बधाई हो तुम्हें उस रावण को जलाने की।
बुराई पर अच्छाई की जीत की खुशी मनाने की।
रावण को जला दिया लेकिन बुराई क्यों बढती जा रही।
मानवता की सीमाएं क्यों टूटती जा रही ।
क्या रावण के पुतला जलाने की परंपरा बुराई घटा रही।
रावण जलाने से मानव की प्रकृति बदलती जा रही।
अब तो छोड़ दो मिथ्या परंपराएं हद हो चुकी निभाने की।।
रावण को जलाकर तुम क्या हासिल कर रहे ।
क्या अपने अंदर के राग-द्वेष दूर कर रहे।
खुशी है किस बात की तुम्हें मुझे बता दीजिए।
अपने अंदर झांककर अपना सुधार बता दीजिए।
बस आदत पड़ गई है झूठी परंपरा निभाने की ।
पटाखे फोड़ोगे काठ कागज का रावण जलाओगे।
हजारों लाखों में गली-गली में पैसों को जलाओगे।
बुराई का अंत हुआ जो आज हो जायेगा जलाने से।
मानव को ही होगा नुकसान व्यर्थ का प्रदूषण फैलाने से।
स्वयं सुधरो बुराई खत्म कर ना जरुरत रहेगी रावण जलाने की।।
ना रावण बुरा था ना कंश बुरा था इस धरा पर ।
बुरे थे उसके अवगुण जन दिखते नहीं दृष्टि पटल पर।
बुराई तो तुझमें भी इतनी आयने में देख पता चल जायेगी।
जो इंसान को किसी ना किसी तरह से सतायेगी।
छोड़ दो पुरातन परंपरा जो है जन को हानि पहुंचाने की।।
इंजीनियर शशिकुमार करौली राजस्थान