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भारत यश गाथा

7 जुलाई 2022

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ज्ञान राशि के महा सिन्धु को,

तम आच्छादित जगत इंदु को,

पुरा सभ्यता के केंद्र बिंदु को,

नमस्कार इसको मेरे बारम्बार ।

रूप रहा इसका अति सुंदर,

वैभव इसका जैसा पुरंदर,

स्थिति भी ना कम विस्मयकर,

है विधि का ये पावन पुरस्कार ।।1।।


प्रकाशमान किया विश्वाम्बर,

अनेकाब्दियों तक आकर,

इसका सभ्य रूप दिवाकर,

छाई इसकी पूरे भूमण्डल में छवि ।

इसका इतिहास अमर है,

इसका अति तेज प्रखर है,

इसकी प्रगति एक लहर है,

ज्ञान काव्य का है प्रकांड कवि ।।2।।


रहस्यों से है ना वंचित,

कथाओं से भी ना वंचित,

अद्भुत है न अति किंचित्,

सुंदर इसका भारत अभिधान ।

शकुंतला दुष्यंत का पुत्र रत्न,

धीर वीर सर्व गुण सम्पन्न,

गूंजा जिसका रण में कम्पन,

भरत भूप पर इसका शुभ नाम ।।3।।


ऋषभदेव का पुत्र विख्याता,

जड़ भरत नाम जिसका जग गाता,

उससे भी है इसका नाता,

केवल नाम मात्र इतना महान ।

इस धरा के रंग मंच पर,

प्रगटे अनेक वीर नर वर,

जिनकी पुन्य पताका रही फहर,

जग गाता आज उनका गुणगान ।।4।।


सम्राटों की दानशीलता,

उनकी शरणागतवत्सलता,

उनकी प्रजा हित चिन्तकता,

है सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में चमक रही ।

भगवन को भी यह भाया,

समस्त संसार को बिसराया,

अपना यहाँ धाम बसाया,

की मुक्त असुर भार से अखिल मही ।।5।।


प्राकृतिक दशा भी ना कम है,

इतिहास से अग्र दो कदम है,

जग से दूर इसका जन्म है,

विश्व में इसका एक अलग अस्तित्व ।

उत्तर में गिरिराज हिमांचल,

धवल रूप फैलाता आँचल,

रूप श्रेणियों का अति चँचल,

देश पर इसका गम्भीर महत्व ।।6।।


दक्षिण में इसका चाकर,

बना हुआ पावन रत्नाकर,

धन्य देश उसको पाकर,

सिंचित करती इसकी जलधारा ।

स्वर्ग द्वार की शुभ सोपान,

महेश जटा की शुभ शान,

सुरसरिता जैसी नदी महान,

बहती इसमें पाप पुञ्ज हारा ।।7।।


यमुना की वह पावन गूँज,

कावेरी के मनमोहक कुंज,

नदियों के बलखाते पुञ्ज,

छाए हुए इस धरती के ऊपर ।

झरनों की सुंदर झरझर,

झीलों की वह शोभा प्रखर,

नदियों की मतवाली लहर,

गूँजाती इसका नभ आठों पहर ।।8।।


मधुपरियों का मोहक स्वांग,

मधुकर का नित गुंजित राग,

पुष्पों के मधु पूरित पराग,

हर कोने में सुरभित फैलाते।

फल लदे पादप अनेक,

वृक्षावेष्टित लता प्रत्येक,

केशर क्यारी एक एक,

सब घाटी के धरातल को सजाते ।।9।।


मानसरोवर के हँस धवल,

कैलाश की शोभा नवल,

हिममंडित श्रेणियाँ प्रबल,

है पावन स्वर्ग के शाक्षात द्वार ।

प्रकृति का हम पर आभार,

करती यहाँ वह षट् शृंगार,

ऋतुएँ देती अलग संसार,

नवल रूप से आकर हर बार ।।10।।


अल्प नहीं राजबाला से,

गीत सुने सरिता वीणा से,

अभय है तुंग शैल रक्षा से,

भारत भूमि का धरातल पावन ।

प्रकृति जिसकी स्वयं सहचरी,

फलदायिनी वाँछाकारी,

सिंचन करता सागर वारि,

वस्त्र बनाती हरियाली मनभावन ।।11।।


जिसकी धरा इतनी विकशित,

वसुधा जिसकी वैभव से सित,

धरती जिसकी इतनी प्रफुल्लित,

कम क्यों होंगे उस माता के जन ।

पुत्रों में रहा स्वाभिमान,

मातृभूमि पर रहा अभिमान,

विजयी बनी इसकी सुसंतान,

वीर पुत्र रहे वैभव से सम्पन्न ।।12।।


मानवता के रहे पूजारी,

सत्यव्रत के पालनकारी,

शरणागत के कष्टनहारी,

रहे भूप यहाँ के प्रजापालक ।

नृप थे इतने औजवान्,

भूप थे इतने वीर्यवान्,

नरेश थे इतने शौर्यवान्,

जिनकी शरण चाहता सुर पालक ।।13।।


बने हरिश्चंद्र चाण्डाल भृत्य,

प्राण त्याग शिवि हुए कृत कृत्य,

अस्थिदान किए मुनि ये सत्य,

दान प्रियता शरणागत रक्षा कारण ।

भिक्षु बना अशोक सम्राट,

भर्तरी त्यागा राजपाट,

पांडव भटके घाट घाट,

भटके रघुनंदन पितु आज्ञा कारण ।।14।।


जग गाता इसका गुणगान,

यह है सर्वरतन की खान,

इसका गौरव अति महान,

रक्षा पाते यहाँ दीन दुखी अति आरत ।

करें देश सेवा हो निश्चल,

रिपु मन में मचा दें हलचल,

यह संकल्प हमारा हो अटल,

प्राणों से हो उच्च हमारा भारत ।।15।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

https://kavikul.com/basudeo-honours 

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' की अन्य किताबें

21
रचनाएँ
अतीत के पन्ने
0.0
मेरी 1970 की रचनाएँ इस पुस्तक में संग्रहित की गयी है। उस काल में मैं दशवीं कक्षा में पढता था। दशम कक्षा में मैं एक हस्त निर्मित कापी में अपनी कविताएँ फेअर करके लिखता था और वह सहेज के रखी हुई कापी इस समय लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरे बहुत काम आई। उस कापी में मेरी उस समय की लगभग 25 के करीब रचनाएँ हैं। उस समय की मैं 21 कविताएँ इस पुस्तक के माध्यम से आज आप सभी पाठक वृंद से साझा कर रहा हूँ। बासुदेव अग्रवाल 'नमन' तिनसुकिया (असम)
1

"भारत गौरव"

21 सितम्बर 2020
11
2
4

(यह मेरी प्रथम कविता थी जो दशम कक्षा में 02-04-1970 को लिखी थी) जय भारत जय पावनि गंगे, जय गिरिराज हिमालय ; आज विश्व के श्रवणों में, गूँजे तेरी पावन लय । नमो नमो हे जगद्गुरु, तेरी इस पुण्य धरा को

2

"ईश गरिमा"

8 जुलाई 2022
2
2
1

ईश तुम्हारी सृष्टि की महिमा है बड़ी निराली; कहीं शीत है कहीं ग्रीष्म है कहीं बसन्त की लाली । जग के जड़ चेतन जितने हैं सब तेरे ही कृत हैं; जो तेरी छाया से वंचित अस्तित्व रहित वो मृत है ।।1।। कलकल क

3

"ग्रीष्म वर्णन"

8 जुलाई 2022
1
0
0

प्रसारती आज गर्मी पूर्ण बल को तपा रही है आज पूरे अवनि तल को। दर्शाते हुए उष्णता अपनी प्रखर झुलसा रही वसुधा को लू की लहर।।1।। तप्त तपन तप्त ताप राशि से अपने साकार कर रहा है प्रलय सपने। भाष्कर क

4

"कहाँ से कहाँ"

7 जुलाई 2022
3
0
0

मानव तुम कहाँ थे कहाँ पहुँच चुके हो। ज्ञान-ज्योति से जग आलोकित कर सके हो। वानरों की भाँति तुम वृक्षों पे बसते थे। जंगलों में रह कर निर्भय हो रमते थे।।1।। सभ्यता की ज्योति से दूर थे भटकते। ज्ञान

5

"वन्दना"

8 जुलाई 2022
2
0
0

इतनी ईश दया दिखला, जीवन का कर दो सुप्रभात। दूर गगन में भटका दो, अंधकारमय जीवन रात।।1।। मेरे कष्टों के पथ अनेक, भटका रहता जिनमें यह मन। ज्ञान ज्योति दर्शाओ प्रभो, सफल बने मेरा यह जीवन।।2।।

6

इधर और उधर

13 दिसम्बर 2020
3
0
0

इधर चलती जनता कछुए सी धीमी चाल, मचा भीषण आर्तनाद हमारे अंतर को जगाते; पर हाथों में हाथ धरे हम रह गए सोचते, क्यों कैसे की उलझन में हिचकोले खाते। उधर वे सजा काफ़िले ए.सी.कारों के, सड़कों पे दौड़े सरपट

7

"निशा"

8 जुलाई 2022
1
0
0

लो निशा भी आ गई, सजधज के श्यामल अम्बर में। तम की जयमाल लिये, इस विस्तृत जग स्वयंबर में।। सन्ध्या ने अभिवादन हेतु, अपना सुंदर थाल सजाया। रक्तवर्ण परिधान पहन, मधुर मंगलमय स्वर गूँजाया।। सांध

8

"सरिता"

8 जुलाई 2022
1
0
0

अवस्थित है धरा पर बहु शैल खण्ड। गगनचुम्बी आकृति को वे किये मण्ड। तुषार से आच्छन्न जिनके सिरस भाग। पहन रखी हो धरा ने जैसे धवल पाग।।1।। निकल पड़ी एक सरिता वहाँ से बन। भूधर बर्फ से था निर्मित उसका

9

"प्रातः वर्णन"

8 जुलाई 2022
0
0
0

उदित हुआ प्रभाकर प्रखर प्रताप लेके, समस्त जग को सन्देश स्फूर्ति का देके। रक्त वर्ण रम्य रश्मियाँ लेके आया, प्राची दिशि को अरुणिमा से सजाया।।1।। पद्म खण्ड सुंदर सरोवरों में उपजे, तुषार बिंदुओं स

10

"जागो देश के जवानों"

8 जुलाई 2022
1
0
0

जाग उठो हे वीर जवानों, आज देश पूकार रहा है। त्यज दो इस चिर निंद्रा को, हिमालय पूकार रहा है।।1।। छोड़ आलस्य का आँचल, दुश्मन का कर दो मर्दन। टूटो मृग झुंडों के ऊपर, गर्जन करते केहरि बन।।2।। म

11

"शशिकला"

8 जुलाई 2022
0
0
0

"शशिकला" रात्री देवी के आँगन में, गगन मार्ग से जब शशि जाता । शीतल किरणों को फैला, शुभ्र ज्योत्स्ना सर्वत्र छाता ।।1।। गगन मार्ग को कर आलोकित, बढ़ता धीरे धीरे पथ पर । पूरणानन से छिटका मुस्काह

12

"पुष्प"

8 जुलाई 2022
1
0
0

अहो पुष्प तुम देख रहे हो किसकी राहें, भावभंगिमा में करते हो किसकी चाहें; पुष्पित हो तुम पूर्ण रूप से आज धरा पर, मुग्ध हो रहे आज चाव से कौन छटा पर ।1। लुभा रहे हो मधुकरों को अपने मधुर परागों से,

13

"कल और आज"

8 जुलाई 2022
0
0
0

कभी कहलाता था तु,  सोने की चिड़िया जग में। जगत गुरु का देकर पद,  पड़ता जग तेरे पग में। विपुल वैभव पर अपने, जग में सम्राज्य विस्तारा। अतुलनीय बल विक्रम से, कितनो को तूने तारा।।1।। तेरे पावन वसु

14

"देश हमारा न्यारा प्यारा"

8 जुलाई 2022
0
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0

देश हमारा न्यारा प्यारा, देश हमारा न्यारा प्यारा । सब देशों से है यह प्यारा, देश हमारा न्यारा प्यारा ।। उत्तर में गिरिराज हिमालय, इसका मुकुट संवारे । दक्षिण में पावन रत्नाकर, इसके चरण पखारे ।

15

"सांध्य वर्णन"

8 जुलाई 2022
0
0
0

दिन के उज्ज्वल अम्बर से प्रगटी प्यारी संध्यारानी । अवसान दिवस सूचना की कहने आई यह वाणी ।।1।। तेज भानु की तप्त करों को छिपा के अपने आँचल में । रक्तवर्ण आभा छिटका दी जग के लोचन चंचल में ।।2।।

16

"आँसू"

8 जुलाई 2022
1
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मानस के गहरे घावों को स्मर, जो अनवरत है रोती। उसी हृदय की टूटी माला के, बिखरे हुये ये मोती।।1।। मानस सागर की लहरों के, ये आँसू फेन सदृश हैं। लोक लोचन समक्ष ये आँसू पर, इनके भाव अदृश हैं।।2।।

17

"अनाथ"

8 जुलाई 2022
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यह कौन लाल है जीर्ण शीर्ण वस्त्रों में, छिपा हुआ है कौन इन विकृत पत्रों में। कौन बिखेर रहा है दीन दशा मुख से, बिता रहा है कौन ऐसा जीवन दुःख से।।1।। यह अनाथ बालक है छिपा हुआ चिथड़ा में, आनन लुप्त

18

"दो राही"

8 जुलाई 2022
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एक पथिक था चला जा रहा अपने पथ पर मोह माया को त्याग बढ़ रहा जीवन रथ पर। जग के बन्धन तोड़ छोड़ आशा का आँचल पथ पर हुवा अग्रसर लिये अपना मन चंचल।1। जग की नश्वरता लख उसे वैराग्य हुवा था क्षणभंगुर इस जी

19

"हिमालय है आज भारत की कथा कह रहा"

8 जुलाई 2022
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प्रज्वलित दीप सा जो तिल तिल जल रहा जग के निकेतन को आलोकित जो कर रहा देश के वो भाल पर अपना मुकुट सजा फहराये वो विश्व में भारत के यश की ध्वजा शिवजी के पुण्य धाम में ये दीप जल रहा। हिमालय है आज भारत

20

"मन्दभाग"

8 जुलाई 2022
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फटेहाल से किसको कहते तुम अपनी करुण कहानी; भीगी आँखों के मोती से किसे सुनाते अन्तः वाणी। सूखे अधरों की तृष्णा से अंतर्ज्वाला किसे दिखाते; अपलक नेत्रों की भाषा के मौन निमन्त्रण किसे बुलाते।।1।।

21

भारत यश गाथा

7 जुलाई 2022
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ज्ञान राशि के महा सिन्धु को, तम आच्छादित जगत इंदु को, पुरा सभ्यता के केंद्र बिंदु को, नमस्कार इसको मेरे बारम्बार । रूप रहा इसका अति सुंदर, वैभव इसका जैसा पुरंदर, स्थिति भी ना कम विस्मयकर, है 

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