लो निशा भी आ गई,
सजधज के श्यामल अम्बर में।
तम की जयमाल लिये,
इस विस्तृत जग स्वयंबर में।।
सन्ध्या ने अभिवादन हेतु,
अपना सुंदर थाल सजाया।
रक्तवर्ण परिधान पहन,
मधुर मंगलमय स्वर गूँजाया।।
सांध्य जलद भी सुंदर,
लो हाथ बांधकर खड़ा हुआ।
फैला अम्बर में पर,
रजनी अभिवादन को अड़ा हुआ।।
सुंदर सन्ध्या का वह,
पाकर शुभ गौरवपूर्ण निमन्त्रण।
प्राची से यह आई,
करने भूमण्डल का निरीक्षण।।
तारामय आवरण के,
धारण कर सुंदर परिधान।
अंधकार की सैना ले,
तेज भानु का किया अवसान।।
अतिकल मयंक सजाया,
उसने भाल तिलक में अपने।
उतरी विस्तृत नभ से,
जग को देने सुंदर सपने।।
घोर निस्तब्धता का,
उसने जग में फैलाया शासन।
कृष्ण दुकूल में जग को,
ढक अपना लगाया आसन।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया