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भाग 5

25 नवम्बर 2021

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अमित जी------सर मैंने पूरी कोशिश की थी मगर इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल बहुत सख्त है, मैंने रिश्वत देने की भी कोशिश की मगर वो किसी भी कीमत पर स्टूडेंट्स की डीटेल देने के लिए तैयार नही हैं........ उसका कहना है........ दिल्ली यूनिवर्सिटी में हज़ारों लड़किया पड़ती है, सिर्फ एक लड़की को ढूंढने के लिए वो सबकी डीटेल, हमें नही दे सकती....

हां मगर मेरी मिन्नतें करने पर, उसने हमको एक मौका दिया है---- अमित जी ने अहान का बुझा हुआ चेहरा देख, थोड़ा उत्सुकता जगाते हुए कहा।

कल युनिवर्सिटी में इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन है...... प्रिंसिपल के हिसाब से लगभग कल सभी स्टूडेंट्स आएंगे, तो हम अपने तौर पर उसे ढूंढ सकते हैं....आप फ़िक्र नहीं करें, कल हम उसे ज़रूर ढूंढ लेंगे।

अहान खामोशी से पूरी बात सुनकर, अमित जी से कुछ कहें बगैर ही ड्राइवर को चलने का इशारा करता है....... 

उसका चेहरा देख कर कोई भी उसके अन्दर की मायूसी को महसूस कर सकता था...... क्योंकि वो दिल्ली बहुत उम्मीद से आया था, मगर प्रिंसिपल के साफ इंकार ने उसके अन्दर एक मायूसी पैदा कर दी थी।

छाया-----दुआ यार, अगर कल तू नही आएगी तो किसी को भी अच्छा नही लगेगा, और फिर हम दोनों ने कल की परफॉर्मेंस के लिए कितनी तैयारी की थी, मैं परफॉर्मेंस अकेले नही कर सकती।

छाया जब तक नानू की तबीयत पूरी तरह ठीक नही हो जाती, मैं युनिवर्सिटी नही आऊंगी, प्लीज़ ‌मुझे फोर्स नही कर-------दुआ ने मायूसी से कहा।

छाया जानती थी दुआ ने बहुत मेहनत की थी इस परफोर्मेंस के लिए, वो बहुत एक्साइटेड भी थी, लेकिन अचानक नानू की तबीयत बिगड़ने से सब रखा रह गया क्योंकि उसके लिए सबसे पहले उसकी फेमिली थी फिर कुछ ओर, वो बहुत मज़बूत थी मगर उसका दिल छोटे बच्चे की तरह था, दिल की मर्ज़ी का ना हो तो फौरन बच्चे की तरह उदासी चेहरे पर फैल जाती, जिसे वो हंस कर छुपाने की कोशिश तो करती, मगर हमेशा नाकामयाब हो जाती।

काफी समझाने के बाद भी जब दुआ नहीं समझी तो आखिर छाया ने हार मानते हुए कहा--------ठीक है दुआ, जैसा तुझे ठीक लगे और स्टडी की तू फ़िक्र नही कर, जब तक तू छुट्टियों पर है, मैं रोज़ाना तुझे नोट्स सेंड कर दिया करूंगी.......बस, अगर तू कल आ जाती तो मुझे बहुत अच्छा लगता, खैर अभी तेरा नानू के साथ होना ज़्यादा ज़रूरी है, चल कोई नही, मैं फोन रखती हूं, बाय.....

अगले दिन अहान, अमित और उनके बाकी लोग सभी स्टूडेंट्स को आते-जाते घोर से देखते हैं, कि कहीं वो नज़र आ जाए मगर सुबह से शाम हो जाती है, सभी स्टूडेंट्स घर वापस जाने लगते हैं लेकिन वो उन लोगों को नही मिलती, देखते ही देखते चपरासी भी युनिवर्सिटी का दरवाज़ा बंद करने लगता है मगर वो लोग तब भी वही खड़े होते हैं, अहान की नज़रें अभी भी इधर-उधर उसको ढूंढ रही होती है।

अमित जी तुमने तो कहा था कि आज सभी स्टूडेंट्स आए हैं, हम उसको ज़रूर ढूंढ लेंगे मगर देखो क्या हाथ लगा हमारे, वहीं नाकामयाबी और वहीं इंतेज़ार, ऐसा लग रहा है जैसे यह वक्त मुझ पर हंस रहा है------अहान ने अपना हाथ गाड़ी के बोनट पर मारते हुए कहा।

सर, परेशान नही हो, मैंने प्रिंसिपल से बात कर ली है, अगर आपको लगता है, वो हमको यही मिलेगी तो हम कुछ और दिन उसे यहां ढूंढ सकते हैं, आज हो सकता है वो नही आई हो, किसी वजह से मगर जल्दी एग्ज़ाम्स स्टार्ट होने वाले हैं, ऐसे वक्त पर कोई भी स्टूडेंट् क्लासिस मिस नहीं करेगा.....आप नाउम्मीद नही हो, हम उसको ज़रूर ढूंढ लेंगे सर-----अमित जी ने अहान को विश्वास दिलाते हुए कहा।

**************

रुद्र दुआ के करीब आते हुए, उसका हाथ पकड़ लेता है, दुआ इससे पहले कुछ कहती वो उसके सामने घुटनों के बल बैठ जाता है।

रूद्र-----दुआ मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं प्लीज़, बस एक बार हां कह दो, वादा करता हूं, पूरी दुनिया से लड़ जाउंगा मगर तुम्हारा साथ कभी नही छोड़ूंगा, तुम सोच भी नही सकती, कितना प्यार करता हूं मैं तुमसे, तुम्हारे बगैर मेरी सांसें बेमानी है दुआ, प्लीज़ हां कह दो।

रूद्र तुम जो चाहते हो वो नही हो सकता-----यह कह कर दुआ अपना हाथ छुड़ा कर जाने के लिए मुड़ती है मगर तभी गाने की धुन सुनकर वो आगे नहीं बढ़ पाती........रूद्र गिटार बजाते हुए गाना शुरू करता हैं।

तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो....

तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....

है गुज़ारिश....

है हाल तो दिल का तंग-तंग, तू रंग जा मेरे रंग-रंग, बस चलना मेरे संग- संग,

है गुज़ारिश......

कह दें, तू "हां" तो ज़िन्दगी, चैनो से छूट के हंसेगी, मोती होंगे, मोती राहों में, येह-येह-येह

तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....

है गुज़ारिश.....

शी-शे के ख्वाब लेके, रातों में चल रहा हूं, टकराना जाऊं कहीं,

आशा की लों है रौशन, फिर भी तूफान का डर है, लौ बूझ ना जाए कहीं,

बस एक हां की गुज़ारिश, फिर होगी खुशियों की बारिश,


तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....

है गुज़ारिश....

दुआ जाने के लिए फिर क़दम बढ़ाती है मगर रूद्र गाना गाते हुए उसका हाथ खींच कर, उसे अपने करीब कर लेता है।

चंदा है, आसमां है और बादल भी घने हैं यह चंदा छूप जाए ना,
तनहाई डस रही है और धड़कन बढ़ रही है, इक पल भी चैन आए ना,

कैसी अजब दास्तां है, बैचेनिया बस यहां हैं

तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....

है गुज़ारिश.....

है हाल तो दिल का तंग-तंग, तू रंग जा मेरे रंग-रंग, बस चलना मेरे संग- संग,

है गुज़ारिश......

कह दें, तू "हां" तो ज़िन्दगी, चैनो से छूट के हंसेगी, मोती होंगे, मोती राहों में, येह-येह-येह.....

रूद्र अपने ख्वाबों में गुम था कि तभी अजय रूद्र के केबिन में आता है और देखता है.......रुद्र अपनी कुर्सी से सिर टिकाए सो रहा था और सोते हुए मुस्कुरा भी रहा था, जैसे कोई खुबसूरत सपना देख रहा हो......

अजय टेबल पर ज़ोर से फाइल रख कर, उसे आवाज़ देता है--------रूद्र-रूद्र!!!

रूद्र फौरन होश में आ जाता है और इधर-उधर देखते हुए दुआ को आवाज़ देता है।

अजय मुस्कुराते हुए------होश में आ मेरे दोस्त, यह रघुवंशी इंडस्ट्री है तेरा ऑफिस, मिस्टर सिद्दीकी का अस्पताल नही, जहां दुआ जब चाहे तब चली आएं......वैसे तू ने, दिन में सपने देखना, कब से शुरू कर दिया???

रूद्र----न-नही तो, मैं तो कल की मीटिंग के बारे में सोच रहा था, तू बता प्रेज़ेंटेशन का क्या हुआ।

अजय----रुद्र अब तू मुझसे भी छुपाएगा।

नही, ऐसी कोई बात नही है, बस अचानक आंख लग गई थी और कुछ नही।

अजय----अच्छा!! यह बता, दुआ को प्रपोज़ कब कर रहा है???

रूद्र----नही यार, अभी नही.....

अजय-----फिर कब रूद्र???

रूद्र----- अभी उसकी नानी की तबीयत ठीक नहीं है, ऐसे में मैं उसे परेशान नही कर सकता और मैं उसके चेहरे की उदासी भी बर्दाश्त नही कर सकता, इसलिए कुछ दिन, मैं सिद्दीकी हाउस नही जाउंगा और फिर अभी दादू के दिल में भी कोई खास जगह नही बन पाई है दुआ के लिए.....

अजय----तो फिर आगे क्या करना है????

रूद्र-----इधर आ बताता हूं, और फिर रूद्र पूरा प्लान अजय को बता देता है......अजय प्लान सुनते ही फौरन रूद्र से दूर हट जाता है।

अजय----तू पागल हो गया है????......देख रूद्र मैं ऐसा कुछ नही करने वाला, तू चाहता है, मैं दुआ का पर्स और फोन चुराऊ......मैं ऐसा नही कर सकता!

रूद्र----तू तो मेरा सच्चा दोस्त हैं ना, यार प्लीज़ मान जा, अगर तू मेरी मदद नही करेगा तो कौन करेगा????

अजय------ देख, यह काम कौन करेगा मुझे यह तो नही पता, मगर इतना ज़रूर पता है कि अगर मैंने तेरी बात मान ली और गलती से पकड़ा गया ना, तो तेरी वो झांसी की रानी ज़िन्दा नही छोड़ेंगी मुझे और अगर मैं उसके हाथों से किसी तरह बच भी गया तो तेरे दादा जी सवाल पूछ-पूछ कर मेरी जान ले लेंगे।

रूद्र------इसलिए ही तो अजय, मेरे दोस्त, मैं तुझसे यह सब करने को कह रहा हूं, क्योंकि मुझे पता है तू कुछ भी करेगा मगर पकड़ा नही जाएगा...... अब किराए के गुंडों का क्या भरोसा........वो तो बाला के 2-4 हाथ खाते ही सब उगल सकते हैं मगर तू .......तू खुद को उनके हाथ लगने ही नही देगा.... है ना?????

अजय------यार, ऐसे आइडियाज़ तुझे आते कहा से है…... सोच ज़रा, अगर तेरे दादू ने दुआ की हेल्प नही की तो उस बेचारी का क्या होगा.....हो सकता है इस बार तेरी चाल उल्टी पड़ जाए।

रूद्र------तू उसकी फ़िक्र नहीं कर मेरे प्यारे दोस्त, वो मेरे दादू है, मैं उनको बहुत अच्छे से जानता हूं, तू बस यह सोच कि तूने अपनी होने वाली भाभी और बाला के हाथों से कैसे बचना है। 

अजय बुरी सी शक्ल बनाते हुए-----तू मानेगा नहीं ना???

रूद्र---- बिल्कुल भी नहीं!!

अजय---- ठीक है, तो चलते हैं मेरी कुर्बानी देने।

*************

पांच दिन बाद:-

अमित जी और उसके साथ 4-5 लोग, आते-जाते सभी स्टूडेंट्स को दुआ का स्कैच दिखा-दिखा कर उसको ढूंढने की कोशिश कर रहे थे, मगर एक भी स्टूडेंट् उस चेहरे को पहचानने के लिए तैयार नही था, अब अमित जी और बाकि सभी लोग थक चुके थे, उस अनजान चेहरे को ढूंढ-ढूंढ कर मगर अहान का दिल अब भी यही कह रहा था कि वो यही कहीं है, उसे लग रहा था कि वो उसके पास ही है, बस दिखाईं देने की दैर है.......उसका दिल कह तो सच रहा था, लेकिन जब किस्मत में ही मिलना ना लिखा हो, तो लोग नज़र के सामने होते भी मिल नही पाते और शायद अहान की किस्मत में भी दुआ से मिलना नही लिखा था, तभी तो शहर-शहर भटकने के बाद आज वो अपनी मंज़िल के इतने क़रीब होते हुए भी इतना दूर था।

अमित जी----- सर लगभग हमने पूरी युनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को यह स्कैच अच्छे से दिखा-दिखा कर पूछताछ की है, मगर इस चेहरे को कोई नही जानता, अगर वो यहां होती तो कोई तो पहचानता, हमको यहां एक हफ्ता हो गया है, मेरा ख्याल है, हमको बाकि के दो शहरों में उसे ढूंढना चाहिए।

अहान मायूसी से युनिवर्सिटी की तरफ देखते हुए-----ठीक है, पहले हैदराबाद चलते हैं फिर जयपुर चलेंगे.....सब लोगों से कहो, चलने की तैयारी करें।

अगले दिन :-

दुआ अपनी क्लास में पहुंचती है तो सभी उसको अजीब नज़रों से देखते हैं, पूरा वक्त सभी स्टूडेंट्स उसको देख-देख कर काना-फूसी करते हैं, जिससे दुआ बहुत परेशान हो जाती है और क्लास खत्म होते ही, छाया का हाथ पकड़, तेज़ क़दमों से बाहर निकल जाती है।

दुआ--------छाया सब लोग ऐसे बिहेव क्यों कर रहे हैं, मैं इंडिपेंडेंस डे पर परफॉर्म नही कर सकी क्योंकि मेरी मजबूरी थी, मुझे पता है, लास्ट टाइम पर कोई इंकार करें तो बहुत बूरा लगता है मगर यह तो कोई तरीका नही होता।

छाया-------दुआ तू ग़लत समझ रही है, मैं तुझे सब बताती हूं, दरअसल अच्छा ही हुआ कि तू पिछले दिनों युनिवर्सिटी नही आई, मैं तो यही कह रही थी भगवान से, कि जब तक वो लोग हार मान कर नही चलें जाते, तू युनिवर्सिटी ना आए।

दुआ----कौन-से लोग छाया, तू किसकी बात कर रही है???

छाया----अरे!! 5-6 दिनों से, कुछ लोग सभी स्टूडेंट्स को तेरा स्कैच दिखा कर पुछताछ कर रहे थे, जब उन्होंने मुझसे पूछा तो मैंने मना कर दिया और अपनी क्लास में, केंटिन के लोगों से और जितने भी लोग तुझे जानते हैं, उन सभी से रिक्वेस्ट की थी कि कोई भी तेरे बारे में उन लोगों को कुछ ना बताए...... और देख भगवान का करिश्मा कल ही वो लोग थक कर वापस गए हैं और आज तू युनिवर्सिटी आ गई।

दुआ-----मगर वो लोग थे कौन और मुझे क्यो ढूंढ रहे थे????

छाया----यह तो किसी को नही पता, बस इतना पता है कि उनका बाॅस तुझसे मिलना चाहता था, रोज़ाना युनिवर्सिटी के सामने एक बड़ी सी गाड़ी खड़ी होती थी, जिसमें उनका बाॅस बैठा रहता था और उसके आदमी तुझे ढूंढते रहते थे.....इसी वजह से आज सब लोग तुझे देख कर ऐसे रिएक्ट कर रहे हैं, तू माइंड नही कर।

दुआ----- तो तूने मुझे बताया क्यों नही, इतना सब हो गया एक बार तो बताना चाहिए था ना।

छाया----- हां ताकि तू झांसी की रानी बन कर यहा आ जाती और ज़बरदस्ती एक नई मुसीबत अपने गले डाल लेती......देख दुआ जो होता है ना, अच्छे के लिए होता है, और वैसे भी, अब तक रूद्र नाम की मुसीबत नही टली, तो प्लीज़ तू अभी एक और मुसीबत को गले लगाने की नही सोच.... वो लोग चले गए बात खत्म।

दुआ----- अब ऐसे भी बात नहीं कर उसके बारे में, रूद्र मुसीबत नही है बल्कि वो तो मदद करने वालों में से हैं।

छाया हैरानी से आंखें चौड़ाते हुए------- क्या?? 
मेरे कान खराब हो गए हैं क्या???? यह मुझे क्या सुनाई दे रहा है, तू रूद्र की तारीफ कर रही है??? कुछ दिनों पहले तक, तू ही उसे आवारा, निकम्मा, बदतमीज़ और पता नहीं क्या-क्या कह रही थी, और आज उसकी ही तारीफ कर रही है।

दुआ----- हां, क्योंकि तब तक, मैं उसे ग़ैर ज़िम्मेदार इंसान समझती थी जिसको किसी से कोई मतलब नहीं, जो सिर्फ लड़कियों के आगे-पिछे फिरता है मगर वो ऐसा नही है, जब नानू की तबीयत खराब हुई तब मेरे तो हाथ-पैर ही फूल गए थे, समझ ही नही आ रहा था कुछ मगर उसने एक मिनट की भी दैर नही की, अगर उस दिन वो नानू को सही वक्त पर अस्पताल नही लेकर जाता तो शायद हम लोग नानू को खो चुके होते।

छाया मुस्कुराते हुए----ओहह! कहीं ऐसा तो नहीं, मेरी नखरीली दोस्त को जनाब पसंद आ गए हैं।

दुआ------ ऐसा कुछ नही है छाया और ऐसा कभी हो भी नही सकता, मैं मर जाऊंगी मगर अपने बाबा का सिर नही झुकने दुंगी.....मैं तो बस यह कह रही हूं कि वो वैसा नही है जैसा हम सोचते थे, उसने हम सब पर बहुत बड़ा एहसान किया है और अब मेरा पूरा परिवार उसकी काफी इज़्ज़त भी करता है।

छाया----- अच्छा, ठीक है-ठीक है, मैं बस मज़ाक कर रही थी, सीरियस नही हो.....चल मूड ठीक कर, बहुत दिन हो गए हैं आज नत्थू के समोसे खाते हुए चलते हैं।

दुआ मुस्कुराते हुए-----ओके!!

***********

कहते हैं वक्त बहुत बलवान होता है, वो किसी के लिए नही रूकता और वक्त के साथ जो चलते हैं, हार नही मानते वो एक ना एक दिन ज़रूर जीत जाते हैं.........शुरू में मंज़िल पाना नामुमकिन ही क्यों न हो, अगर लगातार कोशिश की जाए तो एक दिन नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है......ऐसा ही कुछ रूद्र के साथ भी हो रहा था, जिस तरह से रूद्र लगातार कोशिश कर रहा था, उससे दुआ के दिल में कहीं ना कहीं उसके लिए जगह बनती जा रही थी, साथ ही वो किसी ना किसी तरह हर हफ्ते दादू और दुआ की मुलाकातें भी करवा रहा था जिससे धीरे-धीरे दादू भी दुआ को पसंद करने लगे थे, अब तक रूद्र ने जैसा सोचा था सबकुछ वैसा ही हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे भगवान शिव जी भी उसके साथ है......

दुआ को अब उसका आना अच्छा लगने लगा था मगर वो खुद को रोकने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी, दिखावे का ही सही, मगर हर बार वो उस पर गुस्सा करती और चलें जाने के लिए कहती........और वो हर बार एक ही बात कहता "मोहब्बत की है, मज़ाक नही" तुम मानो या ना मानो एक दिन तुम्हें मुझसे मोहब्बत होकर रहेगी।

इसी तरह धीरे-धीरे 3 महिने कब गुज़र गए थे, पता ही नही चला, इस बीच दुआ ने हर मुमकिन कोशिश की थी कि वो रूद्र के बारे में ना सोचें, उससे दूर रहें, क्योंकि वो अपनी हदें जानती थी, उसको पता था इस राह पर उन दोनों के लिए सिर्फ कांटे हैं और उनके घरवालों के लिए सिर्फ लोगों के ताने और दुनिया भर की ज़िल्लत, मगर जब किस्मत में ही बर्बाद होना लिखा हो तो समझदार से समझदार इंसान भी ठोकर खा कर गिर ही जाता है......

दुआ उसको अपने घर आने से नही रोक सकी थी क्योंकि उसके साथ-साथ वो उसके सभी घरवालों के दिल में अपनी जगह बना चुका था, यहां तक, उसके घर के नौकर भी उसके आने पर ऐसे खुश हो जाते जैसे उनको छुट्टी मिल गई हो..... अक्सर वो आकिब को पढ़ाने के बाद, कभी सभी को इकट्ठा कर, क्रिकेट खेलता तो कभी फुटबॉल तो कभी-कभी कैरम बोर्ड और लूडो ऐसा लगता जैसे सब पिकनिक मना रहे हैं.......अम्मी और नानी उसके लिए कभी पकोड़े तो कभी कुछ अपने हाथों से बनाती, जिसे वो खूब तारीफ कर-करके खाता और उन दोनों को भी अपने हाथ से खिलाता, कभी अम्मी या नानू के हाथ-पैरों में दर्द होता तो वो उनकी बहुत अच्छे से मालिश करता तो वो दोनों उसके सिर पर हाथ रख ढेरों दुआ देती, बहुत ही कम समय में उसने अपनी जगह बहुत मज़बूत बना ली थी, अब दुआ के पास एक ही रास्ता था कि वो खुद कहीं दूर चली जाएं, तभी वो आने वाले तूफान को रोक सकती थी।

रूद्र इधर-उधर नज़रें घुमाते हुए दुआ को ढूंढता है लेकिन वो उसको नज़र नही आती, अक्सर वो उनके घर बस 1-2 घंटे रूकता था मगर आज 4 घंटे गुज़र गए थे लेकिन वो आकिब को पढ़ाएं ही जा रहा था।

आकिब-----भईया, बस करें अब बाद में पढ़ेंगे, मैं थक गया हूं, देखे ना चार घंटे से हम पढ़ाई ही कर रहे हैं, इससे पहले रूद्र उसकी बात का कुछ जवाब देता, उसकी निगाह सामने से आते हुए डाक्टर सिद्दीकी पर पड़ती है.....उनको देख वो फौरन ही खड़ा हो जाता है।

रूद्र ऐसे खड़ा होता है जैसे उसने डाक्टर सिद्दीकी को देखा ही ना हो--------- ठीक है आकिब, आज के लिए बहुत हो गया, मैं अगले हफ्ते आऊंगा तो तुम्हारा टेस्ट लुंगा, एग्ज़ाम्स स्टार्ट होने वाले हैं, इस बार तुम्हें टोप करना होगा...... 

वो यही कह रहा होता है कि पिछे से डाक्टर सिद्दीकी कहते हैं.....बिल्कुल आकिब, इस बार तुम्हें हमारा नही, अपने रूद्र भईया का मान रखना होगा, देखो वो तुम्हारे साथ कितनी मेहनत कर रहे है, रात के नौ बज गए मगर तुम्हारी एक्सरसाइज कम्प्लीट करने के चक्कर में अब तक घर नही गए।

रूद्र बिल्कुल अंजान बनते हुए----- अरे अंकल, आप कब आए?????
नौ बज गए???..... मुझे तो पता ही नही चला वक्त का, अच्छा, अब मुझे चलने की इजाज़त दें!

डाक्टर सिद्दीकी मुस्कुराते हुए--------अरे!! बरखुरदार, थोड़ी देर हमारे साथ भी बैठ जाओ कभी, अच्छा ऐसा करते हैं, मैं तुम्हारी आंटी से कहता हूं, वो जल्दी से खाना लगवा लें, इतनी देर में, मैं जल्दी से फ्रेश हो कर आता हूं।

रूद्र------नही अंकल, प्लीज़ रहने दीजिए, फिर कभी सही, अभी मैं जाता हूं।

डाक्टर सिद्दीकी नाराज़गी से-------यह क्या बात हुई रूद्र, एक तरफ खुद को इस घर का बेटा कहते हो और दुसरी तरफ, हम लोगों के साथ बैठ कर खाना भी नही खा सकते।

रुद्र----- अंकल ऐसी बात नही है बस मैं तो....... वो अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही डाक्टर सिद्दीकी कहते हैं------ तो तय हुआ, आज डिनर तुम हम लोगों के साथ कर रहे हों, तुम बैठो, मैं बस थोड़ी देर में आया।

यह कह कर वो चलें जाते हैं, रूद्र का दिल तो बिल्कुल नहीं होता मगर वो दुआ को भी देखना चाहता है, इसलिए डिनर के लिए रूक जाता है........ टेबल पर सभी होते है मगर बस दुआ ही नही होती, रूद्र की नज़रें पूरे वक्त उसे ढूंढती रहती है मगर वो कही दिखाई नही देती, सब खाना खा चुके होते है थोड़ी देर बातें करने के बाद रूद्र जाने की इजाज़त मांगता है मगर तब भी उसकी निगाहें दुआ को ढूंढ रही होती हैं, डाक्टर सिद्दीकी उसे घर के बाहर तक छोड़ने जाते हैं, वो मायूसी से कार स्टार्ट कर घर की तरफ चल देता है।

दुआ को ना पाकर उसका मूड काफी खराब हो जाता है, उसे समझ नही आता, दुआ गई तो कहा गई, आज वो उसके सामने क्यों नही आई, उसका दिल तो चाह रहा था कि वो आकिब से उसके बारे में सीधा पूछ लें.........मगर उसकी यह हरकत किसी को भी खटक सकती थी इसलिए उसने अगले हफ्ते तक का इंतेज़ार करना सही समझा....... मगर उसका दिल ना घर में लग रहा था ना ऑफिस में..... कभी वो ऑफिस में छोटी-छोटी बात पर इम्प्लॉइज़ को डांटता तो कभी बेवजह किसी पर चिखता तो कभी मीटिंग्स केंसिल कर देता, पुरा हफ्ता गुज़ारना उसके लिए बहुत मुश्किल हो गया था........ ऑफिस में सभी लोग उसके सामने आने से बचने लगे थे उसके बिगड़े मूड की वजह से, किसी तरह आखिर एक हफ्ता गुज़र ही गया....... रूद्र ने सुकून की सांस तब ली जब वो दुआ के घर पहुंच गया, इस उम्मीद में कि आज तो वो उसको देख लेगा।

रूद्र लिविंग रूम में आते हुए-----हेलो आकिब, और क्या हो रहा है।

आकिब मुस्कुराते हुए उसके पास आकर------ रूद्र भईया, आज तो आप जल्दी आ गए??

रूद्र---- हां, आज थोड़ा जल्दी फ्री हो गया था, अच्छा, अब जल्दी से अपनी नोटबुक ला, आज मैंने टेस्ट लेना है।

आकिब जल्दी से अपने कमरे से अपना समान ले आता है और फिर रूद्र उसे कई सारे सवाल हल करने को दे देता है, आधा घंटा गुज़र जाता है मगर आज भी दुआ उसके सामने नही आती......

रूद्र-----आकिब सारे घरवाले कहा है, मेरा मतलब है आज कोई नही दिख रहा।

आकिब----- भईया, डैड तो अस्पताल गए हैं, नानू अपने कमरे में सो रही है और अम्मी आपके लिए किचन में कुछ पका रही है।

अच्छा!!!!

रूद्र अपने दिल में------ मोटू कहीं का, बेवकूफ नम्बर वन, सब के बारे में बता दिया मगर जिसके बारे में पता करना है उसका नाम भी नही ले रहा।

रूद्र गला साफ करते हुए------अच्छा, वैसे आजकल तुम्हारी आपी कोई नया सवाल नही दे रही, क्या बात है, उनकी तबीयत खराब है या मुझसे हार मान गई।

आकिब हंसते हुए-----अरे भाई!!! आपी हार मान लें ऐसा हो ही नही सकता, वो तो यहां है नही, इसलिए ही तो घर में इतनी शांति है, मेरा मतलब है वो घर में होती है तो मेरे पिछे पड़ी रहती है, अब पता नही बिचारा आमिर उनसे बच कर कहा छुपता फिर रहा होगा??

रूद्र------ हम्मम!!! यह आमिर कौन है???

आकिब-----आमिर हमारे मामा का छोटा बेटा है, मेरी ही उम्र का है तो आपी उसको भी, हमेशा पढ़ने के लिए कहती रहती है, इसलिए वो भी उनसे छुपता रहता है

रूद्र अपने मन में, अब कैसे पता करूं कि मामा कहा रहते हैं........ फिर थोड़ा सोचते हुए बोलता है-------लगता है, मामा का घर पास ही है तभी तुम्हारी आपी, तुम्हारे बगैर चली गई।

आकिब मुंह बनाते हुए------ पास नही, बहुत दूर है "सिंगापुर" में.....आपी तो 20 दिन पहले ही चली गई, रेशमा आपी की शादी में, मैंने जाने को कहा तो सबने मना कर दिया, यह कह कर कि मेरी पढ़ाई का नुक़सान हो जाएगा।

रूद्र------ओह!!! यह तो बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ मगर बाकि सब क्यों नही गए???

आकिब-----आपी तो इसलिए चली गई, क्योंकि यहां उनको कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, उन्होंने डैड से जाने की ज़िद्द की तो बस सबने उनको भेज दिया और मैं यहीं रह गया..... मगर फिर मेरे बहुत ज़िद्द करने पर डैड मुझे भी सिंगापुर ले जाने के लिए तैयार हो गए, अब मैं भी सब लोगों के साथ, सिंगापुर जाऊंगा।

रूद्र---- अच्छा, तो कब जा रहे हो सिंगापुर???

आकिब----- अगले बुधवार की फ्लाइट है।

रूद्र-----चलो, यह तो बहुत अच्छी बात है, अच्छे से इंजाय करना, वैसे भी सुबह की फ्लाइट से सुरज को देखने में बहुत मज़ा आता है।

आकिब-----अरे नही भईया, हमारी फ्लाइट तो शाम को सात बजे की है, तब तक तो सुरज डूब भी जाएगा।

रूद्र हंसते हुए-----कोई नही, तो तुम चांद को इंजाय कर लेना।

तभी रूद्र का फोन बजने लगता है, वो फोन उठाकर, बात करते हुए बाहर चलें जाता है, दो मिनट बाद अंदर आता है।

रूद्र फोन काटते हुए-----आकिब एम् सोरी, एक ज़रूरी काम आ गया है, अभी जाना होगा, तुम्हारा यह टेस्ट मैं घर पर चैक कर लुंगा और अगली बार पक्का ज़्यादा टाइम दुंगा मगर अभी मेरा जाना ज़रूरी है।

आकिब----- कोई बात नही भईया, आप जाओ।

***************

अजय-------यह फ्लाइट बुक नहीं हो रही है रूद्र, पहले से ही एयरक्राफ्ट फुल बुक्ड है, कोई आप्शन नही है।

रूद्र----- कोई तो तरीका होगा, कोई स्टाफ ट्रेवल ओप्शन, या बिज़नेस क्लास या फर्स्ट क्लास किसी में तो सीट होगी ना।

अजय-----नही रूद्र, मैं पहले ही सब चैक कर चुका हूं कोई ओप्शन नही है, हां इसके चार घंटे बाद जो फ्लाइट है उसमें सीट्स अवेलेबल हैं मगर वो कनेक्टिंग फ्लाइट है।

रूद्र सोचते हुए------ तेरी एक गर्ल फ्रेंड थी ना, क्या नाम था उसका----हा, रीटा, उससे पता कर, वो आई-जी-आई एयरपोर्ट पर अच्छी पोस्ट पर काम करती थी ना, उसके पास ज़रूर कोई रास्ता होगा।

अजय-----तू पागल हो गया है, उससे ब्रेकअप किए हुए भी छः महीने हो गए हैं, बहुत मारेगी वो मुझे.....चलना कुछ और सोचते हैं।

रूद्र------ प्लीज़ यार, अभी वही एक रास्ता है, मेरे लिए एक बार कोशिश कर लें!!!

अजय------ नही रुद्र, उससे बात करने का मतलब है, वक्त बर्बाद करना, वो मेरी हेल्प नही करेगी।

रूद्र---- प्लीज़, एक बार कोशिश कर लें।

अजय----- ठीक है, मैं देखता हूं!!!

यह कहते हुए, उसने रीटा का नम्बर डायल कर दिया, दो बार काॅल करने के बाद भी, जब रीटा ने काॅल रिसिव नही की तो रुद्र परेशान हो गया कि अब क्या करें.....अभी वो दोनों यही सोच रहे थे कि अजय का फोन बजना शुरू हो गया, देखा तो रीटा ने ही काॅल बैक की थी, अजय ने फौरन काॅल रिसिव कर ली।

अजय------ हेल्लो रीटा???

रीटा----- अजय!! आखिर इतने दिनों बाद मेरी याद आ ही गई तुमको, मुझे छोड़ने का पछतावा हो रहा है, मुझसे माफ़ी मांगना चाहते हो????

अजय गुस्सा कंट्रोल करते हुए------ हां, ऐसा ही कुछ समझ लो, जब से तुम गई हो तब से तुम्हारी कमी खलने लगी है, पिछले छः महीने मैंने तुमको कितना याद किया है, मैं बता भी नहीं सकता, दिन-रात बस तुम्हारे बारे में ही सोचते हुए गुज़ारे है मैंने, बहुत बार सोचा तुमको फोन कर लूं मगर हिम्मत ही नहीं हुई, हर बार दिल एक ही सवाल करता, क्या तुम भी मुझे ऐसे ही याद करती होंगी???
क्या आज भी तुम अपने अजय से प्यार करती हो??

दुसरी तरफ खामोशी थी, थोड़ी देर बाद अजय फिर बोलता है।

अजय----- मुझे तुम्हारा जवाब मिल गया रीटा, तुम मुझसे प्यार नही करती, साॅरी तुमको डिस्टर्ब करने के लिए........वो यह कह कर फ़ोन काटने ही वाला था कि रीटा बोल पड़ी।

रीटा------अब तुम क्या चाहते हो अजय ???

अजय----- बस एक मौका चाहता हूं, सबकुछ ठीक करने के लिए, सबकुछ पहले जैसा करने के लिए मगर शायद अब बहुत देर हो गई।

रीटा-----अजय, ठीक है, दिया मैंने तुमको एक मौका, मगर याद रखना यह आख़री मौका है।

अजय खुशी जताते हुए---- थैंक यू-थैंक यू- थैंक यू सो मच रीटा, तुम नही जानती, मैं कितना खुश हूं.....वैसे अभी तो शायद तुम जाॅब पर जा रही होंगी???.....चलों मैं बाद में फोन करता हूं।

रीटा----- नही, आज नाईट ड्यूटी है।

अजय------ हम्मम, यह तो अच्छी बात है, अब हम दोनों थोड़ी देर तो, आराम से बात कर सकते हैं।

रीटा--- हम्मम!!!

अजय---- वैसे तुम्हारी जाॅब कैसी चल रही है??

रीटा---- ठीक, तुम बताओ?

अजय-----बस नही पूछो यार, मेरे बाॅस ने मेरी ज़िन्दगी खराब कर रखी है।

रीटा---- क्यों, ऐसा क्या हो गया?

अजय------अरे!! वो क्या है ना, मेरे बाॅस को बुधवार, शाम सात बजे की फ्लाइट से सिंगापुर जाना है, मैंने उससे दो दिन पहले बोल दिया था कि हां टिकट बुक हो गई, मगर बुक नहीं की थी अब जब बुक करने बैठा तो सीट ही अवेलेबल नहीं है, अब क्या करूं समझ नही आ रहा, उसने तो कह दिया....
उसको उसी फ्लाइट से ट्रेवल करना है, अगर मैं उसकी टिकिट नहीं बुक कर सका तो वो मुझे जाॅब से निकाल देगा.......

रीटा सोचते हुए----- हम्मम!! प्रोब्लम तो बढ़ी है, ऐसा करो मुझे डिटेल सेंड कर दो, एक घंटे में बताती हूं।

अजय----- नही यार, तुम परेशान हो जाओगी, मैंने चैक किया है, किसी भी क्लास में सीट अवेलेबल नही है, अब कुछ नहीं हो सकता।

रीटा-----मैं कह रही हूं ना, तुम मुझे डिटेल सेंड करो, मैं देखती हूं।

अजय------ अच्छा ठीक है, अब तुम इतना कह रही हो तो मैं सेंड कर रहा हूं, मगर देखो ज़्यादा परेशान नही होना, ओके!!

अजय यह कहते हुए फोन रख कर लम्बी सी सांस लेता है और फिर जल्दी से रुद्र की डिटेल रीटा को सेंड कर देता है।

रूद्र----- तुझे लगता है, तेरी यह गर्लफ्रेंड हमारी मदद कर सकेगी??

अजय मुस्कुराते हुए------ रुद्र मेरे दोस्त, अब तू देख अजय का जादू, तू समझ, तेरा काम, बस हो ही गया।

रुद्र एक घंटे तक इधर-उधर घूमता रहता है, मगर रीटा का फोन नही आता।

रूद्र गुस्से से----- मैंने कहा था ना, वो ....... रूद्र इतना ही बोल पाया था कि रीटा का फोन आ जाता है।

अजय----- हेल्लो रीटा??

रीटा----- सोरी थोड़ी देर हो गई, मगर काम हो गया, अपना ई-मेल चैक करो, मैंने टिकिट सेंड कर दी है, स्टाफ ट्रेवल है, आई होप अब तुम्हारी जाॅब ख़तरे में नहीं होगी।

अजय------थैंक यू सो मच रीटा, मेरी मदद करने के लिए, मैं पहले टिकट चैक करके सर को भेजता हूं फिर तुमको फोन करता हूं......यह कह कर अजय ने फोन बंद कर दिया।

अजय मुसकराते हुए-------आखिर दिल वाले अपनी दुलहनिया सिंगापुर से लाकर ही मानेंगे, टिकट कंफर्म हो गई है, जाने की तैयारी शुरु कर दो दुल्हे राजा।

रूद्र, अजय के गले लगते हुए----- थैंक्स यार।

अजय----- अरे-अरे!! अभी बहुत से मौके आने वाले हैं, थैंक्स कहने के लिए।

रूद्र हंसते हुए----- हां क्यों नहीं, अब हर लव स्टोरी में, दोस्त ही तो बली का बकरा बनते है, और मेरा तो, तू ही एकलौता दोस्त हैं, अब आगे तुझे कुर्बान होना है, तो थैंक्स तो बनता ही है, कोई नहीं आगे भी कह दुंगा!!!

अजय आंखें चौड़ाते हुए------- रुद्र???

रुद्र------ अच्छा, अभी मुझे घर के लिए निकलना है, यह कन्वर्सेशन हम बाद में कंटिन्यू करते हैं।

रघुवंशी पैलेस:-
रूद्र----- मोम, काॅलेज के दोस्त की शादी है उसने बहुत मिन्नत करके बुलाया है, अब आपको तो पता है वैसे मुझे शादियों में जाने का कोई शौक नही, मगर मैंने सोचा इसी बहाने सिंगापुर का एक चक्कर भी हो जाएगा।

मुकेश रघुवंशी------- यह तो अच्छी बात है...... बहुत सही सोचा तुमने!!

बहु इसको जाने दो, पहली बार तो खुद से किसी की शादी में जाने के लिए तैयार हुआ हैं।

मुकेश रघुवंशी की बात सुनकर सभी चुप हो जाते हैं और रुद्र अपने दादा के गले लगते हुए----- थैंक्यू दादू, आई लव यू!!!

************

सिंगापुर एयरपोर्ट :-

रूद्र फोन पर बात करते हुए------- हां, अजय फ्लाइट लैंड हो गई है, बस एयरपोर्ट से बाहर ही निकल रहा हूं......... वो अजय से बात करते हुए इधर-उधर किसी को ढूंढ रहा होता है कि तभी वो आगे चल रहे आदमी से टकरा जाता हैं, जिससे दोनों लोगों का समान गिर जाता हैं।

रूद्र अपना और उनका समान उठाते हुए------ एम सोरी अंकल, यह लीजिए आपका समान।

रूद्र हैरानी से----- डाक्टर साहब आप यहा??

डाक्टर सिद्दीकी-----अरे!! रूद्र बेटा, हम तो यहां आकिब के मामा के घर आए हैं, तुम यहां क्या कर रहे हो??

रूद्र याद करते हुए------ ओहह हा, याद आया, आकिब ने बताया था मुझे, वैसे मैं तो सिंगापुर बिज़नेस के सिलसिले में आया हूं.....मिस्टर शर्मा मुझे लेने आने वाले थे उन्हीं को ढूंढ रहा था तभी आपसे टकरा गया, शायद अब तक वो आए नही..... अंकल वैसे बाकी सब कहां है???

आकिब पिछे से आते हुए----- हम सब यहां है रूद्र भईया।

रूद्र मुस्कुराते हुए------हैलो आकिब, नानी कैसी है आपकी तबियत??? और आंटी आप कैसी हैं???
  
दुआ की नानी----- हम सब ठीक है बेटा मगर तुम यहां कैसे???

रूद्र मुस्कुराते हुए---- बस समझ लें नानी, आप लोगों से किस्मत जुड़ गई है मेरी, आप लोग यहां शादी में आए तो मैं बिज़नेस के सिलसिले में, खैर अब मैं चलता हूं, आप लोग अपना ख्याल रखियेगा।

नानी हंसते हुए---- कहा चलते हो, अब जब किस्मत जुड़ी है तो फिर साथ चलों!!

डाक्टर सिद्दीकी-----हा रूद्र!! यहां अकेले कहा रहोगे, जब अपना घर है तो होटल में क्यूं रहना???

रूद्र शरमाते हुए---- नही अंकल, अच्छा नही लगेगा, अब वो लोग तो मुझे जानते भी नहीं है, ऐसे कैसे बिन बुलाए मेहमान की तरह चला जाऊं???

नानी---- मेरे बेटे का घर है वो किसी गैर का नही, और बेटा तुमने मेरी जान बचाई है, उन लोगों को भी अच्छा लगेगा, अब जब अल्लाह ने मिला दिया है तो साथ चलों।

रूद्र झिझकते हुए------आप लोग मुझसे बड़े हैं, अब इतना कह रहे हैं तो मैं मना कैसे करूं, मगर मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है।

डाक्टर सिद्दीकी मुस्कुराते हुए-----एक बार सबसे मिलोगे तो फिर अजीब नही लगेगा।

रूद्र----- अच्छा ठीक है अंकल, आप जैसा कहें, मैं ज़रा एक फोन कॉल करके, ऑफिस में बता दूं कि होटल से बुकिंग कैंसिल कर दें.....इतने आप लोग आगे चलें।

डाक्टर सिद्दीकी-----ठीक है रुद्र!!

यह कर सबसे आगे चलने लगते हैं, बाकी सब उनके पिछे चलें जाते हैं और रुद्र सबसे पिछे चलते हुए अजय को फोन पर खुशखबरी देता है कि सबकुछ प्लान के मुताबिक ही हो रहा है, कि तभी रूद्र फिर से, एक आदमी से टकरा जाता है।

रूद्र-----ओह भाई, ज़रा देख कर चल।

वो आदमी गुस्से से उसे घूरता है मगर वो कुछ कहता, इससे पहले दुसरा आदमी उसके पास आ जाता है..... 

अहान सर आप गाड़ी में बैठिए, मैं इसे देखता हूं------अमित जी रूद्र को घूरते हुए कहते हैं।

रूद्र भी अमित जी को घूरते हुए-----ऐसे क्या देख रहा है??? 

अभी उन दोनों में झगड़ा शुरू ही होने वाला था कि डॉक्टर सिद्दीकी कार के पास खड़े, रूद्र को आवाज़ देने लगते हैं, रुद्र मौके की नज़ाकत समझते हुए, अमित जी को घूरते हुआ वहां से चला जाता है।

आगे अगले भाग में:-

Anita Singh

Anita Singh

अच्छा भाग

30 दिसम्बर 2021

Stranger

Stranger

30 दिसम्बर 2021

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11
रचनाएँ
दिल ए नादान
5.0
यह कहानी है एक ऐसे इंसान की जिसका मानना है कि आप अपने रब को "भगवान कह कर पुकारो, अल्लाह कहो या कुछ ओर" सुनने वाला एक ही है.........क्योंकि रब को अलग नाम दिए जा सकते हैं बिल्कुल वैसे ही जैसे हम अपने चाहने वालों को कई नामों से पुकारते हैं मगर होता वो एक ही है इसी तरह फरियाद सुनने वाला भी एक ही है और पुकारने वाला दिल भी वही है, फ़र्क है तो नज़रिए का......उसके हिसाब से दुनिया का हर धर्म सबसे पहले इंसानियत सिखाता है.......एक-दूसरे से प्यार करना, एक-दूसरे की इज़्ज़त करना सिखाता है मगर क्या वो अकेला, धर्म पर होने वाली नफरत को मिटा सकेगा????? कहते है, किसी एक इंसान की सोच बदलना भी बहुत मुश्किल है फिर उसके सामने तो उसका पूरा परिवार था जो उसकी सोच के खिलाफ, उसकी मोहब्बत के खिलाफ था...... आइए चलें एक नए सफर पर इस दिवाने के साथ, देखें क्या होगा इसका अंजाम, क्या पिघल जाएंगेे लोगों के दिल उसकी मोहब्बत के सामने या होगा फिर वही, लाखों लोगों की तरह.....उसकी मोहब्बत भी तोड़ देगी दम धर्म के नाम पर पैदा हुई नफरत के सामने.      **************** 12-Dec-2018 आज रूद्र बहुत तेज़ कार चला रहा था, ज़्यादातर वह कायदे-कानून का पालन करता था, मगर आज शायद उससे इंतेज़ार नही हो रहा था, उसका दिल कह रहा था कि वो उड़ कर दुआ के सामने पहुंच जाएं, उसकी मोहब्बत, उसका जुनून, उसकी ज़िद्द सब कुछ उस एक नाम पर अटक गया था "दुआ"........ छः महीनों की लगातार कोशिशों के बाद, आखिर आज दुआ ने उसे मिलने बुला ही लिया था, वो नही जानता था कि आगे क्या होगा बस उसको तो इंतेज़ार था, उस पल का, जब दुआ उसके सामने हो और वो उसको बता सके, कि वो उससे कितनी मोहब्बत करता है, कितनी बातें थी उसके दिल में, आज वो सारी बातें कहने का मौका मिला था उसे इसलिए आज का दिन उसके लिए बहुत खास था .....यही सब सोचते-सोचते वो कब दुआ के बताए रेस्टोरेंट के सामने पहुंच गया उसको पता ही नही चला, वो जल्दी से गाड़ी से उतर अन्दर जाकर पुछता है, तो वेटर उसको दाएं हाथ की तरफ इशारा करते हुए रास्ता बता देता है..... कुछ क़दम चलने के बाद ही वो एक दरवाज़े से बाहर निकलता है तो सिर पर खुला आसमान, चारों तरफ हरियाली, तेज़ हवाएं, जगह ज़्यादा बड़ी नहीं थी मगर उसकी डेकोरेशन इतनी खूबसूरत थी कि बड़े-बड़े होटलों को फेल कर दे, थोड़ी ही दूर पर एक टेबल रखी थी और उसकी दाईं ओर कुछ लकड़ियों को जला रखा था, आज मौसम भी काफी सुहाना था जो रूद्र के मूड को ओर भी खुशगवार बना रहा था, वो टेबल के पास पहुंचा तो दुआ को देख कर एक पल के लिए जैसे सब कुछ भुल गया....... तेज़ हवाएं उसके लम्बे बालों से खेल रही थी, और वो खुद किसी गहरी सोच में गुम थी, उसकी आंखें टेबल पर गड़ी हुई थी जहां एक तरफ भगवान की छोटी सी मुर्ती रखी थी और उसके ही साथ एक छड़ी थी जिस पर अल्लाह लिखा हुआ था......दुआ अपनी सोच में इतना खो गई थी कि उसे रूद्र के आने का एहसास तक नही हुआ. रूद्र का दिल तो कह रहा था कि वो उसको यू ही ज़िन्दगी भर देखता रहे मगर अभी उसको इतना हक़ कहा था इसलिए ना चाहते हुए भी उसने अपना गला साफ करते हुए, दुआ से बैठने की इजाज़त मांगी और दुआ उसकी आवाज़ सुनते ही खुद को ठीक करते हुए एक दम सीधी बैठ गई। जानते हो रूद्र यह क्या है??----इससे पहले रूद्र कुछ कहता दुआ ने टेबल पर रखी मूर्ति और छड़ी की तरफ देखते हुए उससे पूछा। उसने कुछ ना समझते हुए दुआ को देखा। रूद्र यह हम दोनों है जो कभी एक नही हो सकते, आज मैंने, तुम्हे यहां सिर्फ यही कहने के लिए बुलाया है......भुल जाओ मुझे, अभी कुछ नही बिगड़ा है, तुम एक अच्छे बिजनेसमैन हो, अपने करियर पर ध्यान दो, तुम्हारे परिवार का बहुत नाम है, उनका मान नही तोड़ो, मैं नही चाहती मेरी वजह से किसी का परिवार टूट जाए, मैं नहीं चाहती, मैं किसी की बर्बादी की वजह बनूं, इसलिए आज के बाद फिर कभी तुम मेरे सामने नही आना---- दुआ उसे समझा रही थी और वो सिर्फ उसको देखें जा रहा था, कितनी आसानी से उसने कह दिया था भूल जाओ मुझे....... रूद्र तुम सुन भी रहे हो या नही----दुआ ने रूद्र को खामोश देखा तो थोड़ा झुंझलाते हुए पूछा। ना-नही हो सकता यह......यह मूर्ति, यह छड़ी इन बेजान चिज़ो को तुम मेरे दिल, मेरे जज़्बात से मिला रही हो.......रूद्र ने गुस्से में टेबल पर हाथ मारते हुए कहा, जिससे दोनों चिज़े जलती हुई आग में गिर गई और दुआ हैरानी से उसे देखती रह गई, पहली बार रूद्र ने उससे तेज़ आवाज़ में बात की थी, उसको इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नही था कि रूद्र को गुस्सा भी आ सकता हैं। क्या-क्या समझाना चाहती हो तुम मुझे, हां, बोलो, कहना क्या चाहती हो, यही ना कि मैं हिन्दू हूं और तुम मुसलमान.......तो यह मेरी गलती है क्या, बताओ मुझे......मैं खुद को क्यों रोकूं? क्यों मैं खुद को उस ग़लती की सज़ा दूं जो मैंने की ही नही....क्या रब ने मुझे पैदा करने से पहले मुझसे पूछा था, किस धर्म, किस जाति में पैदा होना चाहता हूं मैं......नही ना.....तो फिर मुझे सज़ा क्यों दें रही हों......... यक़ीन मानो मैंने तो कभी चाहा भी नही था कि मुझे कभी किसी लड़की से प्यार हो मगर हो गया ना, मैं मानता हूं यह आसान नही है मगर तुमको भूल जाना भी मेरे हाथ में नही है......... तुमसे प्यार करता हूं, खुद को भुला सकता हूं मगर तुमको नहीं भूल पाऊंगा------ यह कहते हुए रूद्र की आवाज़ रूंध गई थी और कब उसकी आंखों से आंसू बहने लगे यह शायद उसको भी पता नहीं चला वो बस बोले जा रहा था। रुद्र--------दुआ मैं नही जानता यह सही है या ग़लत, मगर मैं मानता हूं, मोहब्बत का कोई धर्म, कोई जाति नही होती, यह तो वो खास एहसास होता है जो बहुत कम लोगों के दिल में पैदा होता है, तुमको देखकर जो एहसास, जो सुकून मुझे मिलता है, वो मैं लफ़्ज़ों में नही बता सकता....... अगर तुम मुझे कोई ओर वजह देती ना, तुम से दूर जाने के लिए तो शायद मैं खुद की जान ले लेता लेकिन तुम्हारे सामने फिर कभी नही आता ......मगर तुम मुझे खुद को भूलने का कह रही हो, इस घटिया दुनिया के लिए, जो कभी किसी की नही हुई......आज मैं आत्महत्या कर लूं तो क्या इस दुनिया पर कोई फ़र्क पड़ेगा????.... नही!!! कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा किसी को!!! मगर-अगर मैं अपने प्यार के लिए लड़ूंगा ना तो इस दुनिया को ज़रूर फ़र्क पड़ेगा, तब ज़रूर यह दुनिया मेरे खिलाफ खड़ी होगी...... रुद्र------दुआ यह दुनिया, धर्म और जाति के नाम पर एक-दूसरे को मारने के लिए पल भर में तैयार है मगर प्यार और इन्सानियत का क्या??? ........क्यों मैं ऐसे समाज के लिए अपनी मोहब्बत, अपनी खुशियों का त्याग करूं?? जो कभी किसी की हुई ही नहीं.... तुम मुझे अपना मानो या ना मानो मगर मेरे लिए तुम मेरी ज़िन्दगी बन गई हो, अब चाहे जो हो जाए, तुमको भुलना नामुमकिन है---रूद्र की आंखों में साफ दिख रहा था, कि कुछ भी हो जाएं, वो हार नही मानेगा, और मानता भी क्यों उसका कहा हर लफ्ज़ सही था..... दुआ ने तो यह सोचा ही नही था कि रूद्र आज उसकी एक नही सुनेगा, मगर दुआ भी उसके सामने हार नही सकती थी क्योंकि वो बहुत अच्छे से जानती थी, कि रुद्र की मोहब्बत की क़ीमत कितनी बड़ी हो सकती है उसे अच्छे से पता था इसलिए उसे किसी भी तरह आज यह किस्सा यही खत्म करना था, यही सोच दुआ गुस्से में कुर्सी से खड़ी हो गई। दुआ गुस्से में-----ठीक है, तुम्हे परवाह नही है, तो ना सही, मगर मुझे है..... मिस्टर रूद्र रघुवंशी हर इंसान तुम्हारी तरह नही सोचता, तुम एक मर्द हो, वो भी इस शहर के सबसे अमीर परिवार से, इसलिए शायद तुम ऐसा सोच सकते हों, मगर मैं एक लड़की हूं वो भी ऐसे परिवार से जहां मैं अपने बाबा का मान हूं उनकी इज़्ज़त हूं, मैं एक हिन्दू लड़के को कभी नही अपना सकती, अपने बाबा पर उंगली उठाने की वजह नही दे सकती मैं दुनिया को, क्या कहेंगे लोग मेरे बाबा से, कैसे जवाब देंगे मेरे बाबा, इस दुनिया के अनगिनत सवालों के, नहीं रुद्र, तुम्हारी मोहब्बत की क़ीमत मेरे बाबा चुकाएं ऐसा मैं नही होने दूंगी इसलिए अच्छा होगा आज के बाद तुम मेरे सामने कभी ना आओ----यह कह कर वो जाने के लिए आगे बड़ी ही थी कि रूद्र ने उसका हाथ पकड़ लिया। रुद्र------यही प्रोब्लम है ना कि मेरा नाम रूद्र रघुवंशी है कोई रहमान या सलीम नही, तो ठीक है, मैं इस प्रोबलम को अभी यही खत्म कर देता हूं......आज तुमको, अपनी मोहब्बत को गवाह बना कर, मैं इस्लाम कुबूल करता हूं....... तुम एक लड़की होना, तुम कुछ नही कर सकती क्योंकि तुम मजबूर हो सकती हो मगर मैं नही, आज से मैं तुम्हारी ताकत बनूंगा और तुम्हारा मान, कभी नही टूटने दूंगा---उसने यह कहते हुए आग में पड़ी छड़ी, को उठाया जिस पर अल्लाह लिखा था और उसे अपने हाथ पर चिपका दिया, जिसे देख दुआ चीख पड़ी और उसने रूद्र के हाथ से छड़ी लेकर फेंक दी......मगर उस छड़ी के साथ-साथ रूद्र के हाथ की खाल भी उतर गई। रुद्र नम आंखों से, अपना जला हुआ हाथ देख, मुस्कुराते हुए----- दुआ अब मेरे मरने के बाद भी कोई तुम पर उंगली नही उठा सकेगा, कोई तुम्हारे बाबा से नही पूछेगा कि मैं हिन्दू हूं, अब मेरे हाथ पर लिखा यह अल्लाह कभी नही मिट सकेगा, अब तो तुम मेरी मोहब्बत को क़ुबूल करोगी ना.... दुआ मैं अपनी मोहब्बत के लिए खुद को कुर्बान कर दुंगा.....मगर अपनी मोहब्बत को कुर्बान नही होने दूंगा इस दुनिया के लिए--- रूद्र यही कह रहा था कि दुआ ने गुस्से में उसके थप्पड़ मार दिया. दुआ उसके जले हाथ को देखते हुए-------तुम पागल हो क्या, जानते भी हो, क्या किया है तुमने??? यह कोई छोटी बात नही है रुद्र, बच्चों का खेल नहीं है यह, ज़िन्दगी भर भी इस निशान को मिटाने की कोशिश करोगे, तब भी अब यह नहीं जाएगा...... क्या जवाब दोगे सबको, अपने घर वालों को, क्या बताओगे यह कैसे हुआ??? यहां कोई तुम्हारे जज़्बात नही समझेगा रुद्र, यह आज का हिन्दुस्तान है जहां हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लाखों मासूमों का खून बहा दिया जाता है यह देश पहले जैसा नही है, जहां सब एक साथ नहीं, एक-दूसरे के दिल में रहते थे, रहम करो मुझ पर और खुद पर.......प्लीज़ खुद को बर्बाद नही करो, छोड़ दो मेरा पीछा, चलें जाओ मेरी ज़िन्दगी से,  नही करती मैं तुमसे प्यार, मुझे मेरे बाबा की इज़्ज़त सबसे प्यारी है, प्लीज़ चलें जाओ - दुआ ने रूद्र के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा यह कहते हुए दुआ की आंखें भर आईं थी मगर उसने अपने आंसु बहने नही दिए, क्योंकि उसके आंसु जहां उसको कमज़ोर बनाते वहीं रूद्र की मोहब्बत को ओर हवा देते, इससे पहले वो कुछ बोलता दुआ वहां से चली गई. आज मौसम भी अपने तेवर दिखा रहा था, वह रेस्टोरेंट से बाहर निकली ही थी कि ज़ोर से बारिश शुरू हो गई, बारिश की बूंदों के साथ दुआ के आंसूओं ने भी अपनी सरहद तोड़ दी थी...... दुआ-----कोई किसी से इतनी मोहब्बत कैसे कर सकता है, एक पल में उसने अपना सब कुछ गंवा दिया, एक बार भी नही सोचा, उसका अंजाम किया होगा और मैं बेरहम लड़की, उसको इतनी तकलीफ़ में, अकेला छोड़ आई......काश मुझे थोड़ा भी अंदाज़ा होता उसकी हरकत का, तो मैं इतनी घटिया बात कहती ही नही उसको........मैंने तो सिर्फ इसलिए ऐसा कहा था कि शायद वो हार मान जाएं, शायद उसे मेरी बात चुभ जाए, शायद वो मुझसे नफरत करने लगे.....मगर मुझे क्या पता था वो मुझसे इतनी मोहब्बत करता है कि सबकुछ खोने को तैयार है, उसे अपनी किसी तकलीफ की परवाह नही और मैं इस दुनिया की फ़िक्र लिए बैठी हूं.....उसने सच ही तो कहा.....अगर उसे कुछ हो गया, तो इस दुनिया को क्या फर्क पड़ेगा.......लेकिन मुझे??? क्या मुझे, सच में कोई फर्क नहीं पड़ेगा, उसके चलें जाने से??? क्या अब, मैं रह सकूंगी उसके बगैर??? दुआ बारिश में पैदल चले जा रही थी और खुद से हज़ारों सवाल कर रही थी, ना उसको सिग्नल का ख्याल था और ना ही रफ्तार से चल रही गाड़ियों का डर......उसके सामने तो सिर्फ वो मंज़र था जब वह रुद्र के जलते हाथ को देखती रही, उसको रोक ना सकी, वो तो मिलने सिर्फ इसलिए गई थी कि आज किसी भी तरह उसको समझा देगी और फिर कभी नही आएगी उसके सामने, मगर उसको क्या खबर थी आज वो खुद ही हार जाएगी, और वहीं छोड़ आएगी खुद को...... आज रूद्र की मोहब्बत जीत गई थी और वो हार गई थी, रो-रो कर उसकी आंखें सुझ गई थी, उसको अपना-आपा बोझ-सा लग रहा था, जिसको घसीटते हुए वह घर ले जा रही थी, इस वक्त उसको किसी की फ़िक्र नहीं थी कि उसकी ऐसी हालत देख लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे, कुछ नही, अब अगर फ़िक्र हो रही थी उसको तो सिर्फ रुद्र की, अब उसके दिल और दिमाग में सिर्फ एक ही नाम था....... दो घंटे तक वो बारिश में भीगते-भीगते पैदल चलते हुए कब घर आ गई उसको पता ही नही चला, उसने दरवाज़ा खोला ही था कि उसकी नानी उसे देखते ही जल्दी से तौलिया लेकर उसके पास आ गई. कितनी बार कहा है! बारिश में नही भीगते, हर बार बीमार होने के बाद भी नही सुनती यह लड़की-----उसकी नानी (साएरा बेगम) ने सिर पर तौलिया डालते हुए कहा और दुआ उनके गले लग कर रोने लगी. दुआ! मेरा बच्चा क्या हुआ----साएरा बेगम ने उसके सिर पर प्यार करते हुए घबरा कर पूछा। एम् सोरी नानू-एम् सोरी, मैं आपकी अच्छी नवासी नही बन सकी, इस घर की इज्ज़त का बोझ नही उठा सकी, मैं हार गई उसके सामने, नानू मैं हार गई. साएरा बेगम-----दुआ मेरी बच्ची हुआ क्या है, यह क्या कह रही हो......दुआ की ऐसी हालत देख उनकी आंखें भर आईं थी। दुआ-----नानू मैं सच कह रही हूं, हार गई मैं उसके सामने, मगर--मगर मैंने कोशिश की थी, पूरी कोशिश की थी......सच में .....लेकिन वो पागल हैं ना नानू, मर जाएगा, अपनी जान ले लेगा मगर मुझे नही भुला सकेगा------दुआ सिसकियां लेते हुए अटक-अटक कर उनको सब कुछ बता रही थी. आज मैंने उसकी आंखों में देखा है नानू उसकी मोहब्बत की कोई हद नही है, वो बहुत आगे निकल गया है, मैं उसको नही रोक सकी.....झुका दिया मैंने अपने बाबा का सिर, तोड़ दिया उनका ग़ुरूर ----- दुआ किसी बच्चे की तरह रो-रो कर बोले जा रही थी, आज से पहले उसकी ऐसी हालत कभी नही हुई थी, यहां तक उसको इतना भी ख्याल नही रहा था कि उसके बाबा, उसके पिछे ही खड़े थे, जिनके पैरों तले ज़मीन खींच ली थी उसकी बातों ने, अपनी जवान बच्ची की ऐसी हालत देख फरहान सिद्दीकी का गुस्से से लाल चेहरा आने वाले तूफान का एहसास दिला रहा था। ********** जिया (रुद्र की भाभी) ------मां रूद्र का नम्बर बन्द जा रहा है, आप परेशान नही हो, रोहित ने अभी अजय से बात की है, वो उसे ढूंढने गया है वैसे उसने कहा है रूद्र अब घर ही आ रहा होगा, उसको एक मीटिंग के लिए जाना था, शायद इसलिए फोन बंद रखा होगा..... आपको तो पता है वो काम को लेकर कितना सीरियस रहता है, उसे डिस्टर्बेंस नही पसंद- जिया ने अपनी सासु मां को तसल्ली देते हुए कहा। पार्वती जी (रुद्र की मां)----- मगर जिया उसको पता था हम सब लोग यहां तक बाबू जी भी उसका इंतेज़ार कर रहे हैं, हम सबको एक साथ जाना था ना मिस्टर सिंघानिया के यहां , वो ऐसे लापरवाह नही है तुमको तो पता है..... तीन घंटे होने को है और आज यह बारिश भी रूकने का नाम नही ले रही, जिया मेरा दिल तो बहुत घबरा रहा है, पता नही वो अब तक क्यों नही आया? कुन्ती देवी (रुद्र की चाची)-------भाभी आप परेशान नही हो, रूद्र अब बच्चा थोड़ी है......जिया सही कह रही है, वो ठीक होगा, थोड़ी देर में आ जाएगा, हो सकता है बारिश की वजह से कहीं फंस गया हो और अजय गया है ना उसको ढूंढने, थोड़ी देर में देखना, दोनों साथ ही आ रहे होंगे ---कुन्ती ने अपनी जेठानी को परेशान होते हुए देखा तो वो भी तसल्ली देने लगी। घर में सभी लोग परेशान हो रहे थे रूद्र के लिए, उसने पहले कभी अपना फोन इतनी देर के लिए बंद नही किया था मगर जिया वो परेशान होने से ज़्यादा डरी हुई थी, कि ऐसा क्या हो गया जो रूद्र अब तक नही आया.....वो तो उसको बता कर गया था कि आज वो दुआ से हां सुनकर ही आएगा, तो फिर वो अब तक क्यों नही आया--- जिया अपनी सोचों में गुम थी कि तभी अपनी सासु मां के चीखने की आवाज़ से होश में आई, उसने दरवाज़े की तरफ देखा तो, एक पल के लिए उसके पैर भी वहीं जम गए. आज से पहले कभी किसी ने रूद्र को ऐसी हालत में नही देखा था......उसके होंठ नीले पड़ गए थे जिससे पता चल रहा था कि वो घंटों बारिश में भीगता रहा है, उसकी आसमानी रंग की शर्ट पर खून के धब्बों को साफ देखा जा सकता था, उसकी हथेली में कुछ कांच के टुकड़े गड़े हुए थे जिसकी वजह से हाथ से खून अभी भी रीस रहा था.......उसकी यह हालत देख सब एक साथ दरवाज़े की तरफ दौड़े और रूद्र वही दहलीज़ पर खड़ा रहा, उसकी हिम्मत ही नही हुई कि वो एक क़दम भी आगे बड़ा सकता। पार्वती जी-----यह क्या हाल बना रखा है रूद्र, जिया जाओ जल्दी से फर्स्ट-एड लेकर आओ---उसकी मां ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा जिससे खून रिस रहा था मगर फौरन ही एक झटके से उसका हाथ छोड़ दिया, उनकी हैरानी की हद ना रही जब उनकी नज़र रूद्र की जली हुई कलाई पर गई। यह-यह क्या है रूद्र- उन्होंने उसकी जली हुई कलाई की तरफ इशारा करते हुए पूछा....उसकी शर्ट का कपड़ा उसकी खाल में चिपक गया था, इतना बड़ा निशान उनके बेटे के हाथ पर, उन्होंने तो कभी उसको सूई भी नही चुभने दी थी फिर आज इतना बड़ा ज़ख्म, कैसे??? रोहित ( रुद्र का बड़ा भाई)-----यह कैसे हुआ रूद्र, किसने किया तुम्हारे साथ यह सब- उसके भाई ने आगे बढ़ते हुए पुछा। रुद्र अपने हाथ को देखते हुए------भाई यह सब मेरे नाम ने किया है, "रूद्र रघुवंशी" यही नाम है ना मेरा, यही सबसे बड़ा गुनाह है मेरा, तो क़ीमत तो अदा करनी थी- रूद्र ने थोड़ा चिल्लाते हुए कहा जिस पर सभी हैरान थे, इससे पहले उसने कभी भी तेज़ आवाज़ में बात तक नही की थी घर वालों के सामने और आज वो दादू के सामने इतनी तेज़ आवाज़ में चिल्ला रहा था, जिनके आगे वो नज़र भी नही उठाया करता था। जिया ने उसकी हालत देखते हुए, थोड़ा हिम्मत करके पूछा----रूद्र बताओ तो सही हुआ क्या है??? रुद्र, जिया को देखते हुए----भाभी आपने सही कहा था, आसान नही होता मोहब्बत का सफर, मगर अब यह सफ़र कितना भी मुश्किल हो, मैं इतनी जल्दी हार नही मानूंगा...... क्योंकि अगर मैंने हार मान ली तो इस दुनिया की घटिया सोच जीत जाएगी..... जिया कुछ ना समझते हुए----- मतलब??? रुद्र हल्का सा मुस्कुराते हुए----- मतलब भाभी, आखिर इस दुनिया की घटिया सोच, आज आ ही गई, मेरी मोहब्बत के बीच..... जानती है आप, उसने क्या कहा मुझसे.......वो कहती है उसे मुझसे मोहब्बत नही है, वो मुझे देखना भी पसंद नही करती, क्योंकि वो मजबूर हैं, दुनिया उस पर ऊंगली उठाएगी, उसके बाबा से सवाल करेगी, जानती है क्यों वो मुझे अपना नही सकती क्योंकि मैं हिन्दू और वो मुसलमान है- रूद्र ने आख़री शब्द चिखते हुए कहा. जिसे सुनकर, रघुवंशी परिवार के पैरों तले ज़मीन निकल गई थी......किसी ने नही सोचा था कि रूद्र को कभी कोई लड़की पसंद भी आ सकती है, वो भी एक मुसलमान लड़की, यह कैसे हो सकता है। पार्वती जी ने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पुछा-----रूद्र यह क्या कह रहे हो तुम?? रुद्र-----एम् सोरी मोम, एम् सोरी मगर आपके बेटे को एक मुसलमान लड़की से प्यार हो गया है--- रूद्र ने यही कहा था कि मुकेश रघुवंशी ने उसके सामने आते ही उसके ज़ोर का थप्पड़ जड़ दिया। मुकेश रघुवंशी गुस्से में------तुमको पता है, तुम क्या कह रहे हों, एक मुसलमान लड़की, तुम्हारा दिमाग ठीक है---- उन्होंने उसे घूरते हुए पूछा। रुद्र-----हम्मम!! जानता हूं.......उसने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा मगर उसकी आंखों में नमी थी। दादू! मैं जानता हूं, मैंने आज आपका मान तोड़ दिया, आपको ठेस पहुंचाई है, बहुत बुरा हूं, आपका पोता कहलाने के लायक भी नहीं इसलिए इस घर को छोड़ कर हमेशा के लिए जा रहा हूं। रुद्र-----मैं कभी आप लोगों से अलग नही होना चाहता था, मगर जानता हूं, आप कभी भी उसको नही अपनाएंगे.......क्योंकि यह हिन्दुस्तान है, यहां इज़्ज़त और धर्म के नाम पर बच्चों को कुर्बान कर देना ज़्यादा अच्छा समझा जाता हैं, मगर उनकी खुशियों के लिए, उनके साथ मिलकर दुनिया से लड़ना, यह तो यहा सिखाया ही नही जाता. पार्वती जी, रूद्र का हाथ पकड़ते हुए-------रूद्र होश में आओ, क्या कह रहे हो, तुमको पता भी है, देखो अपना हाल, खून बह रहा है, जिया जल्दी से डॉक्टर को फोन करो--- रुद्र------भाभी रहने दीजिए, अब मेरा इस घर पर कोई हक़ नही रहा, मुझे जाना है मगर उससे पहले दादू से कुछ सवाल करने है...... दादू, मैंने बचपन से आपको देखा है, आप किसी मुसलमान के हाथ से पानी लेना भी पाप समझते हैं, आप उनके साथ बैठना भी पसंद नहीं करते, आखिर इतनी नफ़रत क्यों है आपके दिल में, क्या वजह है इस भेदभाव की......क्या वो लोग इंसान नही दादू??? मुकेश रघुवंशी चिल्लाते हुए-----बंद करो अपनी बकवास, लगता है भूल गए हो, कि तुम अपने दादू के सामने खड़े हो---- रुद्र-----ठीक है दादू! हो जाउंगा चुप, मगर आप मुझे बताएं, आप तो हिन्दू है ना, वो मुसलमान है फिर क्यों आप दोनों की सोच अलग नही है, फिर क्यों उसने भी यही कहा, क्यों उसने भी मुझे थप्पड़ मारा, क्यों उसको भी समाज की परवाह ज़्यादा है। दादू आप जानते है! हिन्दुस्तान में हर साल रावण को जलाया जाता है, बुराई का प्रतीक समझ कर मगर वहीं श्रीलंका में उसकी पूजा की जाती है, भगवान समझ कर, क्या इसका मतलब यह है कि वो लोग अच्छे नही या वह नफरत के काबिल है क्योंकि वो रावण को भगवान मानते हैं......बताए मुझे- रूद्र ने मुकेश रघुवंशी के गुस्से की परवाह ना करते हुए उनकी तरफ देखते हुए पूछा और जवाब ना मिलने पर उसने बोलना फिर शुरू कर दिया। नही ना दादू!! इसका मतलब सिर्फ इतना है कि जो इंसान जहां पैदा होता है वहां की रीति-रिवाज़ अपना लेता है, अपना नज़रिया वैसे ही बना लेता है, लेकिन अपने नज़रिए की वजह से करोड़ों लोगों से नफ़रत करना, उनका खून बहा देना, हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर अनगिनत बच्चों को अनाथ कर देना, लाखों औरतों की इज्ज़त लूट लेना यह हक़ किस धर्म ने दिया है??? कौन सा धर्म नफरत सिखाता है दादू??? क्या ईसा-अलैहिस्सलाम ने, हुज़ूर ने या राम जी ने, कृष्ण जी ने, शिव जी ने, या किसी ओर भगवान ने किसी औरत की इज्ज़त को रौंदा था पैरों तले अपने धर्म का बदला लेने के लिए??? क्या उनमें से किसी ने भी मासूमों का खून बहाया था??? गीता और क़ुरान में क्या कहीं भी लिखा है कि बेगुनाहों का कत्ल कर दो, सिर्फ इसलिए कि वो अपने रब को आपके हिसाब से नही पुकारते, उनके रब का नाम वो नही जो आप लेते हैं। दादू धर्म तो प्यार की नींव रखता है, धर्म तो धैर्य, संयम और निष्ठा सिखाता है, हर धर्म का पहला पाठ इंसानियत है....... फिर सब यही पाठ छोड़ कर आगे कैसे बढ़ जाते हैं??? सिर्फ गीता या क़ुरान को पड़ लेना तो धार्मिक होना नही है.....उसकी गहराई को समझना और अमल करना धार्मिक बनाता है इंसान को....... लेकिन आज के दौर में हर इंसान खुद को धर्म का ठेकेदार कह कर अपने को अल्लाह और भगवान समझ लेता है, लाखों लोगों का खून बहा देता है, यह सोचे बगैर कि जब वह इंसानियत ही भुल गया तो वो धार्मिक कहा से रहा----- रूद्र आज वो सब बोल रहा था जो हमेशा वो अपने दादू को समझाना चाहता था मगर कभी हिम्मत नही कर सका था। रुद्र------दादू! मैं आप सबसे बहुत प्यार करता हूं मगर उस लड़की को नही छोड़ सकता, वो भी सिर्फ इस वजह से कि उसका नाम दुआ सिद्दीकी है क्योंकि वो एक मुसलमान के घर पैदा हुई........दादू मैं अपनी मोहब्बत की कुर्बानी नही दूंगा किसी धर्म के नाम पर चाहे जो हो जाए मगर आपका पोता हार नही मानेगा। रुद्र, कुन्ती देवी की तरफ बढ़ते हुए------चाची आप मुझे बताइएं, क्या भगवान जी ने आपको पैदा करने से पहले पूछा था कि आप हिन्दू के घर पैदा होना चाहती है या मुसलमान के घर??? रूद्र के सवाल पर सभी ख़ामोश थे तब ही पिछे से अजय भी उसे ढूंढता हुआ आ गया मगर रूद्र का सवाल सुनकर उसके क़दम भी जहां थे वहीं रुक गए। रुद्र----नही ना चाची!!! पता है क्यों?? क्योंकि उसने तो हम सबको सिर्फ इंसान बनाया था, हिन्दू-मुस्लिम तो इस दुनिया ने बनाया है हमको...... रुद्र-----हम में से किसी से भी भगवान ने नही पूछा था.....ना आप से, ना मुझसे, ना उससे.......फिर उसको मुझसे अलग रहने को मजबूर क्यों किया जा रहा है......क्यों सबकी नज़रों में मैं ग़लत बन गया हूं??? क्यों मेरी मोहब्बत को सब गुनाह समझ रहे हैं??? आप सब ही चाहते थे ना कि मैं शादी कर लूं, आज जब मुझे किसी से प्यार हो गया तो आप लोग चाहते हैं मैं उसे भुल जाऊं क्योंकि वो मुसलमान है। 27 साल तक आप लोगों ने मुझे पाला-पोसा, बेइंतेहा प्यार किया, मैं आप सबकी आंखों का तारा इस घर का सबसे ज़्यादा लाडला बेटा....... "एक मिनट में" सिर्फ एक मिनट में दादू!!!! मैं आप सबका दुश्मन बन गया, वो प्यार, वो फ़िक्र, वो ममता सब कुछ खत्म हो गया सिर्फ एक मिनट में!!! क्या यही सब सिखाता है धर्म, मुझे तो मेरे धर्म ने नफरत करना नही सिखाया दादू, मुझे ऐसे संस्कार ही नही दिए आपने---- रूद्र ने रोते हुए अपने दादू से कहा जो उसको बस सुन रहे थे, उनकी गुस्से से लाल आंखें अब ज़मीन पर टिकी थी। दादू जिससे आप प्यार करते हो उनके लिए लड़ना मैंने आपसे सिखा है, अपने शिव जी से सीखा है, अपने प्रेम के लिए अगर वो भैरों बन सकते हैं तो मैं क्यों इस दुनिया की बेबुनियाद नफरत से नही लड़ सकता। आपने मुझे सिखाया था अगर सवाल प्रेम का हो तो शिव जी का भैरों अवतार बन जाना..... सबकुछ त्याग देना प्रेम के लिए......मगर प्रेम को नही त्याग ना दुनिया के लिए। आज मैं आपके सामने हाथ जोड़ कर विनती करता हूं कि क्या आप धर्म के नाम पर होने वाले भेदभाव को खत्म नही कर सकते, क्या आप अपने गुरूर का त्याग नही सकते, अपने पोते के प्यार में। या आप भी बाकी सब की तरह इस दुनिया के बने बैठे, धर्म के ठेकेदारों के सवालों से डर कर, अपने पोते का त्याग करना ज़्यादा अच्छा समझते हैं। रुद्र-----दादू मैं उसके बगैर ज़िन्दा नही रह सकूंगा, मगर आप लोगों के बगैर सुकून से भी नही रह सकता, प्लीज़ मुझे खुद से अलग नही करना दादू मुझे इस दुनिया के रीति-रिवाजों की भैंट ना चढ़ाना--- रूद्र ने छोटे बच्चे की तरह रोते हुए अपने दादू से प्रार्थना की थी, वहां खड़े हर इंसान की आंखों में आसूं थे, उसका कहा हर लफ्ज़ सही और सच था मगर दुनिया की रीति-रिवाजों के बांध तोड़ कर सच और सही का साथ देना आसान नही होता बहुत मुश्किल होता है दुनिया के खिलाफ जाना, लाखों लोगों के सवालो का सामना करना इसी कशमकश में उसके दादू भी थे, जिनका दिल फट रहा था अपने जान से प्यारे पोते की आंखों में आंसु देख कर, उनके दिमाग में रूद्र का कहा हर शब्द गूंज रहा था...... क्या सच में उनका धर्म प्रेम करना, त्याग करना, दुसरो का मान रखना, एक-दूसरे की इज़्ज़त करना और इंसानियत नही सिखाता। यही सब तो उन्होंने हमेशा पड़ा था मगर कभी इतनी गहराई से धर्म को समझा ही नही जितना उनका पोता समझ चुका था। आज उनको इंसानियत और धर्म का अस्तित्व समझ आ रहा था, क्यों धर्म बनाए गए, क्यों गीता और क़ुरान पढ़ाए जाते हैं मगर अक्सर लोग सिर्फ पड़ते हैं, समझते नही...... धर्म को समझना आसान नही, लोगों की ज़िन्दगी गुज़र जाती है, मासूमों का खून बहा दिया जाता है और फिर भी खाली हाथ रह जाते हैं। आज भगवान ने उनके सामने भी इम्तेहान की घड़ी रख दी थी कि वो दुनिया के दिखाएं रास्ते पर धर्म के नाम पर नफरत को जन्म देंगे या भगवान का रूप धारण कर प्रेम के लिए, अपना घमंड, अपना क्रोध त्याग देंगे। वो धर्म कहा जो तोड़ दे रिश्ते, धर्म तो जोड़ता है अपनों को परायो को----वो यही सब सोच रहे थे कि रूद्र खड़े-खड़े गिर गया, उसके ज़मीन पर गिरते ही रघुवंशी परिवार में डर की लहर दौड़ गई, उसका जिस्म आग-सा तप रहा था, रोहित और अजय मिलकर फौरन रूद्र को ज़मीन से उठा, उसके कमरे में ले गए, जल्द ही जिया ने डाक्टर को भी बुला लिया था। डॉक्टर ने उसको चैक किया फिर जल्दी से उसको 2 इंजेक्शन लगाए, उसकी हर्टबीट बहुत धीमी हो गई थी, बुखार से जिस्म तप रहा था, हाथ से बहता खून तो रूक गया था मगर उसकी जली हुई कलाई पर ज़ख्म बहुत ज़्यादा गहरा था। डॉक्टर ने सबको बताया कि फिलहाल उससे कोई ऐसी बात ना करें, जिससे उसको टेंशन हो, क्योंकि वो अभी सदमे की हालत में है, इसलिए उसके होश में आने के बाद, इस बात का ख़ास ख्याल रखा जाए, नही तो वो अपना दिमागी संतुलन खो सकता है, वैसे आने वाले 24 घंटों में अगर उसका बुखार कम नही हुआ तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है-----यह कह कर डाक्टर साहब वहां से चले गए। डॉक्टर के जाते ही मुकेश रघुवंशी ने गुस्से में बाला को आवाज़ दी, जो उनका खास आदमी था। बाला अगले एक घंटे में किसी भी तरह मुझे वो लड़की और उसका बाप यहां मेरी आंखों के सामने चाहिए। यह सुनते ही अजय फौरन हाथ जोड़कर मुकेश रघुवंशी के सामने खड़ा हो गया। दादा जी, मुझे पता है, आप इस वक्त बहुत गुस्से में है मगर बस एक बार मेरी बात सुन लीजिए, कोई भी फैसला लेने से पहले पूरी कहानी सुन लेनी चाहिए, गुस्से में किए फैसले हमेशा सिर्फ तकलीफ देते हैं-----यह कह कर अजय ने हिम्मत करके सबकुछ बताना शुरू किया। बाकी अगले भाग में:- नोट:- आपको यह कहानी कैसी लगी, कमेंट बॉक्स में ज़रुर बताएं।
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भाग 2

10 अक्टूबर 2021
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छः महीने पहले :-<div><br></div><div>रूद्र कहा हों - जिया ने कमरे में क़दम रखते हुए कहा.....देखा तो व

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भाग 3

14 अक्टूबर 2021
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सुबह के 10 बज रहे थे और रूद्र अपनी आंखें बंद किए, सोफे पर सिर टिकाए उसी लड़की के बारे में सोच रहा था

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भाग 4

31 अक्टूबर 2021
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अच्छा, ठीक है-ठीक है, गुस्सा नही हो, मैं तो बस यह कह रहा था एक बार उससे बात तो कर लेना, ताकि उसके दि

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भाग 5

25 नवम्बर 2021
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अमित जी------सर मैंने पूरी कोशिश की थी मगर इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल बहुत सख्त है, मैंने रिश्वत दे

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भाग 6

7 दिसम्बर 2021
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मलिक हाउस:-<div><br></div><div>यह है दुआ के मामा का घर, बहुत ही बड़ा और आलीशान, रात के अंधेरे में चा

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भाग 7

7 दिसम्बर 2021
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अमित जी ने अभी यू-टर्न लिया ही था कि उस लड़की के सामने, नीले रंग की बड़ी सी गाड़ी रुक जाती है, जिसक

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भाग 8

8 दिसम्बर 2021
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आकिब घर वापस आते ही, दुआ के कमरे में जाता है तो देखता हैं, दुआ की आंखे अभी भी नम थी।<div><br></div><

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भाग 9

8 दिसम्बर 2021
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रात कब गुज़र जाती है, मुकेश रघुवंशी को पता ही नहीं चलता, रुद्र उनकी आंखों का तारा, उनके दिल की धड़कन

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भाग 10

30 दिसम्बर 2021
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रुद्र दरवाज़ा खोल कर अंदर जाता है, तो दुआ नज़रें झुकाए उसका इंतेज़ार कर रही होती हैं, इस पल उसे ऐसा

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भाग 11

5 जनवरी 2022
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अगले दिन सभी लोग फंक्शन की तैयारी में जुटे थे, धीरे-धीरे मेहमान भी आना शुरू हो गए थे, रुद्र भी बाकी सबके साथ फंक्शन की तैयारी में लगा था, दादू के हुक्म पर दुआ कमरे में ही आराम कर रही थी और जिया के कहन

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भाग 12

5 जनवरी 2022
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20-25 दिन गुज़र जाते हैं मगर अब तक दुआ का दिमाग़ वहीं फरहान सिद्दीकी की बातों में अटका होता है, जिसकी वजह से दिन-ब-दिन उसकी तबीयत बिगड़ने लगती है, उसके दिल में एक अजीब सा डर घर करने लगता है, सब लोग उस

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