स्वतन्त्रता दिवस या दासों की नई कहानी।
15 अगस्त को प्रत्येक वर्ष मूर्ख हिंदू और मुसलमान उसी मानवता के संहार का जश्न मनाते हैं, दोनों को लज्जा भी नहीं आती ।
युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा, लेकिन अपने ही जयचंदों से हारा है, समझौतों से हारा है ।
अपनी मूर्खता से हारा है, उन्हीं समझौतों में सत्ता के हस्तांतरण का समझौता भी है ।
पाकिस्तान गाँधी की लाश पर बन रहा था, लेकिन इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 का न गाँधी ने विरोध किया और न जिन्ना ने ... न ही नेहरु ने अउर न ही सरदार पटेल ने ।
सभी ने ब्रिटिश उपनिवेश यानी ब्रिटेन की दासता स्वीकार की, मुझे उन मुसलमानों पर तरस आता है, जो कश्मीर को उपनिवेश इंडिया से उपनिवेश पाकिस्तान में मिलाने के लिए रक्त बहाते हैं ।
भारत को छद्म स्वतन्त्रता देने का विचार तो 1942 में ही कर लिया गया था, 1948 तक का समय सुनिश्चित किया गया था ।
1947 के जून महीने में यह ज्ञात हुआ कि मुहम्मद अली जिन्ना (पुन्जामल ठक्कर का पोता) की टी.बी. की बीमारी अंतिम स्तर पर है और अधिक से अधिक 1 वर्ष की आयु शेष बची है ।
भारत की (छद्म) स्वतन्त्रता और भारत विभाजन की प्रक्रिया को तेज कर दिया गया ।
4 जुलाई 1947 से आरम्भ हुई यह प्रक्रिया 14 जुलाई को सम्पूर्ण हो गई और मात्र 40 दिनों में ही यह प्रक्रिया समस्त षड्यंत्रों के तहत सम्पूर्ण हुई ।
गंधासुर गांधी ने कहा था कि विभाजन मेरी लाश पर होगा जिसे सुनकर वर्तमान पाकिस्तानी पंजाब में रहने वाले हिन्दुओं में वर्तमान भारतीय क्षेत्रो में आकर बसने के निर्णय को बदल दिया ।
14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बन गया और हिन्दू वहीं फंस गये ।
नरसंहार का एक ऐतिहासिक काल आरम्भ हुआ जिसके तहत...
35 लाख हिन्दुओं का नरसंहार किया गया ।
3 लाख हिन्दू नारियों का बलात्कार हुआ व जबरन धर्म परिवर्तन करके उन्हें मुस्लिम बना दिया गया ।
3 करोड़ हिन्दू पाकिस्तान के जबड़े में फंसे रह गये ।
और इस भयानक नरसंहार के बीच किसी ने ध्यान ही नही दिया कि आखिर हुआ क्या ?
1946 के चुनावों के बाद जो सर्वदलीय संसद बनी उसमे विभाजन के प्रस्ताव को पारित करने हेतु संयुक्त रूप से 157 वोट डाले समर्थन हेतु डाले गये जिसमे प्रमुख पार्टियाँ (कांग्रेस + मुस्लिम लीग + कम्यूनिस्ट पार्टी) थीं ।
पहला हाथ नेहरु ने उठाया था ।
विरोध में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के 13 वोट पड़े और रामराज्य परिषद के 4 वोट पड़े ।
विभाजन का प्रस्ताव पारित हो गया ।
उसके बाद की समस्त प्रक्रिया दिल्ली में औरंगजेब रोड स्थित मुहम्मद अली जिन्ना के घर पर ही सम्पूर्ण हुई ।
जिन्ना इतना धूर्त था कि जहाँ भू-तल पर नेहरु-गाँधी लार्ड माउंटबैटन के साथ कानूनी सहमतियाँ बना रहे थे वहीं प्रथम तल पर जिन्ना अपनी कुछ सम्पत्तियां और औरंगजेब रोड पट स्थित वह घर बेचने की प्रक्रिया पूरी कर रहा था ।
मुहम्मद अली जिन्ना एक वकील था ।
नेहरु एक वकील था ।
गांधी एक वकील था ।
सरदार पटेल भी एक वकील था ।
उस समय के अधिकतर नेता वकील ही थे ।
वे सब जानते थे कि यह सम्पूर्ण स्वतन्त्रता नही अपितु स्वतन्त्रता है मात्र कुछ वर्षों हेतु ।
जी हाँ...
यह छद्म स्वंत्रता ही थी ...इससे अधिक और कुछ नही ।
सत्ता का हस्तांतरण हुआ था ।
अर्थात सत्ता तो अंग्रेजों के पास ही रहेगी और उनकी देखरेख में शासन की व्यवस्था सम्भालेंगे ... आत्मा से बिके हुए कुछ गिरे हुए भारतीय ।
सत्ता के इस हस्तांतरण का साक्षी बना "Agreement of Transfer of Power" जो कि लगभग 4000 पेजों में बनाया गया था और जिसे अगले 50 वर्षों हेतु सार्वजनिक न करने का नियम भी साथ में लागू किया गया ।
1997 में इस Agreement को सार्वजनिक होने से बचाने हेतु समय से पहले ही तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री इंद्र कुमार गुजराल ने इसकी अवधि 20 वर्ष और बढा दी और यह 2019 तक पुन: सार्वजनिक होने से बच गया ।
ऐसे सत्ता के हस्तांतरण के Agreements ब्रिटिश सरकार के अधीन भारत समेत समस्त 54 देशों के हैं जिनमे आस्ट्रेलिया, कनाडा, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलेंड, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि 54 देश हैं ।
यह 54 देश ब्रिटिश राज के उपनिवेश कहलाते हैं ।
इन 54 देशों के नागरिक ब्रिटेन की रियाया हैं अर्थात ब्रिटेन के ही नागरिक हैं ।
इन 54 देशों के समूह को "राष्ट्र्मंडल" नाम से जाना जाता है जिसे आप Common Wealth के नाम से भी जानते हैं अर्थात संय
यदि आप सबको कोई आशंका हो तो उदाहरण के तौर पर आप यूं समझ लें कि ब्रिटेन समेत सभी ब्रिटेन उपनिवेश "राष्ट्र्मंडल" देशों के भारत में विदेश मंत्री तथा राजदूत नही होते अपितु विदेश मामलों के मंत्री तथा उच्चायुक्त होते हैं और ठीक इसी प्रकार भारत के भी इन देशों में विदेश मामलों के मंत्री तथा उच्चायुक्त ही होते हैं ।
1. Minister of Foreign Affairs
2. High Commissioner
जैसे कि भारत की विदेश मंत्री हैं सुषमा स्वराज, तो यह सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा विदेश मंत्री के तौर पर केवल रूस, जापान, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि स्वतंत्र देशों में ही रहता है ।
परन्तु ब्रिटिश उपनिवेशिक अर्थात राष्ट्र्मंडल देशों जैसे आस्ट्रेलिया, कनाडा आदि देशों में सुषमा स्वराज का अधिकारिक दर्जा Minister of Foreign Affairs का ही रहता है ।
आखिर भारत जैसे गुलाम देश की नागरिक क्वीन एलिज़ाबेथ की विदेश मंत्री कैसे हो सकती है ... क्यूंकि यह कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देश तो क्वीन एलिज़ाबेथ के ही अधिकार क्षेत्र या मालिकाना क्षेत्र में ही आते हैं जिसे आजकल आप Territory के नाम से समझते हैं ।
इसी प्रकार उपनिवेशिक / राष्ट्र्मंडल देशों में भारत का कोई राजदूत (Ambassodor) नही होता अपितु मात्र उच्चायुक्त (High Commissioner) ही होता है ।
Transfer of Power नामक इस Agreement की शर्तें लगभग 4000 पेजों में विस्तार से लिखी गई हैं ।
जिसके कुछ अंश निम्नलिखित हैं:
1. गोरे हमारी ही भूमि 99 वर्ष के लिए हम भारतवासियों को ही किराए पर दे गए|
2. भारत का संविधान अभी भी ब्रिटेन के अधीन है|
3. ब्रिटिश नैशनैलीटी अधिनियम 1948 के अंतर्गत हर भारतीय, आस्ट्रेलियाई, कनाडाई चाहे हिन्दू हो, मुसलमान हो, इसाई हो, बोद्ध हो, सिख ही क्यों न हो, बर्तानियो की प्रजा है|
4.भारतीय संविधान के अनुच्छेदों 366, 371, 372 व 395 मे परिवर्तन की क्षमता भारत की संसद तथा भारत के राष्ट्रपति के पास भी नहीं है |
4. गोपनीय समझौतों (जिनका खुलासा आज तक नहीं किया जाता) के तहत वार्षिक 10 अरब रूपये पेंशन ।
5. इन्ही गोपनीय समझौतों के तहत ही वार्षिक रूप से 30 हजार टन गौ मांस ब्रिटेन को दिया जाएगा|
[यही वह गोपनीयता है, जिसकी शपथ भारत के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, सभी राज्यों के मुख्य-मंत्री तथा अन्य समस्त मंत्री तथा प्रशासनिक अधिकारी लेते हैं... अत: उपरोक्त समस्त पदाधिकारी समस्त स्वतंत्र देशों की भाँती मात्र पद की शपथ नही लेते... अपितु 'पद एवं गोपनीयता' की शपथ लेते हैं ।]
6. अनुच्छेद 348 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय व संसद की कार्यवाही केवल अंग्रेजी भाषा में ही होगी|
7. राष्ट्र्मंडल समूह के किसी भी देश पर भारत पहले हमला नही कर सकता ।
8. भारत किसी भी राष्ट्र्मंडल समूह के देश को जबरदस्ती अपनी सीमा में नही मिला सकता ।
ऐसे बहुत से नियम एवं शर्तें सशर्त लिखित रूप से दर्ज हैं Trasfer of Power नामक इस Agreement में ।
और यदि भविष्य में भारत किसी भी नियम या शर्त को भंग करता है तो...
1. भारत का संविधान तत्काल रूप से Null & Void हो जाएगा ।
2. छद्म स्वतन्त्रता भी छीन ली जाएगी ।
3. भारत में 1935 का Goverment of India Act लागू हो जायेगा तत्काल प्रभाव से, जिसके आधार पर Indian Independence Act 1947 का निर्माण किया गया था ।
4. ब्रिटिश राज पुन: लागू हो जायेगा ... पूर्ण रूप से ।
Indian Independence Act 1947
www.legislation.gov.uk/ukpga/Geo6/10-11/30
British Nationality Act 1947
http://lawmin.nic.in/legislative/textofcentralacts/1947.pdf
British Nationality Act 1948
www.uniset.ca/naty/BNA1948.htm
1. आज कश्मीर पाकिस्तान को दे दो तो वो कश्मीर तब भी रहेगा तो ब्रिटेन की ही Teritory में ... रानी का ही तो है कश्मीर।
2. आज सिखों को खालिस्तान दे दिया जाए तो वो भी रानी का ही रहेगा ।
3. पूरा पाकिस्तान, बर्मा, बंगलादेश, श्री लंका (Ceylon) भी रानी का ही है ।
4. भारत भी क्वीन एलिज़ाबेथ के अधीन ही है ।
कहना छोड़िये कि हम स्वंतंत्र हैं ।
बिना रक्त बहाए किसी को स्वतंत्रता नहीं मिली ।
अब भविष्य में पुन: किसी गाँधी-नेहरु पर विश्वास न करना ।
आज वसुदेव बलवंत फडके, वीर सावरकर, नथुराम गोडसे व आप्टे, डाक्टर मुंजे, चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह आर्य, राजगुरु, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, रोशनसिंह, मदनलाल ढींगरा आदि देशभक्त क्यों पैदा होने बंद हो गये...?
क्यूंकि भारत की जनता को छद्म स्वतन्त्रता और गाँधी-नेहरु आदि की झूठी कहानियाँ सुना सुना कर खोखला कर दिया गया है ।
नई पीढ़ी अपने करीयर और मौज-मस्ती को लेकर आत्म-मुग्ध है ।
हाथों में झूलते बीयर के गिलास और होठों पर सुलगती सिगरेट के धुएं में उड़ता पराक्रम और शौर्य की विरासत नष्ट सी होती दिखाई प्रतीत हो रही है ।
आज चाणक्य भी आ जाएँ तो निस्संदेह उसे भी सम्पूर्ण भारत देश में एक भी योग्य वीर्यवान सा पराक्रमी न प्राप्त होगा ।
लाखों करोड़ों युवाओं के रूप में कभी यह राष्ट्र "ब्रह्मचर्य की शक्ति" के रूप में समस्त विश्व में प्रसिद्ध था और आज विडम्बना देखो कि उसी देश के वीर्यवान अपने बल-बुद्धि-प्रज्ञा समान वीर्य को युवावस्था में ही नष्ट कर डालते हैं ।
डाक्टर-इंजीनीयर-वैज्ञानिक तो सब घर के बाथरूम में ही बहा दिए जाते (वीर्य-नष्ट कर कर) हैं... तो बचे खुचे निकलेंगे तो क्लर्क ही ... वही क्लर्क जो Lord McCauley चाहता था ।
लगता है कि जैसे McCauley अपने लक्ष्य को पाकर जीत चुका है ।
सेना आप की रक्षक है| भारत में सेना का मनोबल तोड़ने के लिए, १९४७ से ही षड्यंत्र जारी है| 1947 में इंडियन सेना पाकिस्तानियों को पराजित कर रही थी| सेना वापस बुला ली गई । सैनिक हथियार बनाने और परेड करने के स्थान पर जूते बनाने लगे । परिणाम 1962 में चीन के हाथों पराजय के रूप में आया। 1965 में जीती हुई धरती के साथ हम प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को गवां बैठे| 1971 में पाकिस्तान के 93 हजार युद्ध बंदी छोड़ दिए गए लेकिन भारत के लगभग 54 सैनिक वापस नहीं लिये गए| एलिजाबेथ के लिए इतना कुछ करने के बाद इंदिरा और राजीव दोनों मारे गए|
कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सैनिकों को वापस जाने दिया गया।अटल विरोध करते तो वे भी मारे जाते। एडमिरल विष्णु भागवत के बाद अब वीके सिंह का नम्बर लगा है|
आप सबसे विनम्र निवेदन है कि संगठित हों और एकजुट होकर अपने धर्म तथा इस राष्ट्र की रक्षा करें ... बचा लीजिये इस नष्ट होते सनातन वैदिक धर्म तथा आर्यों की इस पवित्र भूमि स्वरूप इस राष्ट्र को ।
हम परतंत्र क्यों रहें ?
हम ब्रिटेन के नागरिक क्यों बने रहें ?
हम ब्रिटेन के गुलाम क्यों बने रहें ?
राष्ट्र्मंडल का विरोध करो ।
सत्ता के हस्तांतरण के अनुबंध का विरोध करो ।
क्वीन एलिज़ाबेथ की दासता का विरोध करो ।
क्या आप में आर्यत्व ... जीवित है ?
क्या आप आर्यावर्त नाम से प्रसिद्ध इस भारत भूमि को दासता की बेडियों से मुक्त कर सकते हैं ?
क्या आप वीर सावरकर, वसुदेव बलवंत फडके, चन्द्रशेखर आज़ाद, रामप्रसाद बिस्मिल आदि का अवतार बन सकते हैं ?
सीमाएं उसी राष्ट्र की विकसित और सुरक्षित रहेंगी ...
...जो सदैव संघर्षरत रहेंगे l
जो लड़ना ही भूल जाएँ वो न स्वयं सुरक्षित रहेंगे न ही अपने राष्ट्र को सुरक्षित बना पाएंगे