हमारे निर्धन के धन राम चोर न लेत, घटत नहिं कबहूँ, आवत गाढ़ैं काम । जल नहिं बूड़त अगिनि न दाहत, है ऐसौ हरि नाम । बैकुँठनाथ सकल सुख-दाता, सूरदास-सुख-धाम ॥1॥ बड़ी है राम नाम की ओट । सरन गऐं प्रभ
बासुदेव की बड़ी बड़ाई । जगत पिता, जगदीस, जगत-गुरु, निज भक्तनि-की सहत ढिठाई । भृगु कौ चरन राखि उर ऊपर, बोले बचन सकल-सुखदाई । सिव-बिरंचि मारन कौं धाए, यह गति काहू देव न पाई । बिनु-बदलैं उपकार करत है
चरन-कमल बंदौं हरि-राइ । जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै, अँधे कों सब कछु दरसाइ । बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बोलै ,रंक चलै सिर छत्र धराइ । सूरदास स्वामी करुनामय, बार-बार बंदौं तिहिं पाइ ॥1॥