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भाग - 3 जारी

23 अप्रैल 2022

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इडियट्स भाग तीन जारी

नवीन पटनायक को सोचते हुए देखकर वह स्त्री बोल पड़ी, - "क्या सोच रहे हो...? "
"आपका नाम, आपका नाम क्या है मैंम? "
"मेरे नाम के संदर्भ में सोच रहा था? मेरा नाम है शांति देवी  और मैं हीं यहाँ का फिलहाल प्रभारी हूँ। अब जाओ कल आना।"
- इतना बोलने के उपरांत शांति देवी नवीन के पास से  आगे बढ़ गयी, क्योंकि आज मिसo ललिता स्कूल नहीं आयी थी। मिसo ललिता इस स्कूल का एकाऊंट संभालती है, लेकिन उसको न आने के कारण एडमिशन का सारा काम प्रभारी महोदया को ही करवाने हैं। 

शांति देवी को जाने के बाद भी नवीन पटनायक नहीं जाता, वह चुपचाप सीढ़ियों से उतरकर नीचे लगे फूलों की तरफ बढ़ चलता  है। 

वह आराम से किमती  घासों पर चलता हुआ, फूलों को बड़े ध्यान से देखता और मुस्कुराता है। अपने दोनों हाथों से गेंदा के फूलों को वह स्पर्श करके बहुत खुश होता है। और मन ही मन सोचने लगता है - प्रकृति ने हम मानवों को मनोरंजन के लिए कितनी अच्छी - अच्छी चीजों की रचना की है। सच में, प्रकृति कितनी सुंदर रचना करती है! बस हमें जरूरत है अपनी नजरों से न देखकर, हम इसे प्रकृति के नजरों से देखे। मानव जबतक प्रकृति को अपने नजरों से देखता रहेगा, तबतक वह प्रकृति का सौंदर्य को अवलोकन नहीं कर पायेगा, अतः यह बहुत जरूरी है कि प्रकृति का सौंदर्य को प्रकृति के ही नजरों से देखा जाय । प्रकृति के बारे में सोचते हुए, वह  इधर-उधर देखता है, और..? 
और, कुछ ही दूरी पर मलसरी का वृक्ष पर बैठे हुए बहुत से कबूतरों को देखते हुए वह आगे बढ़ने लगता है, यह देखने के लिए कि यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थी कैसा हैं। 
वह घूमते - घूमते एक ऐसी जगह पर पहुंच जाता है, जहाँ पर कुछ  कर्कट से घेराबंदी करके एक छोटा सा कमरा का  आकार दे दिया गया था। 
 कर्कट का कमरानुमा स्थान को वह आवलोकन करने ही वाला था कि तभी उसके कानों से एक कड़कड़ाती हुई आवाज टकराई, - "इधर कहाँ जा रहा है, निकलो  बाहर।" 
-यह आवाज रामू काका का था। 

रामू काका की आवाज को सुनते ही नवीन पटनायक ने आवाज आने की दिशा में पलटकर देखा, और एकाएक मुस्कुरा उठा। 
वह रामू काका को पहचानता था। एक- दो बार रामू काका को अपने घर पर देखा था वह । 
नवीन पटनायक ने आगे बढ़ते हुए बोला, - "प्रणाम काका!" 

आज पहली बार किसी ने रामू काका को हाथ जोड़कर शुद्ध हिन्दी में अभिवादन किया था। ऐसे यहाँ पर  सभी रामू काका को सम्मान देतें हैं, लेकिन हाथ जोड़कर याद नहीं ठीक से, रामू काका को कब किसने सम्मान में प्रणाम काका बोला होगा। 

खैर... 
नवीन के द्वारा किया गया प्रणाम सुनकर रामू काका खुशी के मारे मुस्कुराहट भरे अंदाज में बोल पड़े, - "इधर किधर चला है ऐसे मैं तुमको पहचान नहीं पा रहा हूँ बाबू... ।" 
"आप कितने को याद रखेंगे काका... लेकिन मैं आपको पहचानता हूँ।" 
-नवीन ने रामू काका की तरफ आते हुए बोल पड़ा। 

"हाँ ये तो है बाबू.... ऐसे तू कहाँ से हो?" 
"यही रूकनपुरा से।"
"अरे गिरजा के घर से हो क्या तू? "
" हाँ काका ।"
" वाह!! बेचारा गिरजा! कैसा है वह?" 
"ठीक हैं। "
" तो यहाँ कौन से काम से आये  हो ? "
" नामांकन करवाने थे काका।" 
"हो गया?" 
- रामू काका कुछ सोचते हुए नवीन से बोल पड़े। 
" नहीं काका... शिक्षिका महोदया ने बोली की अपने माता-पिता को लेकर यहाँ  आओ, उनको भी साक्षात्कार लिया जायेगा। "- रामू काका के सामने आते ही  गजब हो गया था नवीन को। वह हकलाने वाला नवीन पटनायक, रामू काका के सामने बड़ा ही कुशलता से बातें करते जा रहा था। न शब्द बोलने में कोई रूकवाट हो रही थी उसे , नहीं वाक्य पुरा करने में कोई परेशानी । 

" लेकिन तेरे माता-पिता तो....!? "-बोलते हुए रामू काका रूक सा  गयें । उनका चेहरा पर एक विषाद  का भाव उभर आया था, और आँखे किसी शून्य की तरफ इशारा करने लगी थी। 
 क्योंकि रामू काका को अच्छी तरह से ज्ञात था इस बात को कि नवीन का कोई भी माता-पिता नहीं है। चाचा - चाची ने इसे लालन-पालन किया है। रामू काका अच्छी तरह से यह भी जानते थें कि इस  लड़का को इसके माता - पिता ने अनाथालय से गोद लिया था, लेकिन गोद लेने के बाद दोनों किसी दुर्घटना में  चल बसे । 

"कहाँ खो गये काका?"नवीन ने अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए रामू काका से  बोला। 
"कुछ नहीं बेटा.... ऐसे कल आओ... कल आओ न ऐडमिशन तो हो ही जायेगा।" 
"सच में काका!" 
"हाँ बेटा सच में ।" 
"त - त तो ठीक है काका, कल आपको से मिलता हूँ।" 
-इतना बोलकर नवीन ने हाथ जोड़कर रामू काका से विदा लिया। 
वह तेजी से चलता हुआ विद्यालय का मुख्य द्वार के पास आया, जहाँ पर गार्ड आराम से खड़ा होकर सड़क पर आते - जाते हुए लोगों को देखे जा रहा था। 
गार्ड जहाँ पर खड़ा था, वहीं मुख्य गेट के पास हीं एक पुराना पिपल का वृक्ष भी है, जिसकी छाँह  विद्यालय के प्रागण में दूर - दूरतक बन रही थी। 
ऐसे तो विद्यालय की चारदीवारी के अंदर तरह-तरह के वृक्ष लगें हुए हैं, लेकिन जो महत्व पिपल वृक्ष का दिखाई दे रहा था, नवीन के लिए वैसा महत्व किसी और वृक्ष का नहीं था। 
क्योंकि पिपल का वृक्ष हमेशा से भारतीय संस्कृति में पूजनीय रहा है। 



क्रमशः जारी। 


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