भाई साहब , एक लीटर दूध देना. मेरी आवाज सुनकर संजय अपनी सीट से उठा व फ्रीज से दूध निकाल
कर दिया व मेने दूध के पैसे दिये. शुरुआती दिनो मे तो सिर्फ यही क्रम चलता रहा फिर
धीरे धीरे उनसे सभी घरेलू सामान लेने लगा . फिर एक समय अंतराल के पश्चात हमारी
सामान्य वार्तालाप भी शुरु हो गयी. हमारे मध्य जो भी बाते होती वो सामान्य ही होती
जैसे घर संबंधी बाते , बाज़ार की बाते . कई बार तो हम छुट्टी वाले दिन कई कई घंटों बात करते व अपना
समय व्यतीत करते. समय ऐसे ही गुजरता रहा व हमारे मध्य समय के साथ संबन्ध घनिष्ठ
होता चला गया. हालाँकि कई बार किसी बात को लेकर हम दोनो मे वैचारिक मतभेद हो जाया
करता था व कई दिनो तक हमारे मध्य बात चित बंद हो जाया करती थी. फिर कुछ दिनों बाद
हम फिर से शुरु हो जाया करते थे उसी बातो के सिलसिले मे . क्योकी ,मे किसी भी बात को लम्बे समय तक अपने मन मे रख नही पाता हु , मेरा मिजाज गर्म होते हुए दूध की तरह होता है जो गर्म होने
की अवस्था मे उफनता है परंतु ठंडा भी जल्दी हो जाता है. कल ही की बात है खाने की
बात को लेकर मम्मी व मेरी गर्मा गर्मी हो गयी. क्योकी मुझे भुख लगती है तो मुझे
इधर उधर का कुछ भी ध्यान नही रहता है. ऐसे मे मम्मी का कहना है की तु अपनी भुख पर
नियंत्रण कर ,क्योकि मे
पहले से ही काफी भारि शरीर का हु उपर से अगर मेंने समय रहते इसमें नियंत्रण नही
किया तो समस्या आने वाले समय मे बडी़ ही विकट हो जायेगी. हालाँकि मम्मी का कहना भी
सही था पर जैसा की मैंने कहा की खाते समय मुझे कुछ भी याद नही रहता है बस उस समय
मेरा सम्पूर्ण ध्यान खाने पर ही रहता है. लेकिन जैसा मेरा मिजाज है ठीक वैसे ही
मेने व्यवहार किया व तुरंत्प्रभाव से गर्म हो गया व थोड़ी ही देर मे मेरा गुस्सा
ठंडा भी हो गया. और ऐसे मे मेरे गर्म मिजाज का असर समस्त दैनिक गतिविधियों पर
पड़ता है ,ऐसे मे ,मे खुद को मिजाज के हिसाब से अकेला कर लेता हु ताकि खुद को
सामन्य कर सकु.
हम जब यहा 4 साल पहले रहने आये थे तब ये जगह हमारे लिये व
हम यहा के लिये एक दुसरे से अनजान थे. ऐसे मे यहा पर विश्वास कायम कर पाना एक
दुसरे के उपर एक विकट परिस्थिति थी. परंतु समय के साथ साथ जैसे जैसे चेहरो की
पह्चान होने लगी वैसे वैसे शुरुआती दिनो मे स्माइल पास होने लगी व फिर बात चित
होने लगी. ऐसे मे विनायक किराना स्टोर जो की हमारे घर के एकदम सामने स्थित है उस
दुकान पर दिन मे एक बार सामान लेने जाने की रुटिन बैठ गया . अब तो आलम ये है की कयी बार पैसे न हो पाने के
बावजूद भी मे कयी बार सामान ले लेता हु व जैसे हि व्यवस्ता होती है पैसो की तब
पैसे दे देता हु . जब भी मे उधार मे सामान लेता हु तो उनका दिल ऐसे हो जाता है
जैसे मेने उनसे उनकी जमीन जायदाद माँग ली है , वो सामान देते तो है लेकिन ज्ञान देकर . ऐसे मे ऐसा लगता है
जैसे पुरी दुनिया का ज्ञान उन्हीं के पास है बाकी हम सब तो बेवकूफ है. किसी भी
विषय पर चर्चा छेड़ दो और उसके बाद छोड़ दो वो प्रवचन की ऐसी नदी प्रवाहित करते है
की 15-20 मिनट कैसे निकल गये पता ही नही चलता है.कयी बार तो ऐसे लगता है़ जैसे गलत
जगह पर गलत बंदे को बैठा दिया है , ये कोई सरकारी नोकरी मे एक उच पद पर आसीन होने लायक था परंतु किसी मजबूरी वस
यहा बैठा है . अब जैसे कल की बात है सामान लेने गया था उनके पास व सामान
के भाव को लेकर मैने सिर्फ इतना ही कहा था की भाव बहुत बड गए है तो मेरी बात सुनकर
उनकी प्रवचन वाली क्लास
शुरु हो गयी जो की 20 मिनट तक चली व इस दौरान स्थानीय प्रशासन/नेता से लेकर केंद्र
सरकार तक के समस्त लोगों को भला बुरा बोल दिया. सभी चोर है लुटेरे है . किसी को भी आम जनता की कोई फिकर नही है. देश को बर्बाद कर दिया , अपना घर भर लिया देश से व देश के आम नागरिकों से उनकों कोई
मतलब नही है.
जब ऐसा इंसान अपनी मनचाही इच्छा/कार्य को प्राप्त नही कर
पाता है तो धीरे धीरे वो अवसाद की तरफ अग्रसर हो जाता है , जिसका उसको अंदाजा भी नही लग पाता है. व उसके इस अवसाद की
वजह से उसके घर वाले भी परेशान रहते है. अब जैसे इनको ही लिजिये जब देखो लोगो को
रोक रोक कर ज्ञान देते रहते है व जब कोई नही मिलता है तो अपने घर वालो से किसी न
किसी बात को लेकर उलझता रहता है. जिसकी वजह से इनके घरवाले भी इनसे परेशान रहते है
पर उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नही है ऐसे मे मज़बूरीवश सुनना पडे. ऐसे मे वो
इंसान निराश हो जाता है अपनी जिंदगी से व लोगो को ढुंढ्ता है जो उनकों सुन सके ताकी
उसकी मन की व्यथा को निकाल सके. और अगर उनकी कोई न सुने तो वो उग्र हो जाते है, व उसका असर दैनिक कार्यों मे पड़ता है. मे फ्री समय मे अपनी बालकनी से उनकों कयी बार देखता
हु तो पाता हु की वो राह चलते अपने जान पहचान वालो को बुला कर बाते करते है व फिर
अपनी भडास निकालने लगते है तो 20-30 मिनट तक अगले के खराब कर देते है.और उस समय
उनकों रोकने वाला भी कोई नही होता है , क्योकि वो धारा प्रवाह ही बोलते
है. जब तक उनकी भडास पुरी नही होती है वो सुनने वाले को छोड़ते नहीं है.ऐसे लोग एक
समय के बाद जिंदगी से निराश हो जाते है, व दुसरो को भी गलत राह दिखाते है.
या फिर खुद को सुप्रिम समझने लग जाते है व सामने वाले को बेवकूफ.