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भाग - 1

23 अप्रैल 2022

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                 इडियट्स -१

भाग - १
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बदलते हुए परिवेश में हमारी शिक्षा भी बदल रही है, और सोच भी बदल रहा है। ऐसे भी हम अच्छी तरह से जानतें हैं कि परिवर्तन ही इस संसार का नियम है। और जब परिवर्तन ही इस संसार का नियम है तो भला इस परिवर्तन को कौन रोक सकता है। न मैं रोक सकता हूँ, और नहीं विक्रम बाबू ही इसे रोक सकतें हैं। 

यह कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जो घर से शुरू होकर, स्कूल के क्लास रूम तक होते हुए, सोशल मीडिया पर तक धूम मचाती हुई चलती जा रही है। कहानी आज के बच्चो की है। कहानी उनकी सोच की है, और बच्चों की सोच से संग्राम करते हुए, विक्रम बाबू की सोच की।

 विक्रम बाबू की सोच के  साथ - साथ आपको  अन्य गणमान्य व्यक्तियों की भी दलीलें पढ़ने के लिए मिल जायेगा इस कहानी में। लेकिन उनकी दलीलें अपनी जगह, और विद्यार्थियों की सोच अपनी जगह। 

इस कहानी की शुरुआत होती है, विगत आज से तकरीबन तीन वर्ष पहले। और तीन वर्ष पहले शुरू हुई यह कहानी, तीन साल की लम्बी - चौड़ी यात्रा तय करती हुई पहुंच रही है आप सभी के सामने ।

कहानी शुरू करुं, इससे पहले मैं बता दूँ, कि मैं कौन हूँ इस कहानी में। क्या मेरी भी कोई भूमिका है इस कहानी में? 

तो मेरा उत्तर होगा - "हाँ जी हाँ। मैं भी इस कहानी में हूँ । क्योंकि बिना गांगो का झूमर हों हीं नहीं सकता न। और मैं वहीं गांगो हूँ, जिसे स्कूल का विद्यार्थी रामू काका बोला करतें हैं। ऐसे मेरा वास्तविक नाम रामू काका नहीं है। मेरा असली नाम जो हैं न, वह रामलखन चंद्रवंशी है । और मैं उस स्कूल का चपरासी हूँ। मैं इस  कहानी के माध्यम से अंदर और बाहर ठोड़ी देर में दर्शन करवाने हेतू, आपको अपने साथ कहानी की सफर पर लिए चलूंगा। जिसका शिर्षक है 'इडियट्स' ।

ऐसे कभी - कभार इस कहानी में अपनी झलक भी दिखलाने की  कोशिश  करता  रहूंगा।  सच बोलू तो सिर्फ मैं हीं इस कहानी में नहीं हूँ। कहानी जैसे - जैसे आगे बढ़ती जायेगी , वैसे - वैसे आप सभी को अन्य पात्रो से भी मुलाकात  होते जायेगें ।    तो चलिए, मैं आप सभी को अपने साथ लिए विद्यालय की ओर चल रहा हूँ। आप भी मेरी साइकिल के पीछे - पीछे विद्यालय आने के लिए तैयार हो जाइए । "

गाँव सरदारपुर से मैं, यानि की रामू काका, अपनी पुस्तैनी साइकिल पर बैठकर अभी-अभी बाहर निकला ही हूँ । सरदारपुर गाँव से मुख्य सड़क पर आने में लगभग तीन से चार मिनट का समय लग ही जाता है। और तीन-चार मिनट का  सफर तय करने के बाद, मुख्य सड़क पर आराम से पहूंचा जा सकता है। मुख्य सड़क से होते हुए जक्कनपुरा पहूंचने में लगभग पंद्रह मिनट का समय खर्च करना पड़ता है रामू काका को। रामू काका देखने में एक ऐसा इंसान जैसा लगतें हैं, मानो कि   वो लगभग पचासवाँ वसंत तो देख हीं लियें होंगे। कम पढ़ा लिखा रामू काका, एक ऐसा व्यक्ति हैं, जो खड़ी हिन्दी में बात करते-करते, खाटी देहाती शब्दों में भी वो वार्तालाप करने लगतें हैं। और तो और, गुस्सा आने पर किसी को भी गाली-गलौज करने से पीछे नहीं हटतें। स्कूल में कदम रखतें हीं, उनकी आँख और कान दोनो सजग हो जाता है। कौन लड़का क्या कर रहा है, कौन लड़की क्या कर रही है, कौन शिक्षक क्या कर रहें हैं, कौन शिक्षिका क्या कर रहीं हैं। कौन अविभावक बाहर निकलकर क्या बोलता है। ये सब का सब, डेटा रामू काका के दिमाग में सुरक्षित रहता है, वो भी हमेशा - हमेशा के लिए। 

स्कूल उनको हमेशा समय से पहले पहूंचना पड़ता है। स्कूल आतें ही सबसे पहलें वो  मुख्य  द्वार को खोलतें हैं , और मुख्य द्वार खोलतें हीं तेजी से चलते हुए, शौचालय की ओर बढ़ते दिखाई देते हैं । 

रामू काका को एक बहुत ही खराब आदत है, वह आदत यह है कि वों सुबह-सुबह घर पर शौच करने नहीं जातें। स्कूल आने के ऊपरांत ही वों शौचालय का प्रयोग करतें हैं। 

अभी तक स्कूल की कोई भी गाड़ी नहीं आयी है। गाड़ी आतें ही बच्चों का शोरगुल से स्कूल का वातावरण गुंजायमान हो जाता है। क्या क्लास रूम, क्या बरामदा और क्या छत। गाड़ी को आतें हीं, चारों ओर बच्चे - बच्चियों का झुंड आपको हँसते - खिलखिलाते नजर आने लगेंगे । 

बच्चों की गाड़ी आने की बात अभी  छोड़ भी दिया जाया, तो शांति देवी भी अभी स्कूल के प्रांगण में अपना कदम नहीं रखीं हैं । 
अब सवाल मन में उत्पन्न होगा आपको  की ये शांति देवी कौन हैं? 
तो मैं आपको बतातें चलूं शांति देवी के संदर्भ में, जिनका नाम को मैंने अभी-अभी ऊपर में उल्लेख किया  है। 

शांति देवी...। 
सर्वोदय उच्च विद्यालय की प्रभारी हैं। विगत दस सालों से सारा काम यही संभाल रहीं हैं। बहुत ही आदरणीय विचारधारा की महिला हैं यें। जैसा नाम वैसा गुण। भगवान ने इनको अंदर कूट - कूटकर विशेषताएं डाला है। 

खैर बात करतें हैं मूल मुद्दा पर। 
रामू काका तेजी से आगे बढ़ते हुए शौचालय के अंदर दाखिल होतें ही मुँह बना लिए। और बनातें हुए स्वयं से बोल पड़ा, - "आजकल के लड़के जो हैं न कम बदमाश नहीं है। ये सब क्या लिखता रहता है दीवारो पर.... कोई संस्कार ही माँ - बाप ने नहीं दिया है इन लोगों को। ऐसा लगता है कि इन सबों के घरों में अपनी माँ - बहन नहीं है शायद।" 
इसको बाद वो अराम से शौचालय का गेट बंद कर लेंते हैं। 


क्रमशः जारी। 





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