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भाग 8

8 दिसम्बर 2021

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आकिब घर वापस आते ही, दुआ के कमरे में जाता है तो देखता हैं, दुआ की आंखे अभी भी नम थी।

आकिब----- आपी, अब आपको रोने की ज़रूरत नही है, मैंने हम सबकी परेशानी को खत्म कर दिया है।

दुआ कुछ ना समझते हुए----- मतलब ???? तुम क्या कह रहे हो आकिब, तुमने कौन सी परेशानी को खत्म कर दिया है??

आकिब---- आपी, आपको रुलाने वाला, रुद्र रघुवंशी अब खुद जेल में बंद, बैठा रो रहा होगा, अब आपका नही उसका बुरा वक्त शुरू हो गया है।

यह सुनते ही, दुआ एक झटके से खड़ी हो जाती है।

दुआ हैरानी से----तुम यह क्या कह रहे हो??? .... रुद्र जेल में??? कब और कैसे????

दुआ ने परेशानी में, कई सवाल एक साथ कर दिए थे, जिसे देख आकिब हैरान था कि वो उसके लिए इतनी परेशान क्यों हो रहीं है।

दुआ----आकिब बताओ मुझे, रुद्र जेल कैसे पहुंचा, क्या किया है तुमने???

आकिब थोड़ा डरते हुए----- वो आपी, मैंने पुलिस कम्पलेन कर दी थी और पकड़वाने के लिए, मैंने उनको लाल किले के पिछे बुलाया था।

यह सुनते ही, दुआ गुस्से में आकिब के थप्पड़ मार देती है।

दुआ----- तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, यह क्या किया तुमने???? यह सब करने को कहा, किसने था तुमसे, अभी तुम बहुत छोटे हो, इस सबके लिए।

आकिब आंखों में आसूं लिए-------- मैं छोटा नही हूं, मैंने जो किया, सही किया, उसने बाबा को धमकाया था, उसकी वजह से आप रोई हो, और उसने हम सबको धोखा दिया है, उसकी वजह से बाबा आपसे बात नहीं कर रहे।

दुआ अपने आंसू साफ करते हुए------ आकिब, मुझे पता है तू मुझसे बहुत प्यार करता है, तुझे मेरी फ़िक्र है मगर यह तो सही तरीका नही है ना।

आकिब ------ मगर आपी!!!

दुआ----- प्लीज़ आकिब, तुझे मेरी कसम, सच-सच बता, यह सब तू ने कैसे किया, तू तो बहुत छोटा है, तेरी कम्पलेन पर वो कैसे उसे गिरफ्तार कर सकते हैं।

आकिब, थोड़ा झिझकते हुए----- आपी, कम्पलेन मैंने आपके नाम से की है।

दुआ हैरानी से----- मेरे नाम से???

आकिब---- हां, मैंने आपके साइन काॅपी कर, एक लेटर लिख उसके खिलाफ कम्पलेन कर दी, यह कह कर की आप थाने तक नही आ सकती।

यह सुनकर, दुआ को लग रहा था, जैसे आसमान फट गया हो, उसके सिर पर......यह आकिब ने क्या कर दिया था मगर अभी उसके पास तो, यह सब सोचने का भी वक्त नही था, बहुत मुश्किल से, उसने खुद को संभालते हुए पूछा.....

दुआ------ क्या लिखा है तुमने उस पेपर पर!

आकिब------ यही की उसने बाबा को धमकाया है, हम सबको मारने की कोशिश की है और आपके साथ.....

दुआ, आकिब की काॅलर पकड़ते हुए----- मेरे साथ क्या आकिब???? बोलो आगे!!

आकिब आंखें बंद करते हुए----- आपके साथ उसने ज़बरदस्ती करने की कोशिश की थी।

यह सुनकर दुआ का दिल चाहता है, वो 4-5 थप्पड़ लगा दे आकिब के मगर वो एक झटके से उसे छोड़, ज़मीन पर गिरने के अंदाज़ में बैठ जाती है।

मगर तभी उसे वक्त का एहसास होता है और वो फौरन आकिब का हाथ पकड़ घर से बाहर निकल जाती है।

आकिब कुछ ना समझते हुए----- आपी, हम कहा जा रहे हैं???

दुआ जल्दी-जल्दी क़दम बढ़ाते हुए----- थाने, रुद्र को छुड़वाने, हम अभी वो कम्पलेन वापस लेकर, सबकुछ ठीक कर देंगे।

आकिब---- आपी अगर हम कम्पलेन वापस ले भी लेंगे तो भी शायद पुलिसवाले उसको जल्दी से नहीं छोड़ेंगे!!

यह सुनकर दुआ के क़दम वहीं रुक जाते हैं।

दुआ---- मतलब, क्यों नहीं छोड़ेंगे वो उसे????

आकिब---- क्योंकि उसने गुस्से में पुलिसवाले के थप्पड़ मार दिया था तो वो लोग कह रहे थे कि अब वो उसे आसानी से नहीं छोड़ेंगे।

दुआ खुद से बड़बड़ाते हुए------ या मेरे अल्लाह, यह क्या हो रहा है, क्यों मुश्किलों पर मुश्किल बड़ा रहे हो आप, अब मैं क्या करूं???

अचानक ही दुआ को कुछ याद आता है, और वो अपने पर्स से फोन निकाल नम्बर डायल करती है, दुसरी तरफ छाया होती है।

दुआ, छाया के फोन रिसीव करते ही---- छाया, मुझे तेरी मदद की सख्त ज़रूरत है।

छाया परेशान होते हुए------ हां, बोल दुआ, क्या हुआ, इतनी परेशान क्यों हैं???

दुआ----- यार रुद्र के खिलाफ आकिब ने कम्पलेन कर दी है मेरे नाम से, और गुस्से में रुद्र ने पुलिसवालों पर हाथ भी उठा दिया है तो बात ज़्यादा बढ़ गई है, वैसे सारी डिटेल मैंने तुझे मेसेज कर दी है।

छाया कुछ ना समझते हुए-------- हां, मगर दुआ, मैं क्या मदद कर सकती हूं, मुझे समझ नही आ रहा।

दुआ------ छाया तू किसी भी तरह, रघुवंशी इंडस्ट्री पहुंच जा, वहां पर अजय को ढूंढ कर उसे यह सब बता दें, वो कुछ ना कुछ ज़रूर कर लेगा, वो रुद्र का दोस्त है, तुझे याद है ना युनिवर्सिटी के बाहर, जो रुद्र के साथ, इंतेज़ार करता था।

छाया परेशानी से----- दुआ वो तो मुझे याद है, मगर शाम होने वाली है, इस वक्त मैं घर से बाहर क्या कह कर निकलूं, पापा भी ऑफिस से आते ही होंगे!

दुआ रिक्वेस्ट करते हुए------ प्लीज़ छाया, तुझे हमारी दोस्ती का वास्ता, प्लीज़ किसी तरह अजय तक यह बात पहुंचा दें, वैसे भी रघुवंशी इंडस्ट्री तेरे घर से ज़्यादा दूर नहीं है।

छाया परेशानी से ------ मगर दुआ मैं घर से बाहर क्या कह कर जाऊं ???

छाया यही कह रही थी कि उसके पापा ने पिछे से आवाज़ दी, तो उसने हड़बड़ाहट में फौरन दुआ का फोन काट दिया...... 

फोन कटते ही, दुआ की छोटी सी उम्मीद भी टूट गई थी, अब जो भी करना था उसे ही करना था।

तकरीबन आधे घंटे में ही दुआ, आकिब के साथ, पुलिस स्टेशन पहुंच गई थी।

दुआ हवलदार से------ सर, मैं दुआ सिद्दीकी हूं, मेरे नाम से एक कम्पलेन दर्ज की गई है, जिसकी वजह से आप रुद्र नाम के लड़के को यहां लेकर आ गए हैं।

हवलदार ऐंठ कर------ हां, तो अब क्या चाहती हो???

दुआ------ सर, मैं वो कम्पलेन वापस लेना चाहती हूं!

हवलदार ------- ऐसा है मेडम जी, यह कानून हैं, मज़ाक नही, की जब चाहे कम्पलेन कर दी, जब चाहे वापस ले ली।

दुआ----- सर, एम् सोरी, आगे से ऐसा नही होगा, आप प्लीज़ उसे छोड़ दें, मैं हर्जाना भरने के लिए तैयार हूं।

हवलदार------- ऐसा है, तुमको जो भी कहना है वो सर जी से कहना, और वो अभी तो यहां है नहीं, इसलिए घर जाओ, आराम करो, कल आना।

दुआ----- कोई बात नही सर,मैं यहीं उनका इंतेज़ार कर लेती हूं।

दुआ यह कह कर, आकिब का हाथ पकड़ वहीं पड़ी एक बेंच पर बैठ जाती है।

थाने में सभी लोग उसे देख कर, एक-दूसरे के कानों में कुछ-कुछ कह रहे थे, उसने अब तक सिर्फ फिल्मों में ही थाना देखा था, ज़िन्दगी में यह पहली बार था जब वो एक असली थाने को देख रही थी और यहां बैठकर इंतेज़ार करना तो, उसे अज़ाब सा लग रहा था मगर और कोई रास्ता भी नहीं था।

तभी सामने बैठा हवलदार, वहां से उठ कर, किसी को फोन मिलाते हुए बाहर की तरफ चला जाता है।

हवलदार, सिनियर ऑफिसर (राघव सिंघ) को फोन करते हुए------- सर वो लड़की आई है!!

राघव सिंघ---- कौन लड़की??

हवलदार----सर दुआ सिद्दीकी, वहीं जिसकी कम्पलेन पर हम उस अमीर बाप के बेटे को उठा कर लाएं थे।

राघव सिंघ----तो अब क्या चाहिए उसे???

हवलदार------सर वो अपनी कम्पलेन वापस लेकर उसे छुड़वाना चाहती है।

राघव सिंघ---- अच्छा!! मतलब इश्क का चक्कर है!

हवलदार----- हां, सर मुझे भी यही लग रहा है, तो अब क्या करें???

राघव सिंघ---- करना क्या है, उसे कहो इंतेज़ार करें, थोड़ी देर में थक कर खुद ही वापस चली जाएंगी।

और अगर नही गई तो 2 घंटों में कोर्ट वैसे भी बंद हो जाएगा, मैं भी देखता हूं इतनी आसानी से वो कैसे आज़ाद होता है, सड़ने दे उसे।

थाने में आत-जाते, सभी लोग दुआ को अजीब नज़रों से देख रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे वो खुद कोई मुजरिम हों.....

मगर उन सबकी नज़रें और बातों को बर्दाश्त कर वो वहीं बैठ कर राघव सिंघ का इंतेज़ार करती रही, लगभग एक घंटा गुज़र गया था मगर अब तक वो राघव नहीं आया था, अब दुआ को लगने लगा था कि शायद आज तो वो रुद्र को नहीं छुड़वा सकेगी...... 

वो यही सोच रही थी कि तभी राघव सिंघ आ गया जिसका उसे इंतेज़ार था, उसे देखते ही सब उठ कर उसे सलाम करने लगे।

दुआ फौरन उसके पास जाकर------- सर मैं दुआ सिद्दीकी, मेरे नाम से जो कम्पलेन की गई है, मैं वो वापस लेना चाहती हूं, आप प्लीज़ रुद्र को छोड़ दें।

राघव सिंघ---- ओह मेडम!! कानून को मज़ाक समझ रखा है क्या, ऐसा है, घर जाओ आराम करो, वैसे भी वो लड़का लम्बा अंदर जाएगा.......चलते रोड पर, पुलिसवाले पर हाथ उठाया है, इतनी आसानी से तो वो बाहर नही आएगा।

दुआ हाथ जोड़ते हुए----- प्लीज़ सर ऐसा नही कहें, मैं अपनी कम्पलेन वापस ले रही हूं ना!!!

राघव सिंघ--- मेडम, यह कानून हैं, बच्चों का खेल नहीं, कोर्ट जाओ, अपने वकील को लेकर आओ.......ओ-हो कोर्ट कैसे जाओगी, अब तो कोर्ट भी बंद होने वाला होगा और अगले दो दिन तो पब्लिक हाॅलीडे है, मतलब अब आप आना तीन दिन बाद......ऐ शर्मा, मेडम को बाहर का रास्ता दिखा ज़रा, पता नहीं कहां-कहा से उठ कर आ जाते हैं!

दुआ---- मगर सर मेरी बात तो सुनिए!!

हवलदार----- मेडम जी, सुना नही, सर ने कह दिया ना, अब कुछ नहीं हो सकता, तीन दिन बाद आना।

यह कह कर हवलदार दुआ को ज़बरदस्ती बाहर निकाल देता हैं...... दुआ बहुत कोशिशों के बाद भी हार जाती है, वो मरे क़दमों से जैसे ही जाने के लिए मुड़ती है उसे सामने से अजय आता दिखता है, वो दुआ को थाने में देख थोड़ा हैरान हो जाता है।

दुआ की आंखे नम होती है, तो अजय उसके कुछ कहें बगैर ही सब समझ जाता है कि अंदर क्या हुआ होगा।

अजय----दुआ मेरे साथ अंदर चलों।

दुआ ---- वो इन लोगों ने मुझे, बाहर निकाल दिया, वो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं है।

अजय, दुआ का हाथ पकड़ते हुए----- मैं, तुम्हारे भाई जैसा हूं, यक़ीन रखो, किसी को तुमसे ऊंची आवाज़ में भी बात नहीं करने दूंगा।

दुआ, यह सुनकर चुपचाप अजय के साथ अंदर चली जाती है।

हवलदार, दुआ को फिर से अंदर आता देख चिखते हुए ------ सुनाई नही आता क्या मेडम जी, कह दिया ना जाओ, धक्के मार कर बाहर निकालू क्या???

तभी दुआ के पिछे से अजय अंदर आता है।

अजय उससे दुगुनी तेज़ आवाज़ में----- ओहहह हवलदार, अगर औकात ना हो, तो आवाज़ धीमी रखनी चाहिए, वरना कीमत चुकाने के लिए, जान भी गंवानी पड़ सकती है।

हवलदार, अजय की बात सुनकर थोड़ा घबरा जाता है।

अजय हवलदार को धमकाते हुए----- बेटा जल्दी से साॅरी बोल और निकल यहा से, इससे पहले कि तेरा तबादला ऐसी जगह करवा दूं, कि इस नौकरी से ही नही, ज़िंदगी से नफरत हो जाए तुझे.... वैसे भी हम जो तबादला करवाते हैं, वो इतना आसान नही होता, बीवी-बच्चे है घर पर या बुढ़ी मां इंतेज़ार कर रही है???

अजय की बात सुनकर, हवलदार के माथे पर पसीना आ जाता है, वो उसकी बात सुनकर इतना तो समझ जाता है कि वो कोई बड़ा आदमी है।

हवलदार फौरन ही, दुआ के पास आकर------ साॅरी मैडम, माफ़ कर दीजिए, ग़लती से ज़ुबान फिसल गई।

इससे पहले दुआ कुछ कहती, राघव सिंघ अपने केबिन से बाहर आ जाता है, हवलदार उसको आता देख, फौरन खिसक लेता है।

राघव सिंघ----- ओह हिरो, हैं कौन तू, थाने में खड़े होकर, पुलिसवाले को धमकी दे रहा है..... जानता है इसकी क्या सज़ा है????

अजय---- धमकी नही दे रहा, इज़्ज़त करना सिखा रहा हूं, फिलहाल मेरे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है, मिश्रा जी पेपर्स लाएं।

मिश्रा जी पेपर्स डेस्क पर रख देते हैं।

राघव सिंघ, मिश्रा जी को देखते ही हैरानी से----- सर आप यहां???

अजय गुस्से में राघव सिंघ से----- जानता है, वो कौन है??? जिसे उठा कर लाएं हो अगर नहीं जानता तो फोन उठा लें, शायद कमिश्नर बताएगा तो ज़्यादा अच्छे से समझ आएगा।

राघव सिंघ कमिश्नर का नम्बर देख घबरा जाता है, ना चाहते हुए भी उसे फोन उठाना पड़ता है, फोन सुनने के बाद, उसके बात करने का तरीक़ा, एकदम ही बदल जाता है।

राघव----- अरे अजय सर, बैठिए ना, खड़े क्यूं है, मैडम प्लीज़, आप भी बैठिए, शर्मा चार चाय बोल ज़रा।

अजय गुस्से में----- हम यहां बैठने नहीं, रुद्र को लेने आए हैं।

राघव----- हां-हा सर ज़रुर, मैडम जी, आप इन पेपर्स पर साइन कर दीजिए, शर्मा जाओ जल्दी से रुद्र सर को बाहर लाओ।

शर्मा, रुद्र को बाहर लाता है तो रुद्र की हालत देख, दुआ और अजय दोनों ही कुर्सी से फौरन खड़े हो जाते हैं।

रुद्र के मुंह से खून निकल रहा था, पैर में भी शायद चोट लगी थी जिसकी वजह से वो लंगड़ा कर चल रहा था, देख कर लग रहा था कि पिछले तीन घंटों में पुलिसवालों ने उससे ठीक से बदला ले लिया था।

अजय इससे पहले कुछ कहता......रुद्र, दुआ को वहां देख कर गुस्से से----- अजय, तू ने दुआ को यहां क्यों बुलाया है??? यह जगह दुआ के लिए ठीक नहीं है।

अजय----मैने दुआ को नही बुलाया, वो पहले से ही यही थी।

रुद्र अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए-----दुआ तुमको यहां नहीं आना चाहिए था।

रुद्र की ऐसी हालत देख उसकी आंखें भरने लगती है, मगर इससे पहले उसके आंसू छलकते, दुआ कुछ कहें बगैर ही वापस जाने के लिए मूड़ जाती है.......तभी रुद्र उसके सामने आकर उसका रास्ता रोक लेता है।

रुद्र मुस्कुराते हुए----- प्लीज़ दुआ, अब तो मान जाओ कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो, देखो आज तो तुम्हारी आंखें भी सबूत दे रही है, तुम मेरे लिए यहां तक आ गई, अब तो हां कह दो, कब तक खुद से झूठ बोलोगी???

दुआ का दिल चाह रहा था कि वो उसके गले लग कर खूब रोएं, उससे लड़ें, उससे सवाल करें कि क्यूं वो खुद को इतनी तकलीफ़ दे रहा है??? 
क्यूं वो उसके लिए सबसे लड़ने को तैयार हैं??? क्यों इतनी तकलीफ़ के बाद भी वो उसके लिए, मुस्कुरा रहा है?? क्यों वो इतनी छोटी सी बात नहीं समझता कि यह दुआ इस जन्म में रुद्र की नही हो सकती।

रुद्र---- बोलो दुआ, क्या सोच रही हो??? कह दो कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो।

दुआ अपनी फीलिंग्स कन्ट्रोल करते हुए मुश्किल से कहती हैं---- कल शाम मिलने आ जाना, एड्रेस सेंड कर दूंगी......यह कह कर वो वहां से चली जाती है।

रुद्र अपनी तकलीफ भुल ख़ुशी से------अजय तू ने सुना, उसने मुझे मिलने बुलाया है।

अजय---- हम्मम!! सुना मैंने।

रुद्र मुस्कुराते हुए------काश मुझे पता होता, दुआ मुझे थाने में देख अपनी फीलिंग्स समझ जाएंगी, तो पहले ही 2-4 पुलिसवालों को पीट कर बंद हो जाता।

अजय हैरानी से------ रुद्र तू पागल हो गया है, तुझे पता है, तेरी यह हालत देख घर पर क्या होगा???

रुद्र सोचते हुए----- चल, घर चलें, बाकी बातें रास्ते में करते हैं।

अजय------हा ठीक है।

रुद्र आगे बढ़ते हुए------अजय एक बात का ख्याल रखना, आज जो भी हुआ वो मिडिया तक ना पहुंचे।

अजय----- डोंट वरी, मैंने पहले ही सारा इंतेज़ाम कर दिया है।

रुद्र------ हां, मगर यह खबर दादू तक भी नही पहुंचनी चाहिए।

अजय हैरानी से------ रुद्र यह कैसे हो सकता है, मैंने कमिश्नर से फोन करवाया था, यह बात तो दादू तक ज़रुर पहुंचेगी।

रुद्र गुस्से में-------अजय मैंने कहा ना, दादू तक यह बात नहीं पहुंचनी चाहिए, क्योंकि अगर यह बात दादू तक पहुंच गई तो वो सिद्दीकी को इतनी आसानी से माफ़ नहीं करेंगे और मैं नहीं चाहता सिद्दीकी को कोई कुछ भी कहें.....यह मेरे और सिद्दीकी का मसला है, मुझे कोई तीसरा नहीं चाहिए।

अजय -------- ओके, बट अभी क्या करना है, तुझे इस हालत में देख, दादू को किसी से कुछ पुछने की ज़रूरत नही पड़ेगी, वो सब समझ जाएंगे।

रुद्र मुस्कुराते हुए------ इसलिए हम पहले तेरे घर जा रहे हैं, थोड़ा फ्रेश होकर, चेंज कर के घर जाउंगा।

अजय----- अच्छा, और सबसे क्या कहेगा कि मेरे कपड़े क्यों पहने हैं???

रुद्र लम्बी सांस लेते हुए------ कह दूंगा, तूं ने गलती से मेरे कपड़ों पर काॅफी गिरा दी थी इसलिए चेंज करना पड़ा।

अजय कार स्टार्ट करते हुए------ मतलब सब सोच कर बैठा है।

रुद्र मुस्कुराते हुए------ प्यार करने के लिए सिर्फ जज़्बात काफी नही होते, अक्लमंदी भी चाहिए होती है, उसको दुनिया की तकलीफों से बचाने के लिए, मैं भी बस दुआ को बेकार की परेशानियों से बचा रहा हूं।

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वर्तमान समय:-
अजय दादू के सामने हाथ जोड़ते हुए------ आज दुआ से मिलने के बाद जो भी रेस्टोरेंट में हुआ, वो रुद्र आप सबको पहले ही बता चुका है......

दादू यह सब सुनकर, आप इतना तो समझ गए होंगे कि दुआ के लिए रुद्र किसी भी हद तक जा सकता है, मैं रुद्र को बचपन से जानता हूं, उसने कभी ट्रेफिक रूल्स तक नही तोड़े, पुलिसवाले पर हाथ उठाना तो बहुत बड़ी बात है, वो तो सबका आइडियल है, बड़े-बुजुर्गों की इज़्ज़त उसने हमेशा की है मगर सिर्फ दुआ के लिए वो डाक्टर सिद्दीकी को धमका कर आया था......... 

दादू उसकी ऐसी हालत में, अगर आपने दुआ के साथ या उसके घरवालों के साथ कुछ भी किया तो यक़ीनन वो होश में आने के बाद या तो अपनी जान ले लेगा या फिर बाकी सबकी।

मैं जानता हूं, आपको बहुत गुस्सा आ रहा है मगर प्लीज़ एक बार रुद्र के बारे में सोचें, उस लड़की के बारे में सोचें जो अपने बाबा की इज़्ज़त के लिए इसकी बेपनाह मोहब्बत को ठुकरा रही है......

दादू वो लड़की बुरी नही है, रुद्र का प्यार भी ग़लत नहीं है, ग़लत है तो सिर्फ हम लोगों के सोचने का तरीक़ा, इंसानियत को भुला धर्मों के नाम पर हज़ारों प्यार करने वालों को मरने पर मजबूर कर देना यह सोच ग़लत है------- अजय यही कह रहा था कि मुकेश रघुवंशी गुस्से में कमरे से बाहर निकल गए......

मुकेश रघुवंशी के पिछे अजय भी अपने घर जाने के लिए निकल गया था।

घर में सभी लोग परेशान थे, किसी को समझ नहीं आ रहा था आगे क्या होगा, पता नहीं दादू क्या फैसला लेंगे, दुसरी तरफ अजय को फ़िक्र थी तो दुआ और उसके परिवार की....... क्योंकि दादू उन लोगों को उठवा भी सकते थे और किसी के साथ, कुछ भी करवा सकते थे, जब तक रुद्र होश में नही आ जाता तब तक अजय को किसी भी तरह दादू को कुछ भी करने से रोकना था।

दुसरी तरफ दुआ भी अब तक बुखार में तप रही थी, वो बिस्तर पर बेसुध पड़ी थी, उसको देख फरहान सिद्दीकी का दिल चाह रहा था कि वो उसकी जान ही ले लें, आखिर उसने उनकी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी थी......

उनके अंदर एक आग सी जल रही थी जो शायद दुआ को जला कर ही शान्त होने वाली थी, उनके अंदर का बाप कमज़ोर पड़ गया था, ज़िन्दा थी तो बस दुनिया के तानों की फ़िक्र, जिसकी वजह से उनको दुआ के वजूद से भी नफरत हो रही थी...... वो यही सब सोचते हुए दुआ के पास आ जाते हैं, उनका हाथ उसकी गर्दन तक जाने ही वाला होता है कि पिछे से दुआ की नानी आ जाती है।

दुआ की नानी (साएरा बेगम) चिल्लाते हुए------ फरहान सिद्दीकी!!! यह क्या कर रहे हो????

डाक्टर सिद्दीकी गुस्से में---- मैं इसको जान से मार दूंगा, यह हम सबकी बरबादी की वजह है।

साएरा बेगम---- तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है, अपनी ही बेटी को गला दबा कर मारने चलें हों।

डाक्टर सिद्दीकी----- हां, अम्मा जी, ज़िल्लत की ज़िंदगी से बेहतर, इज़्ज़त की मौत होती है।

साएरा बेगम------ बस करो फरहान सिद्दीकी, बस करो, अपनी अना के लिए तुम अपनी जवान बच्ची को मारने चलें हों, हम सबकी बर्बादी की वजह यह नही तुम बन रहे हो, रुद्र की बातें याद है कि भुल गए, हां फरहान सिद्दीकी, उस दिन मैंने सब देखा और सुना था, उसकी बातों को मज़ाक नहीं समझना, अगर इसको खरोंच भी आई ना तो, वो अपनी कही बात सच कर दिखाएंगा।

डाक्टर सिद्दीकी------ आप मुझे डरा रही है???

साएरा बेगम मुस्कुराते हुए------- बेटा, तुमसे ज़्यादा लोगों की आंखें पढ़ी है, लोगों के फैसले कितने मज़बूत है और कितने कमज़ोर, यह आंखें फौरन बयां कर देती है......और उसकी आंखों में साफ़ दिखता है वो इसके लिए जान दे भी सकता है और ले भी सकता है.........इसलिए ग़लती से भी दुआ को हाथ नहीं लगाना।

फरहान सिद्दीकी-------- नफरत हो रही है मुझे इससे, शर्म आ रही है, इसको अपनी औलाद कहते हुए, यह मेरी बेटी है??? मुझे कितना यक़ीन था इस पर और इसने क्या किया????

साएरा बेगम------- इसकी ग़लती नही है फरहान, यह तो अल्लाह की मर्ज़ी है, अगर अल्लाह ने इसके नसीब में उसे ही लिखा है तो तुम क्या, दुनिया का कोई भी इंसान, कितनी भी कोशिश कर लें मगर इसकी मोहब्बत को नहीं बदल सकता, दूरियां ज़रूर पैदा कर सकते हो मगर आखिर में यह उसकी होकर रहेगी।

फरहान सिद्दीकी------ ऐसा होने से पहले मैं इसे दफना दूंगा।

साएरा बेगम------ ठीक है, तो अच्छे से सोच लो, क्योंकि इसके साथ, तुमको हम सबको भी दफ़न करना पड़ेगा, वो किसी को नही छोड़ेगा इतना याद रखना।

साएरा बेगम यह कह कर, गुस्से में वहां से चली जाती है।

**********

अहान मीटिंग से वापस आता है, तो अचानक ही उसे बुखार चढ़ने लगता है, जब तक वो ऑफिस पहुंचता है तब तक उसका बदन बुरी तरह बुखार से जलने लगता है, आंखें भी काफी लाल पड़ गई थी, अमित जी मिस्टर वर्मा की फाइल लेकर केबिन में आते हैं तो अहान की ऐसी हालत देख परेशान हो जाते हैं।

अमित जी------ सर आप ठीक है??? 

अहान---- हम्ममम! बस हल्का सा बुखार है।

अमित जी ------सर मैं डॉक्टर को फोन करता हूं।

नही, मैंने कहा ना, हल्का सा बुखार है बस, तुम मिस्टर वर्मा के साथ मीटिंग अरेंज करो, मैं यह प्रोजेक्ट जल्द से जल्द कम्प्लीट करना चाहता हूं-------- अहान यह कहते हुए, अमित जी से फाइल लेता है, कि तभी उसका हाथ, अमित जी के हाथ से टच हो जाता है मगर अमित जी ख़ामोशी से वहां से चले जाते हैं।

मुश्किल से 20 मिनट गुज़रे थे कि अमित जी डाक्टर के साथ, अहान के केबिन में आ जाते हैं।

अहान हैरानी से----- अमित जी, यह डॉक्टर साहब आपके साथ क्या कर रहे हैं ???

अमित जी थोड़ा डरते हुए----- सर, यह आपको चैक करने के लिए आए हैं।

अहान नाराज़ होते हुए------ मैंने कहा था ना, मैं ठीक हूं, फिर क्यूं बुलाया डाक्टर को??

अमित जी----- सर आपका बदन बुखार से तप रहा है, प्लीज़ अब यह आ ही गए हैं तो चैक करवा लीजिए।

अहान, अमित जी की बात सुन, हल्का सा मुस्कुराते हुए------ अमित जी, आप भी ज़िद्दी होते जा रहे हैं।

अमित जी थोड़ा झेंपते हुए------ आपसे ही सीख रहा हूं सर।

अहान लम्बी सांस लेते हुए-----आइए डाक्टर साहब, चैक करें मुझे और बताए इनको मैं बिल्कुल ठीक हूं।

डॉक्टर साहब मुस्कुराते हुए, अहान के पास आकर बुखार चैक करते हैं।

डाक्टर----- सर आपको तो सच में बहुत तेज़ बुखार है, खांसी भी है क्या??

अहान------ नही डाक्टर साहब, कुछ नही है, पता नहीं कैसे, अचानक ही बुखार चढ़ गया।

डॉक्टर साहब सोचते हुए----- अच्छा, कोई बात नहीं, मैं अभी आपको मेडीसन दे देता हूं, कल तक बुखार उतर जाएगा, हो सके तो मेडीसन लेने के बाद, आराम कर लीजिएगा।

डॉक्टर, अहान को मेडीसन दे कर चले जाते हैं।

********

तीन घंटे गुज़र गए थे, इंजेक्शन का असर थोड़ा कम होने की वजह से रुद्र की आंख खुल गई थी मगर बुखार अभी भी तेज़ था, जिसकी वजह से वो चाह कर भी बिस्तर से नही उठ सका था लेकिन वो किसी से कोई बात नही करना चाहता था इसलिए उसने अपनी आंखें फिर से बंद कर ली थी, शायद रात के ग्यारह बज रहे थे, जब रुद्र किसी को अपने कमरे में ना पाकर, ज़बरदस्ती किसी तरह खुद को संभालते हुए बिस्तर से उठता है और घर छोड़ कर चला जाता है।

एक घंटे की ड्राइव के बाद किसी तरह वो अजय के घर पहुंच जाता है, दरवाज़ा खोलने पर अजय उसको अपने सामने देख हैरान रह जाता है।

अजय उसे सहारा देते हुए------ रुद्र तू इस वक्त यहां, तुझे अभी भी तेज़ बुखार है।

रुद्र कोई जवाब दिए बगैर, उसका हाथ झटकते हुए, सोफे पर बैठ जाता है, सामने टेबल पर ही शराब की एक बोतल और एक गिलास रखा था, शायद अजय ड्रिंक कर रहा था सोफे पर ही गिटार भी पड़ा था, अजय अक्सर ही गिटार बजाते हुए, ड्रिंक करता था।

अजय, रुद्र के सामने बैठते हुए....

अजय---- रुद्र क्या हुआ है, मैंने दादू को समझाया है ना, वो ज़रूर समझेंगे, तू बैठ मैं तेरे लिए चाय बना कर लाता हूं------

वो यह कह कर जाने के लिए उठता ही है कि रुद्र शराब की बोतल उठा लेता है।

अजय हैरानी से------- रुद्र प्लीज़ इसे रख दें, तेरी तबियत पहले ही खराब है।

रुद्र----- हां तो....

अजय----- रुद्र तू ने शराब पहले कभी छुई भी नही है, तू नही पी सकता।

रुद्र मुस्कुराते हुए------ प्यार भी तो पहली बार किया है ना, यह तक़लीफे भी पहली बार उठा रहा हूं, और पहली बार ही, अपने परिवार में गैर बन गया हूं, तो पहली बार शराब क्यों नहीं पी सकता------- 

यह कहते हुए रूद्र शराब की बोतल मुंह से लगा लेता है, अजय उससे बोतल लेने की कोशिश करता है कि तभी अजय का फोन बजने लगता है।

अजय फोन रिसीव करता है, दुसरी तरफ जिया होती है।

अजय------ हैलो भाभी!!

जिया परेशान होते हुए---- अजय क्या तुमको पता है, रुद्र कहा है???....हम लोग उसको पूरे घर मे ढूंढ चुके हैं।

अजय----भाभी आप परेशान नही हो, रुद्र मेरे घर आ गया है।

जिया-----अच्छा, ज़रा रुद्र से मेरी बात करवा दो।

अजय परेशान होते हुए----- सोरी भाभी, अभी रुद्र आपसे बात नही कर पाएगा।

जिया ------ क्यों, रुद्र बात क्यूं नहीं कर सकता???

अजय ----- वो एक्चुअली भाभी, उसने शराब पी रखी है, इस वक्त वो होश में नही है, जैसे ही होश में आएगा, मैं उसकी बात आपसे करवा दूंगा।

जिया हैरानी से---- क्या??? अजय यह कैसे हो सकता है, रुद्र ने तो कभी शराब छुई तक नही है।

अजय---- भाभी फिलहाल रुद्र कुछ भी कर सकता है, मगर प्लीज़ आप यह दादू को नही पता चलने देना।

अजय फोन पर बात ही कर रहा होता है कि रुद्र गिटार बजाना शुरू कर देता है जिसकी वजह से अजय, जिया की बात नही सुन पाता और आखिर उसे फोन बंद करना पड़ता है।

रुद्र आंखें बंद कर गिटार बजाते हुए गाना शुरू कर देता हैं------

बेख्याली में भी तेरा, ही ख्याल आए, 
क्यों बिछड़ना, है ज़रूरी, ये सवाल आए,
तेरी नज़दीकियों की खुशी बेहिसाब थी,
हिस्से में फासलें ... भी तेरे, बेमिसाल आए....

मैं, जो तुमसे दूर हूं... ...
क्यों दूर में रहूं,
तेरा ग़ुरूर हूं....
आ, तू फासला मिटा,
तू ख्वाब सा मिला,
क्यों ख्वाब तोड़ दूं....

बेख्याली में भी तेरा, ही ख्याल आए, 
क्यों जुदाई दे गया, तू ये सवाल आए,
थोड़ा सा, मैं खफा हो गया, अपने आप से,
थोड़ा सा, तुझपे भी, बेवजह, ही मलाल आए,

यह लाइंस गाते हुए रुद्र की आंखें नम हो गई थी, ऐसा लग रहा था, जैसे वो खुद को ही समझा रहा था।

हे ये तड़पन, हे ये उलझन,
कैसे जी लूं, बिना तेरे,
मेरी अब सबसे है, अनबन,
बनते क्यों ये खुदा मेरे??

गाने की हर एक लाइन रुद्र का हाल बयां कर रही थी, रुद्र की आवाज़ में जो दर्द था, वो अजय भी महसूस कर पा रहा था जिससे उसकी आंखें भी नम हो गई थी, उसने कभी नही सोचा था कि रुद्र की ऐसी हालत भी हो सकती है।

ये जो लोग बाग है, जंगल की आग है,
क्यों आग में जलूं???
ये नाकाम प्यार में, ख़ुश हैं ये हार में,
इन जैसा क्यूं बनूं????

रातें देंगी बता, निंदो में तेरी ही बात है,
भूलूं, कैसे तुझे, तूं तो ख्यालों में साथ हैं
बेख्याली में भी तेरा, ही ख्याल आए,
क्यों बिछड़ना है ज़रूरी, ये सवाल आए,

तेरी नज़दीकियों की खुशी बेहिसाब थी,
हिस्से में फासले... भी तेरे, बेहिसाब आए....

नज़र के आगे हर एक मंज़र, 
रेत की तरह बिखर रहा है,
दर्द तुम्हारा, बदन में मेरे, 
ज़हर की तरह, उतर रहा है, ~2

वो गाना गा ही रहा था कि तभी दरवाज़ा खुला होने की वजह से, दादू, बाला, जिया, और कुन्ती देवी अंदर आ गए थे...... 

उन लोगों को देख अजय परेशान हो गया था मगर रुद्र को जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा हो, बल्कि रुद्र अब उनकी तरफ देखते हुए, गाना गा रहा था।

आ ज़माने, आज़मा लें,
रूठता नहीं, 
फासलों से, हौसला ये, 
टुटता नही,

ना है, वो बेवफा और ना मैं हूं बेवफा,
वो मेरी, आदतों की तरह, छूटता नही।

मुकेश रघुवंशी गुस्से में----- रुद्र यह क्या तमाशा लगा रखा है??? बाला, इसे घर लेकर चलो।

बाला रुद्र की तरफ बढ़ता ही है कि रुद्र गुस्से में गिटार ज़मीन पर फेंक देता है।

रुद्र नशे में----- अजय कह दे सबसे, मैं यहां से कहीं नहीं जाउंगा, मैं वो घर छोड़ चुका हूं, मैंने अपना धर्म बदल लिया है।

मुकेश रघुवंशी चिल्लाते हुए----- बंद करो यह बकवास, तुम्हारे ऐसे कहने से हकीक़त नही बदल जाएगी।

रुद्र हंसते हुए------ तो आपके चिल्लाने से हकीक़त बदल जाएगी क्या, आपका रुद्र मर चुका है, अब आपका सिर्फ एक ही पोता है।

मुकेश रघुवंशी गुस्से में----- रुद्र अगर तुम अभी घर नहीं चलें तो जिसकी वजह से तुम यह सब कर रहे हो ना, मैं उसके पूरे खानदान को मिट्टी में मिला दूंगा।

मुकेश रघुवंशी यही कहते हैं कि रुद्र टेबल पर रखी शराब की बोतल उठा अपने जले हुए हाथ पर डाल देता है, जिससे उसका ज़ख्म और भी जलने लगता है।

रुद्र अपने हाथ को देखते हुए----- अगर आपने उसको या उसके घरवालों को तकलीफ़ देने की सोची भी ना तो यक़ीन माने, मैं खुद, अपने इतने टुकड़े कर दूंगा कि आप गिन भी नही सकेंगे, दादू अगर इन धर्मों की लड़ाई में मुझे दुआ से दूर होना पड़ा तो यक़ीन मानें, आपको भी आपका पोता वापस नही मिलेगा......

आप बहुत प्यार करते थे ना, रुद्र रघुवंशी से, अब देखें, आपका घमंड आपके पोते को किस तरह निगलेगा......कहते हैं अगर कोई इंसान अपना ही दुश्मन बन जाए तो उसे भगवान भी नहीं बचा सकते।

मुकेश रघुवंशी गुस्से में------ रुद्र, मैं उस लड़की का पता भी नही लगने दूंगा।

रुद्र----- दादू याद है, आप ही कहते थे, मैं शिव जी जैसा हूं, तो याद रखिए, मैं इस कलयुग का शिव हूं, अपनी सती के जलने से पहले, सबकुछ जला दूंगा, चाहे उसके लिए मुझे खुद को जलाना पड़े।

वहां पर खड़े सभी लोगों को रुद्र की यह हालत देख जितनी तकलीफ हो रही थी उतना ही डर भी लग रहा था, उसका ऐसा रूप भी हो सकता है, यह किसी ने नहीं सोचा था....... शराब डालने की वजह से उसके हाथ का ज़ख्म और भी गहरा हो रहा था, सभी उसको रोकना चाहते थे मगर किसी की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।

तभी पिछे से बाला ने, रुद्र के मुंह पर रुमाल रख दिया, जिस पर बेहोशी की दवा पड़ी थी और रुद्र बेहोश हो गया।

अजय हैरानी से-----बाला जी, यह क्या किया???? रुद्र को बेहोश क्यूं किया???

मुकेश रघुवंशी----- जिया डाक्टर को बुलाओ और उससे कहना, निंद के इंजेक्शन साथ लाए, रुद्र को आराम की ज़रूरत है।

अजय हैरानी से----- दादू प्लीज़ ऐसा नही करें।

मुकेश रघुवंशी अजय की बात अनसुनी करते हुए----- अजय कल सुबह 8 बजे तक, वो सिद्दीकी मुझे मेरे सामने चाहिए।

अजय डरते हुए-------मगर दादू???

मुकेश रघुवंशी गुस्से में------ अगर वो 8 बजे मेरे सामने नही हुआ तो 10 बजे तक कितना कुछ हो सकता है, पता है ना???

अजय---- नही दादू, आप फ़िक्र नहीं करें, मैं 8 बजे तक उनको घर ले आऊंगा।

बाकी अगले भाग में:-

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रचनाएँ
दिल ए नादान
5.0
यह कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसका मानना है कि आप अपने रब को "भगवान कह कर पुकारो, अल्लाह कहो या कुछ ओर" सुनने वाला एक ही है.........क्योंकि रब को अलग नाम दिए जा सकते हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे हम अपने चाहने वालों को कई नामों से पुकारते हैं मगर होता वो एक ही है इसी तरह फरियाद सुनने वाला भी एक ही है और पुकारने वाला दिल भी वही है, फ़र्क है तो नज़रिए का......उसके हिसाब से दुनिया का हर धर्म सबसे पहले इंसानियत सिखाता है.......एक-दूसरे से प्यार करना, एक-दूसरे की इज़्ज़त करना सिखाता है मगर क्या वो अकेला, धर्म पर होने वाली नफरत को मिटा सकेगा????? कहते है, किसी एक इंसान की सोच बदलना भी बहुत मुश्किल है फिर उसके सामने तो उसका पूरा परिवार था जो उसकी सोच के खिलाफ, उसकी मोहब्बत के खिलाफ था...... आइए चलें एक नए सफर पर इस दिवाने के साथ, देखें क्या होगा इसका अंजाम, क्या पिघल जाएंगेे लोगों के दिल उसकी मोहब्बत के सामने या होगा फिर वही, लाखों लोगों की तरह.....उसकी मोहब्बत भी तोड़ देगी दम धर्म के नाम पर पैदा हुई नफरत के सामने.      **************** 12-Dec-2018 आज रूद्र बहुत तेज़ कार चला रहा था, ज़्यादातर वह कायदे-कानून का पालन करता था, मगर आज शायद उससे इंतेज़ार नही हो रहा था, उसका दिल कह रहा था कि वो उड़ कर दुआ के सामने पहुंच जाएं, उसकी मोहब्बत, उसका जुनून, उसकी ज़िद्द सब कुछ उस एक नाम पर अटक गया था "दुआ"........ छः महीनों की लगातार कोशिशों के बाद, आखिर आज दुआ ने उसे मिलने बुला ही लिया था, वो नही जानता था कि आगे क्या होगा बस उसको तो इंतेज़ार था, उस पल का, जब दुआ उसके सामने हो और वो उसको बता सके, कि वो उससे कितनी मोहब्बत करता है, कितनी बातें थी उसके दिल में, आज वो सारी बातें कहने का मौका मिला था उसे इसलिए आज का दिन उसके लिए बहुत खास था .....यही सब सोचते-सोचते वो कब दुआ के बताए रेस्टोरेंट के सामने पहुंच गया उसको पता ही नही चला, वो जल्दी से गाड़ी से उतर अन्दर जाकर पुछता है, तो वेटर उसको दाएं हाथ की तरफ इशारा करते हुए रास्ता बता देता है..... कुछ क़दम चलने के बाद ही वो एक दरवाज़े से बाहर निकलता है तो सिर पर खुला आसमान, चारों तरफ हरियाली, तेज़ हवाएं, जगह ज़्यादा बड़ी नहीं थी मगर उसकी डेकोरेशन इतनी खूबसूरत थी कि बड़े-बड़े होटलों को फेल कर दे, थोड़ी ही दूर पर एक टेबल रखी थी और उसकी दाईं ओर कुछ लकड़ियों को जला रखा था, आज मौसम भी काफी सुहाना था जो रूद्र के मूड को ओर भी खुशगवार बना रहा था, वो टेबल के पास पहुंचा तो दुआ को देख कर एक पल के लिए जैसे सब कुछ भुल गया....... तेज़ हवाएं उसके लम्बे बालों से खेल रही थी, और वो खुद किसी गहरी सोच में गुम थी, उसकी आंखें टेबल पर गड़ी हुई थी जहां एक तरफ भगवान की छोटी सी मुर्ती रखी थी और उसके ही साथ एक छड़ी थी जिस पर अल्लाह लिखा हुआ था......दुआ अपनी सोच में इतना खो गई थी कि उसे रूद्र के आने का एहसास तक नही हुआ. रूद्र का दिल तो कह रहा था कि वो उसको यू ही ज़िन्दगी भर देखता रहे मगर अभी उसको इतना हक़ कहा था इसलिए ना चाहते हुए भी उसने अपना गला साफ करते हुए, दुआ से बैठने की इजाज़त मांगी और दुआ उसकी आवाज़ सुनते ही खुद को ठीक करते हुए एक दम सीधी बैठ गई। जानते हो रूद्र यह क्या है??----इससे पहले रूद्र कुछ कहता दुआ ने टेबल पर रखी मूर्ति और छड़ी की तरफ देखते हुए उससे पूछा। उसने कुछ ना समझते हुए दुआ को देखा। रूद्र यह हम दोनों है जो कभी एक नही हो सकते, आज मैंने, तुम्हे यहां सिर्फ यही कहने के लिए बुलाया है......भुल जाओ मुझे, अभी कुछ नही बिगड़ा है, तुम एक अच्छे बिजनेसमैन हो, अपने करियर पर ध्यान दो, तुम्हारे परिवार का बहुत नाम है, उनका मान नही तोड़ो, मैं नही चाहती मेरी वजह से किसी का परिवार टूट जाए, मैं नहीं चाहती, मैं किसी की बर्बादी की वजह बनूं, इसलिए आज के बाद फिर कभी तुम मेरे सामने नही आना---- दुआ उसे समझा रही थी और वो सिर्फ उसको देखें जा रहा था, कितनी आसानी से उसने कह दिया था भूल जाओ मुझे....... रूद्र तुम सुन भी रहे हो या नही----दुआ ने रूद्र को खामोश देखा तो थोड़ा झुंझलाते हुए पूछा। ना-नही हो सकता यह......यह मूर्ति, यह छड़ी इन बेजान चिज़ो को तुम मेरे दिल, मेरे जज़्बात से मिला रही हो.......रूद्र ने गुस्से में टेबल पर हाथ मारते हुए कहा, जिससे दोनों चिज़े जलती हुई आग में गिर गई और दुआ हैरानी से उसे देखती रह गई, पहली बार रूद्र ने उससे तेज़ आवाज़ में बात की थी, उसको इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि रूद्र को गुस्सा भी आ सकता हैं। क्या-क्या समझाना चाहती हो तुम मुझे, हां, बोलो, कहना क्या चाहती हो, यही ना कि मैं हिन्दू हूं और तुम मुसलमान.......तो यह मेरी गलती है क्या, बताओ मुझे......मैं खुद को क्यों रोकूं? क्यों मैं खुद को उस ग़लती की सज़ा दूं जो मैंने की ही नही....क्या रब ने मुझे पैदा करने से पहले मुझसे पूछा था, किस धर्म, किस जाति में पैदा होना चाहता हूं मैं......नही ना.....तो फिर मुझे सज़ा क्यों दें रही हों......... यक़ीन मानो मैंने तो कभी चाहा भी नही था कि मुझे कभी किसी लड़की से प्यार हो मगर हो गया ना, मैं मानता हूं यह आसान नही है मगर तुमको भूल जाना भी मेरे हाथ में नही है......... तुमसे प्यार करता हूं, खुद को भुला सकता हूं मगर तुमको नहीं भूल पाऊंगा------ यह कहते हुए रूद्र की आवाज़ रूंध गई थी और कब उसकी आंखों से आंसू बहने लगे यह शायद उसको भी पता नहीं चला वो बस बोले जा रहा था। रुद्र--------दुआ मैं नही जानता यह सही है या ग़लत, मगर मैं मानता हूं, मोहब्बत का कोई धर्म, कोई जाति नही होती, यह तो वो खास एहसास होता है जो बहुत कम लोगों के दिल में पैदा होता है, तुमको देखकर जो एहसास, जो सुकून मुझे मिलता है, वो मैं लफ़्ज़ों में नही बता सकता....... अगर तुम मुझे कोई ओर वजह देती ना, तुम से दूर जाने के लिए तो शायद मैं खुद की जान ले लेता लेकिन तुम्हारे सामने फिर कभी नही आता ......मगर तुम मुझे खुद को भूलने का कह रही हो, इस घटिया दुनिया के लिए, जो कभी किसी की नही हुई......आज मैं आत्महत्या कर लूं तो क्या इस दुनिया पर कोई फ़र्क पड़ेगा????.... नही!!! कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा किसी को!!! मगर-अगर मैं अपने प्यार के लिए लड़ूंगा ना तो इस दुनिया को ज़रूर फ़र्क पड़ेगा, तब ज़रूर यह दुनिया मेरे खिलाफ खड़ी होगी...... रुद्र------दुआ यह दुनिया, धर्म और जाति के नाम पर एक-दूसरे को मारने के लिए पल भर में तैयार है मगर प्यार और इन्सानियत का क्या??? ........क्यों मैं ऐसे समाज के लिए अपनी मोहब्बत, अपनी खुशियों का त्याग करूं?? जो कभी किसी की हुई ही नहीं.... तुम मुझे अपना मानो या ना मानो मगर मेरे लिए तुम मेरी ज़िन्दगी बन गई हो, अब चाहे जो हो जाए, तुमको भुलना नामुमकिन है---रूद्र की आंखों में साफ दिख रहा था, कि कुछ भी हो जाएं, वो हार नही मानेगा, और मानता भी क्यों उसका कहा हर लफ्ज़ सही था..... दुआ ने तो यह सोचा ही नही था कि रूद्र आज उसकी एक नही सुनेगा, मगर दुआ भी उसके सामने हार नही सकती थी क्योंकि वो बहुत अच्छे से जानती थी, कि रुद्र की मोहब्बत की क़ीमत कितनी बड़ी हो सकती है उसे अच्छे से पता था इसलिए उसे किसी भी तरह आज यह किस्सा यही खत्म करना था, यही सोच दुआ गुस्से में कुर्सी से खड़ी हो गई। दुआ गुस्से में-----ठीक है, तुम्हे परवाह नही है, तो ना सही, मगर मुझे है..... मिस्टर रूद्र रघुवंशी हर इंसान तुम्हारी तरह नही सोचता, तुम एक मर्द हो, वो भी इस शहर के सबसे अमीर परिवार से, इसलिए शायद तुम ऐसा सोच सकते हों, मगर मैं एक लड़की हूं वो भी ऐसे परिवार से जहां मैं अपने बाबा का मान हूं उनकी इज़्ज़त हूं, मैं एक हिन्दू लड़के को कभी नही अपना सकती, अपने बाबा पर उंगली उठाने की वजह नही दे सकती मैं दुनिया को, क्या कहेंगे लोग मेरे बाबा से, कैसे जवाब देंगे मेरे बाबा, इस दुनिया के अनगिनत सवालों के, नहीं रुद्र, तुम्हारी मोहब्बत की क़ीमत मेरे बाबा चुकाएं ऐसा मैं नही होने दूंगी इसलिए अच्छा होगा आज के बाद तुम मेरे सामने कभी ना आओ----यह कह कर वो जाने के लिए आगे बड़ी ही थी कि रूद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया। रुद्र------यही प्रोब्लम है ना कि मेरा नाम रूद्र रघुवंशी है कोई रहमान या सलीम नही, तो ठीक है, मैं इस प्रोबलम को अभी यही खत्म कर देता हूं......आज तुमको, अपनी मोहब्बत को गवाह बना कर, मैं इस्लाम कुबूल करता हूं....... तुम एक लड़की होना, तुम कुछ नही कर सकती क्योंकि तुम मजबूर हो सकती हो मगर मैं नही, आज से मैं तुम्हारी ताकत बनूंगा और तुम्हारा मान, कभी नही टूटने दूंगा---उसने यह कहते हुए आग में पड़ी छड़ी, को उठाया जिस पर अल्लाह लिखा था और उसे अपने हाथ पर चिपका दिया, जिसे देख दुआ चीख पड़ी और उसने रूद्र के हाथ से छड़ी लेकर फेंक दी......मगर उस छड़ी के साथ-साथ रूद्र के हाथ की खाल भी उतर गई। रुद्र नम आंखों से, अपना जला हुआ हाथ देख, मुस्कुराते हुए----- दुआ अब मेरे मरने के बाद भी कोई तुम पर उंगली नही उठा सकेगा, कोई तुम्हारे बाबा से नही पूछेगा कि मैं हिन्दू हूं, अब मेरे हाथ पर लिखा यह अल्लाह कभी नही मिट सकेगा, अब तो तुम मेरी मोहब्बत को क़ुबूल करोगी ना.... दुआ मैं अपनी मोहब्बत के लिए खुद को कुर्बान कर दुंगा.....मगर अपनी मोहब्बत को कुर्बान नही होने दूंगा इस दुनिया के लिए--- रूद्र यही कह रहा था कि दुआ ने गुस्से में उसके थप्पड़ मार दिया. दुआ उसके जले हाथ को देखते हुए-------तुम पागल हो क्या, जानते भी हो, क्या किया है तुमने??? यह कोई छोटी बात नही है रुद्र, बच्चों का खेल नहीं है यह, ज़िन्दगी भर भी इस निशान को मिटाने की कोशिश करोगे, तब भी अब यह नहीं जाएगा...... क्या जवाब दोगे सबको, अपने घर वालों को, क्या बताओगे यह कैसे हुआ??? यहां कोई तुम्हारे जज़्बात नही समझेगा रुद्र, यह आज का हिन्दुस्तान है जहां हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लाखों मासूमों का खून बहा दिया जाता है यह देश पहले जैसा नही है, जहां सब एक साथ नहीं, एक-दूसरे के दिल में रहते थे, रहम करो मुझ पर और खुद पर.......प्लीज़ खुद को बर्बाद नही करो, छोड़ दो मेरा पीछा, चलें जाओ मेरी ज़िन्दगी से,  नही करती मैं तुमसे प्यार, मुझे मेरे बाबा की इज़्ज़त सबसे प्यारी है, प्लीज़ चलें जाओ - दुआ ने रूद्र के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा यह कहते हुए दुआ की आंखें भर आईं थी मगर उसने अपने आंसु बहने नही दिए, क्योंकि उसके आंसु जहां उसको कमज़ोर बनाते वहीं रूद्र की मोहब्बत को ओर हवा देते, इससे पहले वो कुछ बोलता दुआ वहां से चली गई. आज मौसम भी अपने तेवर दिखा रहा था, वह रेस्टोरेंट से बाहर निकली ही थी कि ज़ोर से बारिश शुरू हो गई, बारिश की बूंदों के साथ दुआ के आंसूओं ने भी अपनी सरहद तोड़ दी थी...... दुआ-----कोई किसी से इतनी मोहब्बत कैसे कर सकता है, एक पल में उसने अपना सब कुछ गंवा दिया, एक बार भी नही सोचा, उसका अंजाम किया होगा और मैं बेरहम लड़की, उसको इतनी तकलीफ़ में, अकेला छोड़ आई......काश मुझे थोड़ा भी अंदाज़ा होता उसकी हरकत का, तो मैं इतनी घटिया बात कहती ही नही उसको........मैंने तो सिर्फ इसलिए ऐसा कहा था कि शायद वो हार मान जाएं, शायद उसे मेरी बात चुभ जाए, शायद वो मुझसे नफरत करने लगे.....मगर मुझे क्या पता था वो मुझसे इतनी मोहब्बत करता है कि सबकुछ खोने को तैयार है, उसे अपनी किसी तकलीफ की परवाह नही और मैं इस दुनिया की फ़िक्र लिए बैठी हूं.....उसने सच ही तो कहा.....अगर उसे कुछ हो गया, तो इस दुनिया को क्या फर्क पड़ेगा.......लेकिन मुझे??? क्या मुझे, सच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उसके चलें जाने से??? क्या अब, मैं रह सकूंगी उसके बगैर??? दुआ बारिश में पैदल चले जा रही थी और खुद से हज़ारों सवाल कर रही थी, ना उसको सिग्नल का ख्याल था और ना ही रफ्तार से चल रही गाड़ियों का डर......उसके सामने तो सिर्फ वो मंज़र था जब वह रुद्र के जलते हाथ को देखती रही, उसको रोक ना सकी, वो तो मिलने सिर्फ इसलिए गई थी कि आज किसी भी तरह उसको समझा देगी और फिर कभी नही आएगी उसके सामने, मगर उसको क्या खबर थी आज वो खुद ही हार जाएगी, और वहीं छोड़ आएगी खुद को...... आज रूद्र की मोहब्बत जीत गई थी और वो हार गई थी, रो-रो कर उसकी आंखें सुझ गई थी, उसको अपना-आपा बोझ-सा लग रहा था, जिसको घसीटते हुए वह घर ले जा रही थी, इस वक्त उसको किसी की फ़िक्र नहीं थी कि उसकी ऐसी हालत देख लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे, कुछ नही, अब अगर फ़िक्र हो रही थी उसको तो सिर्फ रुद्र की, अब उसके दिल और दिमाग में सिर्फ एक ही नाम था....... दो घंटे तक वो बारिश में भीगते-भीगते पैदल चलते हुए कब घर आ गई उसको पता ही नही चला, उसने दरवाज़ा खोला ही था कि उसकी नानी उसे देखते ही जल्दी से तौलिया लेकर उसके पास आ गई. कितनी बार कहा है! बारिश में नही भीगते, हर बार बीमार होने के बाद भी नही सुनती यह लड़की-----उसकी नानी (साएरा बेगम) ने सिर पर तौलिया डालते हुए कहा और दुआ उनके गले लग कर रोने लगी. दुआ! मेरा बच्चा क्या हुआ----साएरा बेगम ने उसके सिर पर प्यार करते हुए घबरा कर पूछा। एम् सोरी नानू-एम् सोरी, मैं आपकी अच्छी नवासी नही बन सकी, इस घर की इज्ज़त का बोझ नही उठा सकी, मैं हार गई उसके सामने, नानू मैं हार गई. साएरा बेगम-----दुआ मेरी बच्ची हुआ क्या है, यह क्या कह रही हो......दुआ की ऐसी हालत देख उनकी आंखें भर आईं थी। दुआ-----नानू मैं सच कह रही हूं, हार गई मैं उसके सामने, मगर--मगर मैंने कोशिश की थी, पूरी कोशिश की थी......सच में .....लेकिन वो पागल हैं ना नानू, मर जाएगा, अपनी जान ले लेगा मगर मुझे नही भुला सकेगा------दुआ सिसकियां लेते हुए अटक-अटक कर उनको सब कुछ बता रही थी. आज मैंने उसकी आंखों में देखा है नानू उसकी मोहब्बत की कोई हद नही है, वो बहुत आगे निकल गया है, मैं उसको नही रोक सकी.....झुका दिया मैंने अपने बाबा का सिर, तोड़ दिया उनका ग़ुरूर ----- दुआ किसी बच्चे की तरह रो-रो कर बोले जा रही थी, आज से पहले उसकी ऐसी हालत कभी नही हुई थी, यहां तक उसको इतना भी ख्याल नही रहा था कि उसके बाबा, उसके पिछे ही खड़े थे, जिनके पैरों तले ज़मीन खींच ली थी उसकी बातों ने, अपनी जवान बच्ची की ऐसी हालत देख फरहान सिद्दीकी का गुस्से से लाल चेहरा आने वाले तूफान का एहसास दिला रहा था। ********** जिया (रुद्र की भाभी) ------मां रूद्र का नम्बर बन्द जा रहा है, आप परेशान नही हो, रोहित ने अभी अजय से बात की है, वो उसे ढूंढने गया है वैसे उसने कहा है रूद्र अब घर ही आ रहा होगा, उसको एक मीटिंग के लिए जाना था, शायद इसलिए फोन बंद रखा होगा..... आपको तो पता है वो काम को लेकर कितना सीरियस रहता है, उसे डिस्टर्बेंस नही पसंद- जिया ने अपनी सासु मां को तसल्ली देते हुए कहा। पार्वती जी (रुद्र की मां)----- मगर जिया उसको पता था हम सब लोग यहां तक बाबू जी भी उसका इंतेज़ार कर रहे हैं, हम सबको एक साथ जाना था ना मिस्टर सिंघानिया के यहां , वो ऐसे लापरवाह नही है तुमको तो पता है..... तीन घंटे होने को है और आज यह बारिश भी रूकने का नाम नही ले रही, जिया मेरा दिल तो बहुत घबरा रहा है, पता नही वो अब तक क्यों नही आया? कुन्ती देवी (रुद्र की चाची)-------भाभी आप परेशान नही हो, रूद्र अब बच्चा थोड़ी है......जिया सही कह रही है, वो ठीक होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा, हो सकता है बारिश की वजह से कहीं फंस गया हो और अजय गया है ना उसको ढूंढने, थोड़ी देर में देखना, दोनों साथ ही आ रहे होंगे ---कुन्ती ने अपनी जेठानी को परेशान होते हुए देखा तो वो भी तसल्ली देने लगी। घर में सभी लोग परेशान हो रहे थे रूद्र के लिए, उसने पहले कभी अपना फोन इतनी देर के लिए बंद नही किया था मगर जिया वो परेशान होने से ज़्यादा डरी हुई थी, कि ऐसा क्या हो गया जो रूद्र अब तक नही आया.....वो तो उसको बता कर गया था कि आज वो दुआ से हां सुनकर ही आएगा, तो फिर वो अब तक क्यों नही आया--- जिया अपनी सोचों में गुम थी कि तभी अपनी सासु मां के चीखने की आवाज़ से होश में आई, उसने दरवाज़े की तरफ देखा तो, एक पल के लिए उसके पैर भी वहीं जम गए. आज से पहले कभी किसी ने रूद्र को ऐसी हालत में नही देखा था......उसके होंठ नीले पड़ गए थे जिससे पता चल रहा था कि वो घंटों बारिश में भीगता रहा है, उसकी आसमानी रंग की शर्ट पर खून के धब्बों को साफ देखा जा सकता था, उसकी हथेली में कुछ कांच के टुकड़े गड़े हुए थे जिसकी वजह से हाथ से खून अभी भी रीस रहा था.......उसकी यह हालत देख सब एक साथ दरवाज़े की तरफ दौड़े और रूद्र वही दहलीज़ पर खड़ा रहा, उसकी हिम्मत ही नही हुई कि वो एक क़दम भी आगे बड़ा सकता। पार्वती जी-----यह क्या हाल बना रखा है रूद्र, जिया जाओ जल्दी से फर्स्ट-एड लेकर आओ---उसकी मां ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा जिससे खून रिस रहा था मगर फौरन ही एक झटके से उसका हाथ छोड़ दिया, उनकी हैरानी की हद ना रही जब उनकी नज़र रूद्र की जली हुई कलाई पर गई। यह-यह क्या है रूद्र- उन्होंने उसकी जली हुई कलाई की तरफ इशारा करते हुए पूछा....उसकी शर्ट का कपड़ा उसकी खाल में चिपक गया था, इतना बड़ा निशान उनके बेटे के हाथ पर, उन्होंने तो कभी उसको सूई भी नही चुभने दी थी फिर आज इतना बड़ा ज़ख्म, कैसे??? रोहित ( रुद्र का बड़ा भाई)-----यह कैसे हुआ रूद्र, किसने किया तुम्हारे साथ यह सब- उसके भाई ने आगे बढ़ते हुए पुछा। रुद्र अपने हाथ को देखते हुए------भाई यह सब मेरे नाम ने किया है, "रूद्र रघुवंशी" यही नाम है ना मेरा, यही सबसे बड़ा गुनाह है मेरा, तो क़ीमत तो अदा करनी थी- रूद्र ने थोड़ा चिल्लाते हुए कहा जिस पर सभी हैरान थे, इससे पहले उसने कभी भी तेज़ आवाज़ में बात तक नही की थी घर वालों के सामने और आज वो दादू के सामने इतनी तेज़ आवाज़ में चिल्ला रहा था, जिनके आगे वो नज़र भी नही उठाया करता था। जिया ने उसकी हालत देखते हुए, थोड़ा हिम्मत करके पूछा----रूद्र बताओ तो सही हुआ क्या है??? रुद्र, जिया को देखते हुए----भाभी आपने सही कहा था, आसान नही होता मोहब्बत का सफर, मगर अब यह सफ़र कितना भी मुश्किल हो, मैं इतनी जल्दी हार नही मानूंगा...... क्योंकि अगर मैंने हार मान ली तो इस दुनिया की घटिया सोच जीत जाएगी..... जिया कुछ ना समझते हुए----- मतलब??? रुद्र हल्का सा मुस्कुराते हुए----- मतलब भाभी, आखिर इस दुनिया की घटिया सोच, आज आ ही गई, मेरी मोहब्बत के बीच..... जानती है आप, उसने क्या कहा मुझसे.......वो कहती है उसे मुझसे मोहब्बत नही है, वो मुझे देखना भी पसंद नही करती, क्योंकि वो मजबूर हैं, दुनिया उस पर ऊंगली उठाएगी, उसके बाबा से सवाल करेगी, जानती है क्यों वो मुझे अपना नही सकती क्योंकि मैं हिन्दू और वो मुसलमान है- रूद्र ने आख़री शब्द चिखते हुए कहा. जिसे सुनकर, रघुवंशी परिवार के पैरों तले ज़मीन निकल गई थी......किसी ने नही सोचा था कि रूद्र को कभी कोई लड़की पसंद भी आ सकती है, वो भी एक मुसलमान लड़की, यह कैसे हो सकता है। पार्वती जी ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पुछा-----रूद्र यह क्या कह रहे हो तुम?? रुद्र-----एम् सोरी मोम, एम् सोरी मगर आपके बेटे को एक मुसलमान लड़की से प्यार हो गया है--- रूद्र ने यही कहा था कि मुकेश रघुवंशी ने उसके सामने आते ही उसके ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया। मुकेश रघुवंशी गुस्से में------तुमको पता है, तुम क्या कह रहे हों, एक मुसलमान लड़की, तुम्हारा दिमाग ठीक है---- उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा। रुद्र-----हम्मम!! जानता हूं.......उसने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा मगर उसकी आंखों में नमी थी। दादू! मैं जानता हूं, मैंने आज आपका मान तोड़ दिया, आपको ठेस पहुंचाई है, बहुत बुरा हूं, आपका पोता कहलाने के लायक भी नहीं इसलिए इस घर को छोड़ कर हमेशा के लिए जा रहा हूं। रुद्र-----मैं कभी आप लोगों से अलग नही होना चाहता था, मगर जानता हूं, आप कभी भी उसको नही अपनाएंगे.......क्योंकि यह हिन्दुस्तान है, यहां इज़्ज़त और धर्म के नाम पर बच्चों को कुर्बान कर देना ज़्यादा अच्छा समझा जाता हैं, मगर उनकी खुशियों के लिए, उनके साथ मिलकर दुनिया से लड़ना, यह तो यहा सिखाया ही नही जाता. पार्वती जी, रूद्र का हाथ पकड़ते हुए-------रूद्र होश में आओ, क्या कह रहे हो, तुमको पता भी है, देखो अपना हाल, खून बह रहा है, जिया जल्दी से डॉक्टर को फोन करो--- रुद्र------भाभी रहने दीजिए, अब मेरा इस घर पर कोई हक़ नही रहा, मुझे जाना है मगर उससे पहले दादू से कुछ सवाल करने है...... दादू, मैंने बचपन से आपको देखा है, आप किसी मुसलमान के हाथ से पानी लेना भी पाप समझते हैं, आप उनके साथ बैठना भी पसंद नहीं करते, आखिर इतनी नफ़रत क्यों है आपके दिल में, क्या वजह है इस भेदभाव की......क्या वो लोग इंसान नही दादू??? मुकेश रघुवंशी चिल्लाते हुए-----बंद करो अपनी बकवास, लगता है भूल गए हो, कि तुम अपने दादू के सामने खड़े हो---- रुद्र-----ठीक है दादू! हो जाउंगा चुप, मगर आप मुझे बताएं, आप तो हिन्दू है ना, वो मुसलमान है फिर क्यों आप दोनों की सोच अलग नही है, फिर क्यों उसने भी यही कहा, क्यों उसने भी मुझे थप्पड़ मारा, क्यों उसको भी समाज की परवाह ज़्यादा है। दादू आप जानते है! हिन्दुस्तान में हर साल रावण को जलाया जाता है, बुराई का प्रतीक समझ कर मगर वहीं श्रीलंका में उसकी पूजा की जाती है, भगवान समझ कर, क्या इसका मतलब यह है कि वो लोग अच्छे नही या वह नफरत के काबिल है क्योंकि वो रावण को भगवान मानते हैं......बताए मुझे- रूद्र ने मुकेश रघुवंशी के गुस्से की परवाह ना करते हुए उनकी तरफ देखते हुए पूछा और जवाब ना मिलने पर उसने बोलना फिर शुरू कर दिया। नही ना दादू!! इसका मतलब सिर्फ इतना है कि जो इंसान जहां पैदा होता है वहां की रीति-रिवाज़ अपना लेता है, अपना नज़रिया वैसे ही बना लेता है, लेकिन अपने नज़रिए की वजह से करोड़ों लोगों से नफ़रत करना, उनका खून बहा देना, हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर अनगिनत बच्चों को अनाथ कर देना, लाखों औरतों की इज्ज़त लूट लेना यह हक़ किस धर्म ने दिया है??? कौन सा धर्म नफरत सिखाता है दादू??? क्या ईसा-अलैहिस्सलाम ने, हुज़ूर ने या राम जी ने, कृष्ण जी ने, शिव जी ने, या किसी ओर भगवान ने किसी औरत की इज्ज़त को रौंदा था पैरों तले अपने धर्म का बदला लेने के लिए??? क्या उनमें से किसी ने भी मासूमों का खून बहाया था??? गीता और क़ुरान में क्या कहीं भी लिखा है कि बेगुनाहों का कत्ल कर दो, सिर्फ इसलिए कि वो अपने रब को आपके हिसाब से नही पुकारते, उनके रब का नाम वो नही जो आप लेते हैं। दादू धर्म तो प्यार की नींव रखता है, धर्म तो धैर्य, संयम और निष्ठा सिखाता है, हर धर्म का पहला पाठ इंसानियत है....... फिर सब यही पाठ छोड़ कर आगे कैसे बढ़ जाते हैं??? सिर्फ गीता या क़ुरान को पड़ लेना तो धार्मिक होना नही है.....उसकी गहराई को समझना और अमल करना धार्मिक बनाता है इंसान को....... लेकिन आज के दौर में हर इंसान खुद को धर्म का ठेकेदार कह कर अपने को अल्लाह और भगवान समझ लेता है, लाखों लोगों का खून बहा देता है, यह सोचे बगैर कि जब वह इंसानियत ही भुल गया तो वो धार्मिक कहा से रहा----- रूद्र आज वो सब बोल रहा था जो हमेशा वो अपने दादू को समझाना चाहता था मगर कभी हिम्मत नही कर सका था। रुद्र------दादू! मैं आप सबसे बहुत प्यार करता हूं मगर उस लड़की को नही छोड़ सकता, वो भी सिर्फ इस वजह से कि उसका नाम दुआ सिद्दीकी है क्योंकि वो एक मुसलमान के घर पैदा हुई........दादू मैं अपनी मोहब्बत की कुर्बानी नही दूंगा किसी धर्म के नाम पर चाहे जो हो जाए मगर आपका पोता हार नही मानेगा। रुद्र, कुन्ती देवी की तरफ बढ़ते हुए------चाची आप मुझे बताइएं, क्या भगवान जी ने आपको पैदा करने से पहले पूछा था कि आप हिन्दू के घर पैदा होना चाहती है या मुसलमान के घर??? रूद्र के सवाल पर सभी ख़ामोश थे तब ही पिछे से अजय भी उसे ढूंढता हुआ आ गया मगर रूद्र का सवाल सुनकर उसके क़दम भी जहां थे वहीं रुक गए। रुद्र----नही ना चाची!!! पता है क्यों?? क्योंकि उसने तो हम सबको सिर्फ इंसान बनाया था, हिन्दू-मुस्लिम तो इस दुनिया ने बनाया है हमको...... रुद्र-----हम में से किसी से भी भगवान ने नही पूछा था.....ना आप से, ना मुझसे, ना उससे.......फिर उसको मुझसे अलग रहने को मजबूर क्यों किया जा रहा है......क्यों सबकी नज़रों में मैं ग़लत बन गया हूं??? क्यों मेरी मोहब्बत को सब गुनाह समझ रहे हैं??? आप सब ही चाहते थे ना कि मैं शादी कर लूं, आज जब मुझे किसी से प्यार हो गया तो आप लोग चाहते हैं मैं उसे भुल जाऊं क्योंकि वो मुसलमान है। 27 साल तक आप लोगों ने मुझे पाला-पोसा, बेइंतेहा प्यार किया, मैं आप सबकी आंखों का तारा इस घर का सबसे ज़्यादा लाडला बेटा....... "एक मिनट में" सिर्फ एक मिनट में दादू!!!! मैं आप सबका दुश्मन बन गया, वो प्यार, वो फ़िक्र, वो ममता सब कुछ खत्म हो गया सिर्फ एक मिनट में!!! क्या यही सब सिखाता है धर्म, मुझे तो मेरे धर्म ने नफरत करना नही सिखाया दादू, मुझे ऐसे संस्कार ही नही दिए आपने---- रूद्र ने रोते हुए अपने दादू से कहा जो उसको बस सुन रहे थे, उनकी गुस्से से लाल आंखें अब ज़मीन पर टिकी थी। दादू जिससे आप प्यार करते हो उनके लिए लड़ना मैंने आपसे सिखा है, अपने शिव जी से सीखा है, अपने प्रेम के लिए अगर वो भैरों बन सकते हैं तो मैं क्यों इस दुनिया की बेबुनियाद नफरत से नही लड़ सकता। आपने मुझे सिखाया था अगर सवाल प्रेम का हो तो शिव जी का भैरों अवतार बन जाना..... सबकुछ त्याग देना प्रेम के लिए......मगर प्रेम को नही त्याग ना दुनिया के लिए। आज मैं आपके सामने हाथ जोड़ कर विनती करता हूं कि क्या आप धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को खत्म नही कर सकते, क्या आप अपने गुरूर का त्याग नही सकते, अपने पोते के प्यार में। या आप भी बाकी सब की तरह इस दुनिया के बने बैठे, धर्म के ठेकेदारों के सवालों से डर कर, अपने पोते का त्याग करना ज़्यादा अच्छा समझते हैं। रुद्र-----दादू मैं उसके बगैर ज़िन्दा नही रह सकूंगा, मगर आप लोगों के बगैर सुकून से भी नही रह सकता, प्लीज़ मुझे खुद से अलग नही करना दादू मुझे इस दुनिया के रीति-रिवाजों की भैंट ना चढ़ाना--- रूद्र ने छोटे बच्चे की तरह रोते हुए अपने दादू से प्रार्थना की थी, वहां खड़े हर इंसान की आंखों में आसूं थे, उसका कहा हर लफ्ज़ सही और सच था मगर दुनिया की रीति-रिवाजों के बांध तोड़ कर सच और सही का साथ देना आसान नही होता बहुत मुश्किल होता है दुनिया के खिलाफ जाना, लाखों लोगों के सवालो का सामना करना इसी कशमकश में उसके दादू भी थे, जिनका दिल फट रहा था अपने जान से प्यारे पोते की आंखों में आंसु देख कर, उनके दिमाग में रूद्र का कहा हर शब्द गूंज रहा था...... क्या सच में उनका धर्म प्रेम करना, त्याग करना, दुसरो का मान रखना, एक-दूसरे की इज़्ज़त करना और इंसानियत नही सिखाता। यही सब तो उन्होंने हमेशा पड़ा था मगर कभी इतनी गहराई से धर्म को समझा ही नही जितना उनका पोता समझ चुका था। आज उनको इंसानियत और धर्म का अस्तित्व समझ आ रहा था, क्यों धर्म बनाए गए, क्यों गीता और क़ुरान पढ़ाए जाते हैं मगर अक्सर लोग सिर्फ पड़ते हैं, समझते नही...... धर्म को समझना आसान नही, लोगों की ज़िन्दगी गुज़र जाती है, मासूमों का खून बहा दिया जाता है और फिर भी खाली हाथ रह जाते हैं। आज भगवान ने उनके सामने भी इम्तेहान की घड़ी रख दी थी कि वो दुनिया के दिखाएं रास्ते पर धर्म के नाम पर नफरत को जन्म देंगे या भगवान का रूप धारण कर प्रेम के लिए, अपना घमंड, अपना क्रोध त्याग देंगे। वो धर्म कहा जो तोड़ दे रिश्ते, धर्म तो जोड़ता है अपनों को परायो को----वो यही सब सोच रहे थे कि रूद्र खड़े-खड़े गिर गया, उसके ज़मीन पर गिरते ही रघुवंशी परिवार में डर की लहर दौड़ गई, उसका जिस्म आग-सा तप रहा था, रोहित और अजय मिलकर फौरन रूद्र को ज़मीन से उठा, उसके कमरे में ले गए, जल्द ही जिया ने डाक्टर को भी बुला लिया था। डॉक्टर ने उसको चैक किया फिर जल्दी से उसको 2 इंजेक्शन लगाए, उसकी हर्टबीट बहुत धीमी हो गई थी, बुखार से जिस्म तप रहा था, हाथ से बहता खून तो रूक गया था मगर उसकी जली हुई कलाई पर ज़ख्म बहुत ज़्यादा गहरा था। डॉक्टर ने सबको बताया कि फिलहाल उससे कोई ऐसी बात ना करें, जिससे उसको टेंशन हो, क्योंकि वो अभी सदमे की हालत में है, इसलिए उसके होश में आने के बाद, इस बात का ख़ास ख्याल रखा जाए, नही तो वो अपना दिमागी संतुलन खो सकता है, वैसे आने वाले 24 घंटों में अगर उसका बुखार कम नही हुआ तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है-----यह कह कर डाक्टर साहब वहां से चले गए। डॉक्टर के जाते ही मुकेश रघुवंशी ने गुस्से में बाला को आवाज़ दी, जो उनका खास आदमी था। बाला अगले एक घंटे में किसी भी तरह मुझे वो लड़की और उसका बाप यहां मेरी आंखों के सामने चाहिए। यह सुनते ही अजय फौरन हाथ जोड़कर मुकेश रघुवंशी के सामने खड़ा हो गया। दादा जी, मुझे पता है, आप इस वक्त बहुत गुस्से में है मगर बस एक बार मेरी बात सुन लीजिए, कोई भी फैसला लेने से पहले पूरी कहानी सुन लेनी चाहिए, गुस्से में किए फैसले हमेशा सिर्फ तकलीफ देते हैं-----यह कह कर अजय ने हिम्मत करके सबकुछ बताना शुरू किया। बाकी अगले भाग में:- नोट:- आपको यह कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में ज़रुर बताएं।
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भाग 2

10 अक्टूबर 2021
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छः महीने पहले :-<div><br></div><div>रूद्र कहा हों - जिया ने कमरे में क़दम रखते हुए कहा.....देखा तो व

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भाग 3

14 अक्टूबर 2021
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सुबह के 10 बज रहे थे और रूद्र अपनी आंखें बंद किए, सोफे पर सिर टिकाए उसी लड़की के बारे में सोच रहा था

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भाग 4

31 अक्टूबर 2021
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अच्छा, ठीक है-ठीक है, गुस्सा नही हो, मैं तो बस यह कह रहा था एक बार उससे बात तो कर लेना, ताकि उसके दि

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भाग 5

25 नवम्बर 2021
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अमित जी------सर मैंने पूरी कोशिश की थी मगर इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल बहुत सख्त है, मैंने रिश्वत दे

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भाग 6

7 दिसम्बर 2021
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मलिक हाउस:-<div><br></div><div>यह है दुआ के मामा का घर, बहुत ही बड़ा और आलीशान, रात के अंधेरे में चा

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भाग 7

7 दिसम्बर 2021
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अमित जी ने अभी यू-टर्न लिया ही था कि उस लड़की के सामने, नीले रंग की बड़ी सी गाड़ी रुक जाती है, जिसक

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भाग 8

8 दिसम्बर 2021
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आकिब घर वापस आते ही, दुआ के कमरे में जाता है तो देखता हैं, दुआ की आंखे अभी भी नम थी।<div><br></div><

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भाग 9

8 दिसम्बर 2021
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रात कब गुज़र जाती है, मुकेश रघुवंशी को पता ही नहीं चलता, रुद्र उनकी आंखों का तारा, उनके दिल की धड़कन

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भाग 10

30 दिसम्बर 2021
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रुद्र दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है, तो दुआ नज़रें झुकाए उसका इंतेज़ार कर रही होती हैं, इस पल उसे ऐसा

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भाग 11

5 जनवरी 2022
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अगले दिन सभी लोग फंक्शन की तैयारी में जुटे थे, धीरे-धीरे मेहमान भी आना शुरू हो गए थे, रुद्र भी बाकी सबके साथ फंक्शन की तैयारी में लगा था, दादू के हुक्म पर दुआ कमरे में ही आराम कर रही थी और जिया के कहन

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भाग 12

5 जनवरी 2022
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20-25 दिन गुज़र जाते हैं मगर अब तक दुआ का दिमाग़ वहीं फरहान सिद्दीकी की बातों में अटका होता है, जिसकी वजह से दिन-ब-दिन उसकी तबीयत बिगड़ने लगती है, उसके दिल में एक अजीब सा डर घर करने लगता है, सब लोग उस

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