सूरसागर में लगभग एक लाख पद होने की बात कही जाती है। किन्तु वर्तमान संस्करणों में लगभग पाँच हजार पद ही मिलते हैं। विभिन्न स्थानों पर इसकी सौ से भी अधिक प्रतिलिपियाँ प्राप्त हुई ह तक है इनमें प्राचीनतम प्रतिलिपि नाथद्वारा (मेवाड़) के सरस्वती भण्डार में सुरक्षित पायी गई हैं। सूरसागर के भ्रमरगीत से लिए गए हैं। दिए गये पदों में सूरदास जी ने गोपियों एवं उद्धव के बीच हुए बातचीत का वर्णन किया है। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेशा भेज देते हैं कि वह वापस नहीं आ सकते, तो उद्धव अपनी राजनीतिक चालाकी से गोपियों को समझाने कि कोशिश करते हैं। परंतु उनके सारे प्रयास असफल हो जाते हैं क्योंकि गोपिया ज्ञान-मार्ग के बजाय प्रेम-मार्ग में विश्वास करती हैं और अपनी चतुराई के कारण उद्धव को गोपियों के ताने सुनने पड़ते हैं एवं उनके व्यंग का शिकार होना पड़ता है।
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