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सैरन्ध्री (भाग 3)

13 अप्रैल 2022
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दोष जताने से न प्यार का रंग छिपेगा, सौ ढोंगों से भी न कभी वह ढंग से छिपेगा। विजयी वल्लव लड़ा वन्य जीवों से जब जब  सहमी सबसे अधिक अन्त तक तू ही तब तब। फल देख युद्ध का अन्त में बची साँस-सी ल

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सैरन्ध्री (भाग 4)

13 अप्रैल 2022
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“सुमुखि, सुन्दरी मात्र तुझे मैं समझ रहा था, पर तू इतनी कुशल ! बहन ने ठीक कहा था। इस रचना पर भला तुझे क्या पुरस्कार दूँ ? तुझ पर निज सर्वस्व बोल मैं अभी वार दूँ !” बोली कृष्णा मुख नत किए –

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सैरन्ध्री (भाग 5)

13 अप्रैल 2022
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धर्मराज भी कंक बने थे वहाँ विराजे, लगा वज्र-सा उन्हें मौलि पर घन से गाजे। सँभले फिर भी किसी तरह वे ‘हरे, हरे,’ कह ! हुए स्तब्ध- सभी सभासद ‘अरे, अरे,’ कह ! करके न किन्तु दृक्-पात तक कीचक उठ

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सैरन्ध्री (भाग 6)

13 अप्रैल 2022
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धर्मराज का मर्म समझ कर नत मुखवाली, अन्तःपुर को चली गई तत्क्षण पांचाली। किन्तु न तो वह गई किसी के पास वहाँ पर, और न उसके पास आ सका कोई डर कर। वह रही अकेली भीगती दीर्घ-दृगों के मेह में, ज

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सैरन्ध्री (भाग 7)

13 अप्रैल 2022
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जल-सिंचन कर, और व्यंजन कर, हाथ फेर कर, किया भीम ने सजग उसे कुछ भी न देर कर। फिर आश्वासन दिया और विश्वास दिलाया, वचनामृत से सींच सींच हत हृदय जिलाया। प्रण किया उन्होंने अन्त में कीचक के संह

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