अच्छा, ठीक है-ठीक है, गुस्सा नही हो, मैं तो बस यह कह रहा था एक बार उससे बात तो कर लेना, ताकि उसके दिल में क्या है यह पता चल सके, देख वो आ रही है------अजय ने युनिवर्सिटी के दरवाज़े की तरफ इशारा करते हुए कहा रूद्र ने मुड़ कर देखा तो वो अपनी दोस्त से गुस्से में कुछ कह रही थी।
दुआ तू सच में उन दोनों से बात करने वाली है-----छाया ने परेशान होते हुए पूछा।
हां छाया, क्योंकि अगर आज मैंने इनसे बात नही की ना तो कल मैं किसी से बात करने के लायक नही रहुंगी, पूरी युनिवर्सिटी में बदनाम हो जाऊंगी इन आवारा लड़कों की वजह से....
मैं अपने बाबा की इज्ज़त यूं ही मिट्टी में नही मिलने दे सकती-----दुआ ने गुस्से में छाया से कहा और तेज़ क़दमों से रूद्र के सामने आकर खड़ी हो गई, अजय और रूद्र दोनों ही उसको अपने सामने देख हैरान थे।
प्रोब्लम क्या है तुम दोनों की.......मेरे पिछे क्यों पड़े हो, एक हफ्ते से ज़्यादा हो गया है तुम लोगों को बर्दाश्त करते हुए, मगर अब बस बहुत बर्दाश्त कर लिया मैंने, आज तुमको समझा रही हूं, कल से नज़र नही आना वरना पुलिस कम्पलेन कर दूंगी---------दुआ ने रूद्र को घूरते हुए कहा।
ठीक है कर दो, मगर कोई पूलिस, कोई मिनिस्टर कोई भी मुझे तुमसे मिलने से नही रोक सकता----- रूद्र ने उसके गुस्से से लाल चेहरे को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा।
तुम समझते क्या हो खुद को, हो कौन तुम और मुझसे चाहते क्या हो----- दुआ ने गुस्से में कई सारे सवाल एक साथ कर दिए थे।
शादी करना चाहता हूं......प्यार करता हूं तुमसे इसलिए अब जिऊंगा तो तुम्हारे साथ ही क्योंकि मरने का कोई इरादा नही है------ रूद्र ने फिर से शरारती अंदाज़ में कहा जिस पर दुआ और सुलग गई।
बकवास बंद करो अपनी, बहुत देखे हैं तुम जैसे, 2-4 दिन में खुद हार जाओगे-------
बस करो तुम, चलो यहां से, इन लड़कों के मुंह लगने का कोई फायदा नही------छाया ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
नही छाया, आज मुझे बात करने दो......
प्लीज़ अभी चलो यहां से -------छाया यह कहते हुए, ज़बरदस्ती उसे वहां से ले गई।
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दो दिन गुज़र गए थे मगर उस दिन के बाद से रूद्र को वो लड़की दिखाई नही दी थी, जिसका वो दिवाना था, हां, छाया को ज़रूर देखा था।
रूद्र, कही वो डर तो नही गई-----अजय ने सोचते हुए कहा.
नही, वो डरने वालो में से नही है, ज़रूर कुछ हुआ है, मुझे पता करना होगा------ रूद्र ने परेशान होते हुए कहा।
मगर कैसे, अब तक तो हमको उसका नाम भी नही पता, उसके घर का पता तो दूर की बात है।
उसका ना सही मगर उसकी दोस्त का तो पता है ना----- युनिवर्सिटी से निकलती छाया को देख, रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
छाया रूको-------छाया युनिवर्सिटी से अभी थोड़ी दूर ही थी कि रूद्र ने उसको आवाज़ देते हुए रोका।
उसकी आवाज़ सुनकर वो काफी डर गई थी जो रूद्र ने भी महसूस कर लिया था।
एम् सोरी छाया, मैं तुमको ऐसे रोकना नही चाहता था मगर तुम्हारी दोस्त दो दिन से नही आई कहीं वो------ रूद्र ने इतना ही कहा था कि छाया बोल पड़ी।
यह नही सोचना वो तुमसे डर गई----छाया ने यही कहा था कि रूद्र मुस्कुराने लगा।
मुझे पता है छाया, वो किसी से नही डरती, यह तो मुझे पहली मुलाक़ात में ही पता चल गया था और तुमको भी मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नही है, तुम मेरे लिए बहन जैसी हो.......मैं उससे बहुत प्यार करता हूं इसलिए उसके लिए परेशान था कि कहीं वो बीमार तो नही वरना ऐसे बीच रास्ते में तुमको कभी नही रोकता-------रूद्र ने थोड़ा शर्मिन्दा होते हुए कहा।
अगर तुम दुआ से सच में प्यार करते हो, तो भगवान के लिए युनिवर्सिटी के चक्कर लगाना बंद करो, तुम्हारी वजह से लोग उसके बारे में पता नही क्या-क्या बात कर रहे हैं------ छाया ने अब थोड़ी हिम्मत करके कहा।
"दुआ" उसका नाम दुआ है??? रूद्र ने हैरानी से पूछा।
तुमको अब तक उसका नाम भी नही पता था और मोहब्बत के दावे करते हो-------छाया ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
छाया मोहब्बत दिल से की जाती है, नाम से नही, खैर, मैं वादा करता हूं आज के बाद, मैं युनिवर्सिटी नही आऊंगा मगर बस में दुआ के डैड का नाम जानना चाहता हूं???
डॉक्टर फरहान सिद्दीकी!!!------छाया ने फौरन जवाब दिया और वहां से चली गई।
क्या हुआ रूद्र??? कुछ बताया छाया ने---- अजय ने रूद्र के कार में बैठते ही सवाल किया क्योंकि वो फोन पर बात कर रहा था तो उन दोनों की बातें नही सुन सका था।
हां उसका नाम--- रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
अच्छा, क्या नाम है उसका, मुझे भी तो पता चले, मेरी होने वाली भाभी का नाम---- अजय ने उत्सुकता से पूछा।
दुआ सिद्दीकी, शहर के जाने-माने डॉक्टर फरहान सिद्दीकी की बेटी!
क्या?????? अजय ने हैरानी से आंखें चौड़ाते हुए पुछा।
हां, हैं ना बहुत खुबसूरत नाम----- रूद्र ने मुस्कुराते हुए पूछा।
रूद्र तू पागल हो गया है, दुआ सिद्दीकी, मतलब वो मुसलमान है और तू हिन्दू, भूल जा उसे......
अजय ऐसा नही हो सकता.
रूद्र, मेरे भाई यह हिन्दुस्तान है, ठीक है ना, यहां लाखों मासूमों का खून बहा दिया जाता है, हिन्दू मुस्लिम के नाम पर......और तू मोहब्बत करने चला है वो भी अपने दादू को जानते हुए, वो मर जाएंगे मगर तुझे उससे शादी नही करने देंगे।
अजय तू मेरे दादू को जानता है तो मुझे भी समझता है ना, अब मैं मर जाऊंगा मगर अपना फैसला नही बदलूंगा।
उनका ही पोता हूं अगर मैंने उनके दिल की नफरत नही खत्म कर दी मुसलमानों के लिए, अगर मैंने सबको नही मना लिया अपनी शादी के लिए तो मेरा नाम भी रूद्र रघुवंशी नही-----यह कहते हुए रूद्र ने कार स्टार्ट कर दी।
अमित जी, अब तक कुछ पता उस लड़की का या नही------अहान ने गुस्से में पूछा।
सर मैंने पूरी कोशिश की थी, यहां तक आपके कहने के मुताबिक होटल के आसपास जहां कहीं किसी दुकान वगैरह पर सी.सी.टी.वी लगे हैं, उन सबकी रिकॉर्डिंग खुद देखी है मगर कहीं एक जगह भी उसका चेहरा नही दिख रहा।
कोई तो तरीका होगा उसे ढूंढने का------ अहान ने गुस्से में कांच की टेबल पर हाथ मारते हुए कहा जिससे अमित जी घबरा गए, उसके हाथ से खून बहने लगा था।
सर एक रास्ता है----अमित ने डरते हुए कहा।
क्या?? जल्दी बताओ अमित----अहान ने बेताबी से पूछा।
यही कि उस दिन होटल की जितनी भी बुकिंग हुई थी वो जिस-जिस शहर से हुई थी वहां जाकर ढूंढना जाए तो शायद वो हमको मिल जाए।
ठीक है, तुम जाकर रिकॉर्ड्स चैक करो और मुझे बताओं, हम कल ही निकलेंगे फिर-----अभी अहान यही कह रहा था कि उसकी मां का फोन आ गया।
हैलो! अस्सलामु-अलेकुम अम्मी.....क्या हुआ, सब ठीक है, आपको कुछ चाहिए तो बता दें,प मैं घर आते हुए ले आऊंगा।
नही बेटा। मुझे कुछ नही चाहिए, मैंने तो फोन इसलिए किया था कि तुम्हारी खाला का फोन आया था वो रात के खाने पर हम दोनों को बुला रही है फिर इस बहाने तुम राबिया से भी मिल लेना।
अम्मी मैं आज जल्दी नही आ सकता, आप ड्राइवर के साथ चली जाएं और हां प्लीज़ खाला को राबिया और मेरे रिश्ते के लिए मना भी कर दीजियेगा।
क्या??? अहान यह क्या कह रहे हो, अचानक क्या हो गया तुमको......अभी दो महीनों पहले तुमने खुद ही तो हां कहीं थी ना।
हां अम्मी कहीं थी, मगर सिर्फ आपकी खुशी के लिए क्योंकि तब मैं किसी से भी शादी करता मुझे फर्क नहीं पड़ता, मगर अब मेरे दिल में कोई रहता है अम्मी, एक चेहरा है जिसे मैं ढूंढना चाहता हूं, एक वजूद है जिसको अपना बनाना चाहता हूं..... बहुत दिनों से यह सब कहने की हिम्मत कर रहा था, मगर आपके सामने कह नहीं पा रहा था, इसलिए अभी फोन पर बता रहा हूं।
मगर बेटा राबिया तुमको बचपन से चाहती है तुम ऐसा कैसे कर सकते हों।
अम्मी प्यार वही कामयाब होता है जो दो तरफा हो, मैं उससे प्यार नही करता, उसको ज़िन्दगी भर रूलाने से बेहतर है, उसकी आंखों में आज कुछ आंसु दे दूं------- अहान ने यह कहते हुए फोन काट दिया और कुर्सी से सिर टिका लिया।
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क्या बात है दुआ, आज कुछ खास है, बहुत खुश लग रही हो----- छाया ने युनिवर्सिटी से निकलते हुए पुछा।
अरे!! खुश होने वाली तो बात है, तुमने देखा नही, आखिर उन दोनों आवारा लड़कों ने हार मान ही ली, ना आज सुबह नज़र आए और ना अब.......अगर मुझे पता होता मेरे दो दिन युनिवर्सिटी ना आने से वो मेरा पीछा छोड़ देंगे तो पहले ही ऐसा कर देती---- दुआ ने मुस्कुराते हुए कहा।
दुआ तुम ग़लत समझ रही हो, दरअसल कल मैंने उन लोगों से बात की थी।
क्या----दुआ ने हैरानी से कहा।
हां दुआ, मैं तुमको शुरू से बताती हूं और फिर छाया ने सबकुछ दुआ को बता दिया।
उन लोगों की इतनी हिम्मत, तुझे बीच रास्ते में रोक लिया, तुझे कम्पलेन कर देनी चाहिए थी-----दुआ ने गुस्से में कहा।
अरे!! बात को क्यों बढ़ाना, उसने अपना वादा निभाया ना और मुझसे तभी माफी भी मांग ली थी, तो बात खत्म......वैसे दुआ, मुझे लगता है, वो तुझसे सच में प्यार करता है, मेरा मतलब है कल वो तेरे लिए सच में परेशान था----छाया ने हिचकिचाते हुए कहा।
छाया बस कर, ठीक है ना, मुझे कुछ नही सुनना, उसके बारे में.....मेरा मूड नही खराब कर------दुआ ने मुंह बनाते हुए कहा।
अच्छा ठीक है, कल बात करते हैं, बाय-------यह कहते हुए छाया, वहां से चली गई।
छाया तो चली गई थी मगर जाते-जाते उसका अच्छा खासा मूड खराब कर गई थी, पूरे रास्ते वो कुछ-कुछ बड़बड़ाते हुए घर पहुंची थी।
उसने घर में दाखिल होते हुए, ज़ोर से सलाम किया और ड्राइंग रूम की तरफ आ गई।
अम्मी, नानू, मैं आ गई, भूख लग रही है प्लीज़ चाय बना दें----वो यह कहते हुए अंदर आई ही थी कि सोफे पर बैठे शख्स को देख वही रूक गई।
तुम!!!! दुआ ने हैरानी से कहा।
दुआ बेटा, तुम जानती हो रूद्र को------ फरहान सिद्दीकी ने अपनी बेटी की तरफ देखते हुए पुछा।
हां अंकल, हम लोग पहली बार कश्मीर में मिले थे, इनका पैर पहाड़ से फिसल गया था तब मैंने ही बचाया था------- रूद्र ने दुआ का गुस्से से लाल चेहरा देख मुस्कुराते हुए कहा।
अरे!!! तब तो तुम हमारे लिए फ़रिश्ते जैसे हो, पहले मेरी जान से ज़्यादा अज़ीज़ बेटी को बचाया और आज मुझे.....अगर आज तुम सही वक्त पर मुझे धक्का नही देते तो पता नही क्या होता------ सिद्दीकी साहब ने सोचते हुए कहा।
अरे!!! यह तो मेरा फर्ज़ था अंकल----- रूद्र ने दुआ को देखते हुए कहा जो अभी भी उसे घूर रही थी।
बेटा तुम्हारा एक्सीडेंट मुझे बचाने के चक्कर में हुआ है, टांग में फ्रेक्चर हो गया है, अब जब तक तुम ठीक नही हो जाते मुझे कैसे सुकून मिलेगा------- फरहान सिद्दीकी ने अफसोस से उसके पैर को देखते हुए कहा।
अंकल आप मुझे, अपने घर ले आएं, मेरे प्लास्टर भी कर दिया और सबसे बड़ी बात मुझे इतना प्यार दिया यह सब बहुत है मेरे लिए, आप परेशान नही हो, मैं जल्द ही ठीक हो जाउंगा, फिलहाल मुझे जाने की इजाज़त चाहिए----- उसने उठने की कोशिश करते हुए कहा।
अरे!!!! ऐसे कैसे, मैं देखता हूं तुम्हारी आंटी को, तुम्हारे लिए पकोड़े बनाने गई थी अब तक नही आई------- यह कहते हुए फरहान सिद्दीकी किचन की तरफ चलें गए और दुआ गुस्से में उसके पास आ गई।
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे घर तक आने की------उसने फौरन ही रूद्र से सवाल किया।
अरे!!!! तुमने अभी सुना नही, तुम्हारे डैड को बचाया है मैंने------- रूद्र ने मासूम चेहरा बनाते हुए कहा।
ओह मिस्टर!!! यह एक्टिंग ना किसी ओर के सामने करना, अच्छे से समझती हूं तुम जैसे आवारा लड़कों की हरकतें----- दुआ ने दांत पिसते हुए कहा जिसे देख रूद्र मुस्कुरा दिया।
चलों मान लेते हैं, यह एक्सीडेंट सोचा-समझा था, जान कर खुशी हुई कि तुम बेवकूफ नही हो मगर यह तो तुम को भी मानना पड़ेगा कि मेरा प्यार सच्चा है, वरना अपनी टांग यूं ही तो नही तुड़वा लेता कोई----- रूद्र ने उसके गुस्से से लाल चेहरे को देखते हुए शरारत से कहा।
मैं अभी बाबा को तुम्हारी हकीक़त बता दूंगी, फिर देखते हैं कितना सच्चा प्यार है।
ठीक है, बता दो, मगर कहोगी क्या, मैं बैचारा, फ़रिश्ते जैसा इंसान, मुझ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाने से पहले एक सबूत तो होना चाहिए ना तुम्हारे पास----- रूद्र ने आहिस्ता से मुस्कुराते हुए कहा और दुआ के बढ़ते कदम वहीं रुक गए।
तुम!!! दुआ ने यही कहा था कि रूद्र ने उसकी बात काटते हुए कहा।
यह तो मेरी मोहब्बत की शुरुआत है, आगे-आगे देखो होता है क्या----- रूद्र यही कह रहा था कि आकिब कमरे में भागता हुआ आ गया।
आपी आप आ गई, यह देखे, रूद्र भईया ने मेरे मैथ्स की सारी एक्सरसाइज सोल्व करवा दी, आपको पता है, इनकी मैथ्स और हिस्ट्री दोनों बहुत अच्छी है, बहुत अच्छे से समझाते हैं यह----- आकिब ने अपनी नोटबुक उसको दिखाते हुए कहा।
आकिब यह सिर्फ कुछ देर के मेहमान है, इनकी मैथ्स अच्छी हो या हिस्ट्री इससे कोई फर्क नही पड़ता, तुम अंदर चलो, मैं तुमको पढ़ाती हूं-----दुआ ने अपने छोटे भाई का हाथ पकड़ते हुए कहा।
आपी ऐसा नही है, इन्होंने मुझसे वादा किया है कि यह अपने आफिस से वक्त निकाल कर हफ्ते में 2-3 बार मुझे पढ़ाने आएंगे, क्योंकि इस साल मेरे बोर्ड के इम्तेहान है ना.... क्यों रूद्र भईया आप आओगे ना------ आकिब ने रूद्र की तरफ देखते हुए पुछा।
आकिब अब तुम्हारी आपी नही चाहती तो मैं कैसे आऊंगा------ रूद्र ने मासुमियत से कहा।
भईया, आप अपना वादा तोड़ दोगे???? आपने तो डैड से भी बात कर ली ना जब आपके आने से डैड को कोई प्रोब्लम नही है तो आपी आपको क्यों कुछ कहेंगी------ आकिब ने मुंह बनाते हुए पूछा।
अच्छा ठीक है, ठीक है नाराज़ नही हो, मैं ज़रूर आऊंगा, अब वादा किया है तो निभाना पड़ेगा------ रूद्र ने दुआ को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा, जिसको देख दुआ गुस्से में आकिब को वहीं छोड़कर चली गई।
अमित जी, होटल बुकिंग के हिसाब से और कितने शहर है----- अहान ने चाय पीते हुए पुछा।
सर लखनऊ तो तकरीबन हमने पूरा छान लिया है, मगर उस लड़की का कोई पता नही, पांच शहर और है, मेरा ख्याल है, हमको अब मुम्बई में ढूंढना चाहिए----- अमित जी ने सोचते हुए कहा।
हम्मम! ठीक है, तो कल निकलते हैं----- अहान ने लम्बी सांस लेते हुए कहा।
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मोम, भाभी, चाची आप सब लोग प्लीज़ जाइए, मैं ठीक हूं, मुझे कुछ नही हुआ, हल्का-सा फ्रेक्चर है, थोड़े दिन में ठीक हो जाएगा----- रूद्र ने उन लोगों को अपने पास खड़े देखा तो थोड़ा उलझते हुए कहा।
मगर रूद्र तुमको इतनी चोट लगी है, अगर किसी चीज़ की ज़रूरत हुई तो क्या करोगे, कोई तो होना चाहिए ना तुम्हारे पास------ जिया ने उसकी टांग पर बंधे प्लास्टर को देखते हुए कहा।
भाभी फोन है मेरे पास, कुछ चाहिए होगा तो फोन कर दूंगा मगर आप लोग अगर यूं ही खड़े रहे तो मैं आराम कैसे करूंगा------ उसने बुरा-सा मुंह बनाते हुए अपनी चाची को देखते हुए कहा।
हां जिया, ठीक तो कह रहा है रूद्र, इसको आराम की ज़रूरत है, चलो हम सब नीचे चलते हैं इसको आराम करने देते हैं----यह कहते हुए उसकी चाची, जिया और उसकी मोम को कमरे से बाहर ले गई कि तभी अजय कमरें मे आ गया।
अजय के बच्चे, आज मैं तुझे छोड़ूंगा नही-----उसको देखते ही, रूद्र ने यह कहते हुए उसकी तरफ एक तकिया फेंक कर मारा।
एम् सोरी, एम् सोरी रूद्र, यार माफ़ कर दें...... तूने ही तो कहा था ना एक्सीडेंट असली लगना चाहिए----- अजय ने आहिस्ता से कहा।
हां मैंने कहा था, मगर यह तो नही कहा था कि मेरी टांग तोड़ देना और सोच, अगर मैं ज़रा-सा चूक जाता तो बेचारे सिद्दीकी साहब का क्या होता----- रूद्र ने उसके एक ओर तकिया मारते हुए कहा।
अरे ग़लती हो गई!!! अब क्या जान लेगा---- अजय ने उसके पास बैठते हुए कहा।
अब मुझे एक्सपिरियंस थोड़ी नही है, लोगों का एक्सीडेंट करने का, वैसे यह बता कुछ बात बनी.....होने वाले ससुर जी इंप्रेस हुए की नही------अजय ने उत्सुकता से पूछा मगर इससे पहले रूद्र कुछ भी कहता उसकी निगाह दरवाज़े पर खड़ी भाभी पर पड़ी जो उन दोनों को बहुत हैरानी से देख रही थी।
भाभी आप---- रूद्र ने अपना होंठ काटते हुए आहिस्ता से कहा।
हां मैं रूद्र, तुमने इतनी बड़ी बात मुझे नही बताई---- जिया ने उन दोनों के पास आते हुए नाराज़गी से कहा।
भाभी मैं सब बताता हूं, अजय कमरे का दरवाज़ा बंद कर----- रूद्र ने अजय से कहा और फिर शुरू से आखिर तक, सब कुछ जिया को बता दिया।
रूद्र तुम्हारा दिमाग ठीक है, तुम सोच भी कैसे सकते हो, दादू को जानते होना, वो एक मुसलमान लड़की को कभी इस घर की बहू नही बनने देंगे.......
भाभी आप भी बाकी सबकी तरह शुरू हो गई, मैं उससे प्यार करता हूं, मज़ाक नही है यह, आपने हमेशा मुझे अपना छोटा भाई माना है ना तो क्या आप मेरे सबसे बड़े इम्तेहान में मेरा साथ नही देंगी।
रूद्र, मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं मगर याद रखना रूद्र, मोहब्बत का सफर आसान नही होता और जब मोहब्बत धर्मों की आग में जलती है ना तो बहुत कम लोग ही, इस आग के दरिया को पार कर पाते है।
भाभी मैं जानता हूं, आप फ़िक्र नही करो मैं सब सम्भाल लूंगा, आप देख लेना बहुत जल्द दुआ को सब अपना लेंगे मगर सबसे पहले मुझे दादू की आंखों से नफरत की पट्टी उतार इंसानियत दिखानी होगी, तभी यह हिंदू-मुस्लिम का भेद भाव रघुवंशी परिवार से खत्म होगा।
मगर कैसे रूद्र----- अजय और जिया दोनों ने एक साथ सवाल किया।
वो सब मैंने सोच लिया है, सबसे पहले मुझे दुआ और दादू को मिलवाना होगा और फिर रूद्र ने अपना पूरा प्लान उन दोनों को बता दिया।
रूद्र, ठीक है तुम जैसा कहोगे वैसा ही होगा------ जिया ने मुस्कुराते हुए कहा।
थैंक यू भाभी, मुझे पता था आप मेरा साथ ज़रूर दोगी।
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दादू आप कुछ कर रहे हैं----रूद्र ने उनके कमरे में आते हुए पुछा।
रूद्र, सम्भल कर, गिर जाओगे, टांग में फ्रेक्चर है ना कमरे से बाहर क्यों आए----- मुकेश रघुवंशी ने डांटते हुए पूछा।
दादू मैं थक गया हूं कमरे में बैठे-बैठे, 4-5 दिन हो गए, आपने मुझे आफिस भी नही जाने दिया, चलें ना कहीं चलते हैं------- रूद्र ने उनके पास बैठते हुए कहा।
रूद्र डाक्टर ने आराम करने के लिए कहा है...... बाला, जाओ रूद्र को उसके कमरे तक छोड़ कर आओ------ मुकेश रघुवंशी ने दरवाज़े के पास खड़े बाला को हुक्म दिया।
दादू मुझे नही जाना कमरे में, चलिए ना, आज हम दोनों अक्षरधाम मंदिर चलते हैं, बहुत दिन हो गए वहां गए हुए----- रूद्र ने बच्चों की तरह ज़िद्द करते हुए कहा।
अच्छा ठीक है, चलो चलते हैं---- मुकेश रघुवंशी ने उसकी ज़िद्द के सामने हारते हुए मुस्कुरा कर कहा।
दादू, क्या आज हम दोनों अकेले जा सकते हैं, मेरा मतलब है अगर आज आपके साथ बाला जी वगैरह ना जाए तो...... आज मैं बस आपके साथ टाइम स्पेंड करना चाहता हूं, बचपन की तरह----- रूद्र ने छोटे बच्चे की तरह मुंह बनाते हुए कहा।
अच्छा ठीक है, बाला जाओ इसके लिए पहले वील चेयर लेकर आओ तभी जाएंगे वरना कोई कहीं नहीं जा रहा------- मुकेश रघुवंशी ने सख्त अंदाज़ में कहा तो रूद्र खामोशी से मान गया, मुश्किल से डेढ़ घंटा लगा था और वो दोनों अक्षरधाम मंदिर पहुंच गए थे, रूद्र ने प्लान के हिसाब से अजय को भी फोन करके बुला लिया था।
दादू मुझे लगता है, यह चाट खाने की वजह से आपको खांसी हो गई, आप यहां बैठो मैं आपके लिए पानी लाता हूं------ रूद्र ने मुकेश रघुवंशी को एक जगह बिठाते हुए कहा इससे पहले वो उसे रोकते या कुछ कह पाते, रूद्र वील चेयर पर बैठा तेज़ी से वहां से चले गया और सीधा अजय से जाकर मिला।
यार रूद्र, तूने दादू को ऐसा क्या खिला दिया जो उनको इतनी खांसी हो रही है, कुछ नही अजय बस चाट में मसाला थोड़ा ज़्यादा डाल दिया, खैर प्लान के मुताबिक सब तैयार है ना????
हां, मगर तुझे पक्का यकीन है ना कि आज दुआ यहां आएंगी----- अजय ने सोचते हुए पूछा।
अजय आकिब ने मेरी तबियत पूछने के लिए फोन किया था तभी उसने बातों-बातों में बताया था कि आज वो लोग घूमने जाने वाले हैं......वैसे तो उनको अब तक आ जाना चाहिए था बाकी अगर उनका प्लान बदल गया हो तो, वो मुझे पता नही।
यार रूद्र------इससे आगे अजय कुछ कहता, उसकी निगाह दुआ पर पड़ गई।
लगता है आज भगवान जी भी तेरे साथ है----अजय ने मुस्कुराते हुए कहा।
मतलब---- रूद्र ने कुछ ना समझते हुए पुछा।
जनाब अपनी दाईं तरफ देखे, दुआ आ रही है और सीधा दादू की तरफ ही जा रहे हैं वो लोग...
रूद्र- रूद्र कहां हो बेटा-----मुकेश रघुवंशी का खांस-खांस बुरा हाल हो गया था वो आहिस्ता - आहिस्ता चलते हुए, इधर-उधर नज़र दौड़ा कर रूद्र को आवाज़ दे रहे थे मुश्किल से वो 10-15 क़दम ही चले थे कि उनके पैर के नीचे केले का छिलका आ गया वो ज़मीन पर गिरते इससे पहले ही एक लड़की ने उनका हाथ पकड़ लिया।
अंकल सम्भल कर, धन्यवाद बेटा------मुकेश रघुवंशी ने यह कहते हुए उस लड़की की तरफ देखा तो उन्होंने फौरन अपना हाथ छुड़ा लिया, वो लड़की कोई ओर नही दुआ ही थी.......सबकुछ वैसा ही हो रहा था जैसा रूद्र ने सोचा था मगर वो भुल गया था कि दुआ अक्सर एक लाॅकेट पहनती हैं जिस पर अल्लाह लिखा था......यह शायद भगवान का खेल ही था कि सबकुछ रूद्र के प्लान के मुताबिक होने के बावजूद सिचुएशन बदल गई थी...... उसका प्लान यह नही था कि दादू को पहली मुलाकात में यह पता चल जाए कि वो लड़की मुसलमान है लेकिन होनी को कौन टाल सकता है।
मगर जैसे ही मुकेश रघुवंशी ने हाथ छुड़ा कर आगे चलने के लिए क़दम बढ़ाया तो उनके मुंह से आह निकल गई और उनके पैर लड़खड़ा गए तभी दुआ ने आगे बढ़कर उनका हाथ फिर पकड़ लिया, उनके गुस्से की परवाह किए बगैर......
अंकल आप यहां बैठे, मुझे पता है, आपको मेरी मदद लेना अच्छा नही लग रहा, शायद इसलिए कि मैं मुसलमान हूं----- उसने अपने गले में पड़े लाॅकेट को देखते हुए कहा।
अंकल मेरी नानू कहती, बढ़ती उम्र के साथ लोगों का मिजाज़ बच्चों जैसा बन जाता है इसलिए उनका ख्याल भी बच्चों की तरह रखना पड़ता है......देखें अभी आपके पैर में मोच आ गई है ना मगर आप परेशान नहीं हो, मेरे बाबा डाक्टर है, इतना तो मुझे आता है----दुआ ने उनके सामने बैठते हुए उनका पैर देखते हुए कहा।
मुकेश रघुवंशी का दिल तो नही मान रहा था मगर उनके पैर की तकलीफ और लगातार होने वाली खांसी की वजह से वो मना नही कर सकें।
लीजिए अंकल, हो गया आपका पैर ठीक.....अब आप चल सकते हैं----यह कहते हुए दुआ खड़ी हो गई।
वैसे अंकल एक बात पूछूं......अगर मेरे गले में यह लाॅकेट नही होता तो आपको कैसे पता चलता, मैं मुसलमान हूं या हिन्दू.......... तब शायद आपको मुझसे मदद लेना बुरा भी नही लगता, अंकल कोई धर्म अच्छा या बुरा नही होता, लोगों की सोच और परवरिश अच्छी, बुरी होती है.......हो सके तो अगली बार लोगों का धर्म नही उनकी अच्छाई को देखने की कोशिश कीजिएगा।
कहते हैं सबकुछ रब की मर्ज़ी से होता है, तो आप भी यही सोच लीजिएगा की आज आपकी मदद के लिए, उस रब ने मुझे भेजा है, और जब उसने हिन्दू मुस्लिम का फर्क नही किया तो आप भी अपने दिल से यह भेदभाव निकाल दें।
आपको बहुत खांसी हो रही है, अगर आपको सही लगें तो पानी पी लीजिएगा------- दुआ यह कह कर मुकेश रघुवंशी के बराबर में पानी की बोतल रखते हुए चली गई।
यार रूद्र, यह क्या था, तू ने भी वही सुना जो मैंने सुना-----अजय ने हैरानी से पूछा!
मतलब पहली बार, दादू ने किसी की इतनी बातें सुन ली और कुछ नही कहा, यहा तक, यह पता चलने के बाद भी कि वो मुसलमान है...... उन्होंने उसकी मदद लें ली......यह तो सच में चमत्कार हो गया, लगता है भगवान जी भी तुम दोनों को मिलवाना चाहते हैं---- अजय ने मुस्कुराते हुए कहा।
हम्मम, एक पल के लिए तो मुझे लगा कि सबकुछ बिगड़ गया मगर मुझे नही पता था वो जितनी खूबसूरत है उतनी समझदार भी और सबसे बड़ी बात हम दोनों की सोच एक हैं......मुझे गर्व हो रहा है कि मैंने एक बहुत अच्छी लड़की को चुना है----- रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
ओह मेरे भाई! गर्व बाद में करना, पहले जाकर दादू को देख, वो अब तक उस पानी की बोतल को घूर रहे हैं----- अजय ने मुकेश रघुवंशी की तरफ इशारा करते हुए कहा।
ओह हां!! चल अब कल मिलते हैं, बाय------ यह कहते हुए रूद्र अपने दादू की तरफ चले गया।
सर!! आपने जो उस लड़की का स्केच बनवाया था, वो भी किसी काम नही आया, उसकी वजह से कितने लोगों ने हमको ग़लत पता बता कर, कहां-कहां भेज दिया------ अमित जी ने अहान के हाथ में एक फाइल पकड़ाते हुए कहा।
हम्मम!! अमित जी, मुझे पता है यह आसान नही है मगर जो आसानी से मिट जाए मोहब्बत वो जज़्बात भी नही है........अब जब मुश्किल काम करना ही है........तो मेरे ख्याल से उसे भूलने से बेहतर है उसे ढूंढ लेना------ अहान ने स्केच को देखते हुए कहा।
जी सर, आपने सही कहा-------- अमित जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
सर, अगले हफ्ते आपको सिंगापुर मीटिंग के लिए जाना है, टिकिट भी कन्फर्म हो गई है-------अमित जी ने फोन पर ईमेल चेक करते हुए कहा।
अमित जी, अभी कैंसिल कर दें, बाद में देखते हैं मीटिंग्स, पहले आप दिल्ली चलने की तैयारी करें, याद है, आपने कहा था, उस होटल में कुछ लड़कियां दिल्ली यूनिवर्सिटी से पिकनिक पर आई हुई थी, मुझे लगता है मेरी मंज़िल वहीं है.......मेरे लिए उसे ढूंढना सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।
ठीक है सर, जैसा आप कहें-------अमित जी यह कह कर चले गए और अहान एक बार फिर उस पल में खो गया, जब पहली बार उसने उस लड़की को देखा था जो अब उसकी मंज़िल बन गई थी।
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रूद्र भईया, यह देखो, यह सवाल मैंने इतनी बार हल करने की कोशिश की है मगर हल हो ही नही रहा------- आकिब ने उसके सामने नोटबुक रखते हुए कहा।
अच्छा, ज़रा दिखाओ, वैसे तुम्हारी आपी ने नही समझाया तुम्हे------ रूद्र ने मुस्कुराते हुए पूछा।
अरे, भईया!!! यह सवाल उन्होंने ही तो दिया है------ आकिब ने अपने सिर पर हाथ मारते हुए बताया।
अच्छा, तब तो इस सवाल को, हल करना ही पड़ेगा------ रूद्र ने नोटबुक उठाते हुए मुस्कुरा कर कहा।
रूद्र!!! बेटा लो, पहले यह लस्सी पियो, इसके सवाल तो इतनी जल्दी खत्म नही होने वाले मगर यह लस्सी ज़रूर गर्म हो जाएगी------- आकिब की नानी ने लस्सी टेबल पर रखते हुए कहा।
अरे नानी!!!! आप क्यों तकल्लुफ कर रही है, मैं भी आकिब की ही जगह हूं, आप यहां आराम से बैठे----- रूद्र ने खड़े होकर उनका हाथ पकड़ कर, सोफे पर बैठाते हुए कहा।
यह लीजिए, थोड़ा पानी पीजिए, देखे आपको कितना पसीना आ रहा है----- उसने उनका चेहरा देखते हुए कहा।
बेटा, उम्र का तकाज़ा है.......अब थोड़ी देर भी किचन में खड़े हो जाओ तो इतनी थकन हो जाती है कि फिर पूरे दिन उठने की हिम्मत नही होती------ उन्होंने लम्बी सी सांस लेते हुए कहा।
हां तो आपको मेरे लिए खुद को तकलीफ देने की कोई ज़रूरत नही---- मगर बेटा अच्छा नही लगता ना, तुम इतनी दूर से सिर्फ आकिब के लिए अपना कीमती वक्त निकाल कर आते हो, अब तुम्हारे लिए इतना तो कर सकती है ना यह बुढ़ी नानी------- उन्होंने मोहब्बत से रूद्र के सिर पर हाथ रखते हुए पूछा।
नानी आप बिल्कुल मेरे दादू जैसी है, ज़िद्दी, अगर ऐसी ही बात है तो घर में नौकर है ना, आप खुद को क्यों परेशान करती है....... वैसे मुझे एक आइडिया आया है, ऐसा करते हैं अगली बार से, जब मैं आऊंगा तो बाहर से ही कुछ ना कुछ लेते आऊंगा फिर आपको थकन भी नही होगी और यह शिकवा भी नही रहेगा कि मैं यूं ही चले गया, क्यों आकिब सही है ना----- रूद्र ने उनको लस्सी का गिलास देते हुए, आकिब से पूछा।
हां, रूद्र भईया, यह ठीक रहेगा, अरे आपी!! अन्दर आइए ना, देखे रूद्र भईया ने आपके दिए सभी सवाल हल कर दिए हैं------ आकिब ने दुआ को दरवाज़े पर खड़ा देख फौरन अपनी नोटबुक दिखाते हुए कहा।
रूद्र ने उसको देखा तो जैसे बाकि सब भुल गया......उसके सामने वो कैसे इतना बेखबर,बेबस हो जाता था कि चाह कर भी उस पर से अपनी नज़र नही हटा पाता था, कैसे वो उसके सामने इतना कमज़ोर पड़ जाता था, कैसे उसको उन गुस्से से भरी आंखों पर हमेशा प्यार आता था, कैसे हर बार उसकी दिवानगी पहले से ज़्यादा बड़ जाती थी-------रूद्र उसको देख अपनी ही सोचों में गुम था जब नानी के खांसने से उसका ध्यान नानी की तरफ गया और उनको देख वो फौरन उनके पास आ गया.......अचानक ही वो लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगी थी यह देख दुआ भी भागते हुए उनके पास आ गई।
नानू-नानू क्या हुआ है आपको, नानू मैं अभी एम्बुलेंस बुलाती हूं, आप परेशान नही हो------ दुआ ने रोते हुए अपना फोन इधर-उधर ढूंढते हुए कहा।
मगर अगले ही पल रूद्र ने नानू को गोद में उठा लिया था.......
दुआ एम्बुलेंस के आने का इंतेज़ार नही कर सकते, उनको आने में वक्त लग सकता है...... हमें नानी को फौरन डॉक्टर के पास ले जाना होगा, वो सांस नही ले पा रही है।
आकिब तुम अम्मी के साथ आओ, मैं नानू के साथ जाती हूं.....बाबा को तुम फोन करके बता देना------ यह कहते हुए दुआ भागते हुए रूद्र के पिछे चली गई।
रूद्र अस्पताल जल्दी पहुंचने के लिए जितने शोर्ट कट ले सकता था, उसने लिए और तकरीबन 20 से 30 मिनट में वो लोग अस्पताल पहुंच गए थे।
डॉक्टर साहब, मेरी नानू को क्या हुआ है, वो कैसी है, हम उनको कब तक ले जा सकते हैं----- डाक्टर के बाहर आते ही दुआ ने कई सवाल एक साथ पूछ लिए।
मिस सिद्दीकी, शुक्र करें कि आप लोग उनको सही वक्त पर अस्पताल ले आएं अगर पांच मिनट की भी देर हो जाती तो सिचुएशन बहुत खराब हो सकती थी, मगर अब घबराने वाली कोई बात नही, मैंने उनको इंजेक्शन दिया है 2-3 घंटे में उनको होश आ जाएगा तब आप उनसे मिल सकती है----- डॉक्टर यह कह कर वहां से चले गया तभी फरहान सिद्दीकी, उसकी मां और आकिब भी वहां आ गए, उन लोगों ने भी डाक्टर की बात सुन ली थी.....
दुआ ने जैसे ही अपनी मां को देखा वो फौरन उनके गले लग गई......वो अभी भी रो रही थी और रूद्र उसको बेबसी से देख रहा था..... वो आंखें जिसमें उसने अब तक सिर्फ गुस्सा देखा था पहली बार उसमें आंसु थे, उसका दिल चाह रहा था कि वो कुछ भी कर के दुआ के आंसु साफ कर दें, उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसका दिल फट रहा है उसको रोता देख मगर वो बिल्कुल बेबस था.....
रूद्र बेटा, थैंक यू सो मच, आज अगर तुम वक्त पर अम्मी को अस्पताल ना लाते तो पता नहीं क्या होता, आज तुम ने हम सब पर बहुत बड़ा एहसान किया है, हम तुम्हारे एहसानमंद है बेटा------ फरहान सिद्दीकी ने उसके सामने हाथ जोड़ते हुए कहा।
अरे अंकल!!!! यह आप क्या कह रहे हैं---- रूद्र ने उनके हाथ पकड़ते हुए कहा।
प्लीज़ ऐसा ना कहें यह तो मेरा फर्ज़ था...... आप बस अब नानी का ख्याल रखें..... मैं चलता हूं, घर से काफी फोन आ गए हैं------ रूद्र ने बहाना बनाते हुए जाने की इजाज़त मांगी क्योंकि वो दुआ को रोता हुआ नहीं देख पा रहा था।
ठीक है बेटा, तुम जाओ, मैं यहां सब सम्भाल लूंगा।
रूद्र कार में आकर बैठा ही था कि उसको दुआ का रोता हुआ चेहरा याद आ गया और पता नही कब उसकी आंखों से भी आंसु बहने लगे..... उसको दुआ से इस हद तक मोहब्बत हो गई है, इस बात का उसे अंदाज़ा ही नहीं था।
आगे अगले भाग में:-