इडियट् भाग - 5
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जिस समय दुकानदार ने यह उड़ती हुई खबर विक्रम बाबू को सुनाया, उस समय लगभग रात्रि का नौ से ऊपर हो रहा होगा। विक्रम बाबू को उस समय खबर सुनकर दिल में कुछ खड़का सा लगा था , लेकिन वो कुछ कर नहीं सकतें थें। चुपचाप दूध का पॉकेट लेकर, वहाँ से चलतें बने।
कुछ ही मिनटों के अंदर - अंदर विक्रम बाबू एक हाथ में दूध का पॉकेट थामें हुए गली में आगे बढ़ चलें। गली में अभी भी जहाँ - तहाँ कुछ-कुछ अंधकार सा था। अधूरे पड़े बहुमंजिले मकान के नीचें, राजमिस्त्री अपने-अपने सहयोगियों के साथ भोजन बनाने में लगा हुआ था।
अभी भी रह - रहकर मेंढ़क नाली में उछलकूद मचाते हुए अपनी उपस्थिति दिखाने में व्यस्त थें । लेकिन विक्रम बाबू इस सब से अलग, न ध्यान देते हुए, भारी कदमों से अपने मकान की तरफ बढ़ते चले जा रहें थें।
विक्रम बाबू आगे बढ़ते हुए कुछ ही मिनटों के अंदर - अंदर अपना मकान के सामने थें।
मकान वही था, लेकिन विक्रम बाबू को देखने से ऐसा लग रहा था कि उनका ही मकान उनको देखकर मुँह बना रहा है।
खैर अनमने मन से उन्होंने मकान के अंदर कदम रखा।
नायडू अपना कमरा में पलंग पर बैठी हुई मोबाइल फोन पर गेम खेल रही थी। नायडू जब भी फुर्सत में रहती है तो दो ही काम करती है, या तो वह मोबाइल फोन पर गेम खेलती नजर आयेगी, या नहीं तो कोई टीवी सिरियल देखकर भावुक होती हुई सिरियल की कहानी पड़ोसवाली मनोरमा को सुनाती हुई नजर आयेगी ।
"क्या कर रहें हैं ये लीजिए दूध।"
-मकान के अंदर कदम रखतें ही विक्रम बाबू बोल पड़े।
"आती हूँ।"
-नायडू विक्रम बाबू की आवाज सुनतें ही बोल पड़ी थी।
"क्या हुआ कुछ बात है क्या?" - जैसे ही नायडू, विक्रम बाबू के पास पहुंची तो पहुंचते ही विक्रम बाबू से सवाल कर दी।
"नहीं तो... कुछ भी बात नहीं है। "
"कुछ तो है ही आपका चेहरा बता रहा है।"
"चलती हो बड़ी आयी हो चेहरा पढ़ने वाली।"- विक्रम बाबू की आवाज से साफ पता चल रहा था कि वो अंदर से कुछ खिन्न सा हैं।
विक्रम बाबू को इतना बोलना था कि नायडू चुपचाप दूध लेकर उनको सामने से चलती बनी। क्योंकि नायडू को अच्छी तरह से ज्ञात है - अभी इनसे कुछ पूछा तो बतायेंगे नहीं, ऊपर से उल्टा बहस करने लगेंगे।
उधर नायडू दूध का पॉकेट लेकर रसोई कक्ष की ओर बढ़ी, और इधर विक्रम बाबू अपने कक्ष (कमरा) की ओर चल पड़े।
कमरा में आते ही बिजली का पंखा खोलकर वो आराम से सामने लगी हुई एक कुर्सी पर बैठ गयें...।
आज विक्रम बाबू को अंदर से एक बेचैनी सा महसूस हो रहा था। एक ऐसी बेचैनी जिसको वो किसी के सामने व्यक्त भी नहीं कर सकतें थें। मन में चलने वाला भाव को वो किसको सामने व्यक्त करते। अगर पत्नी को सुनाने जातें, तो चार-पांच बात वो ही उल्टा-सीधा सुना देती, और विक्रम बाबू की बात को वह सुन भी नहीं पाती। विक्रम बाबू को अच्छी तरह से ज्ञात था कि नायडू को नेहा के नाम से ही नफरत है।
नेहा!!
आज से तकरीबन छः साल पूर्व विक्रम बाबू की जिंदगी से वो टकराई थी। मैं यूं हीं नहीं बोल रहा हूँ, विक्रम बाबू स्वयं अपनी डायरी में नेहा के बारे में लिखें हैं। विक्रम बाबू को डायरी लिखने की आदत जो है । वो अपनी जिंदगी की तमाम बातों को, तमाम घटनाओं को डायरी में लिखा करते हैं, इसलिए वों नेहा के बारे में भी खूब अपनी डायरी में लिखें हैं।
नेहा,
एक खानदानी रईस घर से ताल्लुक रखती है। विक्रम बाबू को सुनने में आया था कि नेहा का परिवार इस छोटा सा शहर में आने से पूर्व गाँव में रहा करतें थें, लेकिन गाँव की बदलती हुई तस्वीर और बदलते हुए माहौल के कारण नेहा का परिवार शहर में आकर रहने लगें।
शहर में भी पहले से ही पुस्तैनी जर - जमीन था ही, इसलिए मकान बनाकर स्थाई रूप से बस गयें। धीरे-धीरे करके वो गाँव का सारा जमीन बेचकर इसी शहर में बिजनेस करने लगे।
जब नेहा का परीवार शहर में आयें थें, तब उस समय नेहा का जन्म भी नहीं हुआ था। एक वर्ष के बाद नेहा का जन्म हुआ था ।
नेहा के परीवार से विक्रम बाबू का जानपहचान तब हई , जब विक्रम बाबू स्कूल ज्वाइन कियें।
ऐसे तो विक्रम बाबू गणित पढ़ाया करतें थें, लेकिन गणित के साथ - साथ और कई विषयों की भी जानकारी रखतें थें।
विक्रम बाबू को अपनी जिन्दगी जिने का एक अलग हीं अंदाज था । उनकी जिंदगी की फिलासफी आचार्य ओशो से प्रभावित था। जब भी उनको फुर्सत मिलता, तब वो ओशो के किताब पढ़ते नजर आतें या ओशो का लेक्चर सुनते देखे जातें।
नेहा विक्रम बाबू के विचारों से बहुत प्रभावित थी। नेहा, जैसी माडर्न ख्याल वाली लड़की कब विक्रम बाबू से प्रभावित हुई, यह बात को कानों - कान किसी को भी खबर नहीं लगा। लेकिन पहले ही सप्ताह में विक्रम बाबू का दिल पर नेहा ने दस्तक दे दी थी। नेहा उस समय ग्यारहवीं में पढ़ा करती थी , और पढ़ाई के साथ-साथ वह दूसरों की जिंदगी में मजे लेने का भी काम बखूबी करती थी।
ग्यारहवीं क्लास में पढ़ने वाली नेहा, को न स्वयं पर कोई नियंत्रण था, और नहीं अपनी जुबान पर। वो कब किससे क्या बोल दे, खुद उसको बोलने के बाद पता चलता था कि मैंने क्या बोल दी।
नेहा का व्यक्तित्व कहें या कुछ और... नेहा के क्लास के लड़के, नेहा पर मर मिटने के लिए हमेशा तैयार रहतें थें । विक्रम बाबू के मुताबिक नेहा का सबसे नजदीकी कोई लड़का था तो वह था ऋतुराज अग्रवाल..... ।
ऋतुराज नेहा का पड़ोसी था। कमाल का लड़का था वह... नाटा कद के इंसान में अगर कुछ विशेष था तो वह था नेहा के प्रति दिवानगी।
क्रमशः जारी