उदय , परीक्षा की तैयारी कैसी चल रही है , मेरे इस सवाल से
उदय का ध्यान भटका व उसने सिर्फ सहमती मे अपना सर हिला दिया. उसके ऐसे जवाब से मे
समझ गया था की वो अभी भी पड़ाई मे व्यस्थ था . मेंने उसको पिछले 2 सालो से पडते हुए
ही देखा है वो भी पुरी जी जान लगा कर पूर्ण समर्पण के साथ . उसके ईसी समर्पण को
देखकर कयी बार ऐसा लगता है की वो नौकरी लग कर रहेगा. वो सुबह उठकर अपने नित्य कर्म निवृत होकर अध्ययन
करने लाइब्रेरी चला जाता था,जो की रात को 10.30 बजे तक आता था.
इस दौरान बीच मे सिर्फ खाना खाने आता था.हालाँकि मे खुद काम पर चला जाता था तो
मुझे उसके दिन कि टाइमिंग का पता नही होता था पर छुट्टी वाले दिन घर पर रहते हुए
उसकी सारी दिनचर्या साफ तौर पर दिखयी देती थी.उदय को हमारे फ्लोर पर रहने के लिये
आये हुए 3 साल हो गये है व इन 3 सालो मे उसकी व मेरी बातचीत न के बरा बर ही होती
है , पर पिछले 1.5 साल मे हमारी बात चित का दौर अच्छा चल
निकला हम हाल मे खडे घंटों बाते कर लिया करते है. और हमे न तो शुरुआत करने मे कोई
दिक्कत होती है व न ही हमे किसी भी विषय मे चर्चा करने मे कोई दिक्कत होती है. हम
दोनो एक बार शुरु हो जाते है तो समय अपनी दुर्त गती से चलता है.
पिछले महीने की ही बात है रविवार की शाम को 6 बजे हम
नौकरियों व सरकार के रवैये के ऊपर चर्चा कर रहे थे , की पिछली सरकार ने नोकारी देने के नाम पर सिर्फ मुफ्त की रेवडिया ही बाटी है.और
जो अब नयी सरकार आयी है वो भी सिर्फ खाना-पुर्ति करने मे लगी हुई है. व हर साल
बेरोजगारों की संख्या जंगली घास की तरह बड रही है,ऐसे मे छात्रों को रोजगार कैसे मिले .हमने सिर्फ चर्चा सामान्य रुप से ही शुरु
की थी पर वो खत्म होते होते सरकार के नाकामियों वाले समस्त मुद्दो पर समी़क्षा हो
गयी. व जहा हम 6 बजे शुरु हुए थे तो 7.30 बजे अपने-अपने कमरों मे गये. यु तो हम
दोनो अलग अलग विचार धाराओं वाले लड़के है लेकिन हमको आपस मे किसी भी विषय पर चर्चा
करने मे बिल्कुल भी शर्म नही है. पिछ्ले कुछ दिनो से वो मिस्टर इंडिया की तरह रात
रात भर लाइब्रेरी मे ही रहता है क्योकी आगामी माह मे उसका एक्जाम है. और वो उस
एक्जाम को लेकर काफी हद तक गंभीर है , क्योकी तात्कालिक हालातो को देखते हुए एक बात तो साफ है ,जिस तरीके से सरकार रोजगार को लेकर सुस्त रवैया
अपनायें बैठी है व जैसी कड़ी प्रतिस्पर्धा है उसके आधार पर आसानी से नौकरी मिल
पाना संभव नही है. क्योकि बीते कुछ सालो मे सरकारी नौकरियों मे नवीन पदो का सर्जन
नही हुआ है व प्राइवेट सेक्टर को यहा लगाने के बारे मे सरकार से गंभीरता से सोचा
नही है. ऐसे मे युवाओं के पास काम के नाम पर कुछ भी हाथ नही आता है.
एक समय था ,जब मेने भी जी जान से सरकारी नौकरी
की तैयारी की थी व लगभग एक्जाम पास भी कर लिया था . लेकिन जातीय आरक्षण के
मापदंडों पर मे सामान्य जाती का लड़का होने कई कारन खरा नही उतरा व हर बार पास
होकर भी पिछड़ गया. ये वो दौर था जब मे अपने आपको साबित करने के लिये जी जान से
लगा हुआ था पर मेरे ग्रह ही कुछ इस तरह से मेरे कार्यो व मेहनत पर कब्जा किये हुए
थे की मे कितना भी कुछ कर लु अपने आपको साबित नही कर पा रहा था. यहा पर जिसकी भी
सरकार रही उसने कभी भी रोजगार को लेकर टोस कदम नही उटाये, हर बली बेरोजगार युवाओ की ही चडी है. फिर चाहे मेरा दौर हो या फिर आज का दौर
हो बलिदान युवाओ को ही देना पडा है. अगर समय रहते सरकार ने नौकरी व
युवाओं के मध्य के फासलो को मिटाया नही तो वो समय दुर नही जब बेरोजगार युवा निराशा
रुपी आँदोलन का रुप धारण कर लेंगे पता हि चलेगा. क्योँकि नौकरियां मिल नही रही है
प्राइवेट सेक्टर सरकार ने उपलब्ध कराने की कभी सोची नही , कृषि लायक जमीन है नही (पानी कि निरंतर होती कमी) . ऐसे मे युवाओ को प्रदेश से
बाहर जाकर दुकानो मे , शोरूम मे ,होटल मे काम करने के अलावा और कोई अन्य विकल्प नही बचता है. और जो अपनी जन्म
भूमि मे ही रह जाता है वो एक समय के बाद खुद को कोसते हुए आत्म संतुस्ति के लिये
दूसरा विकल्प खोज करने के अलावा कोई दुसरा रास्ता नही बचता है.
जब से मेरी उदय से जान पहचान हुइ है या यु कहे की जब से वो
हमारे सामने रहने आया है तब से हमारे मध्य एक अलग सा हि साम्जस्य सा बैठ चुका है.
कयी बार काम को लेकर हमारी आंखे ही एक दुसरे को हालत बया कर देती है. और कयी बार
हम काफि देर तक बाते करते. हमारी बातो मे अक्सर शीक्षा से सुरुआत होती व नौकरी की बातो से होते हुए
बेरोजगारी व सरकार कि विफलताओं से गुजरते हुए युवाओ की समस्याओ पर आकर खत्म होती. परंतु
हम दोनो एक हि परिस्थितियों/हालातो के मारे हुए है , इसलिये एक दुसरे की व्यथा बखूबी समझते है. क्योकी मेने अपने समय मे मेहनत की
थी व उदय अब कर रहा है, पर जितनी मेहनत की है उस हिसाब से
नतीजे प्राप्त नही हुए. सरकार अगर समय रहते इस विषय पर ध्यान नही देती है तो आने
वाला समय बहुत हि खराब होगा. क्योकी सरकार मांग के हिसाब से नौकरियां पैदा कर पाने
मे सक्षम नही है. ऐसे मे सरकार को नवीन रोजगार पैदा करने के लिये उध्योग हि लगाने
पड़ेंगे. ताकि रोजगार के साथ-साथ प्रदेश कि अर्थ व्यवस्था मे भी सुधार हो. क्योकी
उदय व मे हम दोनो हि तैयारी तो अच्छे से कर रहे है लेकिन परिस्थियाँ कुछ ऐसी बन
जाती है की हाथ मे आयी हुई नौकरी , रेत की तरह फिसल जाती है.ऐसे मे
अगर सरकार नवीन परियोजनाओ पर ध्यान दे व अभी से मेहनत करे तब कही जाकर आने वाले
समय मे नतीजे सामने आयेंगे. क्योकि नतीजे तो आयेंगे फिर चाहे सरकार की मेहनत के
नतीजे हो या निराशा मे डूब चुके बेरोजगार युवायो की आवाज का नतिजा हो. साफ बात ये
है की प्रयास अभी से शुरु करने पड़ेंगे ,नतीजे
तभी आगे चल कर मिलेंगे.
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