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भाग - 2 जारी

23 अप्रैल 2022

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इडियट्स भाग-2 जारी

उनको पता है जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़तें हैं। कितना चिरौरी लोगों के बीच में जाकर करना पड़ता है। कितना झूठ का चासनी लगाना पड़ता है।
यह सब सोचते हुए जनार्दन बाबू सामने हवा में  सिर उठाये बैर का  पेड़ की तरफ देखने लगे।  बैर का पेड़ से होते हुए बगल से एक रास्ता जयप्रकाश के घर की तरफ जाता है ।

जयप्रकाश का घर आज भी खपड़ैल का ही है। घर में कोई विशेष परिवर्तन नहीं जयप्रकाश ने करवाया  है। बेचारा घर का  क्या काम करवायेगा वह। किसी - किसी  प्रकार जिन्दगी ही चला पा रहा है वह वही काफी है।

यह सब सोचते हुए जनार्दन बाबू अभी भी बैर का पेड़ की ओर ही लगातार देखे जा रहे थे, तभी गली में चलते हुए, सामने से जयप्रकाश आते हुए दिखाई दिया । जयप्रकाश का चलने के अंदाज से साफ़ लग रहा था कि वह अब जिन्दगी का बोझ उठाते - उठाते थक  चूका है। भारी कदमों के साथ गली में उधर ही बढ़ते चला आ रहा था जिधर जनार्दन बाबू खड़े थे। 

"जयप्रकाश जरा इधर आना तो ।" - अपना हाथ के इशारा से जनार्दन बाबू ने आने का इशारा करते हुए जयप्रकाश को अपने  पास बुलाया।

"हाँ भइया बोलिए ।"
-जयप्रकाश सामने आते ही बोल पड़ा। 

"निरू को ऐडमिशन करवाओगे?"

"सोच तो रहें हैं लेकिन कहाँ करवायें? बड़े शहरों में बेटी को भेजने का औकात ही नहीं है मुझको, और वह है कि छोटा शहर में रहकर पढा़ई करना ही नहीं चाहती।"जयप्रकाश का चेहरा पर बोलते हुए दुःख और परेशानी की कई लकीरें एक साथ खिच आई। आप अपने मन की परेशानी को कितना भी छूपाने की कोशिश करो, कहीं न कहीं वह प्रकट हो ही जायेगी। 

"अरे छोड़ो न, मैं माया को जक्कनपुरा भेजना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि अगर तू भी निरू को भेजता तो अच्छा होता। कम से कम अपने मुहल्ला से दो लड़कियाँ एक साथ जायेगी तो अच्छा ही रहेगा। "
" लेकिन यहाँ से जक्कनपुरा की दूरी भी तो अधिक है भाई साहब कैसे ये लोग जा पायेगी ? "
" अरे भाई अब दूनिया बदल रही है। शिक्षा और सिस्टम दोनों बदल रहें हैं। गाड़ी से जायेगी और क्या। विद्यालय की गाड़ी आयेगी, उसी से दोनों चले जायेंगे। पेपर में विज्ञापन दिया था विद्यालय वालों ने, नामांकन में पच्चास प्रतिशत से लेकर सत्तर प्रतिशत तक की छूट है भाई। और ऐसे भी बड़े शहरों में जाकर  कौन हम लोगो के बच्चे शेर मार लेंगे। देखा नहीं, नरेंद्र भाई का बेटा कितना पढ़ाई किया शहर में रहकर, सुबह से लेकर शाम तक मटर गस्ती ही तो करते रहता है..... । और बोलो कुछ  चार- पाँच लाइन लिखने के लिए तो बगले झाँकने लगता है। यही तो वह शहर में रहकर पढ़ाई किया था । "

" क्या  भाई साहब, आप भी नरेंद्र भाई का बेटा को लेकर बैठ गयें। उसको दिनभर मोबाइल फोन से फुर्सत मिलेगा तब न वह पढ़ाई-लिखाई करेगा। सुना है भाई कि वह किसी लड़की से बात करते रहता है ..... ।"

" इसीलिए तो, मैं  नहीं चाहता  अपनी बेटी को कोई बड़ा शहर में भेजू पढ़ाई लिखाई करने के लिए। "

" ऐसी बात नहीं है भाई साहब , माया बहुत ही समझदार बच्ची है। वह अपने नाक पर मक्खी तक नहीं बैठने देनेवाली बच्ची है भाई। उसको बारे में चिंता आप नहीं करें तो  वही अच्छा है। अच्छा ठीक है, इसपर हम बाद में बात करेंगे, अभी जरा कुछ काम से बाहर निकले हैं.... ।"-इतना बोलते हुए जयप्रकाश भारी कदमों से गली में आगे बढ़ चला ।

और जयप्रकाश को जाने के बाद, जनार्दन बाबू भी सीढ़ियों से उतरकर गली में कुछ सोचते हुए आगे बढ़ चलें।

सुबह-सुबह जनार्दन बाबू का कस्बा का सौंदर्य देखने लायक होता है। अब यह कस्बा पहले से बहुत बदल गया है । गली - गली में बिजली का खंभा लग चूका है। हर घर में सैटलाइट टेलीविजन से लेकर मोबाइल फोन तक मौजूद है। दूनिया तेजी से बदल  रही है। इतनी तेजी से कि आप उतनी तेजी से कल्पना भी नहीं कर सकतें।
बदलाव हर जगह दिखाई दे रहा है। खासकर युवा पीढ़ी में। युवाओं में बदलाव देखने लायक है। जहाँ जनार्दन बाबू जैसे लोग बड़े - बुजूर्ग को हाथ जोड़कर प्रणाम किया करतें थें, जहाँ चरण स्पर्श करके आशिर्वाद लेने की परंपरा थी, आज वही गूड मोर्निंग माॅम और गूड मोर्निंग डैड से ही बच्चे काम चला लें रहें हैं।

अब तो हमारे घर की बच्चियाँ भी टी-शर्ट पहनने लगी है। पहले की बच्चियाँ बिना डूपटा सिर पर डाले  घर से बाहर तक नहीं निकलती थी, और अब....?
 और अब मत पूछो तो ही अच्छा है !! 
हाॅफ पैंट और टी-शर्ट में पूरा मोहल्ला में वह घूम आती है।
जैसे - जैसे जवान होती जा रही है, वैसे - वैसे उसकी सोच बदलती जा रही है। 

सोचते हुए जनार्दन बाबू आगे बढ़ते जा रहें थें। आज सुबह-सुबह वो टहल नहीं पायें थें । मन शायद कुछ भारी-भारी सा था, इसलिए वो मोर्निंग वाक पर नहीं गयें। सुबह-सुबह टहलना स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है, लेकिन तब, जब आपका मन खुश हो। अगर मन में कोई खुशी वाली बात नहीं चल रही हो, तब आप सुबह-सुबह टहलकर या दौड़कर भी स्वास्थ्य लाभ नहीं ले पायेंगे, क्योंकि मन पर पड़ने वाला प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है यह बात को  जनार्दन बाबू अच्छी तरह से जानते हैं। 


क्रमशः जारी। 

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