इडियट् भाग-2
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साइकिल के पीछे अखबार का पुलिंदा लादे, सुबह - सुबह अखबारवाला बड़ा ही अजब स्टाइल से घर के आगे, अखबार डालकर, साइकिल की घंटी बजतें हुए आगे बढ़ जाता है ।
उसके ठीक बाद, कुछ ही मिनटों में, अखबारवाला को आगे बढ़ते ही, एक लड़की अपने घर की बाहरी ग्रिल को खोलती हुई, बाहर निकलती है, और अखबार को उठाकर पुनः अपने घर के अंदर चली जाती है।
लड़की को अंदर आतें हीं...
"माया, अखबारवाला ने अखबार दे दिया क्या ?" - सामने का कमरा में से जर्नादन बाबू की आवाज गुंज उठता है।
"हाँ पापा दे दिया।"-लड़की बोल पड़ती है। क्योंकि उसको पता है, अखबार को सबसे पहले पापा ही पढ़तें हैं, उसको बाद ही घर का कोई अन्य सदस्य पढ़ सकता है।
"ला मेरे कमरे में।"
इतना सुनाते ही माया अपने हाथों के इशारे से भाई को अपने पास बुलाती है, और अखबार को हाथ में थमाते हुए बोल पड़ती है , - "जा ये अखबार पापा को दे आ। "
" दीदी निरू दीदी ने मैसेज की है।"
"अरे जा न पहले, देख लूंगी मैं मैसेज को।"
माया को इतना बोलतें ही वह छोटा सा लड़का, जनार्दन बाबू का कमरे की ओर, अखबार हाथ में लिए हुए चल पड़ा। और लड़का को जातें ही, उसके बाद माया अपना कमरा की ओर चल पड़ती है ।
सुबह-सुबह माया के मोबाइल फोन पर निरू ने शुभ - प्रभात का मैसेज भेजी थी। बहुत ही उम्दा किस्म का मैसेज था। उगता हुआ सूर्य के नीचे, एक बहती हुई सी निर्मल नीली स्वच्छ सी नदी। जिस नदी का तस्वीर में देखने के बाद माया को ऐसा लग रहा था कि इसमें अभी छलांग मार हीं दू।
माया ग्यारहवीं क्लास में जानेवाली है। वो कुछ दिन पहले ही दाशवीं की परीक्षा पास की थी , वो भी अच्छे नम्बर के साथ।
निरू, माया के बगल में रहनेवाली जयप्रकाश शर्मा की बेटी है। दोनों ने एक ही स्कूल से दाशवीं की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। और दोनों चाहती है कि कोई नामी स्कूल से ग्यारहवीं - बारहवीं की पढ़ाई पुरा करू। लेकिन निरू के लिए संभव नहीं दिखता। आगे की पढ़ाई पूरा करने के लिए अच्छे पैसों की आवश्यकता होती है , और जयप्रकाश के लिए इतना पैसा लाना शायद ही संभव हो सके।
वही माया के पास पैसो की कोई कमी नहीं है। पिता अच्छा पैसा कमाकर घर में लातें हैं। जनार्दन बाबू, जिला पुलिस में हैं। ऐसे उनके हिसाब से जिला पुलिस का तनख्वाह तो कोई ज्यादा नहीं हैं, फिर भी ले - देकर काम चल ही जाता है।
जबकि जयप्रकाश की हालत पतली है। बड़ा बेटा अनिल की पढ़ाई का खर्च जुटाने के चक्कर में उनकी कमर भरी जवानी में झूक गई है। और ऊपर से बेटी को पढ़-लिखकर एयरहोस्टेस बनने का ख्वाब भी कुछ अलग हीं है।
निरू चाहती है कि वह एयरहोस्टेस बने। ऐसे तो उसने अपना बॉयफ्रेंड को बोल रखी है कि मेरी च्वाईस तो एयरफोर्स ज्वाइन करने का है, लेकिन उसको अपनी वास्तविक औकात पता है की मैं क्या बन सकती हूँ।
निरु का बॉयफ्रेंड का नाम बालेश्वर है। आपको नाम सुनकर शायद कुछ अच्छा नहीं लगा होगा । लेकिन इसमें न मेरा कोई दोष है, और नहीं बालेश्वर की प्रेमिका निरु की । अगर हम दोनों का उसका नामकरण करना होता तो जरूर कोई फिल्मी हिरो वाला नाम दे देतें। ऐसे वह लड़का हिरो से कम नहीं है। एकदम गोरा - चिट्टा है। ऊपर से, उसका स्टाइल कुछ ऐसा है कि कोई भी लड़की उसपर फिदा हो जाय।
निरू अपना हिसाब से ही बाॅयफ्रेंड पकड़ी है। क्योंकि निरू भी खुबसूरत लड़की है। लम्बी और गोरी भी। शरीर का बनावट कुछ ऐसा है कि मत पुछो, देखनेवाले लोग उसको देखते ही रह जाय। अगर आर्थिक स्थिति ठोड़ी अच्छी होती तो इतना विश्वास था मुझे की वो पानी में आग लगाती।
खैर ये तो बात रही निरू का.. ।
अब कुछ परिचय माया को भी दें- दें। माया दूनिया को बेवकूफ बनाने में स्वयं को माहिर समझती आ रही है। ऐसे वो लड़को को अक्सर भइया ही बोला करती है, लेकिन यह बात आम है माया के हिसाब से कि- "मैं उसी लड़का को भइया बोलती हूँ, जो मुझको बहन की नजरों से न देखकर कुछ और नजरों से देखा करता है।"
ऐसे एक नम्बर का हँसोड़ है माया, लेकिन वक्त आने पर रोने-धोने की अभिनय अच्छी कर लेती है । जो मन में आती है, वह वही करती रहती है। किसी को कुछ भी बोलने से उसपर कोई विशेष फर्क नहीं पड़नेवाला। सोशलमिडीया पर अच्छा फॉलोअरस है उसके। आधुनिकता का भरपूर पालन करनेवाली माया के बहुत से लड़के दिवाने हैं।
लेकिन वो...?
लेकिन वो किसकी दिवानी है, ये बतलाना कुछ मुश्किल सा काम है। जिन्दगी में वो क्या बनना चाहती है अभी तक किसी को साफ़ - साफ़ नहीं बताई है, लेकिन कुछ तो ऐसा जरूर है उसके मन में जिसके कारण वो अपनी पढ़ाई आगे जारी रखना चाहती है।
माया ने जैसे ही सुबह का शुभ संदेश का जवाब, निरू को भेजी, वैसे ही माया की माँ जाह्नवी शर्मा ने, हाथ में अखबार लिए हुए, माया के कमरा में कदम रखते हुए बोल पड़ी, - "पापा तुमको बुला रहें हैं ।"
"किस लिए?"
"पता नहीं, पहले जाओ तो सही... ।"
- जाह्नवी के बोलतें ही माया अनमने ठंग से उठकर अपने पिता के कमरा की तरफ चल दी।
"मैं तुम्को ऐडमिशन करवाने के लिए सोच रहा हूँ।" माया को अपने पास आते ही, जनार्दन बाबू ने माया की तरफ देखते हुए बोल पड़े।
"किस स्कूल में?"
"सर्वोदय उच्च विद्यालय टेन प्लस टू हैं न, उसी में। "
"ये स्कूल कहाँ है पापा?".
"पिछले साल जक्कनपुरा गयी थी न तू? "
"हाँ, वही न जहाँ पर एआर हॉस्पिटल है? "
" ऐस ऐस वहीं पर है यह स्कूल । "
" लेकिन पापा! "
" क्या हुआ.... अच्छा हाई स्कूल तो है? सर्वोदय उच्च विद्यालय अपने जिला में टाॅपटेन हाई स्कूल में दूसरा स्थान रखता है। "
" पापा!! "-माया कुछ नाराजगी दिखाते हुए बोल पड़ी, -" ठीक है मैं सोचकर बोलती हूँ ।".
" ठीक है बेटा सोच लो ।" इतना बोलकर जनार्दन बाबू कुर्सी पर से उठ कर कमरा से बाहर निकल आयें।
घर से बाहर....
गुनगुने धूप उग आया था। सूर्य आज कुछ बदला - बदला सा लग रहा था। आकाश में बादल इक्का-दुक्का दिखाई दे रहें थे।
घर के बाहर, सामने गमले में लगे हुए रंगबिरंगे फूल, हवा में झूल रहें थें। बहुत मेहनत से एक - एक पैसा जोड़कर जर्नादन बाबू ने अपना मकान बनाया था। एक - एक ईंट, इमानदारी की कमाई की लगी हुई थी मकान में।
क्रमशः जारी।