shabd-logo

भाग - 2

23 अप्रैल 2022

24 बार देखा गया 24
इडियट् भाग-2
⚫⚫
साइकिल के पीछे अखबार का पुलिंदा लादे, सुबह - सुबह अखबारवाला बड़ा ही अजब स्टाइल से घर के आगे, अखबार डालकर, साइकिल की घंटी बजतें हुए आगे बढ़ जाता है ।

उसके ठीक बाद, कुछ ही मिनटों में, अखबारवाला को आगे बढ़ते ही, एक लड़की अपने घर की बाहरी ग्रिल को  खोलती हुई, बाहर निकलती है, और अखबार को उठाकर पुनः  अपने घर के अंदर चली जाती है। 

लड़की को अंदर आतें हीं... 
"माया, अखबारवाला ने अखबार दे दिया क्या ?" - सामने का कमरा में से जर्नादन बाबू की आवाज गुंज उठता है।

"हाँ पापा दे दिया।"-लड़की बोल पड़ती है। क्योंकि उसको पता है, अखबार को सबसे पहले पापा ही पढ़तें हैं, उसको बाद ही घर का कोई अन्य सदस्य पढ़ सकता है। 

"ला मेरे कमरे  में।" 
इतना सुनाते ही माया अपने हाथों के इशारे से भाई को अपने पास बुलाती है, और अखबार को हाथ में थमाते हुए बोल पड़ती है , - "जा ये अखबार पापा को दे आ। "

" दीदी निरू दीदी ने मैसेज की है।" 
"अरे जा न पहले, देख लूंगी मैं मैसेज को।" 
माया को इतना बोलतें ही वह छोटा सा लड़का, जनार्दन बाबू का कमरे की ओर, अखबार हाथ में लिए हुए चल पड़ा। और लड़का को जातें ही, उसके बाद माया अपना कमरा की ओर चल पड़ती है । 

सुबह-सुबह माया के मोबाइल फोन पर निरू ने शुभ - प्रभात का मैसेज भेजी थी। बहुत ही उम्दा किस्म का मैसेज था। उगता हुआ सूर्य के नीचे, एक बहती हुई सी निर्मल नीली स्वच्छ सी नदी। जिस नदी का तस्वीर में देखने के बाद माया को ऐसा लग रहा था कि इसमें अभी छलांग मार हीं दू। 

माया ग्यारहवीं क्लास में जानेवाली है। वो कुछ दिन पहले ही दाशवीं की परीक्षा पास की थी , वो भी अच्छे नम्बर के साथ। 
निरू, माया के बगल में रहनेवाली जयप्रकाश शर्मा की बेटी है। दोनों ने एक ही स्कूल से दाशवीं की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है। और दोनों चाहती है कि कोई नामी स्कूल से ग्यारहवीं - बारहवीं की पढ़ाई पुरा करू। लेकिन निरू के लिए संभव नहीं दिखता। आगे की पढ़ाई पूरा करने के लिए अच्छे पैसों की आवश्यकता होती है , और जयप्रकाश के लिए इतना पैसा लाना शायद ही संभव हो सके। 

वही माया के पास पैसो की कोई कमी नहीं है। पिता अच्छा पैसा कमाकर घर में लातें हैं। जनार्दन बाबू, जिला पुलिस में हैं। ऐसे उनके हिसाब से जिला पुलिस का तनख्वाह तो कोई ज्यादा नहीं हैं, फिर भी ले - देकर काम चल ही जाता है। 
जबकि जयप्रकाश की हालत पतली है। बड़ा बेटा अनिल की पढ़ाई का खर्च जुटाने के चक्कर में उनकी कमर भरी जवानी में झूक गई है। और ऊपर से बेटी को पढ़-लिखकर एयरहोस्टेस बनने का ख्वाब भी कुछ अलग हीं है। 

निरू चाहती है कि वह एयरहोस्टेस बने। ऐसे तो उसने अपना बॉयफ्रेंड को बोल रखी है कि मेरी च्वाईस तो एयरफोर्स ज्वाइन करने का है, लेकिन उसको अपनी वास्तविक औकात पता है की मैं क्या बन सकती हूँ। 

निरु का बॉयफ्रेंड का नाम बालेश्वर है। आपको नाम सुनकर शायद  कुछ अच्छा नहीं लगा होगा । लेकिन इसमें न  मेरा कोई दोष है, और नहीं बालेश्वर की प्रेमिका निरु की । अगर हम दोनों का उसका नामकरण करना होता तो जरूर कोई फिल्मी  हिरो वाला नाम दे देतें। ऐसे वह लड़का हिरो से कम नहीं है। एकदम गोरा - चिट्टा है। ऊपर से, उसका स्टाइल कुछ ऐसा है कि कोई भी लड़की उसपर फिदा हो जाय। 
निरू अपना हिसाब से ही बाॅयफ्रेंड पकड़ी है। क्योंकि निरू भी खुबसूरत लड़की है। लम्बी और गोरी भी। शरीर का बनावट कुछ ऐसा है कि मत पुछो, देखनेवाले लोग उसको देखते ही रह जाय। अगर आर्थिक स्थिति ठोड़ी अच्छी होती तो इतना विश्वास था मुझे की वो पानी में आग लगाती। 

खैर ये तो बात रही निरू का.. । 
अब कुछ परिचय माया को भी दें- दें। माया दूनिया को बेवकूफ बनाने में स्वयं को माहिर समझती आ रही है। ऐसे वो लड़को को अक्सर भइया ही बोला करती है, लेकिन यह बात आम है माया के हिसाब से कि- "मैं उसी लड़का को भइया बोलती हूँ, जो मुझको बहन की नजरों से न देखकर कुछ और नजरों से देखा करता है।" 

ऐसे एक नम्बर का हँसोड़ है माया, लेकिन वक्त आने पर रोने-धोने की अभिनय अच्छी कर लेती है । जो मन में आती है, वह वही करती रहती  है। किसी को कुछ भी बोलने से उसपर कोई विशेष फर्क नहीं पड़नेवाला। सोशलमिडीया पर अच्छा फॉलोअरस है उसके। आधुनिकता का भरपूर पालन करनेवाली माया के बहुत से लड़के दिवाने हैं। 
लेकिन वो...? 
लेकिन वो किसकी दिवानी है, ये बतलाना कुछ मुश्किल सा काम है। जिन्दगी में वो क्या बनना चाहती है अभी तक  किसी को साफ़ - साफ़ नहीं बताई है, लेकिन कुछ तो ऐसा जरूर है उसके मन में जिसके कारण वो अपनी पढ़ाई आगे जारी रखना चाहती है। 

माया ने जैसे ही सुबह का शुभ संदेश का जवाब, निरू को भेजी, वैसे ही माया की माँ जाह्नवी शर्मा ने, हाथ में अखबार लिए हुए, माया के कमरा  में कदम रखते हुए बोल पड़ी, - "पापा तुमको  बुला  रहें हैं ।" 

"किस लिए?" 

"पता नहीं, पहले जाओ तो सही... ।"
- जाह्नवी के बोलतें ही माया अनमने ठंग से उठकर अपने पिता के कमरा की तरफ चल दी। 

"मैं तुम्को ऐडमिशन करवाने के लिए सोच रहा हूँ।" माया को अपने पास आते ही, जनार्दन बाबू ने माया की तरफ देखते हुए बोल पड़े।

"किस स्कूल में?" 

"सर्वोदय उच्च विद्यालय टेन प्लस टू हैं न, उसी में। "
"ये स्कूल कहाँ है पापा?". 
"पिछले साल जक्कनपुरा गयी थी न तू? " 
"हाँ, वही न जहाँ पर एआर हॉस्पिटल है? "
" ऐस ऐस वहीं पर है यह स्कूल । "
" लेकिन पापा! "
" क्या हुआ.... अच्छा हाई स्कूल तो है? सर्वोदय उच्च विद्यालय अपने जिला में  टाॅपटेन हाई स्कूल में दूसरा स्थान रखता है। "
" पापा!! "-माया कुछ नाराजगी दिखाते हुए बोल पड़ी, -" ठीक है मैं सोचकर बोलती हूँ ।". 
" ठीक है बेटा सोच लो ।" इतना बोलकर जनार्दन बाबू कुर्सी पर से उठ कर कमरा से बाहर निकल आयें। 

घर से बाहर.... 
 गुनगुने धूप उग आया था। सूर्य आज कुछ बदला - बदला सा लग रहा था। आकाश में बादल इक्का-दुक्का दिखाई दे रहें थे। 
घर के बाहर, सामने गमले में लगे हुए रंगबिरंगे फूल, हवा में झूल रहें थें। बहुत मेहनत से एक - एक पैसा जोड़कर जर्नादन बाबू ने अपना मकान बनाया था। एक - एक ईंट,  इमानदारी की कमाई की लगी हुई थी  मकान में। 


क्रमशः जारी। 


निरंजन कुमार (मुंना) की अन्य किताबें

11
रचनाएँ
इडियट्
0.0
इडियट् निरंजन कुमार 'मुंना' द्वारा रचित एक धारावाहिक उपन्यास है । इस उपन्यास के माध्यम से लेखक आधुनिक परिवेश में जिन्दगी जीते हुए कम उम्र, और पुराने ख्यालतों का समर्थक विक्रम बाबू की कहानी है। इसमें युवाओं की सोच, पश्चिम सस्कृति के असर, भ्रष्ट होता शिक्षा व्यवस्था से लेकर, मित्रों और आधुनिक परिवेश से उपजा वैसी सोच का लेखक ने चित्रण करने की कोशिश किया है, जो आगे चलकर भारतीय युवाओं के लिए परेशानी का कारण बनता है।
1

भाग - 1

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट्स -१भाग - १⚫⚫बदलते हुए परिवेश में हमारी शिक्षा भी बदल रही है, और सोच भी बदल रहा है। ऐसे भी हम अच्छी तरह से जानतें हैं कि परिवर्तन ही

2

भाग - 2

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट् भाग-2⚫⚫साइकिल के पीछे अखबार का पुलिंदा लादे, सुबह - सुबह अखबारवाला बड़ा ही अजब स्टाइल से घर के आगे, अखबार डालकर, साइकिल की घंटी बजतें हुए आगे बढ़ जाता है ।उसके ठीक बाद, कुछ ही मिनटों में, अखबार

3

भाग - 2 जारी

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट्स भाग-2 जारीउनको पता है जिन्दगी में आगे बढ़ने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़तें हैं। कितना चिरौरी लोगों के बीच में जाकर करना पड़ता है। कितना झूठ का चासनी लगाना पड़ता है।यह सब सोचते हुए जनार्दन बाब

4

भाग - 3

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट्स भाग - 3⚫⚫समय लगभग सुबह का दस बजकर तीस मिनट होने वाला होगा । विद्यालय के आॅफिस का ठीक बगल में एक काउंटर खिड़की है, और उस खिड़की के पास ही स्कूल का नोटिशबोर्ड लगा हुआ है, जिस पर&nbsp

5

भाग - 3 जारी

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट्स भाग तीन जारीनवीन पटनायक को सोचते हुए देखकर वह स्त्री बोल पड़ी, - "क्या सोच रहे हो...? ""आपका नाम, आपका नाम क्या है मैंम? ""मेरे नाम के संदर्भ में सोच रहा था? मेरा नाम है शांति देवी और मै

6

भाग - 4

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट्स भाग - 4⚫⚫रात को करीब आठ बजने ही वाला होगा। विक्रम बाबू टेलीविजन पर न्यूज देख रहें थें। देश में बढ़ती हुई महंगाई और कोविड-19 से उपजी समस्या पर डिवेड चल रहा था। न्यूज़ चैनल पर गला फाड़ - फाड़कर

7

भाग - 4 जारी

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट्स भाग - 4 जारी।विक्रम बाबू को इतना बोलना था कि नायडू सामने से आती हुई बोली, - "हाँ - हाँ और क्या कीजिएगा, आप जैसे लोग जहाँ रहेंगे न, वहाँ का भट्ठा ऐसे ही बैठ जायेगा।"."अरे भाई तुमको रह - रहकर हो

8

भाग - 5

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट् भाग - 5⚫⚫जिस समय दुकानदार ने यह उड़ती हुई खबर विक्रम बाबू को सुनाया, उस समय लगभग रात्रि का नौ से ऊपर हो रहा होगा। विक्रम बाबू को उस समय खबर सुनकर दिल में कुछ खड़का सा लगा था ,

9

भाग - 5 जारी

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट् भाग - 5 जारीदिवानगी का वह चरम सीमा पर खड़ा था, लेकिन उसको यह पता नहीं था कि जिसको लिए मैं अपना सारा काम धाम - छोड़कर मरे जा रहां हूँ , उसको अंदर कई राज छूपे हैं।ऋतुराज को विक्रम बाबू नेहा से पह

10

भाग - 6

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट् भाग - 6⚫⚫"मैं, मैं भला क्यों नराज रहूंगा, वह भी तुमपर..!"विक्रम बाबू भी कम नहीं थें, यह बात को वो अच्छी तरह से जानतें थें, कि ऐसे कम उम्र वाले आशीक टाइप के लोगों से मुझको कैसे निपटने हैं।

11

भाग - 6 जारी

23 अप्रैल 2022
0
0
0

इडियट् भाग - 6⚫⚫"मैं, मैं भला क्यों नराज रहूंगा, वह भी तुमपर..!"विक्रम बाबू भी कम नहीं थें, यह बात को वो अच्छी तरह से जानतें थें, कि ऐसे कम उम्र वाले आशीक टाइप के लोगों से मुझको कैसे निपटने हैं।

---

किताब पढ़िए