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भाग 7

7 दिसम्बर 2021

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अमित जी ने अभी यू-टर्न लिया ही था कि उस लड़की के सामने, नीले रंग की बड़ी सी गाड़ी रुक जाती है, जिसको देखते ही वह लड़की तेज़ क़दमों से चलना शुरू कर देती है..... अहान यह देख कर गुस्से में अमित जी से कहता है।

अहान----अमित जी, जल्दी चलाओ, वो जा रही है।

अमित जी-----जी सर, वो यह कह कर स्पीड बढ़ाता ही है मगर तभी अचानक ट्रेफिक जाम की वजह से अमित जी को स्पीड कम करनी पड़ती है। 

दुआ तेज़ क़दमों से चलना शुरू कर देती है, रुद्र कार से उतर, जल्दी से दुआ के पास पहुंच उसके सामने खड़ा हो जाता है।

दुआ घूरते हुए---- तुमको समझ नही आता क्या???.....किस मिट्टी के बने हो तुम??

अहान उन दोनों को देखते हुए परेशानी से-----अमित जी, वो लड़का शायद उसे लेने आया है, जल्दी चलो, कहीं वो लोग निकल ना जाएं।

अमित जी ट्रेफिक जाम को जल्दी से पार कर, स्पीड बढ़ा देते हैं, क्योंकि यू-टर्न काफी लम्बा था इसलिए उनको देर लग रही थी, या यूं कहें जब किस्मत में मिलना ना लिखा हो तो दो क़दम का रास्ता भी परमात्मा मीलों का बना देते हैं, ऐसा ही कुछ अभी अहान के साथ हो रहा था।

रुद्र मुस्कुराते हुए----- मोहब्बत की मिट्टी से, मेरे रब ने बहुत प्यार से तराशा है मुझे, अपने बारे में सबकुछ बताता हूं, पहले कार में तो बैठो।

दुआ झुंझलाते हुए----एक नम्बर के बेशर्म और घटिया इंसान हो.... इतना सब सुनने के बाद, थप्पड़ खाने के बाद भी ज़रा सा एहसास नही अपनी बेइज़्ज़ती का।

रुद्र उसके करीब आते हुए----- दुआ सिद्दीकी, मोहब्बत करने के लिए पहले खुद को मिटाना पड़ता है, तब जाकर कोई दूसरा, जान से भी ज़्यादा क़ीमती बनता है, और रही बात बेइज़्ज़ती की, तो मैंने तुमको, बहुत पहले, अपनी इज़्ज़त बना लिया है......अब अगर तुम मेरी जान भी ले लो तो वो भी मेरे प्यार की जीत होगी..... खैर जल्दी गाड़ी में बैठो, अब तक होटल में, सबने तुमको ढूंढना शुरू कर दिया होगा।

अमित जी उन लोगों से अभी 2 किलोमीटर दूर थे, कि रेड लाइट हो जाती हैं, जिसकी वजह से अमित जी को फौरन ब्रेक लगाने पड़ते हैं।

अहान उस अनजान लड़के को उसके करीब जाते देख, घबरा जाता है, दूसरी तरफ 2 मिनट की रेड लाइट भी इस वक्त बहुत लम्बी लग रही थी, इसलिए वो फौरन कार से उतर, भागते हुए उसके पास पहुंचना चाहता है।

दुआ----- मुझे कहीं नहीं जाना तुम्हारे साथ।

रुद्र उसके करीब आते हुए----- दुआ आख़री बार पुछ रहा हूं, तुम मेरे साथ, चल रही हो या नही?

दुआ---- मैंने कह दिया ना, नही जाना मैंने तुम्हारे साथ, समझ नही आती, एक बार की बात।

वो यही कह रही होती हैं कि रुद्र उसे गोद में उठा लेता है।

दुआ---- मुझे नीचे उतारो, वरना मैं शोर मचाने लगूंगी।

अहान उन दोनों को देखते हुए भाग रहा होता है कि तभी पिछे से आती कार से उसका एक्सीडेंट हो जाता है।

वो वहीं ज़मीन पर गिर जाता है, मगर अब भी उसकी नज़र उन दोनों पर ही टिकी होती है।

रुद्र मुस्कुराते हुए---- जो करना है, कर लो..... मैं तुमको अपने साथ लेकर ही जाउंगा!

यह कहते हुए रूद्र, उसको ज़बरदस्ती कार में बैठाकर, खुद जल्दी से बैठ....कार स्पीड में दौड़ा देता है।

दुसरी तरफ अमित जी भागते हुए अहान के पास पहुंचते हैं, वो ऊंगली से अभी भी नज़रों से दूर जाती नीली गाड़ी की तरफ इशारा कर रहा होता है।

अमित जी, को उसके लिए बहुत बुरा लगता है, मगर वो सबकुछ भुल पहले, जल्दी से उसे उठा कर, हाॅस्पिटल ले जाते हैं।

दुआ----यह क्या बदतमीज़ी है रुद्र???

रूद्र मुस्कुराते हुए------अभी कुछ देर पहले तुमने ही कहा था ना कि मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करता हूं, तो सोचा, थोड़ा प्रेक्टिकल कर लिया जाए।

दुआ बड़बड़ाते हुए---- बेशर्म इंसान!!!

रुद्र उसको बड़बड़ाते हुए देख, मुस्कुराते हुए------ तुम जो चाहे वो मुझे कह सकती हो बुरा नही मानूंगा, आखिर ज़िन्दगी भर, तुम्हे ही सुनना है, तो मेरे लिए अच्छा होगा, अभी से आदत डाल लूं फिर शादी के बाद कोई परेशानी नहीं होगी।

दुआ झुंझलाते हुए---- क्या तुम, थोड़ी देर के लिए, पहले जैसे बिहेव नही कर सकते, ज़रूरी है मुझे इरीटेट करना???

रुद्र उसे घोर से देखते हुए, अपना एक कान पकड़ कर----- अच्छा, एम् सोरी, अब बिल्कुल परेशान नही करूंगा, बट प्लीज़, थोड़ा सा मूड ठीक कर लो।

दुआ उसे घूरते हुए देखती है।

रुद्र---- प्लीज़ ना, मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता जब तुम उदास होती हो, और फिर दिल करता है कि कुछ भी कर के तुम्हारी उदासी खत्म कर दूं फिर चाहे उसके लिए मुझे तुमको गुस्सा क्यों ना दिलाना पड़े।

दुआ एक नज़र उसे देखती है और उसका दिल चाहता है कि वो, उस दिवाने को, कुछ पल यूं ही देखती रहे, मगर वो इस जन्म में तो ऐसा नही कर सकती थी।

रुद्र उसे अपनी तरफ ऐसे देख कर थोड़ा परेशान हो जाता है।

रुद्र---- क्या हुआ दुआ, तुम अचानक उदास क्यों हो गई???

दुआ सोचते हुए---- बहुत प्यार करते हो मुझसे???

रुद्र---- "बहुत" यह लफ़्ज़ बहुत ज़्यादा छोटा है, मेरे प्यार की हदें नापने के लिए..... मेरी और तुम्हारी सोच से कहीं ज़्यादा, प्यार हैं मुझे तुमसे।

दुआ---- तो क्या, मेरे कहने पर एक काम कर सकते हो???

रुद्र मुस्कुराते हुए----अज़मा कर देख लो, तुम्हारी इस उदासी को खत्म करने के लिए, मेरी जान भी मांगोगी ना, तो वो भी खुशी से दें दूंगा।

दुआ--- प्लीज़, मेरा पिछा छोड़ दो।

रूद्र----बस इतनी सी बात????

दुआ---- हम्मम!!

रुद्र मुस्कुराते हुए----- मिसेज़ रघुवंशी, वादा रहा, आज से तुम्हारा पिछा नही करुंगा, तुम्हारे घर भी नही आऊंगा मगर इसके बदले, तुमको मेरी अमानत का ख्याल रखना होगा।

दुआ कुछ ना समझते हुए----मतलब!!

रुद्र ब्रेक लगाते हुए----मतलब, आज जो आंसू तुमने बहाएं है, वो दुबारा, इन आंखों में नहीं आने चाहिए, क्योंकि मैंने सिर्फ पिछा ना करने का वादा किया है, इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें भुल जाउंगा....

मैं जानता हूं, तुम परेशान हो, अपने दिल और दिमाग की लड़ाई से थक रही हो, और मुझे यक़ीन है, बहुत जल्द तुम इस लड़ाई को खत्म कर, अपने दिल की ज़रुर सुनोगी......बस तब तक, मुझे दूर रह कर तुम्हारा साथ देना है।

रुद्र की बातें सुन वो उसे हैरानी से देख रही थी, वो उसे इतने अच्छे से समझता होगा, यह उसने कभी नही सोचा था, उसको अपनी आंखों और कानों पर यक़ीन नहीं हो रहा था, जिस बात को वो चीख-चीख कर, हज़ार बार कह चुकी थी, जिस वजह से उसने कितनी बार रुद्र को थप्पड़ भी मार दिया था, मगर तब भी वो नही समझा था और आज उसकी ज़रा-सी उदासी दूर करने के लिए, वो एक बार में मान गया था।

रुद्र होटल की तरफ इशारा करते हुए----- जाओ, सब तुमको ढूंढ रहे होंगे और हां, अपना ख्याल रखना।

दुआ खोई-खोई सी उसकी बातें सुन, गाड़ी से उतर जाती है, वो पिछे मुड़कर देखती है, तो रुद्र मुस्कुरा कर, उसे बाय कहता है और गाड़ी स्टार्ट कर कुछ ही पल में आंखों से ओझल हो जाता है।

पहली बार रुद्र को जाते देख, पता नही क्यों उसको अपने अंदर कुछ टूटा-सा महसूस हो रहा था, मगर फौरन ही उसने अपने आपको झूठा दिलासा दिया .....

दुआ बड़बड़ाते हुए------यह रुद्र है, इतनी आसानी से मान जाए, हो ही नहीं सकता, अभी जाउंगी तो फिर किसी बहाने सामने आ जाएगा, बेवकूफ----- यह कह कर अचानक ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, और फिर हो मुस्कुराते हुए होटल के अंदर चली जाती है।

दुसरी तरफ अहान को होश तो आ जाता है मगर उसके एक हाथ और एक पैर में फ्रैक्चर आ जाने की वजह से, वो बिस्तर से उठ नही पाता, डाक्टर ने कम से कम, एक महिने का बेड रेस्ट बताया था मगर अहान को अफसोस था तो सिर्फ इतना कि एक बार फिर, वो अपनी मंज़िल के, इतने क़रीब होते हुए, भी खाली हाथ रह गया था।

अहान गुस्से में----- अमित जी, आप को उस गाड़ी का पीछा तो करना चाहिए था, आप जानते हैं, मैं उसे कब से ढूंढ रहा हूं, आप ने इतनी आसानी से उसे कैसे जाने दिया!

अमित जी---- सर, आपका एक्सीडेंट हो गया था तो मैं, कैसे आपको छोड़, उस गाड़ी का पीछा करता???

अहान झुंझलाते हुए---- ठीक है, पीछा ना सही, गाड़ी का नंबर तो नोट कर सकते थे, मैं मरा तो नही था, बस बेहोश हुआ था।

अमित जी----- सर, एम् सोरी, यह मेरी गलती है, मैं आपको बेहोश देख, बहुत घबरा गया था, इसलिए ख्याल ही नहीं रहा, गाड़ी का नंबर नोट करने का।

अहान---- अब मैं क्या करूं, आपकी साॅरी का??? वो तो चली गई, अब कहां ढूंढू उसे, कार का नंबर होता तो फिर भी एक रास्ता होता!

अमित जी हिम्मत कर, आहिस्ता से----- सर, कहते हैं, जो आपकी किस्मत में है, वो दूर जाकर भी लौट आएगा, और जो आपकी किस्मत में नही तो वो आपका होकर भी, आपसे दूर चला जाएगा!

सर, अगर वो आपकी किस्मत में है तो वो आपको ज़रूर मिलेगी और अगर नहीं तो----- अमित जी ने इतना ही कहा था कि अहान गुस्से से बोला!

अहान----- वो किसी की भी किस्मत में हों अमित जी, अब मैं उसे छिन लूंगा, इस जहां से, कहते हैं दुआओं में, बहुत असर होता है, किस्मत तक बदल देती है, यह दुआएं, तो बस मैं भी देखता हूं, अल्लाह कब तक मुझे उससे दूर रखता है, कब तक मेरी दुआओं को क़ुबूल नहीं करता, कब तक उसे मेरी किस्मत में नही लिखता...... अमित जी, लिख लो, आज नही तो कल वो मेरे साथ होगी।

रात के नौ बज रहे थे, जब सभी लोग घर वापस पहुंचे, सिद्दीकी फेमिली की फ्लाइट 11:00 बजे की थी, तो वो लोग जल्दी-जलदी अपना समान गाड़ी में रखवा रहे थे, क्योंकि उनको एयरपोर्ट के लिए देर हो रही थी।

दुआ समान तो गाड़ी में तो रखवा रही थी मगर उसकी नज़रें, सब तरफ सिर्फ रुद्र को ढूंढ रही थी, उसका दिल चाह रहा था कि वो घर के नौकर से उसके बारे में पूछ लें, मगर उसकी हिम्मत नहीं हुई।

सब लोग गाड़ी में एक-दूसरे को बाय कह कर गाड़ी में बैठ गए थे और दुआ की नज़रों को अभी भी रुद्र का इंतेज़ार था कि वो अचानक अभी उसके सामने आ जाएगा हमेशा की तरह मगर उसकी सारी उम्मीद टूट गई, जब.....

नानी ने रुद्र के बारे में पूछा और आकिब ने बताया कि रुद्र ने उसको काॅल करके बता दिया था कि उसे एक बहुत इम्पोर्टेंट मीटिंग के लिए फौरन निकलना पड़ेगा, वो बहुत शर्मिन्दा हैं, ऐसे अचानक जाने के लिए मगर वो दिल्ली पहुंचने के बाद घर आकर सबसे माफी मांग लेगा..... वैसे वो साजिद मलिक से मिलकर गया था।

यह सुनते ही, दुआ को उसका किया वादा याद आ गया...... मतलब वो सीरियस था, अब वो सच में मेरा पीछा नही करेगा, वो फाइनली मुझसे दूर चले गया...... 

यही तो मैं चाहती थी मगर फिर भी मुझे खुशी क्यूं नहीं हो रही, क्यूं अचानक इतनी उदासी छा गई मुझ पर, कहीं मैं उससे?????...... वो इतना सोच कर ही खुद को रोक लेती है।

नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता, मैं, ऐसा होने ही नहीं देगी.....वो मन ही मन खुद से वादें कर रही थी

वो अपनी सोचों में इतना गुम थी, कि उसको पता ही नही चलता कब वो लोग एयरपोर्ट पहुंचते हैं, कब बोर्डिंग होती है, कब वो दिल्ली लेंड करते हैं और कब वो घर पहुंचते हैं.......

हां, मगर जैसे ही वो अपने घर में क़दम रखती है तब उसे एहसास होता है कि वो घर पहुंच गई, इतने लम्बे सफ़र का उसे पता ही नही चलता, ऐसा लग रहा था जैसे वक्त रूक गया हो, किसी चीज़ का एहसास ही नही हो, सिर्फ लम्बी उदासी और एक बचकानी उम्मीद..... हकीक़त जानते हुए भी ख्वाब सजाने की ज़िद्द, कर रहा था उसका दिल, उसको अपने घर के हर कोने में उसके होने का एहसास हो रहा था मगर वो बार-बार अपने दिल को डांटती और खुद को ऐसी बदगुमानीयों से रोकती, कुछ ही देर में, उसकी हालत ऐसी हो जाएगी, इसका अंदाज़ा तो, उसको खुद भी नही था.....

अभी कुछ दिनों पहले ही तो वो खुद रुद्र से इतनी दूर गई थी, मगर तब तो उसको इतना बुरा नही लगा था पर फिर, अब ऐसा क्या हो गया था जो अचानक उसको अपने अंदर सबकुछ बिखरा हुआ महसूस हो रहा था, वो अपनी ही सोचों में गुम, मरे हुए कदमों से अपने कमरे की तरफ चली जाती है.....

उसकी उदासी सभी लोगों ने महसूस कर ली थी मगर सबको लगा, शायद इसका दिल वहां सबके साथ लग गया था, इसलिए वापसी पर उसको अच्छा नही लग रहा।

*************

अगले दिन:-

वो युनिवर्सिटी जाती है, तो उसे लगता है कि शायद आज रुद्र उसके सामने आ जाएगा और हमेशा की तरह फिर से परेशान करेगा मगर ऐसा नहीं होता, वो युनिवर्सिटी पहुंचती है तो कुछ देर युनिवर्सिटी के बाहर खड़ी इधर-उधर उसकी नज़रें जैसे रुद्र को तलाश रही होती हैं लेकिन तभी छाया पिछे से उसके कन्धे पर हाथ रखती है, जिससे वो पूरी तरह कांप जाती है, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हों।

छाया----- आर यू ऑल राईट???

दुआ---- हम्ममम!!!

छाया----- तो अंदर चलें???

दुआ कुछ कहें बगैर अंदर की तरफ बढ़ जाती है, पूरा दिन वो खोई-खोई सी रहती है, छाया तक से बात नही करती, ऐसा लगता है, जैसे उसके मुंह पर टेप चिपका दिया गया है, युनिवर्सिटी खत्म होती है तो छाया को याद आता है कि उसने बताया था, रुद्र भी सिंगापुर पहुंच गया था।

छाया सोचते हुए----- दुआ, तुमने बताया था कि वो बेवकूफ तुम्हारे पीछे सिंगापुर तक पहुंच गया, फिर घर में कोई प्रोब्लम तो नहीं हुई उसकी वजह से।

दुआ गुस्से में------छाया उसका एक नाम है।

छाया हैरानी से उसे देखते हुए----- क्या बात है दुआ, इतना गुस्सा क्यों आ रहा है???

दुआ को फौरन अपने कहें लफ़्ज़ों का एहसास हो गया था।

दुआ बात बदलते हुए----- मेरा मतलब है हमको, ऐसे किसी के बारे में बात नही करनी चाहिए, वैसे भी वो क्या प्रोब्लम क्रिएट करेगा, उसने मुझसे वादा किया है कि वो मेरा पीछा नही करेगा, इसलिए हमारे आने से पहले ही वो दिल्ली के लिए निकल गया था।

छाया----- हम्मम!!! वैसे एक बात तो कहनी पड़ेगी, वो अपनी बात का, है बहुत पक्का..... तुझे याद है, उसने मुझसे वादा किया था कि वो युनिवर्सिटी नही आएगा और तब से अब तक वो फिर कभी यहां नज़र नही आया, वैसे आज के टाइम में ऐसे लोग बहुत कम है, खैर अब तू खुश हो जा, अब वो सच में फिर कभी तेरे सामने नही आएगा।

छाया की बात सुनते हुए दुआ को लग रहा था, जैसे उसका सिर फट जाएगा दर्द से..... बहुत मुश्किल से वो छाया को बाय कह कर आगे बढ़ जाती है...... और कुछ कदम आगे बढ़ते ही, उसकी आंखों से दो आंसू बह जाते हैं।


रुद्र अपने केबिन में बैठा खिड़की के बाहर देख रहा था, जब अजय केबिन में आकर उसकी उदासी को पल भर में भांप लेता है।

अजय---- रुद्र क्या हुआ, सब ठीक है।

रुद्र फीका-सा मुस्कुराते हुए------ हम्मम!! बस उसकी याद आ रही है!

अजय कुर्सी पर बैठते हुए----- तो इसमें मुश्किल क्या है???......चल सिद्दीकी हाउस चलते हैं।

रूद्र-----नही!! मैं अब वहां नहीं जा सकता ........ तुझे पता है, होटल पार्क रॉयल में उसने मुझे थप्पड़ मारा था।

अजय----- तो तू उससे गुस्सा है???

रुद्र ------ नही! बिल्कुल भी नहीं...... मगर मैंने उसे वादा किया है, अब मैं उसका पीछा नही करूंगा।

अजय हैरानी से---- क्या??? तू मज़ाक कर रहा है।

रुद्र संजीदगी से----- तुझे पता है ना, मैं अपने लफ़्ज़ों से मुकरता नहीं।

अजय---- मगर रुद्र!!!

रुद्र------ तू जानता हैं, जब मैंने उसका हाथ पकड़ा था, तब ऐसा लग रहा था कि एक पल और वो मेरे सामने रहीं तो बिखर जाएगी, उसने थप्पड़ मारा मुझे था, मगर आंसू उसकी आंखों ने बहाएं थे..... यह प्यार भी कितना अजीब होता है ना, कभी मैं चाहता था कि उसे मुझसे प्यार हो जाए और आज मुझे डर सता रहा है कि कहीं मेरी मोहब्बत उसे बिखेर ना दें।

यह कहते हुए रूद्र की आंखें नम हो गई थी!

अजय, मैं उसे तोड़ना नहीं चाहता यार, ऐसा लग रहा है जैसे मुझ में कुछ टूट रहा है.....यह मैंने क्या कर दिया यार, मुझे समझ नही आ रहा कि अब आगे क्या होगा।

अजय उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए----- प्यार हैं ये, मेरे यार...... इतना आसान कैसे हो सकता है, मंज़िल को पाना, मगर प्लीज़, खुद को संभाल.......

तू तो शिव जी को बहुत मानता है ना, और तू हमेशा कहता है वो तेरे बेस्ट फ्रेंड है, तो देख शुरू से अब तक उन्होंने पूरा-पूरा तेरा साथ दिया है, अब शायद वो तुझे आज़मा रहे हैं...... यक़ीन रख उन पर, वो अगर तेरा इम्तेहान लेंगे तो तुझे रास्ता भी ज़रूर दिखाएंगे।

रूद्र------ हम्मम!!! 

***********

ज़िन्दगी अज़ाब जैसी लगने लगती है, जब, आप जिस इंसान से प्यार करते हो, उसकी खुशी के लिए ही, उससे दूर होना पड़े....... ऐसा ही अभी रुद्र को भी लग रहा था।

पांच दिन गुज़र गए थे, सिंगापुर से आने के बाद रुद्र ने एक बार भी, दुआ से मिलने की कोशिश नही की थी, वो कितना बैचैन था, यह बस वही जानता था, वो अपना वादा नही तोड़ सकता था इसलिए बस भगवान से ही प्राथना कर रहा था कि किसी तरह वो ही कोई चमत्कार कर दें कि दुआ खुद उससे बात करने आ जाएं......

उसकी तड़प देखते हुए शायद भगवान ने भी उसकी दुआ कुबूल कर ली थी.....

आज डाक्टर सिद्दीकी ने खुद फोन करके उसे घर बुलाया था, यह कह कर की एक ज़रूरी काम है, वो बहुत खुश था क्योंकि उनके फोन आने से एक उम्मीद बंध गई थी, कि क्या पता ग़लती से ही सही, दुआ उसकी नज़रों के सामने आ जाएं।

वो एक घंटे का सफर जल्दी-जल्दी तय कर आधे घंटे में सिद्दीकी हाउस पहुंच गया था, वो घर पहुंचा तो नौकरानी ने बताया, डाक्टर साहब, बस अभी बाहर गए है, थोड़ी देर में आते ही होंगे........

रुद्र यह सुनकर लिविंग रूम में ही इंतेज़ार करने लगता है, उसका दिल करता है कि एक बार उठ कर दुआ के कमरे की तरफ चला जाए, उसे दूर से ही सही, एक नज़र देख लें, मगर फिर उसके चेहरे की उदासी याद आते ही, उसने अपने कदमों को रोक लिया।

अभी मुश्किल से पांच मिनट ही गुज़रे थे कि दुआ, लिविंग रूम में अपना फोन ढूंढते हुए आ जाती है..... रुद्र उसको देख कर ऐसे खुश होता है जैसे बिन मांगे मोती मिल गया हो, दुआ के चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कुराहट आती है मगर अगले ही पल उसे अंदाज़ा होता कि यह कोई सपना नहीं, रुद्र हकीक़त में उसकी आंखों के सामने हैं....... 

दुआ, रुद्र के पास आते हुए-----तुम यहां क्यों आए हो???? तुमने तो मुझसे वादा किया था, अब नही आओगे मेरे पिछे!!! 

रुद्र मुस्कुरा कर दुआ के करीब आते हुए----- ऐसा कैसे हो सकता है, मैं तुमसे किया वादा तोड़ दूं, जीना ना छोड़ दूं!!!

मैंने अपना कोई वादा नहीं तोड़ा, मैं तुम्हारे पिछे यहां नहीं आया, तुम मेरे सामने आई हों, और रहा सवाल यहां आने का तो वो तुम अपने बाबा से पूछो, उन्होंने मुझे कहा था कि एक ज़रूरी काम है इसलिए शाम तक आ जाऊं।

दुआ थोड़ा सोचते हुए----- ज़रूरी काम???? 

रुद्र हां मैं सिर हिलाते हुए----- हम्ममम!!

दुआ घबराहट में उसका हाथ पकड़ कर दरवाज़े की तरफ ले जाने लगती है...

दुआ----- रुद्र तुम अभी जाओ प्लीज़, और अगर बाबा फोन करके पूछे, तो कह देना, अचानक फोन आने की वजह से तुम इंतेज़ार नही कर सके उनका!!!

रुद्र ने यह सुनकर फौरन ही उसका हाथ खींच उसे अपने करीब कर लिया।

रुद्र, दुआ को घोर से देखते हुए---- दुआ तुम ऐसा, क्यों कह रही हो??? कुछ हुआ है क्या??? तुम ठीक हो??? किसी ने कुछ बोला है तुम्हे???

दुआ एक झटके से अपना हाथ छुड़ा कर, झुंझलाते हुए----- तुम को कुछ होने का इंतेज़ार है क्या??..... जब कह रही हूं तुमसे, अभी चलें जाओ तो चलें जाओ ना...... बेकार के सवाल- जवाब में वक्त क्यूं ज़ाया कर रहे हो!!

रुद्र उसको ध्यान से देखने लगा, आज से पहले दुआ कभी इतनी परेशान नहीं थी, यहां तक कि इस परेशानी में उसने रुद्र का हाथ पकड़ लिया था, और उसको इसका एहसास तक नहीं हुआ.....ज़रूर कुछ तो था जिसका डर दुआ को सता रहा था।

रुद्र--- दुआ अगर तुम सच में चाहती हो, मैं यहां से चला जाऊं तो प्लीज़ मुझे बताओं, तुम इतनी परेशान क्यों हो, और मुझे क्यो यहां से भेजना चाह रही हो????...

दुआ दरवाज़े की तरफ देखते हुए----- मैं परेशान नही हूं, प्लीज़ अल्लाह के वास्ते चले जाओ यहां से, मैं ठीक हूं।

रुद्र उसके थोड़ा करीब आते हुए-----दुआ, आज पहली बार तुमने खुद से मेरा हाथ पकड़ लिया, तुमको इस बात का एहसास तक नही हुआ और तुम कह रही हो कि तुम परेशान नही हो..... मुझे सच-सच बताओ, क्या बात है, वादा करता हूं, चला जाऊंगा।

दुआ, रुद्र की आंखों में देखती है, जिसमें साफ दिख रहा था कि वो सच सुने बगैर नहीं जाएगा आखिर वो उसकी ज़िद्द के सामने हार जाती है।

दुआ हकलाते हुए----- वो----- वो रुद्र, दरअसल बाबा...... एक्चुअली!!

रुद्र, आहिस्ता से दुआ का हाथ पकड़ते हुए---- दुआ, यक़ीन करो मुझ पर, तुम जैसा कहोगी वैसा ही होगा, घबराओ नही, बताओं मुझे.... तुम चाहती हो ना मैं जल्दी यहां से चला जाऊं...... तो जल्दी से बताओ।

दुआ लम्बी सांस लेते हुए---- एक्चुअली, बाबा जब से सिंगापुर से आए हैं, वो बहुत अजीब बिहेव कर रहे हैं, मुझसे तो ठीक से बात भी नहीं कर रहे, मुझे देख कर भी इग्नोर कर देते हैं, और कुछ दिन पहले आकिब ने जब तुम्हारा नाम लिया था तो उन्होंने उसको बहुत डांटा था और आज अचानक तुमको यूं खुद बुला लेना, मुझे ठीक नही लग रहा....बस इसलिए।

रुद्र मुस्कुराते हुए----- हम्ममम!!! तो यह बात है।

दुआ उसको मुस्कुराता देख, गुस्से से----- अब इस में मुस्कुराने वाली क्या बात है???

रुद्र----- अरे!!! बात तो है, आखिर मेरा प्यार परवान चढ़ रहा है, आज पहली बार तुम्हारी आंखों में मेरे लिए सिर्फ गुस्सा ही नहीं बहुत सारी फ़िक्र है, अनकहे जज़्बात है।

इससे आगे रुद्र कुछ और कहता, डाक्टर सिद्दीकी ताली बजाते हुए, लिविंग रूम में आ जाते हैं, जिसे देख दुआ फौरन ही रुद्र से दूर खड़ी हो जाती है।

डाक्टर सिद्दीकी दुआ के पास आते हुए------ बहुत खूब दुआ, यही संस्कार लिए है तूने हमसे!!! ज़रा शर्म नहीं आई, यह सब करते हुए।

दुआ की आंखे फौरन भर आईं डाक्टर सिद्दीकी के यह लफ़्ज़ सुनते ही, उसे ऐसा लग रहा था कि अभी ज़मीन फटे और वो उसमें समा जाए----- 

दुआ नम आंखों से, हिम्मत करते हुए---- बाबा, वो मैं....... उसने इतना ही कहा था कि डॉक्टर सिद्दीकी ने दुआ को मारने के लिए हाथ उठा दिया, मगर इससे पहले वो थप्पड़ दुआ के चेहरे तक पहुंचता, रुद्र ने बीच में आकर उनका हाथ पकड़ लिया, जिसे देख दुआ और डाक्टर सिद्दीकी दोनों ही हैरान रह गए।

रुद्र अपना गुस्सा दबाते हुए----- डाक्टर सिद्दीकी, ज़रा आराम से, आपने मुझे, यहां बात करने के लिए बुलाया था ना तो लीजिए मैं आपके सामने हूं।

डाक्टर सिद्दीकी दोनों को घूरते हुए अपना हाथ नीचे कर लेते हैं।

रुद्र, मुड़ कर दुआ की तरफ देखते हुए----- दुआ, तुम अपने कमरे में जाओ, अंकल को मुझसे बात करनी है।

दुआ एक नज़र रुद्र की तरफ देखती है तो रुद्र मुस्कुराते हुए उसको जाने का इशारा करता है,
वो चुपचाप वहां से चली जाती है।

रुद्र---- हां तो सिद्दीकी साहब----- वो इतना ही कहता है कि डॉक्टर सिद्दीकी उसके एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ देते हैं।

डॉक्टर सिद्दीकी------ तू इतना गिरा हुआ इंसान होगा, मैंने सोचा भी नहीं था, मैं अपनी आस्तीन में सांप पाल रहा था और मुझे पता ही नहीं चला...... 

मैंने तुझे इस घर में बेटों जैसी इज़्ज़त दी, इतना यक़ीन किया तुझ पर और तू मेरी ही आंखों में धूल झोंकता रहा, मेरी ही बेटी को बहकाता रहा.......मेरे घर में घुस कर मेरी ही इज़्ज़त से खेलता रहा और मुझे पता भी नही चला।

रूद्र------ ऐसा नही है अंकल, मैं दुआ से....... 

इससे पहले वो अपनी बात पूरी करता, डाक्टर सिद्दीकी ने एक और थप्पड़ जड़ दिया------- अपनी ज़ुबान से उसका नाम भी नही लेना, सबकुछ समझ तो मैं सिंगापुर में ही गया था मगर मेरी ही बेटी ने मुझे भटका दिया था उस दिन, लेकिन अब सब समझ आ रहा है, आखिर इतने वक्त तक तू इस घर में आता-जाता रहा और मुझे कुछ पता क्यों नही चला........

पता चलता भी कैसे, जब मेरी ही बेटी अपने बाप की इज़्ज़त को रौंद रही थी, वो कहते हैं ना अपना सिक्का खोटा तो परखने वाले का क्या दोश...... 

रूद्र---------अंकल प्लीज़, इस सब में उसका कोई कसूर नही है, आपको जो सज़ा देनी है मुझे दें मगर उसे कुछ नही कहना।

डॉक्टर सिद्दीकी गुस्से से--------- रूद्र रघुवंशी हम शरीफ़ लोग हैं मगर सिर्फ तब तक, जब तक बात हमारी इज़्ज़त पर ना आए, और तू ने मेरी बेटी को बहकाने की कोशिश की है, तेरी तो मैं वो हालत करूंगा कि फिर कभी किसी की इज़्ज़त पर हाथ डालने की कोशिश नही करेंगा, और उस बेशर्म लड़की को मैं ज़िन्दा गाढ दूं या गला दबा कर मार दूं, यह मैं तेय करूंगा, वो मेरी औलाद है।

यह सुनकर रुद्र का गुस्सा बर्दाश्त से बाहर हो जाता है।

रूद्र थोड़ी ऊंची आवाज़ में गुस्से से------ओहह सिद्दीकी, ज़रा संभल कर हां, दो मिनट लगते हैं इज़्ज़त उतारने में, मैंने अभी यह जो थप्पड़ बर्दाश्त किया है ना, वो सिर्फ दुआ के लिए, वरना रूद्र रघुवंशी पर हाथ उठाने वाले का हाथ सलामत नही रहता, और हां रही बात उसका नाम भुलने की तो मैं अपना नाम भुल सकता हूं मगर उसका नही........

वो मेरी ज़िन्दगी है, छूना तो बहुत दूर की बात है, अगर उसको किसी ने घूर कर भी देखा तो यक़ीन मानो डाक्टर साहब, उस सिर को धड़ से अलग कर देगा यह रुद्र, इसलिए कुछ भी करने से पहले, यह नही भुलना की आपके परिवार में, एक बुढी मां, एक बेटा और एक बीवी भी है।

अगर दुआ को खरोंच भी आई ना तो उसकी कीमत कितने लोगों को चुकानी पड़ेगी, यह सोचना भी आपके बस की बात नही....... अभी जो दुआ के साथ, आपने करने की कोशिश की थी उसको दोहराने की ग़लती नहीं करना, क्योंकि मैं, बस एक बार माफ़ करता हूं......

मानता हूं आप बाबा हो उसके, बहुत गुस्सा आ रहा है, तो उतारो ना, मैं हूं ना आपके सामने पिटने के लिए, वादा करता हूं, मेरी सारी हड्डियां भी तोड़ दोगे ना, उफ़ नही करूंगा मगर बस मेरी मोहब्बत के जुनून को ना अज़माना.......

आपकी बेटी ज़रूर है वो, मगर कोई जानवर नही, जिसको छोटी सी ग़लती पर इज़्ज़त और समाज के नाम पर कुर्बान कर दो....... प्यार की बातें हैं इसलिए प्यार से समझा रहा हूं, उम्मीद करता हूं, आप समझ गए होंगे, और हां जिस इज़्ज़त की आप दुहाई दे रहे हैं, उसे सरेआम खुद ही ना रौंद देना, क्योंकि अब तक आपकी बेटी ने तो ऐसा कुछ किया नहीं है, मगर आपकी वाणी सुनकर लोग ज़रूर, आपकी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ा देंगे........

एक आखरी बात अंकल जी, अभी इस कमरे में आपने जो भी किया और मैंने जो कहा, उसकी खबर ग़लती से भी दुआ को नही देना क्योंकि मैं जानता हूं, वो जितना मुझे चाहने लगी है, उससे कहीं ज़्यादा प्यार वो अपने बाबा से करती है, उसका दिल बहुत छोटा है, ना वो मेरी तकलीफ बर्दाश्त कर सकती हैं ना आपकी बेइज़्ज़ती, अब चलता हूं-------- यह कह कर रूद्र बिल्कुल नोर्मल अंदाज़ में कमरे से बाहर निकल जाता है तभी दरवाज़े के पास खड़ी दुआ और आकिब उसे आता देख फौरन छुप जाते हैं।

दुआ अपने बाबा को छुप कर देखती है जो किसी बुत की तरह अभी भी गुमसुम खड़े होते हैं, उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं और वो अपने भाई के गले लग जाती है।

आकिब उसके आंसु साफ करते हुए------ आपी आप रौ क्यों रही हो, मैं हूं ना, मैं सब ठीक कर दूंगा, हां अभी बाबा थोड़ा गुस्सा है, मगर हम उनको मना लेंगे, वैसे भी आप ही तो कहती हो, वो सबसे ज़्यादा प्यार आपसे करते हैं, तो वो आपसे ज़्यादा देर तक गुस्सा कैसे रह सकते हैं, आप देखो मैं कैसे सब ठीक करता हूं......

यह कह कर आकिब उसके गले लग जाता है।

डॉक्टर सिद्दीकी, वो अब तक रूद्र के कहें लफ़्ज़ों में गुम थे, वो खुलें लफ़्ज़ों में उनको चेतावनी दें गया था, उनको समझ नही आ रहा था, वो करें तो क्या करें, यह तो सच था जो बात अब तक चार दिवारी में थी, वो अगर बाहर चली गई तो लोग उनको कहीं का नहीं छोड़ेंगे....... 

रूद्र उनको थोड़ी सी ही बातों में सबकुछ समझा गया था, उनको दुआ पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, क्योंकि आज जो भी हो रहा था सिर्फ उसकी वजह से हो रहा था, अगर उसको अपने बाबा की इज़्ज़त का एहसास होता तो वो लड़का कभी इतना आगे नहीं बढ़ता, उनका दिल तो कर रहा था कि वो सच में दुआ को ऐसी सज़ा दे कि वो फिर कभी ऐसी ग़लती ना करें, मगर तभी उनको रुद्र का ख्याल आता है, जिसकी आंखों में साफ़ दिखाई दे रहा था कि अगर उन्होंने दुआ ‌को कुछ भी कहां तो वो अपनी कहीं बात सच कर देगा।

अभी रुद्र आधे रास्ते में ही था कि आकिब उसे फोन करके, घबराई हुई आवाज़ में, लाल किले के पिछे वाले रोड पर, मिलने के लिए बुलाता है......

रूद्र उसका फोन आने से काफी परेशान हो जाता है मगर इससे पहले वो आकिब से कुछ पूछता, फोन कट जाता है, जिससे रुद्र और ज़्यादा परेशान हो जाता है, वो फौरन ही यू-टर्न लेता है और जितनी जल्दी हो सकता था उसकी बताई जगह पर पहुंच जाता है।

रुद्र कार से उतर कर, इधर-उधर आकिब को ढूंढता है मगर उस खाली सड़क पर इक्का-दुक्का गाड़ियां ही आती जाती दिख रही थी, अब उसका दिमाग खराब होने लगा था, यह सोचकर कि कहीं डाक्टर सिद्दीकी ने तो दुआ के साथ कुछ नही कर दिया, वो यह ख्याल आते ही, जल्दी से अपनी कार में बैठने वाला था कि सामने से आती पुलिस की गाड़ी से दो हवलदारों ने उसे रुकने को कहा।

रुद्र कुछ ना समझते हुए उन्हें देखने लगा कि उसने तो कोई सिग्नल भी नहीं तोड़ा, ना ही कोई एक्सिडेंट किया फिर यह क्यूं रोक रहे हैं....... वो यही सोच रहा था कि इतनी देर में दोनों हवलदार उसके पास आ गए और उनके साथ आकिब भी।

रुद्र, आकिब को देखते हुए----- आकिब, तू इन लोगों के साथ क्या कर रहा है, कुछ हुआ है क्या, इन लोगों ने तुझे कुछ कहां है????

हवलदार हंसते हुए----- ओह हिरो, हमने इसे नहीं तुझे गिरफ्तार करना है।

रुद्र हैरानी से----- मुझे???

हवलदार----- हां तुझे, तेरे खिलाफ कम्पलेन है कि तू इसके घर जाकर, इसके बुढ़े बाप को धमका कर आया है, सबको मारने की कोशिश की है और इसकी बहन के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की है।

रुद्र हैरानी से आकिब की तरफ देखते हुए----- यह सब झूठ है, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया और आप इसके बयान पर कैसे कम्पलेन सही मान सकते हैं, यह बस पन्द्रह साल का है अभी।

हवलदार गुस्से में------हमको ज़्यादा कानून समझाने की ज़रूरत नही, सीधी तरह थाने चल, वैसे भी यह कम्पलेन इसने नहीं, इसकी बहन ने की है।

रुद्र गुस्से से आकिब को देखते हुए----- आकिब सच-सच बता यह सब क्या है, मैं दुआ को जानता हूं, वो यह सब नहीं कर सकती, यह तेरे दिमाग़ का फितूर है ना???

आकिब उसको देख गुस्से से----- तुम्हारी वजह से मेरी बहन रोई है, तुम ने हम सबको धोखा दिया है।

रुद्र अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए----- आकिब, तू अभी छोटा है, हम बैठकर बात करते हैं ना।

रुद्र यही कह रहा था कि एक हवलदार उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए----- सीधी तरह थाने चलता है या खातिर करवानी है।

रुद्र यह सुनते ही, पिछे मुड़कर, उस हवलदार के ज़ोर का थप्पड़ जड़ देता है।

रुद्र-----दिखाई नही दे रहा, बच्चे से बात कर रहा हूं।

दोनों हवलदार गुस्से में---- तू ने, बीच रोड, पुलिसवाले पर हाथ उठाया, तेरी इतनी हिम्मत, अब देख तुझ पर कितने केस लगते है साले!!

रुद्र गुस्से में, हवलदार की काॅलर पकड़ते हुए------सुन चमचे, तू जो कर सकता है ना कर लें, मुझे साथ लेकर चलना चाहता है ना, चल.....

रुद्र यह कहते हुए, खुद ही जाकर पुलिस की गाड़ी में बैठ जाता है।

थोड़ी ही देर में वो थाने पहुंच जाते हैं, दोनों हवलदार अपने बड़े अफसर को अच्छी तरह से मिर्च-मसाला लगा कर पूरी कथा सुना देते हैं, उनकी बातें सुनकर रुद्र को गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी, वो उसके ही मुंह पर कितने झूठे इल्ज़ाम लगा रहे थे।

तभी वो ऑफिसर अपनी कुर्सी से खड़ा होता है, और उठ कर सीधा रुद्र के पेट में, अपना घुटना मार देता है, जिसकी वजह से रुद्र के मुंह से खून बहने लगता है।

रुद्र के दोनों हाथ पिछे बंधे होते हैं।

रुद्र---- मुझे एक फोन करना है।

ऑफिसर मज़ाक उड़ाते हुए----- फोन करना है, अपने बाप को बुलाना है..... ठीक है, फोन भी करवा देंगे, चार घंटे तो गुज़र जाने दे.....अब ससुराल आया है तो थोड़ी खातिर दारी तो बनती है ना, वैसे भी सुना है, बहुत गर्मी है तुझ में.......

ओ शर्मा, डाल इसको अंदर, दो दिन यहां रहेगा, तो अपने आप दिमाग ठिकाने आ जाएगा और हां, इसकी खातिरदारी ज़रा ठीक से करना, साला पुलिसवाले पर हाथ उठाता है, इसका वो हाल करना कि दो हफ्तों तक अपनी शक्ल तक नही पहचान सके ------ कोर्ट बंद होने में चार घंटे है, और अगले दो दिन कोर्ट बंद रहेंगा तो बस अच्छी मेहमानदारी होनी चाहिए------यह कह कर वो वहां से चला जाता है।

आगे अगले भाग में:-

Jyoti

Jyoti

बढ़िया

30 दिसम्बर 2021

Stranger

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30 दिसम्बर 2021

Thanks

11
रचनाएँ
दिल ए नादान
5.0
यह कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसका मानना है कि आप अपने रब को "भगवान कह कर पुकारो, अल्लाह कहो या कुछ ओर" सुनने वाला एक ही है.........क्योंकि रब को अलग नाम दिए जा सकते हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे हम अपने चाहने वालों को कई नामों से पुकारते हैं मगर होता वो एक ही है इसी तरह फरियाद सुनने वाला भी एक ही है और पुकारने वाला दिल भी वही है, फ़र्क है तो नज़रिए का......उसके हिसाब से दुनिया का हर धर्म सबसे पहले इंसानियत सिखाता है.......एक-दूसरे से प्यार करना, एक-दूसरे की इज़्ज़त करना सिखाता है मगर क्या वो अकेला, धर्म पर होने वाली नफरत को मिटा सकेगा????? कहते है, किसी एक इंसान की सोच बदलना भी बहुत मुश्किल है फिर उसके सामने तो उसका पूरा परिवार था जो उसकी सोच के खिलाफ, उसकी मोहब्बत के खिलाफ था...... आइए चलें एक नए सफर पर इस दिवाने के साथ, देखें क्या होगा इसका अंजाम, क्या पिघल जाएंगेे लोगों के दिल उसकी मोहब्बत के सामने या होगा फिर वही, लाखों लोगों की तरह.....उसकी मोहब्बत भी तोड़ देगी दम धर्म के नाम पर पैदा हुई नफरत के सामने.      **************** 12-Dec-2018 आज रूद्र बहुत तेज़ कार चला रहा था, ज़्यादातर वह कायदे-कानून का पालन करता था, मगर आज शायद उससे इंतेज़ार नही हो रहा था, उसका दिल कह रहा था कि वो उड़ कर दुआ के सामने पहुंच जाएं, उसकी मोहब्बत, उसका जुनून, उसकी ज़िद्द सब कुछ उस एक नाम पर अटक गया था "दुआ"........ छः महीनों की लगातार कोशिशों के बाद, आखिर आज दुआ ने उसे मिलने बुला ही लिया था, वो नही जानता था कि आगे क्या होगा बस उसको तो इंतेज़ार था, उस पल का, जब दुआ उसके सामने हो और वो उसको बता सके, कि वो उससे कितनी मोहब्बत करता है, कितनी बातें थी उसके दिल में, आज वो सारी बातें कहने का मौका मिला था उसे इसलिए आज का दिन उसके लिए बहुत खास था .....यही सब सोचते-सोचते वो कब दुआ के बताए रेस्टोरेंट के सामने पहुंच गया उसको पता ही नही चला, वो जल्दी से गाड़ी से उतर अन्दर जाकर पुछता है, तो वेटर उसको दाएं हाथ की तरफ इशारा करते हुए रास्ता बता देता है..... कुछ क़दम चलने के बाद ही वो एक दरवाज़े से बाहर निकलता है तो सिर पर खुला आसमान, चारों तरफ हरियाली, तेज़ हवाएं, जगह ज़्यादा बड़ी नहीं थी मगर उसकी डेकोरेशन इतनी खूबसूरत थी कि बड़े-बड़े होटलों को फेल कर दे, थोड़ी ही दूर पर एक टेबल रखी थी और उसकी दाईं ओर कुछ लकड़ियों को जला रखा था, आज मौसम भी काफी सुहाना था जो रूद्र के मूड को ओर भी खुशगवार बना रहा था, वो टेबल के पास पहुंचा तो दुआ को देख कर एक पल के लिए जैसे सब कुछ भुल गया....... तेज़ हवाएं उसके लम्बे बालों से खेल रही थी, और वो खुद किसी गहरी सोच में गुम थी, उसकी आंखें टेबल पर गड़ी हुई थी जहां एक तरफ भगवान की छोटी सी मुर्ती रखी थी और उसके ही साथ एक छड़ी थी जिस पर अल्लाह लिखा हुआ था......दुआ अपनी सोच में इतना खो गई थी कि उसे रूद्र के आने का एहसास तक नही हुआ. रूद्र का दिल तो कह रहा था कि वो उसको यू ही ज़िन्दगी भर देखता रहे मगर अभी उसको इतना हक़ कहा था इसलिए ना चाहते हुए भी उसने अपना गला साफ करते हुए, दुआ से बैठने की इजाज़त मांगी और दुआ उसकी आवाज़ सुनते ही खुद को ठीक करते हुए एक दम सीधी बैठ गई। जानते हो रूद्र यह क्या है??----इससे पहले रूद्र कुछ कहता दुआ ने टेबल पर रखी मूर्ति और छड़ी की तरफ देखते हुए उससे पूछा। उसने कुछ ना समझते हुए दुआ को देखा। रूद्र यह हम दोनों है जो कभी एक नही हो सकते, आज मैंने, तुम्हे यहां सिर्फ यही कहने के लिए बुलाया है......भुल जाओ मुझे, अभी कुछ नही बिगड़ा है, तुम एक अच्छे बिजनेसमैन हो, अपने करियर पर ध्यान दो, तुम्हारे परिवार का बहुत नाम है, उनका मान नही तोड़ो, मैं नही चाहती मेरी वजह से किसी का परिवार टूट जाए, मैं नहीं चाहती, मैं किसी की बर्बादी की वजह बनूं, इसलिए आज के बाद फिर कभी तुम मेरे सामने नही आना---- दुआ उसे समझा रही थी और वो सिर्फ उसको देखें जा रहा था, कितनी आसानी से उसने कह दिया था भूल जाओ मुझे....... रूद्र तुम सुन भी रहे हो या नही----दुआ ने रूद्र को खामोश देखा तो थोड़ा झुंझलाते हुए पूछा। ना-नही हो सकता यह......यह मूर्ति, यह छड़ी इन बेजान चिज़ो को तुम मेरे दिल, मेरे जज़्बात से मिला रही हो.......रूद्र ने गुस्से में टेबल पर हाथ मारते हुए कहा, जिससे दोनों चिज़े जलती हुई आग में गिर गई और दुआ हैरानी से उसे देखती रह गई, पहली बार रूद्र ने उससे तेज़ आवाज़ में बात की थी, उसको इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि रूद्र को गुस्सा भी आ सकता हैं। क्या-क्या समझाना चाहती हो तुम मुझे, हां, बोलो, कहना क्या चाहती हो, यही ना कि मैं हिन्दू हूं और तुम मुसलमान.......तो यह मेरी गलती है क्या, बताओ मुझे......मैं खुद को क्यों रोकूं? क्यों मैं खुद को उस ग़लती की सज़ा दूं जो मैंने की ही नही....क्या रब ने मुझे पैदा करने से पहले मुझसे पूछा था, किस धर्म, किस जाति में पैदा होना चाहता हूं मैं......नही ना.....तो फिर मुझे सज़ा क्यों दें रही हों......... यक़ीन मानो मैंने तो कभी चाहा भी नही था कि मुझे कभी किसी लड़की से प्यार हो मगर हो गया ना, मैं मानता हूं यह आसान नही है मगर तुमको भूल जाना भी मेरे हाथ में नही है......... तुमसे प्यार करता हूं, खुद को भुला सकता हूं मगर तुमको नहीं भूल पाऊंगा------ यह कहते हुए रूद्र की आवाज़ रूंध गई थी और कब उसकी आंखों से आंसू बहने लगे यह शायद उसको भी पता नहीं चला वो बस बोले जा रहा था। रुद्र--------दुआ मैं नही जानता यह सही है या ग़लत, मगर मैं मानता हूं, मोहब्बत का कोई धर्म, कोई जाति नही होती, यह तो वो खास एहसास होता है जो बहुत कम लोगों के दिल में पैदा होता है, तुमको देखकर जो एहसास, जो सुकून मुझे मिलता है, वो मैं लफ़्ज़ों में नही बता सकता....... अगर तुम मुझे कोई ओर वजह देती ना, तुम से दूर जाने के लिए तो शायद मैं खुद की जान ले लेता लेकिन तुम्हारे सामने फिर कभी नही आता ......मगर तुम मुझे खुद को भूलने का कह रही हो, इस घटिया दुनिया के लिए, जो कभी किसी की नही हुई......आज मैं आत्महत्या कर लूं तो क्या इस दुनिया पर कोई फ़र्क पड़ेगा????.... नही!!! कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा किसी को!!! मगर-अगर मैं अपने प्यार के लिए लड़ूंगा ना तो इस दुनिया को ज़रूर फ़र्क पड़ेगा, तब ज़रूर यह दुनिया मेरे खिलाफ खड़ी होगी...... रुद्र------दुआ यह दुनिया, धर्म और जाति के नाम पर एक-दूसरे को मारने के लिए पल भर में तैयार है मगर प्यार और इन्सानियत का क्या??? ........क्यों मैं ऐसे समाज के लिए अपनी मोहब्बत, अपनी खुशियों का त्याग करूं?? जो कभी किसी की हुई ही नहीं.... तुम मुझे अपना मानो या ना मानो मगर मेरे लिए तुम मेरी ज़िन्दगी बन गई हो, अब चाहे जो हो जाए, तुमको भुलना नामुमकिन है---रूद्र की आंखों में साफ दिख रहा था, कि कुछ भी हो जाएं, वो हार नही मानेगा, और मानता भी क्यों उसका कहा हर लफ्ज़ सही था..... दुआ ने तो यह सोचा ही नही था कि रूद्र आज उसकी एक नही सुनेगा, मगर दुआ भी उसके सामने हार नही सकती थी क्योंकि वो बहुत अच्छे से जानती थी, कि रुद्र की मोहब्बत की क़ीमत कितनी बड़ी हो सकती है उसे अच्छे से पता था इसलिए उसे किसी भी तरह आज यह किस्सा यही खत्म करना था, यही सोच दुआ गुस्से में कुर्सी से खड़ी हो गई। दुआ गुस्से में-----ठीक है, तुम्हे परवाह नही है, तो ना सही, मगर मुझे है..... मिस्टर रूद्र रघुवंशी हर इंसान तुम्हारी तरह नही सोचता, तुम एक मर्द हो, वो भी इस शहर के सबसे अमीर परिवार से, इसलिए शायद तुम ऐसा सोच सकते हों, मगर मैं एक लड़की हूं वो भी ऐसे परिवार से जहां मैं अपने बाबा का मान हूं उनकी इज़्ज़त हूं, मैं एक हिन्दू लड़के को कभी नही अपना सकती, अपने बाबा पर उंगली उठाने की वजह नही दे सकती मैं दुनिया को, क्या कहेंगे लोग मेरे बाबा से, कैसे जवाब देंगे मेरे बाबा, इस दुनिया के अनगिनत सवालों के, नहीं रुद्र, तुम्हारी मोहब्बत की क़ीमत मेरे बाबा चुकाएं ऐसा मैं नही होने दूंगी इसलिए अच्छा होगा आज के बाद तुम मेरे सामने कभी ना आओ----यह कह कर वो जाने के लिए आगे बड़ी ही थी कि रूद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया। रुद्र------यही प्रोब्लम है ना कि मेरा नाम रूद्र रघुवंशी है कोई रहमान या सलीम नही, तो ठीक है, मैं इस प्रोबलम को अभी यही खत्म कर देता हूं......आज तुमको, अपनी मोहब्बत को गवाह बना कर, मैं इस्लाम कुबूल करता हूं....... तुम एक लड़की होना, तुम कुछ नही कर सकती क्योंकि तुम मजबूर हो सकती हो मगर मैं नही, आज से मैं तुम्हारी ताकत बनूंगा और तुम्हारा मान, कभी नही टूटने दूंगा---उसने यह कहते हुए आग में पड़ी छड़ी, को उठाया जिस पर अल्लाह लिखा था और उसे अपने हाथ पर चिपका दिया, जिसे देख दुआ चीख पड़ी और उसने रूद्र के हाथ से छड़ी लेकर फेंक दी......मगर उस छड़ी के साथ-साथ रूद्र के हाथ की खाल भी उतर गई। रुद्र नम आंखों से, अपना जला हुआ हाथ देख, मुस्कुराते हुए----- दुआ अब मेरे मरने के बाद भी कोई तुम पर उंगली नही उठा सकेगा, कोई तुम्हारे बाबा से नही पूछेगा कि मैं हिन्दू हूं, अब मेरे हाथ पर लिखा यह अल्लाह कभी नही मिट सकेगा, अब तो तुम मेरी मोहब्बत को क़ुबूल करोगी ना.... दुआ मैं अपनी मोहब्बत के लिए खुद को कुर्बान कर दुंगा.....मगर अपनी मोहब्बत को कुर्बान नही होने दूंगा इस दुनिया के लिए--- रूद्र यही कह रहा था कि दुआ ने गुस्से में उसके थप्पड़ मार दिया. दुआ उसके जले हाथ को देखते हुए-------तुम पागल हो क्या, जानते भी हो, क्या किया है तुमने??? यह कोई छोटी बात नही है रुद्र, बच्चों का खेल नहीं है यह, ज़िन्दगी भर भी इस निशान को मिटाने की कोशिश करोगे, तब भी अब यह नहीं जाएगा...... क्या जवाब दोगे सबको, अपने घर वालों को, क्या बताओगे यह कैसे हुआ??? यहां कोई तुम्हारे जज़्बात नही समझेगा रुद्र, यह आज का हिन्दुस्तान है जहां हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लाखों मासूमों का खून बहा दिया जाता है यह देश पहले जैसा नही है, जहां सब एक साथ नहीं, एक-दूसरे के दिल में रहते थे, रहम करो मुझ पर और खुद पर.......प्लीज़ खुद को बर्बाद नही करो, छोड़ दो मेरा पीछा, चलें जाओ मेरी ज़िन्दगी से,  नही करती मैं तुमसे प्यार, मुझे मेरे बाबा की इज़्ज़त सबसे प्यारी है, प्लीज़ चलें जाओ - दुआ ने रूद्र के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा यह कहते हुए दुआ की आंखें भर आईं थी मगर उसने अपने आंसु बहने नही दिए, क्योंकि उसके आंसु जहां उसको कमज़ोर बनाते वहीं रूद्र की मोहब्बत को ओर हवा देते, इससे पहले वो कुछ बोलता दुआ वहां से चली गई. आज मौसम भी अपने तेवर दिखा रहा था, वह रेस्टोरेंट से बाहर निकली ही थी कि ज़ोर से बारिश शुरू हो गई, बारिश की बूंदों के साथ दुआ के आंसूओं ने भी अपनी सरहद तोड़ दी थी...... दुआ-----कोई किसी से इतनी मोहब्बत कैसे कर सकता है, एक पल में उसने अपना सब कुछ गंवा दिया, एक बार भी नही सोचा, उसका अंजाम किया होगा और मैं बेरहम लड़की, उसको इतनी तकलीफ़ में, अकेला छोड़ आई......काश मुझे थोड़ा भी अंदाज़ा होता उसकी हरकत का, तो मैं इतनी घटिया बात कहती ही नही उसको........मैंने तो सिर्फ इसलिए ऐसा कहा था कि शायद वो हार मान जाएं, शायद उसे मेरी बात चुभ जाए, शायद वो मुझसे नफरत करने लगे.....मगर मुझे क्या पता था वो मुझसे इतनी मोहब्बत करता है कि सबकुछ खोने को तैयार है, उसे अपनी किसी तकलीफ की परवाह नही और मैं इस दुनिया की फ़िक्र लिए बैठी हूं.....उसने सच ही तो कहा.....अगर उसे कुछ हो गया, तो इस दुनिया को क्या फर्क पड़ेगा.......लेकिन मुझे??? क्या मुझे, सच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उसके चलें जाने से??? क्या अब, मैं रह सकूंगी उसके बगैर??? दुआ बारिश में पैदल चले जा रही थी और खुद से हज़ारों सवाल कर रही थी, ना उसको सिग्नल का ख्याल था और ना ही रफ्तार से चल रही गाड़ियों का डर......उसके सामने तो सिर्फ वो मंज़र था जब वह रुद्र के जलते हाथ को देखती रही, उसको रोक ना सकी, वो तो मिलने सिर्फ इसलिए गई थी कि आज किसी भी तरह उसको समझा देगी और फिर कभी नही आएगी उसके सामने, मगर उसको क्या खबर थी आज वो खुद ही हार जाएगी, और वहीं छोड़ आएगी खुद को...... आज रूद्र की मोहब्बत जीत गई थी और वो हार गई थी, रो-रो कर उसकी आंखें सुझ गई थी, उसको अपना-आपा बोझ-सा लग रहा था, जिसको घसीटते हुए वह घर ले जा रही थी, इस वक्त उसको किसी की फ़िक्र नहीं थी कि उसकी ऐसी हालत देख लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे, कुछ नही, अब अगर फ़िक्र हो रही थी उसको तो सिर्फ रुद्र की, अब उसके दिल और दिमाग में सिर्फ एक ही नाम था....... दो घंटे तक वो बारिश में भीगते-भीगते पैदल चलते हुए कब घर आ गई उसको पता ही नही चला, उसने दरवाज़ा खोला ही था कि उसकी नानी उसे देखते ही जल्दी से तौलिया लेकर उसके पास आ गई. कितनी बार कहा है! बारिश में नही भीगते, हर बार बीमार होने के बाद भी नही सुनती यह लड़की-----उसकी नानी (साएरा बेगम) ने सिर पर तौलिया डालते हुए कहा और दुआ उनके गले लग कर रोने लगी. दुआ! मेरा बच्चा क्या हुआ----साएरा बेगम ने उसके सिर पर प्यार करते हुए घबरा कर पूछा। एम् सोरी नानू-एम् सोरी, मैं आपकी अच्छी नवासी नही बन सकी, इस घर की इज्ज़त का बोझ नही उठा सकी, मैं हार गई उसके सामने, नानू मैं हार गई. साएरा बेगम-----दुआ मेरी बच्ची हुआ क्या है, यह क्या कह रही हो......दुआ की ऐसी हालत देख उनकी आंखें भर आईं थी। दुआ-----नानू मैं सच कह रही हूं, हार गई मैं उसके सामने, मगर--मगर मैंने कोशिश की थी, पूरी कोशिश की थी......सच में .....लेकिन वो पागल हैं ना नानू, मर जाएगा, अपनी जान ले लेगा मगर मुझे नही भुला सकेगा------दुआ सिसकियां लेते हुए अटक-अटक कर उनको सब कुछ बता रही थी. आज मैंने उसकी आंखों में देखा है नानू उसकी मोहब्बत की कोई हद नही है, वो बहुत आगे निकल गया है, मैं उसको नही रोक सकी.....झुका दिया मैंने अपने बाबा का सिर, तोड़ दिया उनका ग़ुरूर ----- दुआ किसी बच्चे की तरह रो-रो कर बोले जा रही थी, आज से पहले उसकी ऐसी हालत कभी नही हुई थी, यहां तक उसको इतना भी ख्याल नही रहा था कि उसके बाबा, उसके पिछे ही खड़े थे, जिनके पैरों तले ज़मीन खींच ली थी उसकी बातों ने, अपनी जवान बच्ची की ऐसी हालत देख फरहान सिद्दीकी का गुस्से से लाल चेहरा आने वाले तूफान का एहसास दिला रहा था। ********** जिया (रुद्र की भाभी) ------मां रूद्र का नम्बर बन्द जा रहा है, आप परेशान नही हो, रोहित ने अभी अजय से बात की है, वो उसे ढूंढने गया है वैसे उसने कहा है रूद्र अब घर ही आ रहा होगा, उसको एक मीटिंग के लिए जाना था, शायद इसलिए फोन बंद रखा होगा..... आपको तो पता है वो काम को लेकर कितना सीरियस रहता है, उसे डिस्टर्बेंस नही पसंद- जिया ने अपनी सासु मां को तसल्ली देते हुए कहा। पार्वती जी (रुद्र की मां)----- मगर जिया उसको पता था हम सब लोग यहां तक बाबू जी भी उसका इंतेज़ार कर रहे हैं, हम सबको एक साथ जाना था ना मिस्टर सिंघानिया के यहां , वो ऐसे लापरवाह नही है तुमको तो पता है..... तीन घंटे होने को है और आज यह बारिश भी रूकने का नाम नही ले रही, जिया मेरा दिल तो बहुत घबरा रहा है, पता नही वो अब तक क्यों नही आया? कुन्ती देवी (रुद्र की चाची)-------भाभी आप परेशान नही हो, रूद्र अब बच्चा थोड़ी है......जिया सही कह रही है, वो ठीक होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा, हो सकता है बारिश की वजह से कहीं फंस गया हो और अजय गया है ना उसको ढूंढने, थोड़ी देर में देखना, दोनों साथ ही आ रहे होंगे ---कुन्ती ने अपनी जेठानी को परेशान होते हुए देखा तो वो भी तसल्ली देने लगी। घर में सभी लोग परेशान हो रहे थे रूद्र के लिए, उसने पहले कभी अपना फोन इतनी देर के लिए बंद नही किया था मगर जिया वो परेशान होने से ज़्यादा डरी हुई थी, कि ऐसा क्या हो गया जो रूद्र अब तक नही आया.....वो तो उसको बता कर गया था कि आज वो दुआ से हां सुनकर ही आएगा, तो फिर वो अब तक क्यों नही आया--- जिया अपनी सोचों में गुम थी कि तभी अपनी सासु मां के चीखने की आवाज़ से होश में आई, उसने दरवाज़े की तरफ देखा तो, एक पल के लिए उसके पैर भी वहीं जम गए. आज से पहले कभी किसी ने रूद्र को ऐसी हालत में नही देखा था......उसके होंठ नीले पड़ गए थे जिससे पता चल रहा था कि वो घंटों बारिश में भीगता रहा है, उसकी आसमानी रंग की शर्ट पर खून के धब्बों को साफ देखा जा सकता था, उसकी हथेली में कुछ कांच के टुकड़े गड़े हुए थे जिसकी वजह से हाथ से खून अभी भी रीस रहा था.......उसकी यह हालत देख सब एक साथ दरवाज़े की तरफ दौड़े और रूद्र वही दहलीज़ पर खड़ा रहा, उसकी हिम्मत ही नही हुई कि वो एक क़दम भी आगे बड़ा सकता। पार्वती जी-----यह क्या हाल बना रखा है रूद्र, जिया जाओ जल्दी से फर्स्ट-एड लेकर आओ---उसकी मां ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा जिससे खून रिस रहा था मगर फौरन ही एक झटके से उसका हाथ छोड़ दिया, उनकी हैरानी की हद ना रही जब उनकी नज़र रूद्र की जली हुई कलाई पर गई। यह-यह क्या है रूद्र- उन्होंने उसकी जली हुई कलाई की तरफ इशारा करते हुए पूछा....उसकी शर्ट का कपड़ा उसकी खाल में चिपक गया था, इतना बड़ा निशान उनके बेटे के हाथ पर, उन्होंने तो कभी उसको सूई भी नही चुभने दी थी फिर आज इतना बड़ा ज़ख्म, कैसे??? रोहित ( रुद्र का बड़ा भाई)-----यह कैसे हुआ रूद्र, किसने किया तुम्हारे साथ यह सब- उसके भाई ने आगे बढ़ते हुए पुछा। रुद्र अपने हाथ को देखते हुए------भाई यह सब मेरे नाम ने किया है, "रूद्र रघुवंशी" यही नाम है ना मेरा, यही सबसे बड़ा गुनाह है मेरा, तो क़ीमत तो अदा करनी थी- रूद्र ने थोड़ा चिल्लाते हुए कहा जिस पर सभी हैरान थे, इससे पहले उसने कभी भी तेज़ आवाज़ में बात तक नही की थी घर वालों के सामने और आज वो दादू के सामने इतनी तेज़ आवाज़ में चिल्ला रहा था, जिनके आगे वो नज़र भी नही उठाया करता था। जिया ने उसकी हालत देखते हुए, थोड़ा हिम्मत करके पूछा----रूद्र बताओ तो सही हुआ क्या है??? रुद्र, जिया को देखते हुए----भाभी आपने सही कहा था, आसान नही होता मोहब्बत का सफर, मगर अब यह सफ़र कितना भी मुश्किल हो, मैं इतनी जल्दी हार नही मानूंगा...... क्योंकि अगर मैंने हार मान ली तो इस दुनिया की घटिया सोच जीत जाएगी..... जिया कुछ ना समझते हुए----- मतलब??? रुद्र हल्का सा मुस्कुराते हुए----- मतलब भाभी, आखिर इस दुनिया की घटिया सोच, आज आ ही गई, मेरी मोहब्बत के बीच..... जानती है आप, उसने क्या कहा मुझसे.......वो कहती है उसे मुझसे मोहब्बत नही है, वो मुझे देखना भी पसंद नही करती, क्योंकि वो मजबूर हैं, दुनिया उस पर ऊंगली उठाएगी, उसके बाबा से सवाल करेगी, जानती है क्यों वो मुझे अपना नही सकती क्योंकि मैं हिन्दू और वो मुसलमान है- रूद्र ने आख़री शब्द चिखते हुए कहा. जिसे सुनकर, रघुवंशी परिवार के पैरों तले ज़मीन निकल गई थी......किसी ने नही सोचा था कि रूद्र को कभी कोई लड़की पसंद भी आ सकती है, वो भी एक मुसलमान लड़की, यह कैसे हो सकता है। पार्वती जी ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पुछा-----रूद्र यह क्या कह रहे हो तुम?? रुद्र-----एम् सोरी मोम, एम् सोरी मगर आपके बेटे को एक मुसलमान लड़की से प्यार हो गया है--- रूद्र ने यही कहा था कि मुकेश रघुवंशी ने उसके सामने आते ही उसके ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया। मुकेश रघुवंशी गुस्से में------तुमको पता है, तुम क्या कह रहे हों, एक मुसलमान लड़की, तुम्हारा दिमाग ठीक है---- उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा। रुद्र-----हम्मम!! जानता हूं.......उसने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा मगर उसकी आंखों में नमी थी। दादू! मैं जानता हूं, मैंने आज आपका मान तोड़ दिया, आपको ठेस पहुंचाई है, बहुत बुरा हूं, आपका पोता कहलाने के लायक भी नहीं इसलिए इस घर को छोड़ कर हमेशा के लिए जा रहा हूं। रुद्र-----मैं कभी आप लोगों से अलग नही होना चाहता था, मगर जानता हूं, आप कभी भी उसको नही अपनाएंगे.......क्योंकि यह हिन्दुस्तान है, यहां इज़्ज़त और धर्म के नाम पर बच्चों को कुर्बान कर देना ज़्यादा अच्छा समझा जाता हैं, मगर उनकी खुशियों के लिए, उनके साथ मिलकर दुनिया से लड़ना, यह तो यहा सिखाया ही नही जाता. पार्वती जी, रूद्र का हाथ पकड़ते हुए-------रूद्र होश में आओ, क्या कह रहे हो, तुमको पता भी है, देखो अपना हाल, खून बह रहा है, जिया जल्दी से डॉक्टर को फोन करो--- रुद्र------भाभी रहने दीजिए, अब मेरा इस घर पर कोई हक़ नही रहा, मुझे जाना है मगर उससे पहले दादू से कुछ सवाल करने है...... दादू, मैंने बचपन से आपको देखा है, आप किसी मुसलमान के हाथ से पानी लेना भी पाप समझते हैं, आप उनके साथ बैठना भी पसंद नहीं करते, आखिर इतनी नफ़रत क्यों है आपके दिल में, क्या वजह है इस भेदभाव की......क्या वो लोग इंसान नही दादू??? मुकेश रघुवंशी चिल्लाते हुए-----बंद करो अपनी बकवास, लगता है भूल गए हो, कि तुम अपने दादू के सामने खड़े हो---- रुद्र-----ठीक है दादू! हो जाउंगा चुप, मगर आप मुझे बताएं, आप तो हिन्दू है ना, वो मुसलमान है फिर क्यों आप दोनों की सोच अलग नही है, फिर क्यों उसने भी यही कहा, क्यों उसने भी मुझे थप्पड़ मारा, क्यों उसको भी समाज की परवाह ज़्यादा है। दादू आप जानते है! हिन्दुस्तान में हर साल रावण को जलाया जाता है, बुराई का प्रतीक समझ कर मगर वहीं श्रीलंका में उसकी पूजा की जाती है, भगवान समझ कर, क्या इसका मतलब यह है कि वो लोग अच्छे नही या वह नफरत के काबिल है क्योंकि वो रावण को भगवान मानते हैं......बताए मुझे- रूद्र ने मुकेश रघुवंशी के गुस्से की परवाह ना करते हुए उनकी तरफ देखते हुए पूछा और जवाब ना मिलने पर उसने बोलना फिर शुरू कर दिया। नही ना दादू!! इसका मतलब सिर्फ इतना है कि जो इंसान जहां पैदा होता है वहां की रीति-रिवाज़ अपना लेता है, अपना नज़रिया वैसे ही बना लेता है, लेकिन अपने नज़रिए की वजह से करोड़ों लोगों से नफ़रत करना, उनका खून बहा देना, हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर अनगिनत बच्चों को अनाथ कर देना, लाखों औरतों की इज्ज़त लूट लेना यह हक़ किस धर्म ने दिया है??? कौन सा धर्म नफरत सिखाता है दादू??? क्या ईसा-अलैहिस्सलाम ने, हुज़ूर ने या राम जी ने, कृष्ण जी ने, शिव जी ने, या किसी ओर भगवान ने किसी औरत की इज्ज़त को रौंदा था पैरों तले अपने धर्म का बदला लेने के लिए??? क्या उनमें से किसी ने भी मासूमों का खून बहाया था??? गीता और क़ुरान में क्या कहीं भी लिखा है कि बेगुनाहों का कत्ल कर दो, सिर्फ इसलिए कि वो अपने रब को आपके हिसाब से नही पुकारते, उनके रब का नाम वो नही जो आप लेते हैं। दादू धर्म तो प्यार की नींव रखता है, धर्म तो धैर्य, संयम और निष्ठा सिखाता है, हर धर्म का पहला पाठ इंसानियत है....... फिर सब यही पाठ छोड़ कर आगे कैसे बढ़ जाते हैं??? सिर्फ गीता या क़ुरान को पड़ लेना तो धार्मिक होना नही है.....उसकी गहराई को समझना और अमल करना धार्मिक बनाता है इंसान को....... लेकिन आज के दौर में हर इंसान खुद को धर्म का ठेकेदार कह कर अपने को अल्लाह और भगवान समझ लेता है, लाखों लोगों का खून बहा देता है, यह सोचे बगैर कि जब वह इंसानियत ही भुल गया तो वो धार्मिक कहा से रहा----- रूद्र आज वो सब बोल रहा था जो हमेशा वो अपने दादू को समझाना चाहता था मगर कभी हिम्मत नही कर सका था। रुद्र------दादू! मैं आप सबसे बहुत प्यार करता हूं मगर उस लड़की को नही छोड़ सकता, वो भी सिर्फ इस वजह से कि उसका नाम दुआ सिद्दीकी है क्योंकि वो एक मुसलमान के घर पैदा हुई........दादू मैं अपनी मोहब्बत की कुर्बानी नही दूंगा किसी धर्म के नाम पर चाहे जो हो जाए मगर आपका पोता हार नही मानेगा। रुद्र, कुन्ती देवी की तरफ बढ़ते हुए------चाची आप मुझे बताइएं, क्या भगवान जी ने आपको पैदा करने से पहले पूछा था कि आप हिन्दू के घर पैदा होना चाहती है या मुसलमान के घर??? रूद्र के सवाल पर सभी ख़ामोश थे तब ही पिछे से अजय भी उसे ढूंढता हुआ आ गया मगर रूद्र का सवाल सुनकर उसके क़दम भी जहां थे वहीं रुक गए। रुद्र----नही ना चाची!!! पता है क्यों?? क्योंकि उसने तो हम सबको सिर्फ इंसान बनाया था, हिन्दू-मुस्लिम तो इस दुनिया ने बनाया है हमको...... रुद्र-----हम में से किसी से भी भगवान ने नही पूछा था.....ना आप से, ना मुझसे, ना उससे.......फिर उसको मुझसे अलग रहने को मजबूर क्यों किया जा रहा है......क्यों सबकी नज़रों में मैं ग़लत बन गया हूं??? क्यों मेरी मोहब्बत को सब गुनाह समझ रहे हैं??? आप सब ही चाहते थे ना कि मैं शादी कर लूं, आज जब मुझे किसी से प्यार हो गया तो आप लोग चाहते हैं मैं उसे भुल जाऊं क्योंकि वो मुसलमान है। 27 साल तक आप लोगों ने मुझे पाला-पोसा, बेइंतेहा प्यार किया, मैं आप सबकी आंखों का तारा इस घर का सबसे ज़्यादा लाडला बेटा....... "एक मिनट में" सिर्फ एक मिनट में दादू!!!! मैं आप सबका दुश्मन बन गया, वो प्यार, वो फ़िक्र, वो ममता सब कुछ खत्म हो गया सिर्फ एक मिनट में!!! क्या यही सब सिखाता है धर्म, मुझे तो मेरे धर्म ने नफरत करना नही सिखाया दादू, मुझे ऐसे संस्कार ही नही दिए आपने---- रूद्र ने रोते हुए अपने दादू से कहा जो उसको बस सुन रहे थे, उनकी गुस्से से लाल आंखें अब ज़मीन पर टिकी थी। दादू जिससे आप प्यार करते हो उनके लिए लड़ना मैंने आपसे सिखा है, अपने शिव जी से सीखा है, अपने प्रेम के लिए अगर वो भैरों बन सकते हैं तो मैं क्यों इस दुनिया की बेबुनियाद नफरत से नही लड़ सकता। आपने मुझे सिखाया था अगर सवाल प्रेम का हो तो शिव जी का भैरों अवतार बन जाना..... सबकुछ त्याग देना प्रेम के लिए......मगर प्रेम को नही त्याग ना दुनिया के लिए। आज मैं आपके सामने हाथ जोड़ कर विनती करता हूं कि क्या आप धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को खत्म नही कर सकते, क्या आप अपने गुरूर का त्याग नही सकते, अपने पोते के प्यार में। या आप भी बाकी सब की तरह इस दुनिया के बने बैठे, धर्म के ठेकेदारों के सवालों से डर कर, अपने पोते का त्याग करना ज़्यादा अच्छा समझते हैं। रुद्र-----दादू मैं उसके बगैर ज़िन्दा नही रह सकूंगा, मगर आप लोगों के बगैर सुकून से भी नही रह सकता, प्लीज़ मुझे खुद से अलग नही करना दादू मुझे इस दुनिया के रीति-रिवाजों की भैंट ना चढ़ाना--- रूद्र ने छोटे बच्चे की तरह रोते हुए अपने दादू से प्रार्थना की थी, वहां खड़े हर इंसान की आंखों में आसूं थे, उसका कहा हर लफ्ज़ सही और सच था मगर दुनिया की रीति-रिवाजों के बांध तोड़ कर सच और सही का साथ देना आसान नही होता बहुत मुश्किल होता है दुनिया के खिलाफ जाना, लाखों लोगों के सवालो का सामना करना इसी कशमकश में उसके दादू भी थे, जिनका दिल फट रहा था अपने जान से प्यारे पोते की आंखों में आंसु देख कर, उनके दिमाग में रूद्र का कहा हर शब्द गूंज रहा था...... क्या सच में उनका धर्म प्रेम करना, त्याग करना, दुसरो का मान रखना, एक-दूसरे की इज़्ज़त करना और इंसानियत नही सिखाता। यही सब तो उन्होंने हमेशा पड़ा था मगर कभी इतनी गहराई से धर्म को समझा ही नही जितना उनका पोता समझ चुका था। आज उनको इंसानियत और धर्म का अस्तित्व समझ आ रहा था, क्यों धर्म बनाए गए, क्यों गीता और क़ुरान पढ़ाए जाते हैं मगर अक्सर लोग सिर्फ पड़ते हैं, समझते नही...... धर्म को समझना आसान नही, लोगों की ज़िन्दगी गुज़र जाती है, मासूमों का खून बहा दिया जाता है और फिर भी खाली हाथ रह जाते हैं। आज भगवान ने उनके सामने भी इम्तेहान की घड़ी रख दी थी कि वो दुनिया के दिखाएं रास्ते पर धर्म के नाम पर नफरत को जन्म देंगे या भगवान का रूप धारण कर प्रेम के लिए, अपना घमंड, अपना क्रोध त्याग देंगे। वो धर्म कहा जो तोड़ दे रिश्ते, धर्म तो जोड़ता है अपनों को परायो को----वो यही सब सोच रहे थे कि रूद्र खड़े-खड़े गिर गया, उसके ज़मीन पर गिरते ही रघुवंशी परिवार में डर की लहर दौड़ गई, उसका जिस्म आग-सा तप रहा था, रोहित और अजय मिलकर फौरन रूद्र को ज़मीन से उठा, उसके कमरे में ले गए, जल्द ही जिया ने डाक्टर को भी बुला लिया था। डॉक्टर ने उसको चैक किया फिर जल्दी से उसको 2 इंजेक्शन लगाए, उसकी हर्टबीट बहुत धीमी हो गई थी, बुखार से जिस्म तप रहा था, हाथ से बहता खून तो रूक गया था मगर उसकी जली हुई कलाई पर ज़ख्म बहुत ज़्यादा गहरा था। डॉक्टर ने सबको बताया कि फिलहाल उससे कोई ऐसी बात ना करें, जिससे उसको टेंशन हो, क्योंकि वो अभी सदमे की हालत में है, इसलिए उसके होश में आने के बाद, इस बात का ख़ास ख्याल रखा जाए, नही तो वो अपना दिमागी संतुलन खो सकता है, वैसे आने वाले 24 घंटों में अगर उसका बुखार कम नही हुआ तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है-----यह कह कर डाक्टर साहब वहां से चले गए। डॉक्टर के जाते ही मुकेश रघुवंशी ने गुस्से में बाला को आवाज़ दी, जो उनका खास आदमी था। बाला अगले एक घंटे में किसी भी तरह मुझे वो लड़की और उसका बाप यहां मेरी आंखों के सामने चाहिए। यह सुनते ही अजय फौरन हाथ जोड़कर मुकेश रघुवंशी के सामने खड़ा हो गया। दादा जी, मुझे पता है, आप इस वक्त बहुत गुस्से में है मगर बस एक बार मेरी बात सुन लीजिए, कोई भी फैसला लेने से पहले पूरी कहानी सुन लेनी चाहिए, गुस्से में किए फैसले हमेशा सिर्फ तकलीफ देते हैं-----यह कह कर अजय ने हिम्मत करके सबकुछ बताना शुरू किया। बाकी अगले भाग में:- नोट:- आपको यह कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में ज़रुर बताएं।
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भाग 2

10 अक्टूबर 2021
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छः महीने पहले :-<div><br></div><div>रूद्र कहा हों - जिया ने कमरे में क़दम रखते हुए कहा.....देखा तो व

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भाग 3

14 अक्टूबर 2021
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सुबह के 10 बज रहे थे और रूद्र अपनी आंखें बंद किए, सोफे पर सिर टिकाए उसी लड़की के बारे में सोच रहा था

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भाग 4

31 अक्टूबर 2021
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अच्छा, ठीक है-ठीक है, गुस्सा नही हो, मैं तो बस यह कह रहा था एक बार उससे बात तो कर लेना, ताकि उसके दि

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भाग 5

25 नवम्बर 2021
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अमित जी------सर मैंने पूरी कोशिश की थी मगर इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल बहुत सख्त है, मैंने रिश्वत दे

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भाग 6

7 दिसम्बर 2021
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मलिक हाउस:-<div><br></div><div>यह है दुआ के मामा का घर, बहुत ही बड़ा और आलीशान, रात के अंधेरे में चा

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भाग 7

7 दिसम्बर 2021
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अमित जी ने अभी यू-टर्न लिया ही था कि उस लड़की के सामने, नीले रंग की बड़ी सी गाड़ी रुक जाती है, जिसक

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भाग 8

8 दिसम्बर 2021
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आकिब घर वापस आते ही, दुआ के कमरे में जाता है तो देखता हैं, दुआ की आंखे अभी भी नम थी।<div><br></div><

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भाग 9

8 दिसम्बर 2021
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रात कब गुज़र जाती है, मुकेश रघुवंशी को पता ही नहीं चलता, रुद्र उनकी आंखों का तारा, उनके दिल की धड़कन

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भाग 10

30 दिसम्बर 2021
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रुद्र दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है, तो दुआ नज़रें झुकाए उसका इंतेज़ार कर रही होती हैं, इस पल उसे ऐसा

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भाग 11

5 जनवरी 2022
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अगले दिन सभी लोग फंक्शन की तैयारी में जुटे थे, धीरे-धीरे मेहमान भी आना शुरू हो गए थे, रुद्र भी बाकी सबके साथ फंक्शन की तैयारी में लगा था, दादू के हुक्म पर दुआ कमरे में ही आराम कर रही थी और जिया के कहन

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भाग 12

5 जनवरी 2022
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20-25 दिन गुज़र जाते हैं मगर अब तक दुआ का दिमाग़ वहीं फरहान सिद्दीकी की बातों में अटका होता है, जिसकी वजह से दिन-ब-दिन उसकी तबीयत बिगड़ने लगती है, उसके दिल में एक अजीब सा डर घर करने लगता है, सब लोग उस

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