मेरी लफ्जों से सजी हुई , अवतंस (माला) है वो।
मेरी हार और जीत का , शंखनाद है वो।
जैसे फूलों से रसस्वादन करते हैं भंवरे,
कविताओं से लफ्जों का रस चखते हैं पाठक।
साहित्य में अंलकार और छंदों से सजी हुई एक नारी है,
जो सज संवर के निकली है करने आकर्षित।।
कभी प्रेम कभी वीर रस में डुबकियां लगाते हैं।
जो कविताओं को अपने सीने से लगाते है।
मधुरता होती है शब्दों की हर रूप में,
चांद सूरज तारे भी धरा पर उतर आते हैं।।
कवि की भावनाओं का एक खिलता हुआ चमन है ।
जो खूशबू से महकाती है खिलते हुए फूलों की तरह।
कोई मंडराता है निकलती कलियों की डालियों पर,
प्रेम और विश्वास की असीम संभावनाओं की तरह।।
भक्ति, शक्ति और विरक्ति के आभास से सराबोर कर,
हमें उन सागर की अनंत गहराइयों तक पहुंचाती है।
जहां खो जाते हैं शब्दों की अद्भुत कल्पनाओं में,
हमें ईश्वर के अस्तित्व का आभास कराती है।।
कविताएं साहित्य की रीढ़ है,
कवियों के जुवान से निकलती मधुरता।
भावों के बहाव का बहता सागर,
कहीं गहनता और कहीं रहती है सरलता।।