इंडिया व्यू के लिए ओड़िशा से रवि कुमार गुप्ता की रिपोर्ट।
गांव हो या शहर कहीं भी यह कहने और सुनने को मिल जाता है कि जीवन की आखिरी यात्रा में दुश्मन भी साथ देता है। लेकिन, जब मानवता मर जाए, मानवीय संवेदना शून्य हो जाए। तो यह कहने और सुनने वाली बात भर रह जाती है।
ओड़िशा के बरगढ जिले के भेड़ेन ब्लॉक स्थित उदेपुर गांव में चंद्रमणी जोर के साथ की कहानी सरकार और समाज के मानवीय संवेदनहीनता को उजाकर करके रख दे रही है। चंद्रमणी जोर की पत्नी के लिए न तो अर्थी मिल पाया और न ही आग। चंद्रमणी शव को कपड़े में लपेट अपने बेटे की मदद से कंधे पर ही उठाकर श्मशान घाट ले गए और दफनाया।
बताया जा रहा है कि चंद्रमणी जोर की पत्नी हेमाबती का तबियत 16 दिसंबर को अचानक खराब हो गया। डॉक्टर के पास ले जाने से पहले हीं उनका देहांत हो गया। लेकिन, जब चंद्रमणी जोर के सामने पत्नी के अंतिम संस्कार की बात आई तो न ही समाज
के लोग आगे आए और न ही सरकार का कोई नुमाइंदा। हालांकि बाद में गांव वालों की मदद से एक क्लब में आश्रय मिला है।
दअसल, चंद्रमणी जोर, ओड़िशा के ही संबलपुर जिले के जयघंट गांव के मुल निवासी हैं। लेकिन, वह अपने परिवार का गुजारा कराने के लिए बरगढ़ जिले के उदेपुर के आसपास के गांवों में घूम-घूम कर सारमंगली पूजा करते थे और इसी गांव में एक पेड़ के नीचे रहते थे। खबर के मुताबिक बाद में लोगों ने चंद्रमणी और उनके बेटे को आश्रय दिया है। जानकार बताते हैं कि यह पिछड़े इलाकों में से एक है ओड़िशा का बरगढ़ जिला।
चंद्रमणी को दो बेटियां और एक बेटा था। लेकिन, आर्थिक मजबूरी ने दोनों बेटियों को पहले ही इस दुनिया से छीन लिया है। और अब पत्नी भी चल बसी हैं।
आज हम आधुनिक युग का चाहें जितना भी दावा करें, लेकिन ओड़िशा में पहले दीना मांझी की घटना ने पूरी दुनिया को झंकझोर दिया और अब उसी राज्य में चंद्रमणी जोर की घटना ने मानवीय संवेदनहीनता को उजागर कर दिया है।
इस खबर को किसी मीड़िया ने नही उठाया। कुछेक स्थानीय समाचार पत्र को छोड़कर।
फोटो साभारः-नवभारत।
(रवि कुमार गुप्ता, ओड़िशा सेंट्रल विश्वविद्लाय से पत्रकारिता की पढ़ाई किए हैं और नियमित रुप से ब्लॉग लिखते हैं।)