अमित जी------सर मैंने पूरी कोशिश की थी मगर इस युनिवर्सिटी की प्रिंसिपल बहुत सख्त है, मैंने रिश्वत देने की भी कोशिश की मगर वो किसी भी कीमत पर स्टूडेंट्स की डीटेल देने के लिए तैयार नही हैं........ उसका कहना है........ दिल्ली यूनिवर्सिटी में हज़ारों लड़किया पड़ती है, सिर्फ एक लड़की को ढूंढने के लिए वो सबकी डीटेल, हमें नही दे सकती....
हां मगर मेरी मिन्नतें करने पर, उसने हमको एक मौका दिया है---- अमित जी ने अहान का बुझा हुआ चेहरा देख, थोड़ा उत्सुकता जगाते हुए कहा।
कल युनिवर्सिटी में इंडिपेंडेंस डे सेलिब्रेशन है...... प्रिंसिपल के हिसाब से लगभग कल सभी स्टूडेंट्स आएंगे, तो हम अपने तौर पर उसे ढूंढ सकते हैं....आप फ़िक्र नहीं करें, कल हम उसे ज़रूर ढूंढ लेंगे।
अहान खामोशी से पूरी बात सुनकर, अमित जी से कुछ कहें बगैर ही ड्राइवर को चलने का इशारा करता है.......
उसका चेहरा देख कर कोई भी उसके अन्दर की मायूसी को महसूस कर सकता था...... क्योंकि वो दिल्ली बहुत उम्मीद से आया था, मगर प्रिंसिपल के साफ इंकार ने उसके अन्दर एक मायूसी पैदा कर दी थी।
छाया-----दुआ यार, अगर कल तू नही आएगी तो किसी को भी अच्छा नही लगेगा, और फिर हम दोनों ने कल की परफॉर्मेंस के लिए कितनी तैयारी की थी, मैं परफॉर्मेंस अकेले नही कर सकती।
छाया जब तक नानू की तबीयत पूरी तरह ठीक नही हो जाती, मैं युनिवर्सिटी नही आऊंगी, प्लीज़ मुझे फोर्स नही कर-------दुआ ने मायूसी से कहा।
छाया जानती थी दुआ ने बहुत मेहनत की थी इस परफोर्मेंस के लिए, वो बहुत एक्साइटेड भी थी, लेकिन अचानक नानू की तबीयत बिगड़ने से सब रखा रह गया क्योंकि उसके लिए सबसे पहले उसकी फेमिली थी फिर कुछ ओर, वो बहुत मज़बूत थी मगर उसका दिल छोटे बच्चे की तरह था, दिल की मर्ज़ी का ना हो तो फौरन बच्चे की तरह उदासी चेहरे पर फैल जाती, जिसे वो हंस कर छुपाने की कोशिश तो करती, मगर हमेशा नाकामयाब हो जाती।
काफी समझाने के बाद भी जब दुआ नहीं समझी तो आखिर छाया ने हार मानते हुए कहा--------ठीक है दुआ, जैसा तुझे ठीक लगे और स्टडी की तू फ़िक्र नही कर, जब तक तू छुट्टियों पर है, मैं रोज़ाना तुझे नोट्स सेंड कर दिया करूंगी.......बस, अगर तू कल आ जाती तो मुझे बहुत अच्छा लगता, खैर अभी तेरा नानू के साथ होना ज़्यादा ज़रूरी है, चल कोई नही, मैं फोन रखती हूं, बाय.....
अगले दिन अहान, अमित और उनके बाकी लोग सभी स्टूडेंट्स को आते-जाते घोर से देखते हैं, कि कहीं वो नज़र आ जाए मगर सुबह से शाम हो जाती है, सभी स्टूडेंट्स घर वापस जाने लगते हैं लेकिन वो उन लोगों को नही मिलती, देखते ही देखते चपरासी भी युनिवर्सिटी का दरवाज़ा बंद करने लगता है मगर वो लोग तब भी वही खड़े होते हैं, अहान की नज़रें अभी भी इधर-उधर उसको ढूंढ रही होती है।
अमित जी तुमने तो कहा था कि आज सभी स्टूडेंट्स आए हैं, हम उसको ज़रूर ढूंढ लेंगे मगर देखो क्या हाथ लगा हमारे, वहीं नाकामयाबी और वहीं इंतेज़ार, ऐसा लग रहा है जैसे यह वक्त मुझ पर हंस रहा है------अहान ने अपना हाथ गाड़ी के बोनट पर मारते हुए कहा।
सर, परेशान नही हो, मैंने प्रिंसिपल से बात कर ली है, अगर आपको लगता है, वो हमको यही मिलेगी तो हम कुछ और दिन उसे यहां ढूंढ सकते हैं, आज हो सकता है वो नही आई हो, किसी वजह से मगर जल्दी एग्ज़ाम्स स्टार्ट होने वाले हैं, ऐसे वक्त पर कोई भी स्टूडेंट् क्लासिस मिस नहीं करेगा.....आप नाउम्मीद नही हो, हम उसको ज़रूर ढूंढ लेंगे सर-----अमित जी ने अहान को विश्वास दिलाते हुए कहा।
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रुद्र दुआ के करीब आते हुए, उसका हाथ पकड़ लेता है, दुआ इससे पहले कुछ कहती वो उसके सामने घुटनों के बल बैठ जाता है।
रूद्र-----दुआ मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं प्लीज़, बस एक बार हां कह दो, वादा करता हूं, पूरी दुनिया से लड़ जाउंगा मगर तुम्हारा साथ कभी नही छोड़ूंगा, तुम सोच भी नही सकती, कितना प्यार करता हूं मैं तुमसे, तुम्हारे बगैर मेरी सांसें बेमानी है दुआ, प्लीज़ हां कह दो।
रूद्र तुम जो चाहते हो वो नही हो सकता-----यह कह कर दुआ अपना हाथ छुड़ा कर जाने के लिए मुड़ती है मगर तभी गाने की धुन सुनकर वो आगे नहीं बढ़ पाती........रूद्र गिटार बजाते हुए गाना शुरू करता हैं।
तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो....
तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....
है गुज़ारिश....
है हाल तो दिल का तंग-तंग, तू रंग जा मेरे रंग-रंग, बस चलना मेरे संग- संग,
है गुज़ारिश......
कह दें, तू "हां" तो ज़िन्दगी, चैनो से छूट के हंसेगी, मोती होंगे, मोती राहों में, येह-येह-येह
तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....
है गुज़ारिश.....
शी-शे के ख्वाब लेके, रातों में चल रहा हूं, टकराना जाऊं कहीं,
आशा की लों है रौशन, फिर भी तूफान का डर है, लौ बूझ ना जाए कहीं,
बस एक हां की गुज़ारिश, फिर होगी खुशियों की बारिश,
तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....
है गुज़ारिश....
दुआ जाने के लिए फिर क़दम बढ़ाती है मगर रूद्र गाना गाते हुए उसका हाथ खींच कर, उसे अपने करीब कर लेता है।
चंदा है, आसमां है और बादल भी घने हैं यह चंदा छूप जाए ना,
तनहाई डस रही है और धड़कन बढ़ रही है, इक पल भी चैन आए ना,
कैसी अजब दास्तां है, बैचेनिया बस यहां हैं
तू मेरी अधूरी प्यास-प्यास, तू आ गई मन को रास-रास, अब तो तू आजा पास-पास.....
है गुज़ारिश.....
है हाल तो दिल का तंग-तंग, तू रंग जा मेरे रंग-रंग, बस चलना मेरे संग- संग,
है गुज़ारिश......
कह दें, तू "हां" तो ज़िन्दगी, चैनो से छूट के हंसेगी, मोती होंगे, मोती राहों में, येह-येह-येह.....
रूद्र अपने ख्वाबों में गुम था कि तभी अजय रूद्र के केबिन में आता है और देखता है.......रुद्र अपनी कुर्सी से सिर टिकाए सो रहा था और सोते हुए मुस्कुरा भी रहा था, जैसे कोई खुबसूरत सपना देख रहा हो......
अजय टेबल पर ज़ोर से फाइल रख कर, उसे आवाज़ देता है--------रूद्र-रूद्र!!!
रूद्र फौरन होश में आ जाता है और इधर-उधर देखते हुए दुआ को आवाज़ देता है।
अजय मुस्कुराते हुए------होश में आ मेरे दोस्त, यह रघुवंशी इंडस्ट्री है तेरा ऑफिस, मिस्टर सिद्दीकी का अस्पताल नही, जहां दुआ जब चाहे तब चली आएं......वैसे तू ने, दिन में सपने देखना, कब से शुरू कर दिया???
रूद्र----न-नही तो, मैं तो कल की मीटिंग के बारे में सोच रहा था, तू बता प्रेज़ेंटेशन का क्या हुआ।
अजय----रुद्र अब तू मुझसे भी छुपाएगा।
नही, ऐसी कोई बात नही है, बस अचानक आंख लग गई थी और कुछ नही।
अजय----अच्छा!! यह बता, दुआ को प्रपोज़ कब कर रहा है???
रूद्र----नही यार, अभी नही.....
अजय-----फिर कब रूद्र???
रूद्र----- अभी उसकी नानी की तबीयत ठीक नहीं है, ऐसे में मैं उसे परेशान नही कर सकता और मैं उसके चेहरे की उदासी भी बर्दाश्त नही कर सकता, इसलिए कुछ दिन, मैं सिद्दीकी हाउस नही जाउंगा और फिर अभी दादू के दिल में भी कोई खास जगह नही बन पाई है दुआ के लिए.....
अजय----तो फिर आगे क्या करना है????
रूद्र-----इधर आ बताता हूं, और फिर रूद्र पूरा प्लान अजय को बता देता है......अजय प्लान सुनते ही फौरन रूद्र से दूर हट जाता है।
अजय----तू पागल हो गया है????......देख रूद्र मैं ऐसा कुछ नही करने वाला, तू चाहता है, मैं दुआ का पर्स और फोन चुराऊ......मैं ऐसा नही कर सकता!
रूद्र----तू तो मेरा सच्चा दोस्त हैं ना, यार प्लीज़ मान जा, अगर तू मेरी मदद नही करेगा तो कौन करेगा????
अजय------ देख, यह काम कौन करेगा मुझे यह तो नही पता, मगर इतना ज़रूर पता है कि अगर मैंने तेरी बात मान ली और गलती से पकड़ा गया ना, तो तेरी वो झांसी की रानी ज़िन्दा नही छोड़ेंगी मुझे और अगर मैं उसके हाथों से किसी तरह बच भी गया तो तेरे दादा जी सवाल पूछ-पूछ कर मेरी जान ले लेंगे।
रूद्र------इसलिए ही तो अजय, मेरे दोस्त, मैं तुझसे यह सब करने को कह रहा हूं, क्योंकि मुझे पता है तू कुछ भी करेगा मगर पकड़ा नही जाएगा...... अब किराए के गुंडों का क्या भरोसा........वो तो बाला के 2-4 हाथ खाते ही सब उगल सकते हैं मगर तू .......तू खुद को उनके हाथ लगने ही नही देगा.... है ना?????
अजय------यार, ऐसे आइडियाज़ तुझे आते कहा से है…... सोच ज़रा, अगर तेरे दादू ने दुआ की हेल्प नही की तो उस बेचारी का क्या होगा.....हो सकता है इस बार तेरी चाल उल्टी पड़ जाए।
रूद्र------तू उसकी फ़िक्र नहीं कर मेरे प्यारे दोस्त, वो मेरे दादू है, मैं उनको बहुत अच्छे से जानता हूं, तू बस यह सोच कि तूने अपनी होने वाली भाभी और बाला के हाथों से कैसे बचना है।
अजय बुरी सी शक्ल बनाते हुए-----तू मानेगा नहीं ना???
रूद्र---- बिल्कुल भी नहीं!!
अजय---- ठीक है, तो चलते हैं मेरी कुर्बानी देने।
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पांच दिन बाद:-
अमित जी और उसके साथ 4-5 लोग, आते-जाते सभी स्टूडेंट्स को दुआ का स्कैच दिखा-दिखा कर उसको ढूंढने की कोशिश कर रहे थे, मगर एक भी स्टूडेंट् उस चेहरे को पहचानने के लिए तैयार नही था, अब अमित जी और बाकि सभी लोग थक चुके थे, उस अनजान चेहरे को ढूंढ-ढूंढ कर मगर अहान का दिल अब भी यही कह रहा था कि वो यही कहीं है, उसे लग रहा था कि वो उसके पास ही है, बस दिखाईं देने की दैर है.......उसका दिल कह तो सच रहा था, लेकिन जब किस्मत में ही मिलना ना लिखा हो, तो लोग नज़र के सामने होते भी मिल नही पाते और शायद अहान की किस्मत में भी दुआ से मिलना नही लिखा था, तभी तो शहर-शहर भटकने के बाद आज वो अपनी मंज़िल के इतने क़रीब होते हुए भी इतना दूर था।
अमित जी----- सर लगभग हमने पूरी युनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स को यह स्कैच अच्छे से दिखा-दिखा कर पूछताछ की है, मगर इस चेहरे को कोई नही जानता, अगर वो यहां होती तो कोई तो पहचानता, हमको यहां एक हफ्ता हो गया है, मेरा ख्याल है, हमको बाकि के दो शहरों में उसे ढूंढना चाहिए।
अहान मायूसी से युनिवर्सिटी की तरफ देखते हुए-----ठीक है, पहले हैदराबाद चलते हैं फिर जयपुर चलेंगे.....सब लोगों से कहो, चलने की तैयारी करें।
अगले दिन :-
दुआ अपनी क्लास में पहुंचती है तो सभी उसको अजीब नज़रों से देखते हैं, पूरा वक्त सभी स्टूडेंट्स उसको देख-देख कर काना-फूसी करते हैं, जिससे दुआ बहुत परेशान हो जाती है और क्लास खत्म होते ही, छाया का हाथ पकड़, तेज़ क़दमों से बाहर निकल जाती है।
दुआ--------छाया सब लोग ऐसे बिहेव क्यों कर रहे हैं, मैं इंडिपेंडेंस डे पर परफॉर्म नही कर सकी क्योंकि मेरी मजबूरी थी, मुझे पता है, लास्ट टाइम पर कोई इंकार करें तो बहुत बूरा लगता है मगर यह तो कोई तरीका नही होता।
छाया-------दुआ तू ग़लत समझ रही है, मैं तुझे सब बताती हूं, दरअसल अच्छा ही हुआ कि तू पिछले दिनों युनिवर्सिटी नही आई, मैं तो यही कह रही थी भगवान से, कि जब तक वो लोग हार मान कर नही चलें जाते, तू युनिवर्सिटी ना आए।
दुआ----कौन-से लोग छाया, तू किसकी बात कर रही है???
छाया----अरे!! 5-6 दिनों से, कुछ लोग सभी स्टूडेंट्स को तेरा स्कैच दिखा कर पुछताछ कर रहे थे, जब उन्होंने मुझसे पूछा तो मैंने मना कर दिया और अपनी क्लास में, केंटिन के लोगों से और जितने भी लोग तुझे जानते हैं, उन सभी से रिक्वेस्ट की थी कि कोई भी तेरे बारे में उन लोगों को कुछ ना बताए...... और देख भगवान का करिश्मा कल ही वो लोग थक कर वापस गए हैं और आज तू युनिवर्सिटी आ गई।
दुआ-----मगर वो लोग थे कौन और मुझे क्यो ढूंढ रहे थे????
छाया----यह तो किसी को नही पता, बस इतना पता है कि उनका बाॅस तुझसे मिलना चाहता था, रोज़ाना युनिवर्सिटी के सामने एक बड़ी सी गाड़ी खड़ी होती थी, जिसमें उनका बाॅस बैठा रहता था और उसके आदमी तुझे ढूंढते रहते थे.....इसी वजह से आज सब लोग तुझे देख कर ऐसे रिएक्ट कर रहे हैं, तू माइंड नही कर।
दुआ----- तो तूने मुझे बताया क्यों नही, इतना सब हो गया एक बार तो बताना चाहिए था ना।
छाया----- हां ताकि तू झांसी की रानी बन कर यहा आ जाती और ज़बरदस्ती एक नई मुसीबत अपने गले डाल लेती......देख दुआ जो होता है ना, अच्छे के लिए होता है, और वैसे भी, अब तक रूद्र नाम की मुसीबत नही टली, तो प्लीज़ तू अभी एक और मुसीबत को गले लगाने की नही सोच.... वो लोग चले गए बात खत्म।
दुआ----- अब ऐसे भी बात नहीं कर उसके बारे में, रूद्र मुसीबत नही है बल्कि वो तो मदद करने वालों में से हैं।
छाया हैरानी से आंखें चौड़ाते हुए------- क्या??
मेरे कान खराब हो गए हैं क्या???? यह मुझे क्या सुनाई दे रहा है, तू रूद्र की तारीफ कर रही है??? कुछ दिनों पहले तक, तू ही उसे आवारा, निकम्मा, बदतमीज़ और पता नहीं क्या-क्या कह रही थी, और आज उसकी ही तारीफ कर रही है।
दुआ----- हां, क्योंकि तब तक, मैं उसे ग़ैर ज़िम्मेदार इंसान समझती थी जिसको किसी से कोई मतलब नहीं, जो सिर्फ लड़कियों के आगे-पिछे फिरता है मगर वो ऐसा नही है, जब नानू की तबीयत खराब हुई तब मेरे तो हाथ-पैर ही फूल गए थे, समझ ही नही आ रहा था कुछ मगर उसने एक मिनट की भी दैर नही की, अगर उस दिन वो नानू को सही वक्त पर अस्पताल नही लेकर जाता तो शायद हम लोग नानू को खो चुके होते।
छाया मुस्कुराते हुए----ओहह! कहीं ऐसा तो नहीं, मेरी नखरीली दोस्त को जनाब पसंद आ गए हैं।
दुआ------ ऐसा कुछ नही है छाया और ऐसा कभी हो भी नही सकता, मैं मर जाऊंगी मगर अपने बाबा का सिर नही झुकने दुंगी.....मैं तो बस यह कह रही हूं कि वो वैसा नही है जैसा हम सोचते थे, उसने हम सब पर बहुत बड़ा एहसान किया है और अब मेरा पूरा परिवार उसकी काफी इज़्ज़त भी करता है।
छाया----- अच्छा, ठीक है-ठीक है, मैं बस मज़ाक कर रही थी, सीरियस नही हो.....चल मूड ठीक कर, बहुत दिन हो गए हैं आज नत्थू के समोसे खाते हुए चलते हैं।
दुआ मुस्कुराते हुए-----ओके!!
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कहते हैं वक्त बहुत बलवान होता है, वो किसी के लिए नही रूकता और वक्त के साथ जो चलते हैं, हार नही मानते वो एक ना एक दिन ज़रूर जीत जाते हैं.........शुरू में मंज़िल पाना नामुमकिन ही क्यों न हो, अगर लगातार कोशिश की जाए तो एक दिन नामुमकिन भी मुमकिन हो जाता है......ऐसा ही कुछ रूद्र के साथ भी हो रहा था, जिस तरह से रूद्र लगातार कोशिश कर रहा था, उससे दुआ के दिल में कहीं ना कहीं उसके लिए जगह बनती जा रही थी, साथ ही वो किसी ना किसी तरह हर हफ्ते दादू और दुआ की मुलाकातें भी करवा रहा था जिससे धीरे-धीरे दादू भी दुआ को पसंद करने लगे थे, अब तक रूद्र ने जैसा सोचा था सबकुछ वैसा ही हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे भगवान शिव जी भी उसके साथ है......
दुआ को अब उसका आना अच्छा लगने लगा था मगर वो खुद को रोकने की हर मुमकिन कोशिश कर रही थी, दिखावे का ही सही, मगर हर बार वो उस पर गुस्सा करती और चलें जाने के लिए कहती........और वो हर बार एक ही बात कहता "मोहब्बत की है, मज़ाक नही" तुम मानो या ना मानो एक दिन तुम्हें मुझसे मोहब्बत होकर रहेगी।
इसी तरह धीरे-धीरे 3 महिने कब गुज़र गए थे, पता ही नही चला, इस बीच दुआ ने हर मुमकिन कोशिश की थी कि वो रूद्र के बारे में ना सोचें, उससे दूर रहें, क्योंकि वो अपनी हदें जानती थी, उसको पता था इस राह पर उन दोनों के लिए सिर्फ कांटे हैं और उनके घरवालों के लिए सिर्फ लोगों के ताने और दुनिया भर की ज़िल्लत, मगर जब किस्मत में ही बर्बाद होना लिखा हो तो समझदार से समझदार इंसान भी ठोकर खा कर गिर ही जाता है......
दुआ उसको अपने घर आने से नही रोक सकी थी क्योंकि उसके साथ-साथ वो उसके सभी घरवालों के दिल में अपनी जगह बना चुका था, यहां तक, उसके घर के नौकर भी उसके आने पर ऐसे खुश हो जाते जैसे उनको छुट्टी मिल गई हो..... अक्सर वो आकिब को पढ़ाने के बाद, कभी सभी को इकट्ठा कर, क्रिकेट खेलता तो कभी फुटबॉल तो कभी-कभी कैरम बोर्ड और लूडो ऐसा लगता जैसे सब पिकनिक मना रहे हैं.......अम्मी और नानी उसके लिए कभी पकोड़े तो कभी कुछ अपने हाथों से बनाती, जिसे वो खूब तारीफ कर-करके खाता और उन दोनों को भी अपने हाथ से खिलाता, कभी अम्मी या नानू के हाथ-पैरों में दर्द होता तो वो उनकी बहुत अच्छे से मालिश करता तो वो दोनों उसके सिर पर हाथ रख ढेरों दुआ देती, बहुत ही कम समय में उसने अपनी जगह बहुत मज़बूत बना ली थी, अब दुआ के पास एक ही रास्ता था कि वो खुद कहीं दूर चली जाएं, तभी वो आने वाले तूफान को रोक सकती थी।
रूद्र इधर-उधर नज़रें घुमाते हुए दुआ को ढूंढता है लेकिन वो उसको नज़र नही आती, अक्सर वो उनके घर बस 1-2 घंटे रूकता था मगर आज 4 घंटे गुज़र गए थे लेकिन वो आकिब को पढ़ाएं ही जा रहा था।
आकिब-----भईया, बस करें अब बाद में पढ़ेंगे, मैं थक गया हूं, देखे ना चार घंटे से हम पढ़ाई ही कर रहे हैं, इससे पहले रूद्र उसकी बात का कुछ जवाब देता, उसकी निगाह सामने से आते हुए डाक्टर सिद्दीकी पर पड़ती है.....उनको देख वो फौरन ही खड़ा हो जाता है।
रूद्र ऐसे खड़ा होता है जैसे उसने डाक्टर सिद्दीकी को देखा ही ना हो--------- ठीक है आकिब, आज के लिए बहुत हो गया, मैं अगले हफ्ते आऊंगा तो तुम्हारा टेस्ट लुंगा, एग्ज़ाम्स स्टार्ट होने वाले हैं, इस बार तुम्हें टोप करना होगा......
वो यही कह रहा होता है कि पिछे से डाक्टर सिद्दीकी कहते हैं.....बिल्कुल आकिब, इस बार तुम्हें हमारा नही, अपने रूद्र भईया का मान रखना होगा, देखो वो तुम्हारे साथ कितनी मेहनत कर रहे है, रात के नौ बज गए मगर तुम्हारी एक्सरसाइज कम्प्लीट करने के चक्कर में अब तक घर नही गए।
रूद्र बिल्कुल अंजान बनते हुए----- अरे अंकल, आप कब आए?????
नौ बज गए???..... मुझे तो पता ही नही चला वक्त का, अच्छा, अब मुझे चलने की इजाज़त दें!
डाक्टर सिद्दीकी मुस्कुराते हुए--------अरे!! बरखुरदार, थोड़ी देर हमारे साथ भी बैठ जाओ कभी, अच्छा ऐसा करते हैं, मैं तुम्हारी आंटी से कहता हूं, वो जल्दी से खाना लगवा लें, इतनी देर में, मैं जल्दी से फ्रेश हो कर आता हूं।
रूद्र------नही अंकल, प्लीज़ रहने दीजिए, फिर कभी सही, अभी मैं जाता हूं।
डाक्टर सिद्दीकी नाराज़गी से-------यह क्या बात हुई रूद्र, एक तरफ खुद को इस घर का बेटा कहते हो और दुसरी तरफ, हम लोगों के साथ बैठ कर खाना भी नही खा सकते।
रुद्र----- अंकल ऐसी बात नही है बस मैं तो....... वो अपनी बात पूरी करता इससे पहले ही डाक्टर सिद्दीकी कहते हैं------ तो तय हुआ, आज डिनर तुम हम लोगों के साथ कर रहे हों, तुम बैठो, मैं बस थोड़ी देर में आया।
यह कह कर वो चलें जाते हैं, रूद्र का दिल तो बिल्कुल नहीं होता मगर वो दुआ को भी देखना चाहता है, इसलिए डिनर के लिए रूक जाता है........ टेबल पर सभी होते है मगर बस दुआ ही नही होती, रूद्र की नज़रें पूरे वक्त उसे ढूंढती रहती है मगर वो कही दिखाई नही देती, सब खाना खा चुके होते है थोड़ी देर बातें करने के बाद रूद्र जाने की इजाज़त मांगता है मगर तब भी उसकी निगाहें दुआ को ढूंढ रही होती हैं, डाक्टर सिद्दीकी उसे घर के बाहर तक छोड़ने जाते हैं, वो मायूसी से कार स्टार्ट कर घर की तरफ चल देता है।
दुआ को ना पाकर उसका मूड काफी खराब हो जाता है, उसे समझ नही आता, दुआ गई तो कहा गई, आज वो उसके सामने क्यों नही आई, उसका दिल तो चाह रहा था कि वो आकिब से उसके बारे में सीधा पूछ लें.........मगर उसकी यह हरकत किसी को भी खटक सकती थी इसलिए उसने अगले हफ्ते तक का इंतेज़ार करना सही समझा....... मगर उसका दिल ना घर में लग रहा था ना ऑफिस में..... कभी वो ऑफिस में छोटी-छोटी बात पर इम्प्लॉइज़ को डांटता तो कभी बेवजह किसी पर चिखता तो कभी मीटिंग्स केंसिल कर देता, पुरा हफ्ता गुज़ारना उसके लिए बहुत मुश्किल हो गया था........ ऑफिस में सभी लोग उसके सामने आने से बचने लगे थे उसके बिगड़े मूड की वजह से, किसी तरह आखिर एक हफ्ता गुज़र ही गया....... रूद्र ने सुकून की सांस तब ली जब वो दुआ के घर पहुंच गया, इस उम्मीद में कि आज तो वो उसको देख लेगा।
रूद्र लिविंग रूम में आते हुए-----हेलो आकिब, और क्या हो रहा है।
आकिब मुस्कुराते हुए उसके पास आकर------ रूद्र भईया, आज तो आप जल्दी आ गए??
रूद्र---- हां, आज थोड़ा जल्दी फ्री हो गया था, अच्छा, अब जल्दी से अपनी नोटबुक ला, आज मैंने टेस्ट लेना है।
आकिब जल्दी से अपने कमरे से अपना समान ले आता है और फिर रूद्र उसे कई सारे सवाल हल करने को दे देता है, आधा घंटा गुज़र जाता है मगर आज भी दुआ उसके सामने नही आती......
रूद्र-----आकिब सारे घरवाले कहा है, मेरा मतलब है आज कोई नही दिख रहा।
आकिब----- भईया, डैड तो अस्पताल गए हैं, नानू अपने कमरे में सो रही है और अम्मी आपके लिए किचन में कुछ पका रही है।
अच्छा!!!!
रूद्र अपने दिल में------ मोटू कहीं का, बेवकूफ नम्बर वन, सब के बारे में बता दिया मगर जिसके बारे में पता करना है उसका नाम भी नही ले रहा।
रूद्र गला साफ करते हुए------अच्छा, वैसे आजकल तुम्हारी आपी कोई नया सवाल नही दे रही, क्या बात है, उनकी तबीयत खराब है या मुझसे हार मान गई।
आकिब हंसते हुए-----अरे भाई!!! आपी हार मान लें ऐसा हो ही नही सकता, वो तो यहां है नही, इसलिए ही तो घर में इतनी शांति है, मेरा मतलब है वो घर में होती है तो मेरे पिछे पड़ी रहती है, अब पता नही बिचारा आमिर उनसे बच कर कहा छुपता फिर रहा होगा??
रूद्र------ हम्मम!!! यह आमिर कौन है???
आकिब-----आमिर हमारे मामा का छोटा बेटा है, मेरी ही उम्र का है तो आपी उसको भी, हमेशा पढ़ने के लिए कहती रहती है, इसलिए वो भी उनसे छुपता रहता है
रूद्र अपने मन में, अब कैसे पता करूं कि मामा कहा रहते हैं........ फिर थोड़ा सोचते हुए बोलता है-------लगता है, मामा का घर पास ही है तभी तुम्हारी आपी, तुम्हारे बगैर चली गई।
आकिब मुंह बनाते हुए------ पास नही, बहुत दूर है "सिंगापुर" में.....आपी तो 20 दिन पहले ही चली गई, रेशमा आपी की शादी में, मैंने जाने को कहा तो सबने मना कर दिया, यह कह कर कि मेरी पढ़ाई का नुक़सान हो जाएगा।
रूद्र------ओह!!! यह तो बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ मगर बाकि सब क्यों नही गए???
आकिब-----आपी तो इसलिए चली गई, क्योंकि यहां उनको कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, उन्होंने डैड से जाने की ज़िद्द की तो बस सबने उनको भेज दिया और मैं यहीं रह गया..... मगर फिर मेरे बहुत ज़िद्द करने पर डैड मुझे भी सिंगापुर ले जाने के लिए तैयार हो गए, अब मैं भी सब लोगों के साथ, सिंगापुर जाऊंगा।
रूद्र---- अच्छा, तो कब जा रहे हो सिंगापुर???
आकिब----- अगले बुधवार की फ्लाइट है।
रूद्र-----चलो, यह तो बहुत अच्छी बात है, अच्छे से इंजाय करना, वैसे भी सुबह की फ्लाइट से सुरज को देखने में बहुत मज़ा आता है।
आकिब-----अरे नही भईया, हमारी फ्लाइट तो शाम को सात बजे की है, तब तक तो सुरज डूब भी जाएगा।
रूद्र हंसते हुए-----कोई नही, तो तुम चांद को इंजाय कर लेना।
तभी रूद्र का फोन बजने लगता है, वो फोन उठाकर, बात करते हुए बाहर चलें जाता है, दो मिनट बाद अंदर आता है।
रूद्र फोन काटते हुए-----आकिब एम् सोरी, एक ज़रूरी काम आ गया है, अभी जाना होगा, तुम्हारा यह टेस्ट मैं घर पर चैक कर लुंगा और अगली बार पक्का ज़्यादा टाइम दुंगा मगर अभी मेरा जाना ज़रूरी है।
आकिब----- कोई बात नही भईया, आप जाओ।
***************
अजय-------यह फ्लाइट बुक नहीं हो रही है रूद्र, पहले से ही एयरक्राफ्ट फुल बुक्ड है, कोई आप्शन नही है।
रूद्र----- कोई तो तरीका होगा, कोई स्टाफ ट्रेवल ओप्शन, या बिज़नेस क्लास या फर्स्ट क्लास किसी में तो सीट होगी ना।
अजय-----नही रूद्र, मैं पहले ही सब चैक कर चुका हूं कोई ओप्शन नही है, हां इसके चार घंटे बाद जो फ्लाइट है उसमें सीट्स अवेलेबल हैं मगर वो कनेक्टिंग फ्लाइट है।
रूद्र सोचते हुए------ तेरी एक गर्ल फ्रेंड थी ना, क्या नाम था उसका----हा, रीटा, उससे पता कर, वो आई-जी-आई एयरपोर्ट पर अच्छी पोस्ट पर काम करती थी ना, उसके पास ज़रूर कोई रास्ता होगा।
अजय-----तू पागल हो गया है, उससे ब्रेकअप किए हुए भी छः महीने हो गए हैं, बहुत मारेगी वो मुझे.....चलना कुछ और सोचते हैं।
रूद्र------ प्लीज़ यार, अभी वही एक रास्ता है, मेरे लिए एक बार कोशिश कर लें!!!
अजय------ नही रुद्र, उससे बात करने का मतलब है, वक्त बर्बाद करना, वो मेरी हेल्प नही करेगी।
रूद्र---- प्लीज़, एक बार कोशिश कर लें।
अजय----- ठीक है, मैं देखता हूं!!!
यह कहते हुए, उसने रीटा का नम्बर डायल कर दिया, दो बार काॅल करने के बाद भी, जब रीटा ने काॅल रिसिव नही की तो रुद्र परेशान हो गया कि अब क्या करें.....अभी वो दोनों यही सोच रहे थे कि अजय का फोन बजना शुरू हो गया, देखा तो रीटा ने ही काॅल बैक की थी, अजय ने फौरन काॅल रिसिव कर ली।
अजय------ हेल्लो रीटा???
रीटा----- अजय!! आखिर इतने दिनों बाद मेरी याद आ ही गई तुमको, मुझे छोड़ने का पछतावा हो रहा है, मुझसे माफ़ी मांगना चाहते हो????
अजय गुस्सा कंट्रोल करते हुए------ हां, ऐसा ही कुछ समझ लो, जब से तुम गई हो तब से तुम्हारी कमी खलने लगी है, पिछले छः महीने मैंने तुमको कितना याद किया है, मैं बता भी नहीं सकता, दिन-रात बस तुम्हारे बारे में ही सोचते हुए गुज़ारे है मैंने, बहुत बार सोचा तुमको फोन कर लूं मगर हिम्मत ही नहीं हुई, हर बार दिल एक ही सवाल करता, क्या तुम भी मुझे ऐसे ही याद करती होंगी???
क्या आज भी तुम अपने अजय से प्यार करती हो??
दुसरी तरफ खामोशी थी, थोड़ी देर बाद अजय फिर बोलता है।
अजय----- मुझे तुम्हारा जवाब मिल गया रीटा, तुम मुझसे प्यार नही करती, साॅरी तुमको डिस्टर्ब करने के लिए........वो यह कह कर फ़ोन काटने ही वाला था कि रीटा बोल पड़ी।
रीटा------अब तुम क्या चाहते हो अजय ???
अजय----- बस एक मौका चाहता हूं, सबकुछ ठीक करने के लिए, सबकुछ पहले जैसा करने के लिए मगर शायद अब बहुत देर हो गई।
रीटा-----अजय, ठीक है, दिया मैंने तुमको एक मौका, मगर याद रखना यह आख़री मौका है।
अजय खुशी जताते हुए---- थैंक यू-थैंक यू- थैंक यू सो मच रीटा, तुम नही जानती, मैं कितना खुश हूं.....वैसे अभी तो शायद तुम जाॅब पर जा रही होंगी???.....चलों मैं बाद में फोन करता हूं।
रीटा----- नही, आज नाईट ड्यूटी है।
अजय------ हम्मम, यह तो अच्छी बात है, अब हम दोनों थोड़ी देर तो, आराम से बात कर सकते हैं।
रीटा--- हम्मम!!!
अजय---- वैसे तुम्हारी जाॅब कैसी चल रही है??
रीटा---- ठीक, तुम बताओ?
अजय-----बस नही पूछो यार, मेरे बाॅस ने मेरी ज़िन्दगी खराब कर रखी है।
रीटा---- क्यों, ऐसा क्या हो गया?
अजय------अरे!! वो क्या है ना, मेरे बाॅस को बुधवार, शाम सात बजे की फ्लाइट से सिंगापुर जाना है, मैंने उससे दो दिन पहले बोल दिया था कि हां टिकट बुक हो गई, मगर बुक नहीं की थी अब जब बुक करने बैठा तो सीट ही अवेलेबल नहीं है, अब क्या करूं समझ नही आ रहा, उसने तो कह दिया....
उसको उसी फ्लाइट से ट्रेवल करना है, अगर मैं उसकी टिकिट नहीं बुक कर सका तो वो मुझे जाॅब से निकाल देगा.......
रीटा सोचते हुए----- हम्मम!! प्रोब्लम तो बढ़ी है, ऐसा करो मुझे डिटेल सेंड कर दो, एक घंटे में बताती हूं।
अजय----- नही यार, तुम परेशान हो जाओगी, मैंने चैक किया है, किसी भी क्लास में सीट अवेलेबल नही है, अब कुछ नहीं हो सकता।
रीटा-----मैं कह रही हूं ना, तुम मुझे डिटेल सेंड करो, मैं देखती हूं।
अजय------ अच्छा ठीक है, अब तुम इतना कह रही हो तो मैं सेंड कर रहा हूं, मगर देखो ज़्यादा परेशान नही होना, ओके!!
अजय यह कहते हुए फोन रख कर लम्बी सी सांस लेता है और फिर जल्दी से रुद्र की डिटेल रीटा को सेंड कर देता है।
रूद्र----- तुझे लगता है, तेरी यह गर्लफ्रेंड हमारी मदद कर सकेगी??
अजय मुस्कुराते हुए------ रुद्र मेरे दोस्त, अब तू देख अजय का जादू, तू समझ, तेरा काम, बस हो ही गया।
रुद्र एक घंटे तक इधर-उधर घूमता रहता है, मगर रीटा का फोन नही आता।
रूद्र गुस्से से----- मैंने कहा था ना, वो ....... रूद्र इतना ही बोल पाया था कि रीटा का फोन आ जाता है।
अजय----- हेल्लो रीटा??
रीटा----- सोरी थोड़ी देर हो गई, मगर काम हो गया, अपना ई-मेल चैक करो, मैंने टिकिट सेंड कर दी है, स्टाफ ट्रेवल है, आई होप अब तुम्हारी जाॅब ख़तरे में नहीं होगी।
अजय------थैंक यू सो मच रीटा, मेरी मदद करने के लिए, मैं पहले टिकट चैक करके सर को भेजता हूं फिर तुमको फोन करता हूं......यह कह कर अजय ने फोन बंद कर दिया।
अजय मुसकराते हुए-------आखिर दिल वाले अपनी दुलहनिया सिंगापुर से लाकर ही मानेंगे, टिकट कंफर्म हो गई है, जाने की तैयारी शुरु कर दो दुल्हे राजा।
रूद्र, अजय के गले लगते हुए----- थैंक्स यार।
अजय----- अरे-अरे!! अभी बहुत से मौके आने वाले हैं, थैंक्स कहने के लिए।
रूद्र हंसते हुए----- हां क्यों नहीं, अब हर लव स्टोरी में, दोस्त ही तो बली का बकरा बनते है, और मेरा तो, तू ही एकलौता दोस्त हैं, अब आगे तुझे कुर्बान होना है, तो थैंक्स तो बनता ही है, कोई नहीं आगे भी कह दुंगा!!!
अजय आंखें चौड़ाते हुए------- रुद्र???
रुद्र------ अच्छा, अभी मुझे घर के लिए निकलना है, यह कन्वर्सेशन हम बाद में कंटिन्यू करते हैं।
रघुवंशी पैलेस:-
रूद्र----- मोम, काॅलेज के दोस्त की शादी है उसने बहुत मिन्नत करके बुलाया है, अब आपको तो पता है वैसे मुझे शादियों में जाने का कोई शौक नही, मगर मैंने सोचा इसी बहाने सिंगापुर का एक चक्कर भी हो जाएगा।
मुकेश रघुवंशी------- यह तो अच्छी बात है...... बहुत सही सोचा तुमने!!
बहु इसको जाने दो, पहली बार तो खुद से किसी की शादी में जाने के लिए तैयार हुआ हैं।
मुकेश रघुवंशी की बात सुनकर सभी चुप हो जाते हैं और रुद्र अपने दादा के गले लगते हुए----- थैंक्यू दादू, आई लव यू!!!
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सिंगापुर एयरपोर्ट :-
रूद्र फोन पर बात करते हुए------- हां, अजय फ्लाइट लैंड हो गई है, बस एयरपोर्ट से बाहर ही निकल रहा हूं......... वो अजय से बात करते हुए इधर-उधर किसी को ढूंढ रहा होता है कि तभी वो आगे चल रहे आदमी से टकरा जाता हैं, जिससे दोनों लोगों का समान गिर जाता हैं।
रूद्र अपना और उनका समान उठाते हुए------ एम सोरी अंकल, यह लीजिए आपका समान।
रूद्र हैरानी से----- डाक्टर साहब आप यहा??
डाक्टर सिद्दीकी-----अरे!! रूद्र बेटा, हम तो यहां आकिब के मामा के घर आए हैं, तुम यहां क्या कर रहे हो??
रूद्र याद करते हुए------ ओहह हा, याद आया, आकिब ने बताया था मुझे, वैसे मैं तो सिंगापुर बिज़नेस के सिलसिले में आया हूं.....मिस्टर शर्मा मुझे लेने आने वाले थे उन्हीं को ढूंढ रहा था तभी आपसे टकरा गया, शायद अब तक वो आए नही..... अंकल वैसे बाकी सब कहां है???
आकिब पिछे से आते हुए----- हम सब यहां है रूद्र भईया।
रूद्र मुस्कुराते हुए------हैलो आकिब, नानी कैसी है आपकी तबियत??? और आंटी आप कैसी हैं???
दुआ की नानी----- हम सब ठीक है बेटा मगर तुम यहां कैसे???
रूद्र मुस्कुराते हुए---- बस समझ लें नानी, आप लोगों से किस्मत जुड़ गई है मेरी, आप लोग यहां शादी में आए तो मैं बिज़नेस के सिलसिले में, खैर अब मैं चलता हूं, आप लोग अपना ख्याल रखियेगा।
नानी हंसते हुए---- कहा चलते हो, अब जब किस्मत जुड़ी है तो फिर साथ चलों!!
डाक्टर सिद्दीकी-----हा रूद्र!! यहां अकेले कहा रहोगे, जब अपना घर है तो होटल में क्यूं रहना???
रूद्र शरमाते हुए---- नही अंकल, अच्छा नही लगेगा, अब वो लोग तो मुझे जानते भी नहीं है, ऐसे कैसे बिन बुलाए मेहमान की तरह चला जाऊं???
नानी---- मेरे बेटे का घर है वो किसी गैर का नही, और बेटा तुमने मेरी जान बचाई है, उन लोगों को भी अच्छा लगेगा, अब जब अल्लाह ने मिला दिया है तो साथ चलों।
रूद्र झिझकते हुए------आप लोग मुझसे बड़े हैं, अब इतना कह रहे हैं तो मैं मना कैसे करूं, मगर मुझे थोड़ा अजीब लग रहा है।
डाक्टर सिद्दीकी मुस्कुराते हुए-----एक बार सबसे मिलोगे तो फिर अजीब नही लगेगा।
रूद्र----- अच्छा ठीक है अंकल, आप जैसा कहें, मैं ज़रा एक फोन कॉल करके, ऑफिस में बता दूं कि होटल से बुकिंग कैंसिल कर दें.....इतने आप लोग आगे चलें।
डाक्टर सिद्दीकी-----ठीक है रुद्र!!
यह कर सबसे आगे चलने लगते हैं, बाकी सब उनके पिछे चलें जाते हैं और रुद्र सबसे पिछे चलते हुए अजय को फोन पर खुशखबरी देता है कि सबकुछ प्लान के मुताबिक ही हो रहा है, कि तभी रूद्र फिर से, एक आदमी से टकरा जाता है।
रूद्र-----ओह भाई, ज़रा देख कर चल।
वो आदमी गुस्से से उसे घूरता है मगर वो कुछ कहता, इससे पहले दुसरा आदमी उसके पास आ जाता है.....
अहान सर आप गाड़ी में बैठिए, मैं इसे देखता हूं------अमित जी रूद्र को घूरते हुए कहते हैं।
रूद्र भी अमित जी को घूरते हुए-----ऐसे क्या देख रहा है???
अभी उन दोनों में झगड़ा शुरू ही होने वाला था कि डॉक्टर सिद्दीकी कार के पास खड़े, रूद्र को आवाज़ देने लगते हैं, रुद्र मौके की नज़ाकत समझते हुए, अमित जी को घूरते हुआ वहां से चला जाता है।
आगे अगले भाग में:-