पिछले कुछ दिनो से जिस परेशानी का सामना मे कर
रहा हु ऐसी परिस्थिति का सामना इससे पहले मेने कभी नही किया था. ये वो दिन है जब
गर्मी अपने पुरे सबाब पर होती है व इन दिनो धुल मिट्टी पुरे दिन चलती है. ऐसे मे
मेरे जैसे नोकरीपेशा लोग सुबह शाम तो घर कि सफाई करे , दिन मे ड्यूटी पर रहे व
गर्मी के कारण कमरे की दिवारे पुरी रात गर्म रहती है , जिसकी वजह से निंद भी
देरी से आती है. और अगर ऐसे मे आप अकेले
हो घर पर तो आपकी कार्य के प्रती जिम्मेदारी कुछ ज्यादा हि हो जाती है. पिछले 22
दिनो से माँ बॉम्बे व नांदेड़ कि यात्रा पर है , जिसकी वजह से मुझे डबल शिफ्ट मे काम करना पड़
रहा है. ऐसे मे लगभग समस्त कार्य मुझे ही करने पड़ रहे है. पहले मे जहां कार्य कर
रहा था वहा मुझे खाना व नाश्ता दोनो कि व्यवस्था हो जाया करती थी व रात के खाने की
भी व्यवस्था हो जाया करती थी, मुझे तो बस काम करना होता था व वहा के मालिक मुझे अलग से
खर्चे के लिये 200 रुपये अलग से देते थे. परंतु यहा पर मुझे खाने की व्यवस्था भी
खुद से करना पड़ता है व अन्य खर्चो की व्यवस्था भी खुद से हि करनी पड़ती है , व ऐसे मे आपके पास कोई न
हो सहयोग करने हेतु तो ऐसे मे गुस्सा आना लाजमी है. एक तो मे वैसे ही आलसी प्रवृति
वाला इंसान व ऐसे मे समस्त कार्य भी मुझे ही करना पड़े , ये तो वही बात हो गयी कि
"एक तो करेला ,उपर से नीम चडा". मे ऐसे समय मे चाहे जितनी भी कोशिश
कर लु कुछ न कुछ भुल ही जाता हु. व उसका परिणाम ये होता है की जब माँ वापिस आती है
तो उनकों कमियां दिखती है , फिर वो मेरी क्लास लगाती है.
ऐसे मे एहसास होता है की माँ बाप की एकलौती
संतान होना वरदान नही होता है ये एक अभिशाप है. होने को तो माँ बाप की समस्त चीजों
पर आपका एकाधिकार होता है , पर प्रतिस्पर्धा का माहौल आपको मिल नही पाता है , जिसकी वजह से आप बाहरी
दुनियाँ से अपने हक के लिये भी लड़ नही पाते हो . और वैसा हि कुछ-कुछ मेर्रे साथ
भी होता रहा है. व दुसरी बात ये भी है की
अकेली संतान संतोषी हो जाती है . अकेली संतान स्पर्धा कि भावना भी खुद मे जाग्रत
नही कर पाती है. मुझे ये संतोषी प्रवर्ति
ही हर बार कही न कहीं नुक्सान पहुचाती है जिसके चलते मे हर बार एक या दो कदम पीछे
रह जाता हु . क्योकि हर बार यही ख्याल आता है की जो भी प्राप्त हो रहा है वो
पर्याप्त है. और यही सोच आगे नही बदने नही देते है . ऐसे मे इंसान ज्यादा प्रयाश करना
भी बंद कर देता है , जिसकी वजह से कयी बार वो सामान्य सी बात की भी जानकारी नही
रख पाता है. व इस वजह से वो कयी बार हँसी क पात्र बनकर रह जाता है. ऐसे मे जहां
अन्य बच्चें जहा दो कदम आगे होते है वही मेरे जैसे लड़के अकसर पिछड़ जाते है. क्योकी संतोषी बच्चे अक्सर संकोची भी हो जाते है
व वे अपनी बात खुलकर किसी से भी नही कह नही पाते है . क्योकी उम्र के इस पड़ाव मे
घर मे भाइ बहन तो होते नही है जिससे वो अपनी बात कह सके , माँ से ऐसी बाते कर नही
सकते व पिता से कभी हम खुल नही पाये जो अपने मन की बाते करे. ऐसे मे मेरे जैसे
लड़के बाहर का रास्ता चुनते है व दोस्तो से मन कि बाते करते है. दोस्त रुपी
कनेक्शन अगर सही हो गया तो जिंदगी रोशन है वरना शॉर्ट सर्किट होना लाजमी है.
मे 35 का हो चुका हु अब तक मे अपने कपड़े तक
खुद से खरीद नही पाता हु , उसके लिये भी मुझे माँ की जरुरत पड़ती है क्यो क्योकि मुझे
कभी भी खुद से कुछ करने नही दिया गया , हर बार ये कह्कर टाल दिया गया की तुझे जानकारी
नही है. अरे भाई ,मुझे मौका तो दो . शुरुआत मे गलतियां करूँगा , पर इन गलतियों से हि तो
सिखुंगा , पर मुझे कभी अवसर नही मिले . कयी बार पर्याप्त अवसरों का भी
नही मिलना भी अपनी भुमिका निभाता है बालकों की कार्यशैली मे. मे इस हद तक संतोषी व
संकोची हो चुका हु की कयी बार गलत बात पर भी आवाज नही उठा पाता हु , जिसकी वजह से सामने वाला
इंसान मुझे मुर्ख,सिधा समझ लेता है व मुझे हर एक बात बार ज्ञान ऐसे देते है
जैसे मे तो दुनियाँ क सबसे बड़ा मुर्ख हु व वे सबसे बड़े ज्ञानी. जबकी उनको ये नही पता
होता है की हमारे जैसे लड़के भी वही अनाज खाते है जो वो खाते है. पर आज की दुनियाँ
कोई भी मौका नही छोड़ते है सुनाने का . आप अगर पलटकर जवाब न दो तो आप मुर्ख व सिधे
सादे प्राणी व अगर किसी दिन पलटकर जवाब दे दिया तो मुँह फट , अकडू की पदवी दे दि जाती
है. "सबसे भले विमुड, जिन्हें न व्यापे जगत् गती ". वाला तरीका ही ऐसे मे
अच्छा है, आप अपनी दुनियाँ मे मस्त व हम हमारी दुनियाँ मे मस्त. क्योकि