रमेश चंद्र हिंदी के अत्यंत प्रभावशाली शिल्पकार हैं। कहानी चुनने और कथानक को विश्वसनीयता के साथ आत्मीय बनाने के लिए रचनाकार की सूक्ष्म दृष्टि और मानवीय मूल्य की सकारात्मकता बेहद जरूरी होती है। इस एतबार से चंद्र स्वाभाविक रूप से हमें पारंगत नजर आते हैं सबसे बड़ी विशेषता कहानी को पठनीयता होती है। चंद्र निस्संदेह अपनी पीढ़ी के ऐसे रचनाकार हैं, जिनमें बखूबी यह हुनर है। कहानी भी समाज का आईना होती है और जब तक हमारा चेहरा साफ-साफ नहीं दिखता, हम आईने पर यकीन नहीं कर सकते। 'भिखना पहाड़ी' में शीर्षक कथा के अलावा अन्य कहानियों-पती उँगलियाँ और लाली लौट गई। कमात कसूर क्या था ? कैसे मरद हो जी ?, घंटाघर, जामुन की जड़ तेरी बेटी, तू जाने दरकती दीवारें और जीरो माइल से गुजरते हुए जिंदगी के कई रंग रोशन होते हैं। साँसों के निरंतर आरोह-अवरोह की तरह जिंदगी भी हर जगह अपनी सुविधा और शर्तों पर चलती है। ऐसे में हमारा गहन तजुर्बा ही रचनात्मकता के आवरण में ढलकर कोई जीवंत आकृति उकेर सकता है। यही जज्बा रमेश चंद्र की प्रायः सभी कहानियों में मौजूद है। चंद्र ने वक्त की न पहचानी है कहानियाँ ऐसे मोड़ पर अवश्य ठहरती हैं, जहाँ हमें संभावनाओं के कई रास्ते नजर आते हैं। अपने कथा परिवेश को चंद्र ने व्यापक बना दिया है। हम समझते हैं कि हिंदी के अलावा इन कहानियों को विभिन्न भाषाओं में अवश्य स्थानांतरित होना चाहिए, क्योंकि विषय और कथानक की दृष्टि से ये बदलती दुनिया की बेहद मार्मिक कहानियाँ हैं।
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