इस बार गर्मी ने तो पिछले सारे रिकॉर्ड ही तोड दिये है , ऐसा कहते हुए मे अपनी बात शुरु की . मेरी बात पर सहमती जता
कर अमित ने गर्दन हिला दि.हम दोनो जब भी मिलते तो अक्सर अपने आस पास घटित होने
वाली समस्त घटनाओं पर चर्चा करते थे. हमारी पहली मुलाकात कॉलेज मे प्रथम वर्ष के
दाखिले के दौरान हुई थी , जिसने कब धीरे धीरे दोस्ती का स्वरूप धारण
कर लिया पता ही नही चला. सन्योगवश हमारे विषय समान होने की वजह से हमारी कक्षा व विषय पर चर्चा अक्सर
एक समान ही होता था. विषय की समानता के साथ हमारी विचारधाराओं मे भी काफी हद तक
समानताएँ थी. हमारी दोस्ती गहरी होने के पीछे एक
कारण ये भी है की हम दोनो मध्यमवर्ग परिवार से आते है व हमारा गाव भी एक है. कॉलेज
समय के अलावा अन्य कयी स्थान ऐसे भी थे जहा हमारा सामान्य रुप से मुलाकात होती
रहती थी.जिसमें एक स्थान था गुरु जी का अड्डा (दुकान) , जहा हम अक्सर मिला करते थे. कॉलेज से आते समय तो जैसे गुरु जी
की दुकान पर कुछ देर के लिये ही सही पर रुक जाया करते थे, फिर
शाम को मे व अमित घर का सामान लाने के लिये बाजार आया करते थे तब गुरु जी की दुकान
पर मिला करते थे. उस दौरान बातचीत का दौर चलता व साथ ही चाय का दौर भी चलता. कभी
मे तो कभी गुरु जी , ज्यादातर हमारा ही नंबर लगता चाय पिलाने
का . जबकि अमित अक्सर किसी न किसी प्रकार से बच जाया करता .ये वो दौर था जब दोनो
मित्र जिंदगी की भागदौड़ वाली रेस मे शामिल नही हुए थे , व
गुरु जी तमाम जिम्मेदारियो से मुक्त हो चुके थे. ऐसे मे हम तीनो की मन स्थिति कुल
मिलाकर एक जैसी थी.
फिर शुरु हुआ मेरा व अमित का काम करने ( प्राप्त शिक्षा के
आधार पर नौकरी ) का समय ,जहा हम अपने अपने कार्य स्थल पर आगे कदम
बदाने लगे. अमित ने शैक्षणिक अध्यापन को अपना पेशा चुना व मैने कम्प्यूटर
प्रशिक्षण को अपना पेशा चुना. क्योकी हम दोनो को बोलने क शोक तो था ही व साथ ही
हमे शिक्षा प्रदान करने का शोक भी था, ऐसे मे हम दोनो शिक्षक
बने.फर्क सिर्फ इतना था की गर्मियों की छुट्टियों मे अमित कि छुट्टी होती 2 महिने
व उस दौरान मेरा कार्य बड़ जाया करता था. क्योकी इस दौरान बच्चों ने नानी के यहा
जाना कम कर दिया था व उस समय का सदुपयोग करते हुए प्रोफेशनल कौर्से करने शुरु कर
दिये थे , जैसे :- संगीत , कम्प्यूटर
क्लास , इंग्लिश स्पीकिंग क्लास इत्यादि. हम दोनों दोस्तो के
कार्य समय को कुछ इस तरह से समझा जा सकता है की साल मे 10 महिने वो व्यस्त रहता व
2 महीने मे व्यस्त रहता. बाकी के बचे हुए समय मे भी काम तो होता पर आरामदायक तरीके
से , आराम से . इस दोरान मेने काफी कुछ सिखा , काफी लोगो से मेरे संपर्क हुए. मुझे इस समय एहसास हुआ की जो ज्ञान की
प्राप्ति हमे यथार्थ की दुनियाँ मे होती है वो किसी भी किताब मे कही भी लिखा हुआ
नही है . इस ज्ञान की अनुभूति हमे यथार्थ
की दुनिया मे कदम रखने के बाद हुइ. अमित ने तो बाकायदा अध्यापन की डिग्री ली थी तो
उसके आधार पर वो अध्यापन करने लग गया व मैंने किसी भी प्रकार की कोई विशेष योग्यता
प्राप्त नही कि थी , अतः मुझे एक साल रुकना पड़ा. एक साल बाद मुझे अपने घर के समीप ही कम्प्यूटर
अध्यापक की नौकरी मिल गयी. हालाँकि विगत एक वर्ष मेरे लिये कोई उप्लब्धियो वाला
नही रहा सिर्फ सामान्य ही गुजरा .
हमारे मध्य उम्र का फासला जरूर था पर हमारी मनिस्थिति एक
समान थी. इन हालातो से गुरुजी गुजर चुके थे व हमे गुजरना था . ऐसे मे अक्सर गुरु
जी हमारे मार्ग दर्शक बन जाया करते थे और हम दोनो मित्र एक आज्ञाकारी छात्र बन
जाया करते थे. क्योकि गुरुजी जिन परिस्थितियों से निकल कर आये है उन हालातो से हमे
निकलना बाकी था. कयी बार किसी छोटी सी बात पर ही कहा-सुनी हो जाया करती थी.
हालाँकि ज्यादा समय तक के लिये हमारी कहा-सुनी रहती नही थी , क्योकि हम चाहे कितनी भी बार अन-बन कर ले पर थोड़ी देर मैं ही
हमारी अन-बन सुलझ जाया करती थी . क्योकी हमारे मध्य चाहे कितनी भी अनबन क्यो न हो
जाएँ पर हमारी विचारधारा तो एक समान ही है. कुछ समय पहले की बात है अमित ने
कम्प्यूटर से संबंधित कौर्से किया गर्मियो की छुट्टियों मे एवम् उसका शिक्षक मे
ही बना . ऐसे मे,मे पूर्ण रुप से आनंदित रहा उन दिनों .
क्योकी अक्सर अमित अपने कार्य की काफी तारीफ किया करता था व इन दिनो उसको पता चला
की कम्प्यूटर विषय भी अपनी जगह काफी जटिल होता है. शिक्षा ग्रहण करना फिर दुसरो को
ग्रहण करवाना दोनो अलग अलग स्थितीया है. पर अगर इस दौरान एक अमित जैसा परम मित्र
मिल जाये तो ऐसे मे दोनो हि कार्य बड़े ही आनंद से संपादित होते है. मेरे इस
कार्यकाल के दौरान मुझे अमित का साथ दोनो समय बराबर मिला .क्योकि शुरुआती समय मे
अध्यापन का मेरा कोई इरादा नही था . पर अमित के साथ कॉलेज के दिनों मे उसकी संगत
कि वजह से मेरी रुची अध्यापन मे हुई.जैसे जैसे अमित और मैने अपने अपने कार्य मे
कदम बडाना शुरु किया वैसे वैसे हमे अपने कार्य मे आनंद आना शुरु हो गया एवम हम
दोनो ने मन लगा कर कार्य को करना शुरु कर दिया.
समय के साथ साथ हमारी मित्रता मजबूत होती चली गयी और कुछ
समय पश्चात ही हम दोनो व्यवहार मित्रता से हटकर पारिवारिक हो गया. हमारा एक दुसरे
के घर आना जाना शुरु हो गया और हमे एक दुसरे के घर वाले अच्छे से जानने लगे. ये
ठीक वैसा हि था जैसे काम करते करते हमे अपने काम से प्यार हो जाना. क्योकी हमारी
शुरुआत क्लास मे साथ बैठने से हुइ थी जो की एक दुसरे के घर तक कब पहुँच गयी पता ही
नही चला. और अब में अपने गाव से 200 किलोमीटर दुर हु लेकिन सप्ताह मे एक बार जरूर
बातचित हो जाती है. और उस दौरान हम दोनो पूर्ण रुप अपने सप्ताह की बाते कर लेते
है. हमारी मित्रता 17 वर्ष पुरानी जरूर है परंतु समय का उस पर कोई असर नही पड़ा
है. मित्रता यथावत है. फर्क सिर्फ इतना हुआ है की पहले रोजाना मुलकात होती थी बाते
भी रोजाना होती थी लेकिन अब सप्ताह मे एक बार होती है.समय का असर हमारी शक्ल पर
जरूर हुआ है, पर हमारि दोस्ती पहले से भी ज्यादा मजबुत
हुआ है. और अब आलम ये है की मेंने सरकारी विभाग मे कार्यालय मे काम शुरु किया एवम्
अमित ने पास की ही कॉलेज मे अध्यापन शुरु किया. उसके पास अध्यापन का अच्छा खासा अनुभव है वही मे कार्यालय से संबंधित कार्य
करता हु . हम दोनो अपने अपने कार्यो मे खुश है , क्योकि ये कार्य
हमारी पसंद का है. इस कार्य को करके हम आनंदित होते है. और शायद एक ये मुख्य कारन है
की हम दोनो कि दोस्ती समय के साथ मजबुत होती चली गयी.