एक बार फिर वक्त आ रहा,सियासत के मैदान में।
कौन पहनेगा विजय हार अब,2024 चुनाव में।।
एक तरफा हवा चल रही है, तूफान भयंकर छाया है।
कद्दावर नेताओं को धूल चटाई,देश पर राज जमाया है।
किस्मत फैसला होगा यहां पर,हार मिलेगा या हार मिलेगी।
कुर्सी पर कौन काबिज होगा,किसकी मत पाने में दाल गलेगी।
दो शेर भिड़ेंगे फिर से यहां पर ,महाभारती मैदान में।।
एक लड़ेगा कुर्सी बचाने,एक लडेगा कुर्सी को पाने।
किसी के खाली होंगे खाने,किसी के चारों चित्त है खाने।
जनता का विश्वास पाने को, विश्वास का यहां खेल चलेगा।
कहीं खुशी के दीपक जलेंगे, कहीं हार का विश्लेषण होगा।
सत्ता के दारोमदार यहां सब,लगाये तन मन धन दांव में।।
खुली चुनौती मिल रही है,पैसे के बलबूते पर।
हर कोई कहता दिख रहा है,लिखी जीत मेरे जूते पर।
यह लोकतंत्र की बदहाली है,जो खुलेआम चुनौती देते हैं।
मजबूरी क्या उनकी होती ,जो मत का सौदा करते हैं।
लाचार लोकतंत्र व्यवस्था,चिकन ,रूपये ,शराब में।।
जहां प्रचार में पर्चे बंटते थे,अब नोट बांटे जाते हैं।
कुछ वोट के बदले में मानव,ईमान बेचकर खाते हैं।
झूठे प्रलोभन देकर कर ,धोखे के जाल बिछाते हैं।
धर्म जाति के चक्कर में, लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हैं।
संविधान की हर पन्ने से,पीड़ा निकले चुनाव में।।