अमित जी ने अभी यू-टर्न लिया ही था कि उस लड़की के सामने, नीले रंग की बड़ी सी गाड़ी रुक जाती है, जिसको देखते ही वह लड़की तेज़ क़दमों से चलना शुरू कर देती है..... अहान यह देख कर गुस्से में अमित जी से कहता है।
अहान----अमित जी, जल्दी चलाओ, वो जा रही है।
अमित जी-----जी सर, वो यह कह कर स्पीड बढ़ाता ही है मगर तभी अचानक ट्रेफिक जाम की वजह से अमित जी को स्पीड कम करनी पड़ती है।
दुआ तेज़ क़दमों से चलना शुरू कर देती है, रुद्र कार से उतर, जल्दी से दुआ के पास पहुंच उसके सामने खड़ा हो जाता है।
दुआ घूरते हुए---- तुमको समझ नही आता क्या???.....किस मिट्टी के बने हो तुम??
अहान उन दोनों को देखते हुए परेशानी से-----अमित जी, वो लड़का शायद उसे लेने आया है, जल्दी चलो, कहीं वो लोग निकल ना जाएं।
अमित जी ट्रेफिक जाम को जल्दी से पार कर, स्पीड बढ़ा देते हैं, क्योंकि यू-टर्न काफी लम्बा था इसलिए उनको देर लग रही थी, या यूं कहें जब किस्मत में मिलना ना लिखा हो तो दो क़दम का रास्ता भी परमात्मा मीलों का बना देते हैं, ऐसा ही कुछ अभी अहान के साथ हो रहा था।
रुद्र मुस्कुराते हुए----- मोहब्बत की मिट्टी से, मेरे रब ने बहुत प्यार से तराशा है मुझे, अपने बारे में सबकुछ बताता हूं, पहले कार में तो बैठो।
दुआ झुंझलाते हुए----एक नम्बर के बेशर्म और घटिया इंसान हो.... इतना सब सुनने के बाद, थप्पड़ खाने के बाद भी ज़रा सा एहसास नही अपनी बेइज़्ज़ती का।
रुद्र उसके करीब आते हुए----- दुआ सिद्दीकी, मोहब्बत करने के लिए पहले खुद को मिटाना पड़ता है, तब जाकर कोई दूसरा, जान से भी ज़्यादा क़ीमती बनता है, और रही बात बेइज़्ज़ती की, तो मैंने तुमको, बहुत पहले, अपनी इज़्ज़त बना लिया है......अब अगर तुम मेरी जान भी ले लो तो वो भी मेरे प्यार की जीत होगी..... खैर जल्दी गाड़ी में बैठो, अब तक होटल में, सबने तुमको ढूंढना शुरू कर दिया होगा।
अमित जी उन लोगों से अभी 2 किलोमीटर दूर थे, कि रेड लाइट हो जाती हैं, जिसकी वजह से अमित जी को फौरन ब्रेक लगाने पड़ते हैं।
अहान उस अनजान लड़के को उसके करीब जाते देख, घबरा जाता है, दूसरी तरफ 2 मिनट की रेड लाइट भी इस वक्त बहुत लम्बी लग रही थी, इसलिए वो फौरन कार से उतर, भागते हुए उसके पास पहुंचना चाहता है।
दुआ----- मुझे कहीं नहीं जाना तुम्हारे साथ।
रुद्र उसके करीब आते हुए----- दुआ आख़री बार पुछ रहा हूं, तुम मेरे साथ, चल रही हो या नही?
दुआ---- मैंने कह दिया ना, नही जाना मैंने तुम्हारे साथ, समझ नही आती, एक बार की बात।
वो यही कह रही होती हैं कि रुद्र उसे गोद में उठा लेता है।
दुआ---- मुझे नीचे उतारो, वरना मैं शोर मचाने लगूंगी।
अहान उन दोनों को देखते हुए भाग रहा होता है कि तभी पिछे से आती कार से उसका एक्सीडेंट हो जाता है।
वो वहीं ज़मीन पर गिर जाता है, मगर अब भी उसकी नज़र उन दोनों पर ही टिकी होती है।
रुद्र मुस्कुराते हुए---- जो करना है, कर लो..... मैं तुमको अपने साथ लेकर ही जाउंगा!
यह कहते हुए रूद्र, उसको ज़बरदस्ती कार में बैठाकर, खुद जल्दी से बैठ....कार स्पीड में दौड़ा देता है।
दुसरी तरफ अमित जी भागते हुए अहान के पास पहुंचते हैं, वो ऊंगली से अभी भी नज़रों से दूर जाती नीली गाड़ी की तरफ इशारा कर रहा होता है।
अमित जी, को उसके लिए बहुत बुरा लगता है, मगर वो सबकुछ भुल पहले, जल्दी से उसे उठा कर, हाॅस्पिटल ले जाते हैं।
दुआ----यह क्या बदतमीज़ी है रुद्र???
रूद्र मुस्कुराते हुए------अभी कुछ देर पहले तुमने ही कहा था ना कि मैं तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती करता हूं, तो सोचा, थोड़ा प्रेक्टिकल कर लिया जाए।
दुआ बड़बड़ाते हुए---- बेशर्म इंसान!!!
रुद्र उसको बड़बड़ाते हुए देख, मुस्कुराते हुए------ तुम जो चाहे वो मुझे कह सकती हो बुरा नही मानूंगा, आखिर ज़िन्दगी भर, तुम्हे ही सुनना है, तो मेरे लिए अच्छा होगा, अभी से आदत डाल लूं फिर शादी के बाद कोई परेशानी नहीं होगी।
दुआ झुंझलाते हुए---- क्या तुम, थोड़ी देर के लिए, पहले जैसे बिहेव नही कर सकते, ज़रूरी है मुझे इरीटेट करना???
रुद्र उसे घोर से देखते हुए, अपना एक कान पकड़ कर----- अच्छा, एम् सोरी, अब बिल्कुल परेशान नही करूंगा, बट प्लीज़, थोड़ा सा मूड ठीक कर लो।
दुआ उसे घूरते हुए देखती है।
रुद्र---- प्लीज़ ना, मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता जब तुम उदास होती हो, और फिर दिल करता है कि कुछ भी कर के तुम्हारी उदासी खत्म कर दूं फिर चाहे उसके लिए मुझे तुमको गुस्सा क्यों ना दिलाना पड़े।
दुआ एक नज़र उसे देखती है और उसका दिल चाहता है कि वो, उस दिवाने को, कुछ पल यूं ही देखती रहे, मगर वो इस जन्म में तो ऐसा नही कर सकती थी।
रुद्र उसे अपनी तरफ ऐसे देख कर थोड़ा परेशान हो जाता है।
रुद्र---- क्या हुआ दुआ, तुम अचानक उदास क्यों हो गई???
दुआ सोचते हुए---- बहुत प्यार करते हो मुझसे???
रुद्र---- "बहुत" यह लफ़्ज़ बहुत ज़्यादा छोटा है, मेरे प्यार की हदें नापने के लिए..... मेरी और तुम्हारी सोच से कहीं ज़्यादा, प्यार हैं मुझे तुमसे।
दुआ---- तो क्या, मेरे कहने पर एक काम कर सकते हो???
रुद्र मुस्कुराते हुए----अज़मा कर देख लो, तुम्हारी इस उदासी को खत्म करने के लिए, मेरी जान भी मांगोगी ना, तो वो भी खुशी से दें दूंगा।
दुआ--- प्लीज़, मेरा पिछा छोड़ दो।
रूद्र----बस इतनी सी बात????
दुआ---- हम्मम!!
रुद्र मुस्कुराते हुए----- मिसेज़ रघुवंशी, वादा रहा, आज से तुम्हारा पिछा नही करुंगा, तुम्हारे घर भी नही आऊंगा मगर इसके बदले, तुमको मेरी अमानत का ख्याल रखना होगा।
दुआ कुछ ना समझते हुए----मतलब!!
रुद्र ब्रेक लगाते हुए----मतलब, आज जो आंसू तुमने बहाएं है, वो दुबारा, इन आंखों में नहीं आने चाहिए, क्योंकि मैंने सिर्फ पिछा ना करने का वादा किया है, इसका मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हें भुल जाउंगा....
मैं जानता हूं, तुम परेशान हो, अपने दिल और दिमाग की लड़ाई से थक रही हो, और मुझे यक़ीन है, बहुत जल्द तुम इस लड़ाई को खत्म कर, अपने दिल की ज़रुर सुनोगी......बस तब तक, मुझे दूर रह कर तुम्हारा साथ देना है।
रुद्र की बातें सुन वो उसे हैरानी से देख रही थी, वो उसे इतने अच्छे से समझता होगा, यह उसने कभी नही सोचा था, उसको अपनी आंखों और कानों पर यक़ीन नहीं हो रहा था, जिस बात को वो चीख-चीख कर, हज़ार बार कह चुकी थी, जिस वजह से उसने कितनी बार रुद्र को थप्पड़ भी मार दिया था, मगर तब भी वो नही समझा था और आज उसकी ज़रा-सी उदासी दूर करने के लिए, वो एक बार में मान गया था।
रुद्र होटल की तरफ इशारा करते हुए----- जाओ, सब तुमको ढूंढ रहे होंगे और हां, अपना ख्याल रखना।
दुआ खोई-खोई सी उसकी बातें सुन, गाड़ी से उतर जाती है, वो पिछे मुड़कर देखती है, तो रुद्र मुस्कुरा कर, उसे बाय कहता है और गाड़ी स्टार्ट कर कुछ ही पल में आंखों से ओझल हो जाता है।
पहली बार रुद्र को जाते देख, पता नही क्यों उसको अपने अंदर कुछ टूटा-सा महसूस हो रहा था, मगर फौरन ही उसने अपने आपको झूठा दिलासा दिया .....
दुआ बड़बड़ाते हुए------यह रुद्र है, इतनी आसानी से मान जाए, हो ही नहीं सकता, अभी जाउंगी तो फिर किसी बहाने सामने आ जाएगा, बेवकूफ----- यह कह कर अचानक ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है, और फिर हो मुस्कुराते हुए होटल के अंदर चली जाती है।
दुसरी तरफ अहान को होश तो आ जाता है मगर उसके एक हाथ और एक पैर में फ्रैक्चर आ जाने की वजह से, वो बिस्तर से उठ नही पाता, डाक्टर ने कम से कम, एक महिने का बेड रेस्ट बताया था मगर अहान को अफसोस था तो सिर्फ इतना कि एक बार फिर, वो अपनी मंज़िल के, इतने क़रीब होते हुए, भी खाली हाथ रह गया था।
अहान गुस्से में----- अमित जी, आप को उस गाड़ी का पीछा तो करना चाहिए था, आप जानते हैं, मैं उसे कब से ढूंढ रहा हूं, आप ने इतनी आसानी से उसे कैसे जाने दिया!
अमित जी---- सर, आपका एक्सीडेंट हो गया था तो मैं, कैसे आपको छोड़, उस गाड़ी का पीछा करता???
अहान झुंझलाते हुए---- ठीक है, पीछा ना सही, गाड़ी का नंबर तो नोट कर सकते थे, मैं मरा तो नही था, बस बेहोश हुआ था।
अमित जी----- सर, एम् सोरी, यह मेरी गलती है, मैं आपको बेहोश देख, बहुत घबरा गया था, इसलिए ख्याल ही नहीं रहा, गाड़ी का नंबर नोट करने का।
अहान---- अब मैं क्या करूं, आपकी साॅरी का??? वो तो चली गई, अब कहां ढूंढू उसे, कार का नंबर होता तो फिर भी एक रास्ता होता!
अमित जी हिम्मत कर, आहिस्ता से----- सर, कहते हैं, जो आपकी किस्मत में है, वो दूर जाकर भी लौट आएगा, और जो आपकी किस्मत में नही तो वो आपका होकर भी, आपसे दूर चला जाएगा!
सर, अगर वो आपकी किस्मत में है तो वो आपको ज़रूर मिलेगी और अगर नहीं तो----- अमित जी ने इतना ही कहा था कि अहान गुस्से से बोला!
अहान----- वो किसी की भी किस्मत में हों अमित जी, अब मैं उसे छिन लूंगा, इस जहां से, कहते हैं दुआओं में, बहुत असर होता है, किस्मत तक बदल देती है, यह दुआएं, तो बस मैं भी देखता हूं, अल्लाह कब तक मुझे उससे दूर रखता है, कब तक मेरी दुआओं को क़ुबूल नहीं करता, कब तक उसे मेरी किस्मत में नही लिखता...... अमित जी, लिख लो, आज नही तो कल वो मेरे साथ होगी।
रात के नौ बज रहे थे, जब सभी लोग घर वापस पहुंचे, सिद्दीकी फेमिली की फ्लाइट 11:00 बजे की थी, तो वो लोग जल्दी-जलदी अपना समान गाड़ी में रखवा रहे थे, क्योंकि उनको एयरपोर्ट के लिए देर हो रही थी।
दुआ समान तो गाड़ी में तो रखवा रही थी मगर उसकी नज़रें, सब तरफ सिर्फ रुद्र को ढूंढ रही थी, उसका दिल चाह रहा था कि वो घर के नौकर से उसके बारे में पूछ लें, मगर उसकी हिम्मत नहीं हुई।
सब लोग गाड़ी में एक-दूसरे को बाय कह कर गाड़ी में बैठ गए थे और दुआ की नज़रों को अभी भी रुद्र का इंतेज़ार था कि वो अचानक अभी उसके सामने आ जाएगा हमेशा की तरह मगर उसकी सारी उम्मीद टूट गई, जब.....
नानी ने रुद्र के बारे में पूछा और आकिब ने बताया कि रुद्र ने उसको काॅल करके बता दिया था कि उसे एक बहुत इम्पोर्टेंट मीटिंग के लिए फौरन निकलना पड़ेगा, वो बहुत शर्मिन्दा हैं, ऐसे अचानक जाने के लिए मगर वो दिल्ली पहुंचने के बाद घर आकर सबसे माफी मांग लेगा..... वैसे वो साजिद मलिक से मिलकर गया था।
यह सुनते ही, दुआ को उसका किया वादा याद आ गया...... मतलब वो सीरियस था, अब वो सच में मेरा पीछा नही करेगा, वो फाइनली मुझसे दूर चले गया......
यही तो मैं चाहती थी मगर फिर भी मुझे खुशी क्यूं नहीं हो रही, क्यूं अचानक इतनी उदासी छा गई मुझ पर, कहीं मैं उससे?????...... वो इतना सोच कर ही खुद को रोक लेती है।
नहीं ऐसा कभी नहीं हो सकता, मैं, ऐसा होने ही नहीं देगी.....वो मन ही मन खुद से वादें कर रही थी
वो अपनी सोचों में इतना गुम थी, कि उसको पता ही नही चलता कब वो लोग एयरपोर्ट पहुंचते हैं, कब बोर्डिंग होती है, कब वो दिल्ली लेंड करते हैं और कब वो घर पहुंचते हैं.......
हां, मगर जैसे ही वो अपने घर में क़दम रखती है तब उसे एहसास होता है कि वो घर पहुंच गई, इतने लम्बे सफ़र का उसे पता ही नही चलता, ऐसा लग रहा था जैसे वक्त रूक गया हो, किसी चीज़ का एहसास ही नही हो, सिर्फ लम्बी उदासी और एक बचकानी उम्मीद..... हकीक़त जानते हुए भी ख्वाब सजाने की ज़िद्द, कर रहा था उसका दिल, उसको अपने घर के हर कोने में उसके होने का एहसास हो रहा था मगर वो बार-बार अपने दिल को डांटती और खुद को ऐसी बदगुमानीयों से रोकती, कुछ ही देर में, उसकी हालत ऐसी हो जाएगी, इसका अंदाज़ा तो, उसको खुद भी नही था.....
अभी कुछ दिनों पहले ही तो वो खुद रुद्र से इतनी दूर गई थी, मगर तब तो उसको इतना बुरा नही लगा था पर फिर, अब ऐसा क्या हो गया था जो अचानक उसको अपने अंदर सबकुछ बिखरा हुआ महसूस हो रहा था, वो अपनी ही सोचों में गुम, मरे हुए कदमों से अपने कमरे की तरफ चली जाती है.....
उसकी उदासी सभी लोगों ने महसूस कर ली थी मगर सबको लगा, शायद इसका दिल वहां सबके साथ लग गया था, इसलिए वापसी पर उसको अच्छा नही लग रहा।
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अगले दिन:-
वो युनिवर्सिटी जाती है, तो उसे लगता है कि शायद आज रुद्र उसके सामने आ जाएगा और हमेशा की तरह फिर से परेशान करेगा मगर ऐसा नहीं होता, वो युनिवर्सिटी पहुंचती है तो कुछ देर युनिवर्सिटी के बाहर खड़ी इधर-उधर उसकी नज़रें जैसे रुद्र को तलाश रही होती हैं लेकिन तभी छाया पिछे से उसके कन्धे पर हाथ रखती है, जिससे वो पूरी तरह कांप जाती है, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हों।
छाया----- आर यू ऑल राईट???
दुआ---- हम्ममम!!!
छाया----- तो अंदर चलें???
दुआ कुछ कहें बगैर अंदर की तरफ बढ़ जाती है, पूरा दिन वो खोई-खोई सी रहती है, छाया तक से बात नही करती, ऐसा लगता है, जैसे उसके मुंह पर टेप चिपका दिया गया है, युनिवर्सिटी खत्म होती है तो छाया को याद आता है कि उसने बताया था, रुद्र भी सिंगापुर पहुंच गया था।
छाया सोचते हुए----- दुआ, तुमने बताया था कि वो बेवकूफ तुम्हारे पीछे सिंगापुर तक पहुंच गया, फिर घर में कोई प्रोब्लम तो नहीं हुई उसकी वजह से।
दुआ गुस्से में------छाया उसका एक नाम है।
छाया हैरानी से उसे देखते हुए----- क्या बात है दुआ, इतना गुस्सा क्यों आ रहा है???
दुआ को फौरन अपने कहें लफ़्ज़ों का एहसास हो गया था।
दुआ बात बदलते हुए----- मेरा मतलब है हमको, ऐसे किसी के बारे में बात नही करनी चाहिए, वैसे भी वो क्या प्रोब्लम क्रिएट करेगा, उसने मुझसे वादा किया है कि वो मेरा पीछा नही करेगा, इसलिए हमारे आने से पहले ही वो दिल्ली के लिए निकल गया था।
छाया----- हम्मम!!! वैसे एक बात तो कहनी पड़ेगी, वो अपनी बात का, है बहुत पक्का..... तुझे याद है, उसने मुझसे वादा किया था कि वो युनिवर्सिटी नही आएगा और तब से अब तक वो फिर कभी यहां नज़र नही आया, वैसे आज के टाइम में ऐसे लोग बहुत कम है, खैर अब तू खुश हो जा, अब वो सच में फिर कभी तेरे सामने नही आएगा।
छाया की बात सुनते हुए दुआ को लग रहा था, जैसे उसका सिर फट जाएगा दर्द से..... बहुत मुश्किल से वो छाया को बाय कह कर आगे बढ़ जाती है...... और कुछ कदम आगे बढ़ते ही, उसकी आंखों से दो आंसू बह जाते हैं।
रुद्र अपने केबिन में बैठा खिड़की के बाहर देख रहा था, जब अजय केबिन में आकर उसकी उदासी को पल भर में भांप लेता है।
अजय---- रुद्र क्या हुआ, सब ठीक है।
रुद्र फीका-सा मुस्कुराते हुए------ हम्मम!! बस उसकी याद आ रही है!
अजय कुर्सी पर बैठते हुए----- तो इसमें मुश्किल क्या है???......चल सिद्दीकी हाउस चलते हैं।
रूद्र-----नही!! मैं अब वहां नहीं जा सकता ........ तुझे पता है, होटल पार्क रॉयल में उसने मुझे थप्पड़ मारा था।
अजय----- तो तू उससे गुस्सा है???
रुद्र ------ नही! बिल्कुल भी नहीं...... मगर मैंने उसे वादा किया है, अब मैं उसका पीछा नही करूंगा।
अजय हैरानी से---- क्या??? तू मज़ाक कर रहा है।
रुद्र संजीदगी से----- तुझे पता है ना, मैं अपने लफ़्ज़ों से मुकरता नहीं।
अजय---- मगर रुद्र!!!
रुद्र------ तू जानता हैं, जब मैंने उसका हाथ पकड़ा था, तब ऐसा लग रहा था कि एक पल और वो मेरे सामने रहीं तो बिखर जाएगी, उसने थप्पड़ मारा मुझे था, मगर आंसू उसकी आंखों ने बहाएं थे..... यह प्यार भी कितना अजीब होता है ना, कभी मैं चाहता था कि उसे मुझसे प्यार हो जाए और आज मुझे डर सता रहा है कि कहीं मेरी मोहब्बत उसे बिखेर ना दें।
यह कहते हुए रूद्र की आंखें नम हो गई थी!
अजय, मैं उसे तोड़ना नहीं चाहता यार, ऐसा लग रहा है जैसे मुझ में कुछ टूट रहा है.....यह मैंने क्या कर दिया यार, मुझे समझ नही आ रहा कि अब आगे क्या होगा।
अजय उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए----- प्यार हैं ये, मेरे यार...... इतना आसान कैसे हो सकता है, मंज़िल को पाना, मगर प्लीज़, खुद को संभाल.......
तू तो शिव जी को बहुत मानता है ना, और तू हमेशा कहता है वो तेरे बेस्ट फ्रेंड है, तो देख शुरू से अब तक उन्होंने पूरा-पूरा तेरा साथ दिया है, अब शायद वो तुझे आज़मा रहे हैं...... यक़ीन रख उन पर, वो अगर तेरा इम्तेहान लेंगे तो तुझे रास्ता भी ज़रूर दिखाएंगे।
रूद्र------ हम्मम!!!
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ज़िन्दगी अज़ाब जैसी लगने लगती है, जब, आप जिस इंसान से प्यार करते हो, उसकी खुशी के लिए ही, उससे दूर होना पड़े....... ऐसा ही अभी रुद्र को भी लग रहा था।
पांच दिन गुज़र गए थे, सिंगापुर से आने के बाद रुद्र ने एक बार भी, दुआ से मिलने की कोशिश नही की थी, वो कितना बैचैन था, यह बस वही जानता था, वो अपना वादा नही तोड़ सकता था इसलिए बस भगवान से ही प्राथना कर रहा था कि किसी तरह वो ही कोई चमत्कार कर दें कि दुआ खुद उससे बात करने आ जाएं......
उसकी तड़प देखते हुए शायद भगवान ने भी उसकी दुआ कुबूल कर ली थी.....
आज डाक्टर सिद्दीकी ने खुद फोन करके उसे घर बुलाया था, यह कह कर की एक ज़रूरी काम है, वो बहुत खुश था क्योंकि उनके फोन आने से एक उम्मीद बंध गई थी, कि क्या पता ग़लती से ही सही, दुआ उसकी नज़रों के सामने आ जाएं।
वो एक घंटे का सफर जल्दी-जल्दी तय कर आधे घंटे में सिद्दीकी हाउस पहुंच गया था, वो घर पहुंचा तो नौकरानी ने बताया, डाक्टर साहब, बस अभी बाहर गए है, थोड़ी देर में आते ही होंगे........
रुद्र यह सुनकर लिविंग रूम में ही इंतेज़ार करने लगता है, उसका दिल करता है कि एक बार उठ कर दुआ के कमरे की तरफ चला जाए, उसे दूर से ही सही, एक नज़र देख लें, मगर फिर उसके चेहरे की उदासी याद आते ही, उसने अपने कदमों को रोक लिया।
अभी मुश्किल से पांच मिनट ही गुज़रे थे कि दुआ, लिविंग रूम में अपना फोन ढूंढते हुए आ जाती है..... रुद्र उसको देख कर ऐसे खुश होता है जैसे बिन मांगे मोती मिल गया हो, दुआ के चेहरे पर भी एक हल्की सी मुस्कुराहट आती है मगर अगले ही पल उसे अंदाज़ा होता कि यह कोई सपना नहीं, रुद्र हकीक़त में उसकी आंखों के सामने हैं.......
दुआ, रुद्र के पास आते हुए-----तुम यहां क्यों आए हो???? तुमने तो मुझसे वादा किया था, अब नही आओगे मेरे पिछे!!!
रुद्र मुस्कुरा कर दुआ के करीब आते हुए----- ऐसा कैसे हो सकता है, मैं तुमसे किया वादा तोड़ दूं, जीना ना छोड़ दूं!!!
मैंने अपना कोई वादा नहीं तोड़ा, मैं तुम्हारे पिछे यहां नहीं आया, तुम मेरे सामने आई हों, और रहा सवाल यहां आने का तो वो तुम अपने बाबा से पूछो, उन्होंने मुझे कहा था कि एक ज़रूरी काम है इसलिए शाम तक आ जाऊं।
दुआ थोड़ा सोचते हुए----- ज़रूरी काम????
रुद्र हां मैं सिर हिलाते हुए----- हम्ममम!!
दुआ घबराहट में उसका हाथ पकड़ कर दरवाज़े की तरफ ले जाने लगती है...
दुआ----- रुद्र तुम अभी जाओ प्लीज़, और अगर बाबा फोन करके पूछे, तो कह देना, अचानक फोन आने की वजह से तुम इंतेज़ार नही कर सके उनका!!!
रुद्र ने यह सुनकर फौरन ही उसका हाथ खींच उसे अपने करीब कर लिया।
रुद्र, दुआ को घोर से देखते हुए---- दुआ तुम ऐसा, क्यों कह रही हो??? कुछ हुआ है क्या??? तुम ठीक हो??? किसी ने कुछ बोला है तुम्हे???
दुआ एक झटके से अपना हाथ छुड़ा कर, झुंझलाते हुए----- तुम को कुछ होने का इंतेज़ार है क्या??..... जब कह रही हूं तुमसे, अभी चलें जाओ तो चलें जाओ ना...... बेकार के सवाल- जवाब में वक्त क्यूं ज़ाया कर रहे हो!!
रुद्र उसको ध्यान से देखने लगा, आज से पहले दुआ कभी इतनी परेशान नहीं थी, यहां तक कि इस परेशानी में उसने रुद्र का हाथ पकड़ लिया था, और उसको इसका एहसास तक नहीं हुआ.....ज़रूर कुछ तो था जिसका डर दुआ को सता रहा था।
रुद्र--- दुआ अगर तुम सच में चाहती हो, मैं यहां से चला जाऊं तो प्लीज़ मुझे बताओं, तुम इतनी परेशान क्यों हो, और मुझे क्यो यहां से भेजना चाह रही हो????...
दुआ दरवाज़े की तरफ देखते हुए----- मैं परेशान नही हूं, प्लीज़ अल्लाह के वास्ते चले जाओ यहां से, मैं ठीक हूं।
रुद्र उसके थोड़ा करीब आते हुए-----दुआ, आज पहली बार तुमने खुद से मेरा हाथ पकड़ लिया, तुमको इस बात का एहसास तक नही हुआ और तुम कह रही हो कि तुम परेशान नही हो..... मुझे सच-सच बताओ, क्या बात है, वादा करता हूं, चला जाऊंगा।
दुआ, रुद्र की आंखों में देखती है, जिसमें साफ दिख रहा था कि वो सच सुने बगैर नहीं जाएगा आखिर वो उसकी ज़िद्द के सामने हार जाती है।
दुआ हकलाते हुए----- वो----- वो रुद्र, दरअसल बाबा...... एक्चुअली!!
रुद्र, आहिस्ता से दुआ का हाथ पकड़ते हुए---- दुआ, यक़ीन करो मुझ पर, तुम जैसा कहोगी वैसा ही होगा, घबराओ नही, बताओं मुझे.... तुम चाहती हो ना मैं जल्दी यहां से चला जाऊं...... तो जल्दी से बताओ।
दुआ लम्बी सांस लेते हुए---- एक्चुअली, बाबा जब से सिंगापुर से आए हैं, वो बहुत अजीब बिहेव कर रहे हैं, मुझसे तो ठीक से बात भी नहीं कर रहे, मुझे देख कर भी इग्नोर कर देते हैं, और कुछ दिन पहले आकिब ने जब तुम्हारा नाम लिया था तो उन्होंने उसको बहुत डांटा था और आज अचानक तुमको यूं खुद बुला लेना, मुझे ठीक नही लग रहा....बस इसलिए।
रुद्र मुस्कुराते हुए----- हम्ममम!!! तो यह बात है।
दुआ उसको मुस्कुराता देख, गुस्से से----- अब इस में मुस्कुराने वाली क्या बात है???
रुद्र----- अरे!!! बात तो है, आखिर मेरा प्यार परवान चढ़ रहा है, आज पहली बार तुम्हारी आंखों में मेरे लिए सिर्फ गुस्सा ही नहीं बहुत सारी फ़िक्र है, अनकहे जज़्बात है।
इससे आगे रुद्र कुछ और कहता, डाक्टर सिद्दीकी ताली बजाते हुए, लिविंग रूम में आ जाते हैं, जिसे देख दुआ फौरन ही रुद्र से दूर खड़ी हो जाती है।
डाक्टर सिद्दीकी दुआ के पास आते हुए------ बहुत खूब दुआ, यही संस्कार लिए है तूने हमसे!!! ज़रा शर्म नहीं आई, यह सब करते हुए।
दुआ की आंखे फौरन भर आईं डाक्टर सिद्दीकी के यह लफ़्ज़ सुनते ही, उसे ऐसा लग रहा था कि अभी ज़मीन फटे और वो उसमें समा जाए-----
दुआ नम आंखों से, हिम्मत करते हुए---- बाबा, वो मैं....... उसने इतना ही कहा था कि डॉक्टर सिद्दीकी ने दुआ को मारने के लिए हाथ उठा दिया, मगर इससे पहले वो थप्पड़ दुआ के चेहरे तक पहुंचता, रुद्र ने बीच में आकर उनका हाथ पकड़ लिया, जिसे देख दुआ और डाक्टर सिद्दीकी दोनों ही हैरान रह गए।
रुद्र अपना गुस्सा दबाते हुए----- डाक्टर सिद्दीकी, ज़रा आराम से, आपने मुझे, यहां बात करने के लिए बुलाया था ना तो लीजिए मैं आपके सामने हूं।
डाक्टर सिद्दीकी दोनों को घूरते हुए अपना हाथ नीचे कर लेते हैं।
रुद्र, मुड़ कर दुआ की तरफ देखते हुए----- दुआ, तुम अपने कमरे में जाओ, अंकल को मुझसे बात करनी है।
दुआ एक नज़र रुद्र की तरफ देखती है तो रुद्र मुस्कुराते हुए उसको जाने का इशारा करता है,
वो चुपचाप वहां से चली जाती है।
रुद्र---- हां तो सिद्दीकी साहब----- वो इतना ही कहता है कि डॉक्टर सिद्दीकी उसके एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ देते हैं।
डॉक्टर सिद्दीकी------ तू इतना गिरा हुआ इंसान होगा, मैंने सोचा भी नहीं था, मैं अपनी आस्तीन में सांप पाल रहा था और मुझे पता ही नहीं चला......
मैंने तुझे इस घर में बेटों जैसी इज़्ज़त दी, इतना यक़ीन किया तुझ पर और तू मेरी ही आंखों में धूल झोंकता रहा, मेरी ही बेटी को बहकाता रहा.......मेरे घर में घुस कर मेरी ही इज़्ज़त से खेलता रहा और मुझे पता भी नही चला।
रूद्र------ ऐसा नही है अंकल, मैं दुआ से.......
इससे पहले वो अपनी बात पूरी करता, डाक्टर सिद्दीकी ने एक और थप्पड़ जड़ दिया------- अपनी ज़ुबान से उसका नाम भी नही लेना, सबकुछ समझ तो मैं सिंगापुर में ही गया था मगर मेरी ही बेटी ने मुझे भटका दिया था उस दिन, लेकिन अब सब समझ आ रहा है, आखिर इतने वक्त तक तू इस घर में आता-जाता रहा और मुझे कुछ पता क्यों नही चला........
पता चलता भी कैसे, जब मेरी ही बेटी अपने बाप की इज़्ज़त को रौंद रही थी, वो कहते हैं ना अपना सिक्का खोटा तो परखने वाले का क्या दोश......
रूद्र---------अंकल प्लीज़, इस सब में उसका कोई कसूर नही है, आपको जो सज़ा देनी है मुझे दें मगर उसे कुछ नही कहना।
डॉक्टर सिद्दीकी गुस्से से--------- रूद्र रघुवंशी हम शरीफ़ लोग हैं मगर सिर्फ तब तक, जब तक बात हमारी इज़्ज़त पर ना आए, और तू ने मेरी बेटी को बहकाने की कोशिश की है, तेरी तो मैं वो हालत करूंगा कि फिर कभी किसी की इज़्ज़त पर हाथ डालने की कोशिश नही करेंगा, और उस बेशर्म लड़की को मैं ज़िन्दा गाढ दूं या गला दबा कर मार दूं, यह मैं तेय करूंगा, वो मेरी औलाद है।
यह सुनकर रुद्र का गुस्सा बर्दाश्त से बाहर हो जाता है।
रूद्र थोड़ी ऊंची आवाज़ में गुस्से से------ओहह सिद्दीकी, ज़रा संभल कर हां, दो मिनट लगते हैं इज़्ज़त उतारने में, मैंने अभी यह जो थप्पड़ बर्दाश्त किया है ना, वो सिर्फ दुआ के लिए, वरना रूद्र रघुवंशी पर हाथ उठाने वाले का हाथ सलामत नही रहता, और हां रही बात उसका नाम भुलने की तो मैं अपना नाम भुल सकता हूं मगर उसका नही........
वो मेरी ज़िन्दगी है, छूना तो बहुत दूर की बात है, अगर उसको किसी ने घूर कर भी देखा तो यक़ीन मानो डाक्टर साहब, उस सिर को धड़ से अलग कर देगा यह रुद्र, इसलिए कुछ भी करने से पहले, यह नही भुलना की आपके परिवार में, एक बुढी मां, एक बेटा और एक बीवी भी है।
अगर दुआ को खरोंच भी आई ना तो उसकी कीमत कितने लोगों को चुकानी पड़ेगी, यह सोचना भी आपके बस की बात नही....... अभी जो दुआ के साथ, आपने करने की कोशिश की थी उसको दोहराने की ग़लती नहीं करना, क्योंकि मैं, बस एक बार माफ़ करता हूं......
मानता हूं आप बाबा हो उसके, बहुत गुस्सा आ रहा है, तो उतारो ना, मैं हूं ना आपके सामने पिटने के लिए, वादा करता हूं, मेरी सारी हड्डियां भी तोड़ दोगे ना, उफ़ नही करूंगा मगर बस मेरी मोहब्बत के जुनून को ना अज़माना.......
आपकी बेटी ज़रूर है वो, मगर कोई जानवर नही, जिसको छोटी सी ग़लती पर इज़्ज़त और समाज के नाम पर कुर्बान कर दो....... प्यार की बातें हैं इसलिए प्यार से समझा रहा हूं, उम्मीद करता हूं, आप समझ गए होंगे, और हां जिस इज़्ज़त की आप दुहाई दे रहे हैं, उसे सरेआम खुद ही ना रौंद देना, क्योंकि अब तक आपकी बेटी ने तो ऐसा कुछ किया नहीं है, मगर आपकी वाणी सुनकर लोग ज़रूर, आपकी इज़्ज़त की धज्जियां उड़ा देंगे........
एक आखरी बात अंकल जी, अभी इस कमरे में आपने जो भी किया और मैंने जो कहा, उसकी खबर ग़लती से भी दुआ को नही देना क्योंकि मैं जानता हूं, वो जितना मुझे चाहने लगी है, उससे कहीं ज़्यादा प्यार वो अपने बाबा से करती है, उसका दिल बहुत छोटा है, ना वो मेरी तकलीफ बर्दाश्त कर सकती हैं ना आपकी बेइज़्ज़ती, अब चलता हूं-------- यह कह कर रूद्र बिल्कुल नोर्मल अंदाज़ में कमरे से बाहर निकल जाता है तभी दरवाज़े के पास खड़ी दुआ और आकिब उसे आता देख फौरन छुप जाते हैं।
दुआ अपने बाबा को छुप कर देखती है जो किसी बुत की तरह अभी भी गुमसुम खड़े होते हैं, उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं और वो अपने भाई के गले लग जाती है।
आकिब उसके आंसु साफ करते हुए------ आपी आप रौ क्यों रही हो, मैं हूं ना, मैं सब ठीक कर दूंगा, हां अभी बाबा थोड़ा गुस्सा है, मगर हम उनको मना लेंगे, वैसे भी आप ही तो कहती हो, वो सबसे ज़्यादा प्यार आपसे करते हैं, तो वो आपसे ज़्यादा देर तक गुस्सा कैसे रह सकते हैं, आप देखो मैं कैसे सब ठीक करता हूं......
यह कह कर आकिब उसके गले लग जाता है।
डॉक्टर सिद्दीकी, वो अब तक रूद्र के कहें लफ़्ज़ों में गुम थे, वो खुलें लफ़्ज़ों में उनको चेतावनी दें गया था, उनको समझ नही आ रहा था, वो करें तो क्या करें, यह तो सच था जो बात अब तक चार दिवारी में थी, वो अगर बाहर चली गई तो लोग उनको कहीं का नहीं छोड़ेंगे.......
रूद्र उनको थोड़ी सी ही बातों में सबकुछ समझा गया था, उनको दुआ पर गुस्सा तो बहुत आ रहा था, क्योंकि आज जो भी हो रहा था सिर्फ उसकी वजह से हो रहा था, अगर उसको अपने बाबा की इज़्ज़त का एहसास होता तो वो लड़का कभी इतना आगे नहीं बढ़ता, उनका दिल तो कर रहा था कि वो सच में दुआ को ऐसी सज़ा दे कि वो फिर कभी ऐसी ग़लती ना करें, मगर तभी उनको रुद्र का ख्याल आता है, जिसकी आंखों में साफ़ दिखाई दे रहा था कि अगर उन्होंने दुआ को कुछ भी कहां तो वो अपनी कहीं बात सच कर देगा।
अभी रुद्र आधे रास्ते में ही था कि आकिब उसे फोन करके, घबराई हुई आवाज़ में, लाल किले के पिछे वाले रोड पर, मिलने के लिए बुलाता है......
रूद्र उसका फोन आने से काफी परेशान हो जाता है मगर इससे पहले वो आकिब से कुछ पूछता, फोन कट जाता है, जिससे रुद्र और ज़्यादा परेशान हो जाता है, वो फौरन ही यू-टर्न लेता है और जितनी जल्दी हो सकता था उसकी बताई जगह पर पहुंच जाता है।
रुद्र कार से उतर कर, इधर-उधर आकिब को ढूंढता है मगर उस खाली सड़क पर इक्का-दुक्का गाड़ियां ही आती जाती दिख रही थी, अब उसका दिमाग खराब होने लगा था, यह सोचकर कि कहीं डाक्टर सिद्दीकी ने तो दुआ के साथ कुछ नही कर दिया, वो यह ख्याल आते ही, जल्दी से अपनी कार में बैठने वाला था कि सामने से आती पुलिस की गाड़ी से दो हवलदारों ने उसे रुकने को कहा।
रुद्र कुछ ना समझते हुए उन्हें देखने लगा कि उसने तो कोई सिग्नल भी नहीं तोड़ा, ना ही कोई एक्सिडेंट किया फिर यह क्यूं रोक रहे हैं....... वो यही सोच रहा था कि इतनी देर में दोनों हवलदार उसके पास आ गए और उनके साथ आकिब भी।
रुद्र, आकिब को देखते हुए----- आकिब, तू इन लोगों के साथ क्या कर रहा है, कुछ हुआ है क्या, इन लोगों ने तुझे कुछ कहां है????
हवलदार हंसते हुए----- ओह हिरो, हमने इसे नहीं तुझे गिरफ्तार करना है।
रुद्र हैरानी से----- मुझे???
हवलदार----- हां तुझे, तेरे खिलाफ कम्पलेन है कि तू इसके घर जाकर, इसके बुढ़े बाप को धमका कर आया है, सबको मारने की कोशिश की है और इसकी बहन के साथ ज़बरदस्ती करने की कोशिश की है।
रुद्र हैरानी से आकिब की तरफ देखते हुए----- यह सब झूठ है, मैंने ऐसा कुछ नहीं किया और आप इसके बयान पर कैसे कम्पलेन सही मान सकते हैं, यह बस पन्द्रह साल का है अभी।
हवलदार गुस्से में------हमको ज़्यादा कानून समझाने की ज़रूरत नही, सीधी तरह थाने चल, वैसे भी यह कम्पलेन इसने नहीं, इसकी बहन ने की है।
रुद्र गुस्से से आकिब को देखते हुए----- आकिब सच-सच बता यह सब क्या है, मैं दुआ को जानता हूं, वो यह सब नहीं कर सकती, यह तेरे दिमाग़ का फितूर है ना???
आकिब उसको देख गुस्से से----- तुम्हारी वजह से मेरी बहन रोई है, तुम ने हम सबको धोखा दिया है।
रुद्र अपना गुस्सा कंट्रोल करते हुए----- आकिब, तू अभी छोटा है, हम बैठकर बात करते हैं ना।
रुद्र यही कह रहा था कि एक हवलदार उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए----- सीधी तरह थाने चलता है या खातिर करवानी है।
रुद्र यह सुनते ही, पिछे मुड़कर, उस हवलदार के ज़ोर का थप्पड़ जड़ देता है।
रुद्र-----दिखाई नही दे रहा, बच्चे से बात कर रहा हूं।
दोनों हवलदार गुस्से में---- तू ने, बीच रोड, पुलिसवाले पर हाथ उठाया, तेरी इतनी हिम्मत, अब देख तुझ पर कितने केस लगते है साले!!
रुद्र गुस्से में, हवलदार की काॅलर पकड़ते हुए------सुन चमचे, तू जो कर सकता है ना कर लें, मुझे साथ लेकर चलना चाहता है ना, चल.....
रुद्र यह कहते हुए, खुद ही जाकर पुलिस की गाड़ी में बैठ जाता है।
थोड़ी ही देर में वो थाने पहुंच जाते हैं, दोनों हवलदार अपने बड़े अफसर को अच्छी तरह से मिर्च-मसाला लगा कर पूरी कथा सुना देते हैं, उनकी बातें सुनकर रुद्र को गुस्सा भी आ रहा था और हंसी भी, वो उसके ही मुंह पर कितने झूठे इल्ज़ाम लगा रहे थे।
तभी वो ऑफिसर अपनी कुर्सी से खड़ा होता है, और उठ कर सीधा रुद्र के पेट में, अपना घुटना मार देता है, जिसकी वजह से रुद्र के मुंह से खून बहने लगता है।
रुद्र के दोनों हाथ पिछे बंधे होते हैं।
रुद्र---- मुझे एक फोन करना है।
ऑफिसर मज़ाक उड़ाते हुए----- फोन करना है, अपने बाप को बुलाना है..... ठीक है, फोन भी करवा देंगे, चार घंटे तो गुज़र जाने दे.....अब ससुराल आया है तो थोड़ी खातिर दारी तो बनती है ना, वैसे भी सुना है, बहुत गर्मी है तुझ में.......
ओ शर्मा, डाल इसको अंदर, दो दिन यहां रहेगा, तो अपने आप दिमाग ठिकाने आ जाएगा और हां, इसकी खातिरदारी ज़रा ठीक से करना, साला पुलिसवाले पर हाथ उठाता है, इसका वो हाल करना कि दो हफ्तों तक अपनी शक्ल तक नही पहचान सके ------ कोर्ट बंद होने में चार घंटे है, और अगले दो दिन कोर्ट बंद रहेंगा तो बस अच्छी मेहमानदारी होनी चाहिए------यह कह कर वो वहां से चला जाता है।
आगे अगले भाग में:-