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"ईश गरिमा"

8 जुलाई 2022

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ईश तुम्हारी सृष्टि की महिमा है बड़ी निराली;

कहीं शीत है कहीं ग्रीष्म है कहीं बसन्त की लाली ।

जग के जड़ चेतन जितने हैं सब तेरे ही कृत हैं;

जो तेरी छाया से वंचित अस्तित्व रहित वो मृत है ।।1।।


कलकल करती सरिता में तेरी निपुण सृष्टि है;

अटल खड़े शैल पर भी तेरी आभा की दृष्टि है ।

अथाह उदधि की उत्ताल तरंगों में तु नीहित है;

भ्रमणशील भू देवी भी तुझसे ही निर्मित है ।।2।।


अथाह अनंत अपार अम्बर की नील छटा में;

निशि की निरवता में काली घनघोर घटा में ।

तारा युक्त चीर से शोभित मयंक मयी रजनी में;

तु ही है शीतल शशि में अरु चंचल चपल चांदनी में ।।3।।


प्राची दिशि की रम्य अरुणिमा में उषा की छवि की;

रक्तवर्ण वृत्ताकृति सुंदरता में बाल रवि की ।

अस्ताचल जाते सन्ध्या में लालिम शांत दिवाकर की;

किरणों में तु ही नीहित है प्रखर तप्त भाष्कर की ।।4।।


हरे भरे मैदानों में अरु घाटी की गहराई में;

कोयल की कुहु से गूँजित बासन्ती अमराई में ।

अन्न भार से झुकी हुई खेतों की विकसित फसलों में; 

तेरा ही चातुर्य झलकता कामधेनु की नसलों में ।।5।।


विस्तृत एवम् स्वच्छ सलिल से भरे हुए ये सरोवर;

लदे हुए पुष्पों के गुच्छों से ये सुंदर तरुवर ।

घिरे हुए जो कुमुद समूह से ये मन्जुल शतदल;

तेरी ही आभा के द्योतक पुष्पित गुलाब अति कल ।।6।।


अथाह अनंत सागर की उफान मारती लहरों में;

खेतों में रस बरसाती नदियों की मस्त बहारों में ।

समधुर तोय से भरे पूरे इस धरा के सुंदर सोतों में;

दृष्टिगोचर होती है तेरी ही आभा खेतों में ।।7।।


मदमत्त मनोहर गजराज की मतवाली चालें:

बल विक्रम से शोभित वनराज की उच्च उछालें ।

चंचल हिरणी की आँखों में यह मा की ममता:

तुझसे ही तो शोभित है सब जीवों की क्षमता ।।8।।


हे ईश्वर हे परमपिता हे दीनबन्धु हितकारक;

तेरी कृतियों का बखान करना है कठिन ओ' पालक ।

तुझसे ही तो निर्मित है अखिल जगत सम्पूर्ण चराचर;

तुझसे जग का पालन होता तुझसे ही होता संहार ।।9।।


खिल जाए मेरी मन की वाटिका में भावों के प्रसून;

कर सकूँ काव्य रचना मैं जिनसे हो भावों में तल्लीन ।

ये मनोकामना पूर्ण करो हे ईश मेरी ये विनती;

तेरे उपकारों की मेरे पास नहीं कोई गिनती ।।10।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'

तिनसुकिया

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' की अन्य किताबें

 Dr.Jyoti Maheshwari

Dr.Jyoti Maheshwari

बहुत अच्छा प्रस्तुतिकरण है।

26 फरवरी 2023

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रचनाएँ
अतीत के पन्ने
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मेरी 1970 की रचनाएँ इस पुस्तक में संग्रहित की गयी है। उस काल में मैं दशवीं कक्षा में पढता था। दशम कक्षा में मैं एक हस्त निर्मित कापी में अपनी कविताएँ फेअर करके लिखता था और वह सहेज के रखी हुई कापी इस समय लगभग 70 वर्ष की अवस्था में मेरे बहुत काम आई। उस कापी में मेरी उस समय की लगभग 25 के करीब रचनाएँ हैं। उस समय की मैं 21 कविताएँ इस पुस्तक के माध्यम से आज आप सभी पाठक वृंद से साझा कर रहा हूँ। बासुदेव अग्रवाल 'नमन' तिनसुकिया (असम)
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"भारत गौरव"

21 सितम्बर 2020
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(यह मेरी प्रथम कविता थी जो दशम कक्षा में 02-04-1970 को लिखी थी) जय भारत जय पावनि गंगे, जय गिरिराज हिमालय ; आज विश्व के श्रवणों में, गूँजे तेरी पावन लय । नमो नमो हे जगद्गुरु, तेरी इस पुण्य धरा को

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"ईश गरिमा"

8 जुलाई 2022
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ईश तुम्हारी सृष्टि की महिमा है बड़ी निराली; कहीं शीत है कहीं ग्रीष्म है कहीं बसन्त की लाली । जग के जड़ चेतन जितने हैं सब तेरे ही कृत हैं; जो तेरी छाया से वंचित अस्तित्व रहित वो मृत है ।।1।। कलकल क

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"ग्रीष्म वर्णन"

8 जुलाई 2022
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प्रसारती आज गर्मी पूर्ण बल को तपा रही है आज पूरे अवनि तल को। दर्शाते हुए उष्णता अपनी प्रखर झुलसा रही वसुधा को लू की लहर।।1।। तप्त तपन तप्त ताप राशि से अपने साकार कर रहा है प्रलय सपने। भाष्कर क

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"कहाँ से कहाँ"

7 जुलाई 2022
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मानव तुम कहाँ थे कहाँ पहुँच चुके हो। ज्ञान-ज्योति से जग आलोकित कर सके हो। वानरों की भाँति तुम वृक्षों पे बसते थे। जंगलों में रह कर निर्भय हो रमते थे।।1।। सभ्यता की ज्योति से दूर थे भटकते। ज्ञान

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"वन्दना"

8 जुलाई 2022
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इतनी ईश दया दिखला, जीवन का कर दो सुप्रभात। दूर गगन में भटका दो, अंधकारमय जीवन रात।।1।। मेरे कष्टों के पथ अनेक, भटका रहता जिनमें यह मन। ज्ञान ज्योति दर्शाओ प्रभो, सफल बने मेरा यह जीवन।।2।।

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इधर और उधर

13 दिसम्बर 2020
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इधर चलती जनता कछुए सी धीमी चाल, मचा भीषण आर्तनाद हमारे अंतर को जगाते; पर हाथों में हाथ धरे हम रह गए सोचते, क्यों कैसे की उलझन में हिचकोले खाते। उधर वे सजा काफ़िले ए.सी.कारों के, सड़कों पे दौड़े सरपट

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"निशा"

8 जुलाई 2022
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लो निशा भी आ गई, सजधज के श्यामल अम्बर में। तम की जयमाल लिये, इस विस्तृत जग स्वयंबर में।। सन्ध्या ने अभिवादन हेतु, अपना सुंदर थाल सजाया। रक्तवर्ण परिधान पहन, मधुर मंगलमय स्वर गूँजाया।। सांध

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"सरिता"

8 जुलाई 2022
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अवस्थित है धरा पर बहु शैल खण्ड। गगनचुम्बी आकृति को वे किये मण्ड। तुषार से आच्छन्न जिनके सिरस भाग। पहन रखी हो धरा ने जैसे धवल पाग।।1।। निकल पड़ी एक सरिता वहाँ से बन। भूधर बर्फ से था निर्मित उसका

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"प्रातः वर्णन"

8 जुलाई 2022
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उदित हुआ प्रभाकर प्रखर प्रताप लेके, समस्त जग को सन्देश स्फूर्ति का देके। रक्त वर्ण रम्य रश्मियाँ लेके आया, प्राची दिशि को अरुणिमा से सजाया।।1।। पद्म खण्ड सुंदर सरोवरों में उपजे, तुषार बिंदुओं स

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"जागो देश के जवानों"

8 जुलाई 2022
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जाग उठो हे वीर जवानों, आज देश पूकार रहा है। त्यज दो इस चिर निंद्रा को, हिमालय पूकार रहा है।।1।। छोड़ आलस्य का आँचल, दुश्मन का कर दो मर्दन। टूटो मृग झुंडों के ऊपर, गर्जन करते केहरि बन।।2।। म

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"शशिकला"

8 जुलाई 2022
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"शशिकला" रात्री देवी के आँगन में, गगन मार्ग से जब शशि जाता । शीतल किरणों को फैला, शुभ्र ज्योत्स्ना सर्वत्र छाता ।।1।। गगन मार्ग को कर आलोकित, बढ़ता धीरे धीरे पथ पर । पूरणानन से छिटका मुस्काह

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"पुष्प"

8 जुलाई 2022
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अहो पुष्प तुम देख रहे हो किसकी राहें, भावभंगिमा में करते हो किसकी चाहें; पुष्पित हो तुम पूर्ण रूप से आज धरा पर, मुग्ध हो रहे आज चाव से कौन छटा पर ।1। लुभा रहे हो मधुकरों को अपने मधुर परागों से,

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"कल और आज"

8 जुलाई 2022
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कभी कहलाता था तु,  सोने की चिड़िया जग में। जगत गुरु का देकर पद,  पड़ता जग तेरे पग में। विपुल वैभव पर अपने, जग में सम्राज्य विस्तारा। अतुलनीय बल विक्रम से, कितनो को तूने तारा।।1।। तेरे पावन वसु

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"देश हमारा न्यारा प्यारा"

8 जुलाई 2022
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देश हमारा न्यारा प्यारा, देश हमारा न्यारा प्यारा । सब देशों से है यह प्यारा, देश हमारा न्यारा प्यारा ।। उत्तर में गिरिराज हिमालय, इसका मुकुट संवारे । दक्षिण में पावन रत्नाकर, इसके चरण पखारे ।

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"सांध्य वर्णन"

8 जुलाई 2022
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दिन के उज्ज्वल अम्बर से प्रगटी प्यारी संध्यारानी । अवसान दिवस सूचना की कहने आई यह वाणी ।।1।। तेज भानु की तप्त करों को छिपा के अपने आँचल में । रक्तवर्ण आभा छिटका दी जग के लोचन चंचल में ।।2।।

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"आँसू"

8 जुलाई 2022
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मानस के गहरे घावों को स्मर, जो अनवरत है रोती। उसी हृदय की टूटी माला के, बिखरे हुये ये मोती।।1।। मानस सागर की लहरों के, ये आँसू फेन सदृश हैं। लोक लोचन समक्ष ये आँसू पर, इनके भाव अदृश हैं।।2।।

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"अनाथ"

8 जुलाई 2022
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यह कौन लाल है जीर्ण शीर्ण वस्त्रों में, छिपा हुआ है कौन इन विकृत पत्रों में। कौन बिखेर रहा है दीन दशा मुख से, बिता रहा है कौन ऐसा जीवन दुःख से।।1।। यह अनाथ बालक है छिपा हुआ चिथड़ा में, आनन लुप्त

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"दो राही"

8 जुलाई 2022
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एक पथिक था चला जा रहा अपने पथ पर मोह माया को त्याग बढ़ रहा जीवन रथ पर। जग के बन्धन तोड़ छोड़ आशा का आँचल पथ पर हुवा अग्रसर लिये अपना मन चंचल।1। जग की नश्वरता लख उसे वैराग्य हुवा था क्षणभंगुर इस जी

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"हिमालय है आज भारत की कथा कह रहा"

8 जुलाई 2022
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प्रज्वलित दीप सा जो तिल तिल जल रहा जग के निकेतन को आलोकित जो कर रहा देश के वो भाल पर अपना मुकुट सजा फहराये वो विश्व में भारत के यश की ध्वजा शिवजी के पुण्य धाम में ये दीप जल रहा। हिमालय है आज भारत

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"मन्दभाग"

8 जुलाई 2022
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फटेहाल से किसको कहते तुम अपनी करुण कहानी; भीगी आँखों के मोती से किसे सुनाते अन्तः वाणी। सूखे अधरों की तृष्णा से अंतर्ज्वाला किसे दिखाते; अपलक नेत्रों की भाषा के मौन निमन्त्रण किसे बुलाते।।1।।

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भारत यश गाथा

7 जुलाई 2022
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ज्ञान राशि के महा सिन्धु को, तम आच्छादित जगत इंदु को, पुरा सभ्यता के केंद्र बिंदु को, नमस्कार इसको मेरे बारम्बार । रूप रहा इसका अति सुंदर, वैभव इसका जैसा पुरंदर, स्थिति भी ना कम विस्मयकर, है 

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