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मानव शरीर के पांच तत्त्व

17 सितम्बर 2015

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नाड़ी शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में स्थित चक्र, जिनमें मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र विद्यमान है। इन चक्रों का संबंध वास्तु विषय के जल-तत्व, अग्नि-तत्व, वायु-तत्व, पृथ्वी-तत्व एवं आकाश-तत्व से संबंधित है। वास्तु में पृथक दिशा के लिये अलग-अलग तत्व दिये गये हैं, जैसे ईशान के लिये जल-तत्व, आग्नेय के लिये अग्नि-तत्व, वायव्य के लिये वायु-तत्व, नैऋत के लिये पृथ्वी-तत्व एवं ब्रह्म-स्थल के लिये आकाश-तत्व का महत्व है। जल-तत्व वास्तु के अनुसार भूमिगत पानी के स्त्राsत ईशान में ही होने चाहिये। जिससे सुबह के समय सूर्य से मिलने वाली अल्ट्राव्हायलेट किरणों से जल की शुद्धि होती है एवं यह सूर्य रश्मियां जीवन को स्वास्थप्रद रखती है। अग्नि-तत्व सूर्य को सृष्टि का संचालक कहा जाता है, क्योंकि सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा शक्ति का हमारे जीवन में अत्याधिक महत्व है। सूर्य की सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव भवन की पूर्व, उत्तर, ईशान, पश्चिम-वायव्य एवं दक्षिण-आग्नेय दिशा से प्राप्त होता है। अत इन ऊर्जा शक्तियों से शुभ परिणाम प्राप्त करने के लिए उपरोक्त दिशाओं को खुला रखना अत्यंत आवश्यक होता है। इसके विपरीत दक्षिण, पश्चिम-नैऋत, उत्तर-वायव्य एवं पूर्व-आग्नेय को खुला एवं खाली रखने से सूर्य की हानीकारक एवं नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है, जो स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिये अत्यंत हानीकारक होती है। वायु-तत्व प्राण वायु (आक्सीजन) के बिना सृष्टि का चलना असंभव है, क्योंकि प्राण वायु के बिना जीव, निर्जीव हो जायेगा। मकान में वायु के आवागमन हेतु उचित स्थान बनाया जाना चाहिये, क्योंकि स्वच्छ एवं शुद्ध वायु का सेवन जीवन के स्वास्थ्य एवं दीर्घायु हेतु बहुत आवश्यक है। इसके विपरीत प्रदूषण युक्त एवं दूषित वायु के सेवन से अनेक प्रकार की बीमारियां पनपने का अंदेशा रहता है। अत रोगमुक्त एवं स्वास्थ्यवर्द्धक जीवन व्यतीत करने के लिये मकान में शुद्ध वायु का प्रवेश होना अत्यंत ही आवश्यक है। यद्यपि वायु का आवागमन प्रत्येक दिशा से होता है, लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से भवन निर्माण में वायु प्रवेश का विशेष ध्यान रखना परम आवश्यक है। इसके लिये उत्तर-पश्चिम दिशा, जिसे वायव्य कोण कहा जाता है। इस वायव्य कोण की पश्चिम-वायव्य दिशा, वायु के संचारण हेतु मुख्य रूप से उपयोगी मानी गयी है। इस दिशा से वायु-तत्व की प्राप्ति करना, प्राणियों के स्वास्थ्य, दीर्घायु एवं भवन के टिकाऊपन के लिये महत्वपूर्ण है। पृथ्वी-तत्व समस्त संसार आकर्षण और विकर्षण से प्रभावित होता है। पृथ्वी के उत्तर-दक्षिण दिशा में चुंबकीय ध्रुव विद्यमान रहते हैं। इससे हमें गुरुत्वाकर्षण की शक्ति मिलती है। यह चुंबकीय ऊर्जा शक्ति उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की तरफ चलती है और इस ऊर्जा शक्ति का प्रभाव सभी जड़-चेतन पर समान रूप से पड़ता है। उत्तरी ध्रुव के पास दक्षिणी ध्रुव आने से आकर्षण पैदा होता है। मानव शरीर के मस्तिष्क में उत्तरी ध्रुव विद्यमान है, इसलिये वास्तु विषय में दक्षिण में मस्तिष्क एवं उत्तर दिशा की तरफ पांव करके सोने के लिये निर्देश दिया गया है। जिससे हमारे शरीर को चुंबकीय शक्ति एवं नैसर्गिक ऊर्जा शक्ति का लाभ मिलता है। आवास स्थल में उत्तम चुंबकीय किरणों का प्रभाव बनाये रखने के लिये पूर्व, उत्तर व ईशान दिशा में जगह का खुला एवं ढलान तथा दक्षिण, पश्चिम व नैऋत दिशा को ऊंचा, मजबूत एवं ढका हुआ होना अत्यंत आवश्यक है। आकाश-तत्व आकाश-तत्व एक मूल तत्व माना गया है। अत वास्तु विषय में इसे ब्रह्म-स्थल (मध्य स्थान) कहा जाता है। इस तत्व की पूर्ति करने के लिये पुराने जमाने में मकान के मध्य में खुला आँगन रखा जाता था, ताकि अन्य सभी दिशाओं में इस तत्व की आपूर्ति हो सके। आकाश-तत्व से अभिप्राय यह है कि गृह निर्माण में खुलापन रहना चाहिये। मकान में कमरों की ऊँचाई और आँगन के आधार पर छत का निर्माण होना चाहिये। अधिक व कम ऊँचाई के कारण आकाश-तत्व प्रभावित होता है। कई मकानों में दूषित वायु (भूत-प्रेत) का प्रवेश एवं आवेश देखा गया है। इसका मूल कारण वायु-तत्व और आकाश-तत्व का सही निर्धारण नहीं होना ही पाया गया है। मानसिक रोगों का पनपना भी आकाश-तत्व के दोष का ही नतीजा पाया जाता है। अत स्पष्ट तौर पर यह कहना मुनासिब होगा कि भू-गर्भीय ऊर्जा, चुंबकीय शक्ति, गुरुत्वाकर्षण बल, सूर्य रश्मियां, सौरमंडल की ऊर्जा, प्राकृतिक ऊर्जा इत्यादि का मानव जीवन के बीच समन्वय एवं संतुलन स्थापित करना ही वास्तु विषय का मुख्य उद्देश्य है। क्योंकि वास्तु के पंच-तत्वों का सीधा प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। अंत में यही कहा जा सकता है कि हमारा कर्तव्य है कि हम वास्तु के पंच-तत्वों की उपयोगिता के महत्व को समझें। भवन निर्माण में वास्तु विषय के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए निर्धारित दिशाओं से ही इन तत्वों को प्राप्त करने का प्रयास करे। ताकि नव-निर्मित भवन, गृह स्वामी और उसके परिवार के लिये सुख-समृद्धिदायक और उन्नतिशील सिद्ध हो सके।

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ओम प्रकाश शर्मा

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अति सुन्दर प्रस्तुति !

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भारत की छद्म स्वतन्त्रता

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स्वतन्त्रता दिवस या दासों की नई कहानी।15 अगस्त को प्रत्येक वर्ष मूर्ख हिंदू और मुसलमान उसी मानवता के संहार का जश्न मनाते हैं, दोनों को लज्जा भी नहीं आती ।युद्ध भूमि में भारत कभी नहीं हारा, लेकिन अपने ही जयचंदों से हारा है, समझौतों से हारा है । अपनी मूर्खता से हारा है, उन्हीं समझौतों में सत्ता के हस्

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खेचरी मुद्रा द्वारा अमृत पान

17 सितम्बर 2015
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खेचरी मुद्रा एक सरल किन्तु अत्यंत महत्वपूर्ण विधि है ।जब बच्चा माँ के गर्भ में रहता है तो इसी अवस्था में रहता है। इसमें जिह्वा को मोडकर तालू के ऊपरी हिस्से से सटाना होता है । निरंतर अभ्यास करते रहने से जिह्वा जब लम्बी हो जाती है । तब उसे नासिका रंध्रों में प्रवेश कराया जा सकता है । तब कपाल मार्ग एवं

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17 सितम्बर 2015
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नाड़ी शास्त्र के अनुसार, मानव शरीर में स्थित चक्र, जिनमें मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपूरक चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र एवं सहस्त्रार चक्र विद्यमान है। इन चक्रों का संबंध वास्तु विषय के जल-तत्व, अग्नि-तत्व, वायु-तत्व, पृथ्वी-तत्व एवं आकाश-तत्व से संबंधित है। वास्तु में पृथक दिशा

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मंत्र शक्ति

17 सितम्बर 2015
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जिसके मनन करने से रक्षा होती है वह मंत्र है. मंत्र शब्दात्मक होते हैं. मंत्र सात्त्विक, शुद्ध और आलोकिक होते हैं. यह अन्तःआवरण हटाकर बुद्धि और मन को निर्मल करतें हैं.मन्त्रों द्वारा शक्ति का संचार होता है और उर्जा उत्पन्न होती है. आधुनिक विज्ञान भी मंत्रों की शक्ति को अनेक प्रयोगों से सिद्ध कर चुके

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योग की सिद्धियां

17 सितम्बर 2015
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योग के सिद्धियों को फलित करके सर्ष्टि संचालन के सिधान्तों को जाना व प्रयोग किया जा सकता है किन्तु बहुत कम लोग जानते हैं कि किस योग से क्या घटित होता है इसी विषय पर संक्षिप्त लेख प्रस्तुत किया जा रहा है सभी योग के सिद्धि को प्राप्त करने की प्रक्रिया अलग-अलग है अतः प्रक्रिया पर पुनः विचार किया जायेगा

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शिवलिंग का रहस्य व वास्तविक अर्थ

17 सितम्बर 2015
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शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्दपुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है।शिवलिंग वातावरण सहित घूमती धरती तथा सारे अनन्त ब्रह्माण्ड ( क्योंकि, ब्रह्माण्ड गतिमान है ) का अक्स/धुरी (axis) ही लिंग है।शिव लिंग का अर्थ अनन्त भी होता है अर्थात ज

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श्री कृष्ण का जन्म तथा वंश

17 सितम्बर 2015
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श्री कृष्ण जी का जन्म चन्द्रवंश मे हुआ जिसमे ७ वी पीढी मे राजा यदु हुए और राजा यदु की ४९ वी पीढी मे शिरोमणी श्री कृष्ण जी हुए राजा यदु की पीढी मे होने के कारण इनको यदुवंशी बोला गया , श्री कृष्ण जी के वंशज आज भाटी, चुडसमा, जाडेजा , जादौन, जादव और तवणी है जो मुख्यत: गुजरात, राजस्थान , महाराष्ट्र, और ह

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श्री कृष्ण की सोलह कलाओ का रहस्य

17 सितम्बर 2015
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अवतारी शक्तियों की सामर्थ्य को समझने के लिए कलाओं को आधार मानते हैं। कला को अवतारी शक्ति की एक इकाई मानें तो श्रीकृष्ण सोलह कला के अवतार माने गए हैं। भागवत पुराण के अनुसार सोलह कलाओं में अवतार की पूरी सामर्थ्य खिल उठती है।1.श्री-धन संपदाप्रथम कला के रूप में धन संपदा को स्थान दिया गया है। जिस व्यक्ति

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रक्षाबन्धन का कारण तथा विधि

17 सितम्बर 2015
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जब भगवान् वामन अवतार धारण करके महाराज बलि से तीन पग भूमि की याचना करके उनका सर्वस्व हर लिए और महाराज बलि को सुतल लोक भेज दिया |और कहा कि यह लोक सुख सम्पदा से भरपूर होने के कारण स्वर्ग वासियों से भी अभिलषित है-सुतलं स्वर्गिभिः प्रार्थ्यं-भा.पु.-८/२२/३३,मैं बंधू बांधवों के सहित तुम्हारी रक्षा करूँगा

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नागमण‌ि तथा अन्य मणियों का रहस्य

17 सितम्बर 2015
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नागमणि को भगवान शेषनाग धारण करते हैं। भारतीय पौराणिक और लोक कथाओं में नागमणि के किस्से आम लोगों के बीच प्रचलित हैं। नागमणि सिर्फ नागों के पास ही होती है। नाग इसे अपने पास इसलिए रखते हैं ताकि उसकी रोशनी के आसपास इकट्ठे हो गए कीड़े-मकोड़ों को वह खाता रहे। हालांकि इसके अलावा भी नागों द्वारा मणि को रखने

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भारतीय पञ्चाङ्ग

17 सितम्बर 2015
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भरतीय इतिहास तथा सहित्य के ज्ञान के लिये पञ्चाङ्ग की परम्परा जानना आवश्यक है। अतः गत ३२ हजार वर्षों की पञ्चाङ्ग परम्परा दी जाती है। काल के ४ प्रकार, सृष्टि के ९ सर्गों के अनुसर ९ काल-मान, ७ युग तथा उसके अनुसार गत ६२ हजार वर्षों का युग-चक्र है(१) स्वायम्भुव मनु काल-स्वायम्भुव मनु काल में सम्भवतः आज क

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राजपूतों की वंशावली व इतिहास

17 सितम्बर 2015
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"दस रवि से दस चन्द्र से, बारह ऋषिज प्रमाण,चार हुतासन सों भये , कुल छत्तिस वंश प्रमाणभौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमानचौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण."अर्थ:-दस सूर्य वंशीय क्षत्रिय, दस चन्द्र वंशीय, बारह ऋषि वंशी एवं चार अग्नि वंशीय कुल छत्तिस क्षत्रिय वंशों का प्रमाण है, बाद में भौमवंश. , नाग

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आचार्य चाणक्य के अनमोल विचार

17 सितम्बर 2015
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आचार्य चाणक्य का जन्म आज से लगभग 2400 साल पूर्व हुआ था। वह नालंदा विशवविधालय के महान आचार्य थे। उन्होंने हमें 'चाणक्य नीति' जैसा ग्रन्थ दिया जो आज भी उतना ही प्रामाणिक है जितना उस काल में था। चाणक्य नीति एक 17 अध्यायों का ग्रन्थ है। आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के अलावा सैकड़ों ऐसे कथन और कह थे जिन

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डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सिद्धान्त एवं विचार

17 सितम्बर 2015
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मिसाइल मैन' के नाम से मशहूर भारत के 11वें राष्ट्रपति भारत रत्न डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम का सोमवार 27/07/2015 को निधन हो गया। तमिलनाडु के रामेश्वरम् में 15 अक्टूबर 1931 को जन्में डॉ. कलाम अपनी सफलता का श्रेय अपनी मां को दिया करते थे।उन्होंने कहा था कि “मैं अपने बचपन के दिन नहीं भूल सकता, मेरे बचपन को

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शिव तांडव स्त्रोतम

17 सितम्बर 2015
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||सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ||||श्रीगणेशाय नमः ||जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |धगद् धगद् धगज्ज्वलल् लल

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महाभारत के वीर

17 सितम्बर 2015
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महाभारत की कथा जितनी बड़ी है, उतनी ही रोचक भी है। शास्त्रों में महाभारत को पांचवां वेद भी कहा गया है। इसके रचयिता महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास हैं। महर्षि वेदव्यास ने इस ग्रंथ के बारे में स्वयं कहा है- यन्नेहास्ति न कुत्रचित्। अर्थात जिस विषय की चर्चा इस ग्रंथ में नहीं है, उसकी चर्चा कहीं भी उपलब्ध

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नागाओ का रहस्य

17 सितम्बर 2015
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कुंभ मेले के कवरेज में आपने कई बार देखा होगा कि नागा बाबा कपड़े नहीं पहनते हैं और पूरे शरीर पर राख लपेटकर घूमते हैं। उन्‍हे किसी की कोई शर्म या हया नहीं होती है वो उसी रूप में मस्‍त रहते हैं।नागा साधु हिन्दू धर्मावलम्बी साधु हैं जो कि नग्न रहने तथा युद्ध कला में माहिर होने के लिये प्रसिद्ध हैं। ये व

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"गायत्री मंत्र" का रहस्य

17 सितम्बर 2015
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गायत्री मंत्र को हिन्दू धर्म में सबसे उत्तम मंत्र माना जाता है. यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है. इस मंत्र का मतलब है - हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता (सवितुर) के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है।गायत्री मन्त्

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हिंदू धर्म की वैज्ञानिकता

17 सितम्बर 2015
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हिंदू परम्पराओं से जुड़े ये वैज्ञानिक तर्क1- कान छिदवाने की परम्परा-भारत में लगभग सभी धर्मों में कान छिदवाने की परम्परा है।वैज्ञानिक तर्क-दर्शनशास्त्री मानते हैं कि इससे सोचने की शक्त‍ि बढ़ती है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि इससे बोली अच्छी होती है और कानों से होकर दिमाग तक जाने वाली नस का रक्त संचा

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