वाकई गधा, गधा हैं! ( व्यंग्य )- गधे का बोल देना यात्रा के दौरान मंगलमय माना जाता है और यदि कछुआ अंगुलि को पकड़ ले तो गधे की आवाज सुनकर छोङ देता है. ऐसा माना जाता है पता नहीं वास्तविकता क्या है लेकिन गधे की मेहनत की वास्तविकता को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं परंतु करते तो आ रहे हैं. और हाँ, भगवान के सारे अवतार में से एक अवतार तो गधे का भी है तो फिर वह आज तक हीन व अकुशलता का प्रतीक मात्र क्यों हैं. सोंचते - सोंचते पिताजी से सवाल पूछ बैठा. 'किस गधे की बात कर रहे हो तुम, खुद कि या फिर हरि काका के गधे की' पिताजी जोर से पुछे, जब मैंने उन्हें यह सवाल किया कि गधा, गधा क्यों हैं? 'हमेशा गधे वाली हरकत करता हैं, पुरा गधा बन गया है', मैं मन ही मन में सोचा कि सवाल पुछ देना गधों वाली हरकत हैं! यदि हां तब तो फिर सब के सब गधे हैं क्योंकि सवाल पूछना तो हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं और बिना सवाल के तो बात ना बढ़ सकती है और ना ही बन सकती है. सवाल नहीं तो फिर जवाब का कोई मतलब ही नहीं निकलता. अरे! एक सवाल से पत्रकार सनसनी खबर बना देता है, वकील गुनाह कबूल करवा देता हैं और अर्जुन का एक सवाल ही तो था जिसका जवाब गीता का उपदेश बन गया. मनमंथन कर के रूख किया बाहर की ओर क्योंकि अगर और कुछ देर ठहरता तो नये-नये गधे वाली गालियाँ खानी पड़ती. तभी पीछे से आवाज आई कि 'गधे की तरह सर झुका कर चल पङे'. लेकिन अब आप ही बताइए कि सर झुका कर चलना तो संस्कार हैं तो फिर इसका मतलब यह है कि गधे संस्कारी होते हैं क्योंकि बङो के सामने सीना ताने चलना तो संस्कार के खिलाफ हैं. मन, मन से सवाल-जवाब करने लगा था और दिल में ज्वारभाटा की तरह जवाब निकलने को तैयार थे लेकिन डर था कि पिताजी मेरे जवाब से भङक कर मेरे बस्ते का वजन ना बढ़ा दे. 'अब गधे की तरह खङा हो कर सोंचना बंद करो और जाओ मेरे विद्यालय की फाइल लाओ और हाँ, मेरा एक इमेल शिक्षा अधिकारी को भी भेज देना. जाओ या फिर डंडे से फटकारना होगा.' मेरा अंतर्मन मुझसे कहा कि तुम तो सारे काम कर लेते हो और सत्कार - संस्कार भी भरे पड़े हैं तो फिर उस चार पैर वाले गधे की तरह चुपचाप क्यों हो? जो कि घोङो से कई गुना ज्यादा मेहनत करता हैं, कम खाता है फिर भी मालिक के इशारे पर नाचता रहता है फिर भी दुनिया के सामने उसका कोई मोल नहीं है क्योंकि वह खामोश रहता है. पिताजी हाँ! मैं गधा हूँ क्योंकि मुझे सबकुछ आता है सिवाये अपने मुँह मियां मिट्ठू बनने के. मैं बिना लाल लगाम का हूँ इसलिए गधा हूँ. गधे को गधा बोलने से कुछ नहीं होता है लेकिन उसे ट्रेनिंग दी जाएगी तो वह घोङो से कम नहीं हैं. अब पता चला कि गधा, गधा क्यों हैं. मेरी बात पिताजी को दुलती की तरह लगी और उनका चाटा मेरे पीठ पर पङा और मैं चलने लगा गधे की चाल में. गधों की मानें तो सब गधे हैं लेकिन गधा को गधा समझने वाले होशियार है! गधे की पीठ पर अपने बोझ को लादकर पिछलग्गू के तरह चलने वाला क्या गधा नहीं है?