हे बचपन तेरी यादें आती है,तू था जब हम खुशनसीब थे।
कितनै सौभाग्यशाली थे,जब मां बाप के करीब थे।
ना द्वेष ,दंभ लेशमात्र था,निर्मल मन और दिल में प्यार था।
सिर पर था पिता का हाथ, मां के आंचल का खुशी संसार था।।
अमी सम पायस ,जिसकी एक-एक बूंद में ताकत और ताजगी थी।
नहीं थी तनिक कठोरता ,हमारे दिल में सदैव सादगी थी।
गिरते थे उठते थे ,उंगली के सहारे चलते थे।
उनके अस्तित्व में हर खुशी थी,खिलते हुए सुमन लगते थे।।
जाते-जाते हमें बचपन ,तू जिम्मेदारियां दे गया।
निश्छल मन विकसित तन में,अनभूली यादें दे गया।
उन अनुभूतियों की यादों में,हम बैठ अकेले हंसते हैं।
चाहते हैं कुछ मिल जाये अतीत के,हम उन दिनों को तरसते हैं।।
जिस चांद सूरज की, हम जिद्द करते थे।
जिस सांप और बिच्छू को भी अपना समझते थे।
अपने-पराये की दुनिया थी अति दूर।
हम सबको अपना समझ कर गोदी जाने की जिद्द करते थे।।
मां की ममता ,पिता का आशीष, हमारे लिए अमूल्य खजाना था।
हमारी चेहरे की खुशी पर, आशिक कोई जमाना था।
अलविदा कह गया वह बचपन ,हम फंस गये भव जाल में।
उस बचपन की ना एक पाई बची,होकर बैठा कंगाल मैं।