कलमवार से: लोकतांत्रिक लॉलीपॉप,'हम बने तुम बने वोट देने के लिए'-
लेकिन समाज व्याप्त अराजकता, दंगे-फसाद, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार आदि को देखकर तो लगता है कि कोई सही नहीं है, सब के सब गरीबों के टैक्स पर ऐश कर रहे हैं. इतना तो हम जान रहे हैं पर हम जैसे लोग हैं कितने. हर चुनाव में बस वादा और इरादा का नाटक देख रहे हैं. लेकिन फर्क बस इतना दिखता