इडियट् भाग - 5 जारी
दिवानगी का वह चरम सीमा पर खड़ा था, लेकिन उसको यह पता नहीं था कि जिसको लिए मैं अपना सारा काम धाम - छोड़कर मरे जा रहां हूँ , उसको अंदर कई राज छूपे हैं।
ऋतुराज को विक्रम बाबू नेहा से पहले से जानतें थें, क्योंकि स्कूल में जाने से पूर्व ही विक्रम बाबू को ऋतुराज के परीवार से ताल्लुक था। अगर सच बोला जाय तो ऋतुराज का पिता योगेशनंदन ने ही विक्रम बाबू को स्कूल में रखवाये थें। जब विक्रम बाबू बेरोजगारी के मार से जूझ रहें थें। और रोजगार प्राप्त करने के लिए कुछ दिनों से सुबह उठकर शहर में यूं ही चक्कर मार रहें थें, इस आॅफिस से उस आॅफिस, तब उनको एक दिन एकाएक मुलाकात योगेशनंदन से हुआ था , जो उस समय नगर निगम में एक सफाई कर्मी के रूप में इसी शहर में तैनात थें।
"मैं आपको कुछ दिनों से परेशान देख रहा हूँ विक्रम बाबू, आखिर आप इस मुहल्ले में रहते हो, मेरा बच्चा को पढ़ाई में मदद भी कर दे रहे हो, अगर कुछ परेशानी होती है तो मुझसे बोलना चाहिए था न!" -विक्रम को देखतें ही योगेश ने अपनी पुरानी स्कूटी को रोकते हुए बोल पड़ा था ।
यह बात तकरीबन छः - सात साल पुरानी है। उस समय विक्रम बाबू कंधे पर लापरवाही से बैग लटकाये, किसी कार्यालय से अपना रिज्यूम देकर वापस लौट रहें थें। और रास्ते में एकाएक ऋतुराज का पिता योगेशनंदन से मुलाकात हो गई थी।
" नहीं सर ऐसी बात नहीं हैं...।"
-विक्रम बाबू सड़क पर खामोशी भरे नजरों से इधर-उधर देखते हुए बोल पड़े थें, योगेशनंदन को बोलने के बाद।
"नहीं - नहीं, ये कोई बात नहीं न हुई , कुछ तो हैं ही विक्रम बाबू... कुछ दिन पहले ही ऋतुराज मुझसे बोल रहा था घर पर, कि विक्रम अंकल इस समय कुछ ज्यादा परेशान दिखतें हैं। लेकिन मुझको दिमाग में उसकी बात थीं हीं नहीं। कल भी आपको एक आॅफिस से निकलते हुए देखा था, उस समय मैं खूद इस हालत में नहीं था कि आपसे आकर मिलूँ , लेकिन चलिए आज आपसे मुलाकात हो ही गईं । ऋतुराज बोल रहा था कि अंकल पढ़ाते तो हैं , मगर पहले जैसा नहीं। आखिर पैसा चहिए तो बोलना चाहिए न, हमलोग काम नहीं आयेंगे तब विक्रम बाबू सुख - दुःख में तो कौन काम आयेगा आपको? "
" बस ऐसे ही सर.... इस शहर में लगभग मैं छः महीने से हूँ, किसी प्रकार तीन - चार बच्चों को होम ट्युशन पढ़ाकर जेब खर्च तो निकाल ही लेता हूं, लेकिन इतनी आमदनी में जिन्दगी नहीं चलने की आशार है ...। "-विक्रम बाबू इससे आगे कुछ और बोलते, उससे पहले ही योगेश बोल पड़े,
-" बस इतनी सी परेशानी है, ये बात पहले ही मुझसे बोलना चाहिए था न आपको। स्कूल में शिक्षक के रूप में सेवा देंगे आप ? "-योगेश ने सवालिया नजरो से देखतें हुए विक्रम बाबू से बोल पड़ा था ।
और बेरोजगारी की मार झेलने वाला विक्रम बाबू एक सेकेंड का भी इंतजार किये बिना मुस्कुराहट भरे अंदाज में योगेश से बोल पड़े, "जी हाँ-हाँ क्यों नहीं। "
और उसको बाद एक ही सप्ताह के अंदर विक्रम बाबू जक्कनपुरा के सर्वोदय उच्च विद्यालय में शिक्षक के रूप में सेवा देने लगे। विक्रम बाबू एक अल्टरनेट टिचर के रुप में अपना काम करना शुरू कर दिया था विद्यालय में । सप्ताह में मात्र तीन दिन ही क्लास लेतें थें, बाकी तीन दिन कुछ और काम करतें थें।
उसी क्लास लेने के दौरान विक्रम बाबू की नजर नेहा पर पड़ी थी। नेहा क्लास मे ऋतुराज के साथ ही मेज पर बैठा करती थी। पहली नजर में विक्रम बाबू और ऋतुराज की हरकतें कुछ विशेष नहीं लग रहा था, परंतु धीरे-धीरे दोनों कि स्थिति विक्रम बाबू के नजरों में संदिग्ध लगने लगी थी।
एक दिन विक्रम बाबू ने सोचा की क्यों न ऋतुराज को समझायें, यह पढ़ने - लिखने का उम्र है बाबू अपना ध्यान पढ़ाई पर दो , लेकिन ऋतुराज कहीं गलत रूप में न मेरी बात को ले ले, इसलिए इन बातों को सोचकर, वो चाहकर भी कुछ भी नहीं बोल पायें।
लेकिन ऋतुराज को यह अंदाजा लग गया था कि विक्रम बाबू मुझपर कुछ-कुछ शक करने लगे हैं। इसलिए वो विक्रम बाबू से नजरें मिलाकर बात करने में सकुचाने लगा था। यही तो जिन्दगी की सच्चाई है, जब आपके मन में चोर बैठा हो तो आपको खड़का हमेशा मन में बना हुआ रहेगा। भले कोई कुछ बोले चाहे न बोले, लेकिन आपको ऐसा लगेगा कि लगता है कि सामने वाला इंसान मेरे बारे में कहीं न कहीं कुछ जानता तो नहीं न है। और यही डर आपको सामनेवाले इंसान से नजरें चुराने के लिए मजबूर कर देता है।
ऋतुराज को भी यही हो रहा था.... लेकिन विक्रम बाबू को ऋतुराज के साथ कुछ भी नहीं करना था, क्योंकि वह कुछ करना ही नहीं चाहतें थे उसको साथ।
वो चुपचाप अपना काम करते हुए उसपर नजर गुपचुप तरीके से जमाये हुए रहते थे। ताकि ये लड़का को रंगोहाथ पकड़ सके। जब एक बार पकड़ में आ जाय न, तब बताऊंगा इसको, अगर मैं इसकी आशिकी का सारा भूत नहीं उतार दिया तो मेरा नाम विक्रम नहीं।
कुछ दिनों के बाद.... ;
"एक सवाल करे आपसे सर?"
"करो... ।"
-विक्रम बाबू ऋतुराज की ओर देखते हुए बोल पड़े।
उस दिन विक्रम बाबू क्लास में नहीं थें। क्लास में इतनी किसी में हिम्मत ही नहीं होती थी कोई विक्रम बाबू से फालतू सवाल कर सके।
विक्रम बाबू स्कूल से डेरा (किराये के मकान) की ओर जा रहें थे। और उस दिन साथ में ऋतुराज भी विक्रम बाबू के साथ हो लिया था।
"आप मुझसे नराज क्यों हैं इस समय...?" - ऋतुराज ने अपनी साइकिल की चाल को कुछ कम करते हुए बोल पड़ा था, विक्रम बाबू की अनुमति पाकर।
क्रमशः जारी।