इडियट् भाग - 6
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"मैं, मैं भला क्यों नराज रहूंगा, वह भी तुमपर..!"विक्रम बाबू भी कम नहीं थें, यह बात को वो अच्छी तरह से जानतें थें, कि ऐसे कम उम्र वाले आशीक टाइप के लोगों से मुझको कैसे निपटने हैं।
"नहीं सर कुछ तो है, आप मेरे साथ पहले जैसा व्यवहार नहीं करते।"
"क्या मैं तुमको गाली देता हूँ? "
" नहीं तो ।".
" तो क्या मैं तुझे कुछ उठापटक बोला?"
"नहीं सर ।"
"तो फिर इस तरह का सवाल क्यों कर रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो सही है न....?" - इतना बोलकर विक्रम बाबू तेजी से आगे बढ़ते हुए ऋतुराज से बोल पड़े थें , -" तू जो अपना काम कर रहे हो न चुपचाप करते रहो, और मैं जो कर रहा हूँ वह करने दो, समझा कि नहीं समझा । "
" ऐस तो सर समझ ही रहा हूँ लेकिन....!? "-ऋतुराज बोलते - बोलते रूक सा गया था । उसका चेहरा पर एक डर का भाव, बोलने के बाद एकाएक उभरते हुए, विक्रम बाबू को दिखाई देने लगा था ।
ऋतुराज को चले जाने के उपरांत विक्रम बाबू उस गली की तरफ तेजी से आगे की ओर बढ़ चले थें, जिस गली में वो कभी, उस समय किराये के मकान में रहा करतें थें। क्योंकि आधे घंटे के अंदर - अंदर, ट्युशन पढ़ने वाले छात्रों की आगमन विक्रम बाबू के रुम पर होने लगता था।
रूम पर पहुंचते ही , विक्रम बाबू जल्दी से कपड़े बदलकर तैयार होने लगे थे । वो दो कमरों के साथ-साथ, एक बारमदा भी किराये पर ले चुके थे उस समय । बारमदा में ही दरी डालकर, बच्चों को ट्युशन पढ़ाने का काम उस समय किया करतें थें विक्रम बाबू ।
विक्रम बाबू को अच्छी तरह से याद है , उस समय इतनी हालत खराब चल रही थी विक्रम बाबू को इस शहर में की , दूसरे कोचिंग संस्थान की तरह वो अपने विद्यार्थियों को वो सुविधाएं उपलब्ध नहीं करवा सकते थें, जो अन्य लोग करवां रहें थें।
इसलिए इन्होने ट्युशन की फी कम रखा हुआ था. और मेहनत अधिक किया करतें थें। मेहनत अधिक करने के साथ-साथ विक्रम बाबू विद्यार्थियों को बहकाना भी अच्छी तरह से जानतें थें। बस एकबार कोई विद्यार्थी विक्रम बाबू के संपर्क में आ गया तो वह वापस लौटकर नहीं जा पाता था।
अब ऐसी बात नहीं है, जो पहले हुआ करती थी। अब तो विक्रम बाबू, विक्रम सर के नाम से इस शहर में एक ब्रांड बन चुके हैं। कोचिंग से प्रत्येक माह लाखो की आमदनी है। फिर भी लाखों के आमदनी होते हुए भी स्कूल नहीं छोड़ा है। विक्रम बाबू को मानना है कि यह स्कूल मेरे लिए लक्की रहा है, मैं इसको कैसे छोड़ सकता हूँ।
खैर छोड़िये इन बातों को, और चलतें है मुख्य कहानी की ओर.... ।
विक्रम बाबू की जिंदगी का वह पहला दिन था, जब नेहा ने ऋतुराज के साथ विक्रम बाबू के किराये का मकान पर पहली बार दस्तक दी थी।
नेहा ट्युशन पढ़ने के लिए आयी थी। लेकिन जब वह विक्रम बाबू के पास आयी थी तो स्कूल वाली नेहा नहीं थी। स्कूल में वो स्कूल की वर्दी में रहने वाली नेहा, जिंस और टी-शर्ट में विक्रम बाबू के सामने ऋतुराज के साथ में खड़ी थी। विक्रम बाबू के ट्युशन क्लास के लिए यह पहली लड़की थी, क्योंकि आरंभ में विक्रम बाबू लड़को को छोड़कर किसी लड़की को, कभी अपने पास ट्युशन क्लास के लिए बुलाया ही नहीं था।
नेहा विक्रम बाबू को देखकर मुस्कुराती हुई आगे बढ़ी और आगे बढ़कर चरण स्पर्श करती हुई बोली पड़ी थी, - "प्रणाम गुरूदेव...।"
"आयुष्मान भवः!!"
-नेहा ने जब विक्रम बाबू का चरण स्पर्श की तो न चाहते हुए भी विक्रम बाबू के मुँह से नेहा के लिए आशिर्वाद निकल ही गया।
लेकिन नेहा का ऐसा रूप में देखकर, विक्रम बाबू स्वयं को असहज महसूस कर रहें थें। आज तक वो कभी भी आधुनिक परिधान लड़कियों को पहनने के पक्ष में नहीं रहें हैं। लेकिन वों चाहकर भी कुछ फिलहाल कर नहीं सकतें थें । विक्रम बाबू को किसी भी हाल में रूपया कमाना था। इनकों उस समय अच्छी तरह से ज्ञात था कि जीवन में रूपया कोई खुदा तो नहीं है , लेकिन खुदा से कम भी नहीं है।
"बैठो...।"
-विक्रम बाबू ने ऋतुराज की तरफ कुछ अजीब नजरों से देखते हुए नेहा से बोलें थें ।
उस समय तक मात्र पाँच - छः विद्यार्थी ही ट्युशन के लिए आयें थें, जब विक्रम बाबू ऋतुराज को बैठने के लिए बोल रहें थें। बाकी को अभी पता नहीं था।
फिर भी कुछ ही मिनटों के अंदर - अंदर और सभी विद्यार्थी आ ही गयें।
नेहा को विक्रम बाबू के पास आये हुए देखकर, कुछ लड़के नेहा को अजीब नजरों से देखकर आपस में कानाफूसी करने लगे थें, जिसमें गौरव भाटिया सबसे आगे था। गौरव के साथ - साथ शुभम को भी दिलचस्पी दिखाई दे रही था नेहा में । नेहा थीं हीं ऐसी, जिसमें लड़को के रुचि होना आम बात थी।
"सर कल से एक और आयेगी...।"
-शुभम ने मुस्कुराते हुए विक्रम बाबू से बोला था, जिसपर विक्रम बाबू हाँ या ना कुछ भी नहीं बोल पायें थें।
उस समय विक्रम बाबू को यह समझ में नहीं आ रहा था कि एक नेहा आयी तो तुमलोगो का ये हाल है, अगर नेहा की जैसी कोई और एक - दो आ गयी न, तो तुम लोगों का हो गया जै- सिया - राम.... ।
लेकिन एक तरफ पैसों की बात थी विक्रम बाबू के लिए, और दूसरी तरफ लड़कियों से एक डर भी उनके मन में हमेशा से बना हुआ था... ।
एक - एक पैसा को उस समय विक्रम बाबू चुम्बक की तरह पकड़ रहें थें, इसलिए वो शुभम से कुछ भी नहीं बोल पा रहें थें । ऐसे तो वों लड़कियों को पढ़ाना नहीं चाहतें थें, परंतु पैसा को छोड़ना भी नहीं चाहते थें।
परंतु,
ऋतुराज ने शुभम से पुछ ही लिया , - "कौन आयेगी?"
"रुचि, और कौन आयेगी।"
रूचि का नाम सुनते ही गौरव का चेहरा पर आने वाला भाव देखने लायक था।
ऐसी बात नहीं थी, विक्रम बाबू रूचि को नहीं जानतें थें। वो रूचि को भी जानतें थें..... परंतु उतना नहीं, जितना की शुभम् जानता था रूचि को।
विक्रम बाबू आरंभ में इन सब बातों का मतलब समझ नहीं पा रहें थें कि आखिर इन सभी का मामला क्या है.... ।
क्रमशः जारी