इडियट्स भाग - 4
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रात को करीब आठ बजने ही वाला होगा। विक्रम बाबू टेलीविजन पर न्यूज देख रहें थें। देश में बढ़ती हुई महंगाई और कोविड-19 से उपजी समस्या पर डिवेड चल रहा था। न्यूज़ चैनल पर गला फाड़ - फाड़कर ऐंकर हर एक सूचना को बड़ा ही विस्तारपूर्वक बताने का कष्ट कर रहा था, परंतु विक्रम बाबू उसकी बातों को सुनकर कोई विशेष माथापच्ची नहीं कर रहे थें। उनको रह-रहकर हँसी आ रही थी ऐंकर पर।
उधर विक्रम बाबू समाचार सुनकर मंद - मंद मुस्कुरा रहें थें, और इधर विक्रम बाबू की पत्नी श्रीमती नायडू कुढ़ती जा रही थी। नायडू एक कुशल गृहनी है। हमेशा घर के काम में व्यस्त रहने वाली, मृदुभाषी और हँसमुख महिला है। वह चाहती है कि स्कूल से फुर्सत मिले तो कम से कम विक्रम बाबू मेरे पास कुछ मिनटों के लिए समय दें।
परंतु विक्रम बाबू को कहाँ फुर्सत है। वो अपने आप में ही बहुत ज्यादा व्यस्त रखतें हैं। स्कूल से आने के बाद, या तो फ्रेश होकर टेलीविजन देखेंगे, या नहीं तो किताबों में स्वयं को खपा देंगे। उनके हिसाब से दूनिया में एक - एक मिनट अपनी जिंदगी को सही कामों में लगाने से है, नकि स्वयं को फालतू कामों में झोंक देने से।
परंतु नायडू के साथ ऐसी बात नहीं है। नायडू दिन भर काम करने के उपरांत भी अपनी किस्मत में आराम दान नहीं कि है। पति स्कूल से आते ही अपनी अलग जिन्दगी में लग जाते हैं, और नायडू..?
नायडू पूर्व की भांति हीं रसोई घर में। उसको कभी रसोई घर से फुर्सत हीं नहीं मिलती!
हर इंसान की अपनी ही, एक अलग ही कहानी होती है। और यहाँ भी कुछ ऐसी ही कहानी चल रही है। नायडू और विक्रम बाबू के बीच।
ऐसे नायडू मन से कभी भी नहीं चाहती कि विक्रम बाबू स्कूल में काम करें। क्योंकि विक्रम बाबू को स्कूल में काम करना वो कतई पसंद नहीं करती ।
जब से विक्रम बाबू का नाम, नेहा बसु के साथ जूड़ा है, तब से पत्नी कभी नहीं चाहती की वो किसी विद्यालय में सेवा दे। लेकिन विक्रम को पढ़ाने का सिर पर नशा जो सवार है। विक्रम बाबू अक्सर बोला करतें है कि - "मुझको ऐसा लगता है कि इश्वर ने यही कार्य करने के लिए मुझे धरती पर मनुष्य बनाकर भेजा ही था ।"
अब आपको मन में एक सवाल उठेगा, कि यह नेहा बसू कौन है?
नेहा बसू!?
नेहा बसू की यहाँ एक अलग ही कहानी है। और इस कहानी में नेहा बसू का जिक्र न हो, यह हो ही नहीं सकता।
नेहा बसू की भूमिका इस कहानी में विक्रम बाबू और नायडू के साथ घर वाली और बाहर वाली की जैसी रही है। अगर सच बोला जाय तो नायडू और नेहा को एक साथ लाकर कोई कहानी लिखी जाय तो उसका शीर्षक जो होगा, उसका नाम होगा ' मैं और मेरी सौतन। '
विक्रम बाबू बढ़े लिखे, एक समझदार - सुलझे हुए इंसान होतें हुए भी नेहा के साथ एक ऐसे रिश्तें में रह चुके हैं, जिसको समाज में अभी मान्यता नहीं मिली है। एक तरह से नेहा, विक्रम बाबू की प्रेमिका रह चूकी है।
नेहा का वास्तविक नाम नेहा सिंहा है। लेकिन वो नेहा सिंहा न लिखकर नेहा बसू लिखा करती है। क्योंकि मूल नाम के साथ उपनाम लिखने का अब प्रचलन सा है। और नेहा का उपनाम बसू ही है। उसके घर वाले उसे बसू ही कह कर बुलाया करतें हैं।
नेहा फिलहाल कॉलेज की एक छात्रा है। लेकिन अभी भी नेहा और विक्रम बाबू के बीच में कुछ - कुछ चलता ही रहता है।
विक्रम बाबू न्यूज सुनकर जैसे ही उठने ही वाले होतें हैं, इधर मोबाइल फोन की घंटी घनघना उठती है।
और मोबाइल फोन की घंटी की आवाज सुनकर विक्रम बाबू की नजर सामने रखा टेबल पर मोबाइल फोन की ओर चली जाती है।
मोबाइलफोन के स्क्रीन पर पल भर में रामू काका का एक मुस्कुराती हुई तस्वीर उभर आया था । पता नहीं क्यों रामू काका ने फोन किया , यह सोचते हुए विक्रम बाबू ने फोन उठाते हुए बोल पड़े, - "हाँ रामू काका बोला जाय....।"
"प्रणाम सर...।"
"अरे ना काका आपको प्रणाम करना अच्छा नहीं लगता, बोलिए क्या बोलना है।"
"सर जी आपसे एक काम है।" - फोन के उसपार से रामू काका की आवाज विक्रम बाबू के कानो से टकराई ।
"आदेश दिया जाय।"
-विक्रम बाबू ने मुस्कुराते हुए फोन पर बोल पड़े।
और इसी बात पर रामू काका भी हँसतें हुए बोलना शुरू किये तो बोलते हीं चलें गयें।
रामू काका ने नवीन पटनायक की वास्तविक स्थिति को बतलाते हुए ऐडमिशन में कुछ पैरवी करने के लिए विक्रम बाबू के पास फोन कियें थें, ताकि गरीब को कुछ सहुलियते मिल जाय।
लेकिन रामू काका की सारी बातें सुनने के उपरांत, विक्रम बाबू ने जो रामू काका से बोलें, उसपर रामू काका को पहले-पहल तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि विक्रम बाबू कुछ ऐसा भी कर सकते हैं।
विक्रम बाबू ने रामू काका से बोले कि स्टॉफ कोटा से उस लड़का को ऐडमिशन हो जायेगा। स्टॉफ कोटा से ऐडमिशन का मतलब था एक भी रूपया का खर्चा नहीं नवीन पटनायक को लगने थें, बिलकुल निःशुल्क वह स्कूल में पढ़ाई कर सकता था।
क्रमशः जारी।